बुधवार, 18 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१९८ : #उनके_गीत_सदाबहार #मुबारक_बेगम_रहेंगी_याद




कभी तन्हाइयों में यूँ
हमारी याद आयेंगी
अंधेरें छा रहे होंगे
के बिजली कौंध जायेंगी...

आज ऐसी ही काली अंधियारी बारिश की रात हैं बिजली भी चमक रही हैं और इसके बीच लैपटॉप पर गूंजती ‘मुबारक बेगम’ की आवाज़ और उसके ये दिल में उतरने वाले बोल फिर ये साबित कर रहे हैं कि किसी कलाकार के पूरे जीवन में किया गया एक भी ऐसा काम जो उसकी पहचान बन जाये उसे हमेशा-हमेशा के लिये अपने चाहने वालों के दिलों में इस तरह से अंकित कर देता हैं जिस तरह पत्थर पर लकीरें बन जाती जो फिर किसी तरह भी मिटाई नहीं जा सकती कुछ ऐसी ही गहरी छाप छोड़ी अपनी अलहदा गायिकी से ‘मुबारक बेगम’ ने भी जिन्होंने भले ही गीत कम गाये लेकिन, जो भी उनके कंठ से एक बार निकला वो उनकी खनकती आवाज़ में ढलकर सदाबहार बन गया और सदाबहार चीजें हमेशा ही ताजा-तरीन रहती हर एक समय की सुइयों व पीढियों के साथ संगत कर लेती यदि ऐसा न हो तो उन्हें एवरग्रीन कोई क्योंकर कहेगा उस पर जब उस गीत को रचने में सभी माहिर लोगों का हाथ हो तो फिर वो नगमा अनमोल भी बन जाता जिसकी कीमत उसके पुराने होने के साथ-साथ बढ़ती ही जाती हैं जिस तरह से पुरानी क्लासिकल हिंदी फिल्मों के गीतों के साथ हो रहा कि लोग उनको रीमिक्स कर के सुन रहे उसके बावजूद भी असल तो असल ही रहता जिसकी मधुरता व उससे जुड़े अहसासों को किसी भी तरह से मिक्स नहीं किया जा सकता वो तो उसे सुनकर ही फिर से ताजा होते कुछ ऐसा ही श्रोताओं का उनके गीतों से भी जुडाव हैं

नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले
ये दुआ मांगते हैं नैन ये रोने वाले
नींद उड़ जाए तेरी....

‘जुआरी’ फिल्म में उन्होंने ये गीत गाया तो सिचुएशन के हिसाब से मगर, बहुत सी प्रेमिकाओं के दिल की बात इसमें समाई थी तो उनको बेहद पसंद आया और इस तरह से उनके गीतों में विविधता भी देखने में मिली यूँ तो उनका जन्म राजस्थान के चुरू जिले के एक कस्बा ‘सुजानगढ़’ में हुआ पर, कुछ समय बाद उनका परिवार वहां से अहमदाबाद चला गया लेकिन, आगे का जीवन और किस्मत की लेखनी में तो कुछ और ही बदा था तो फिर रास्ता अपने आप मुम्बई की तरफ मुड़ गया और उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचाने का जरिया बने उनके चाचा जो कि फिल्मों के बड़े वाले शौकीन थे और वे अक्सर अपने चाचा के साथ फिल्में देखने जाया करती थी वहीं पर उन्होंने किसी फिल्म में ‘सुरैया’ की आवाज़ सुनी और मानो उन्हें उनके जीवन का लक्ष्य मिल गया गायिकी जिसके लिये उन्होंने प्रयास शुरू कर दिया संगीत की तालीम लेकर आल इंडिया रेडियो में गाने की शुरुआत भी कर दी जहाँ से वो उन्हें फ़िल्मी दुनिया की तरफ ले गयी क्योंकि, यहीं उसे मशहूर संगीतकार ‘रफ़ीक गज़नवी’ ने सुना और फिल्मों में गाने का ऑफर दिया हालाँकि उनके बुलावे पर गयी तो जरुर पर  गा न सकी दूसरी बार भी ऐसा ही हादसा हुआ

मोहे आने लगी अंगडाई
आजा, आजा बलम हरजाई...

फिर आया १९४९ जब उनकी उम्र महज १३ साल थी तो उन्होंने ‘शौकत हैदरी’ के संगीत निर्देशन में ‘आइये’ फिल्म के लिये अपना ये पहला गीत रिकॉर्ड किया जिसे सुनकर उनकी आवाज़ व गायिकी में ‘सुरैया’ का प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जा सकता हैं यहाँ से जो सिलसिला शुरू हुआ तो १९५३ में आई ‘दायरा’ फिल्म जिसने उनको शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और मोहम्मद रफी के साथ गाया उनका गाना ‘देवता तुम हो मेरा सहारा, मैंने थामा हैं दामन तुम्हारा’ जिसे ट्रेजेडी क्वीन कहलाई जाने वाली महान अभिनेत्री ‘मीना कुमारी’ पर फिल्माया गया था ने उनको स्थापित कर दिया और जब १९६३ में आई ‘हमारी याद आयेगी’ तो उसने नये कीर्तिमान रच दिए और ‘कभी तन्हाइयों में यूँ...’ गीत ने सबको अपना दीवाना बना लिया और पढ़ी-लिखी न होने के बाद भी केवल अपनी याददाश्त के दम पर वे गीतों को याद कर बिना किसी गलती के रिकॉर्ड करती रही और आगे बढ़ती रही पर, उस समय सुर सम्राज्ञी ‘लता मंगेशकरजी’ की भी सुर यात्रा शुरू हो चुकी थी तो उनको उतने अवसर नहीं मिल पाए मगर, जो मिले उन्होंने उसे यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

मुझको अपने गले लगा लो
ऐ मेरे हमराही
तुमको क्या बतलाऊं मैं के
तुमसे कितना प्यार हैं...

१९६३ में ही आई ‘हमराही’ के इस गीत ने भी उनको अपनी अलग पहचान दिलाने में विशेष भूमिका निभाई जो उनकी खास आवाज़ की वजह से था पर, उनकी निरक्षरता ने उनको अंत समय में बेहद तंगहाली के दिनों से गुजारा और आज ही के दिन पिछले बरस उन्होंने मुफलिसी के साथ गुमनामी की ज़िंदगी बिताते हुये दम तोड़ दिया जो फ़िल्मी दुनिया के स्याह पक्ष को दर्शाता हैं जहाँ जीते-जी उनको किसी ने नहीं पूछा सिवाय सुनील दत्त जी के जिन्होंने रहने की जगह व पेंशन की व्यवस्था की पर वो अपर्याप्त थी तो गरीबी व बीमारी उनको निगल गयी आज उनकी प्रथम बरसी पर कालजयी फिल्म ‘देवदास’ में गाये उनके ही इस गीत के द्वारा उनको अश्रुपूरित श्रद्धांजलि...

वो न आयेंगे पलटकर उन्हें लाख हम बुलाये
मेरी हसरतों से कह दो कि ये ख़्वाब भूल जाये
अगर इस जहां का मालिक कहीं मिल सके तो पूछे
मिली कौन-सी खता पर हमें इस कदर सजायें ॥        
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ जुलाई २०१८

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