शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

सुर-२०१८-२०० : #जाने_कहाँ_गये_वो_दिन




इकन्नी, दुअन्नी
चवन्नी, अठन्नी
कलदार-से वो दिन
डायनासोर की तरह लुप्त हुये
जीवाश्म भी शेष नहीं
जिनके डी. एन. ए. से दोबारा
बना सके अतीत के सिक्के
वो तो बस, बंद हैं
यादों के लॉकर में उनके
जिनकी उम्र के दिन को भी अब
उल्टी गिनती शुरू हो चुकी
कभी खतों-किताबों में ही शायद,
जिक्र मिले उनका
मगर, ख्याल आता तभी
वो भी तो पहुंच चुके हैं अब तक
विलुप्ति की कगार पर
मोबाइल और गेजेट्स के जमाने में
अहसास विहीन किस्से दर्ज हैं
और, आज का सब कुछ कल
इतिहास बनने को अग्रसर
तब कोई अगली पीढ़ी लिखेगी
अपने दौर की मधुर यादें
हर युग में ये शब्द बने रहेंगे अर्थवान
कहेगा फिर कोई
बहुत याद आते हैं वो दिन
कि गुजरा कल तो
स्मृति का हिस्सा होता हैं
जिसमें दर्ज कोई किस्सा होता हैं
और जिसको भूलना नामुमकिन होता हैं ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० जुलाई २०१८

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