शनिवार, 21 जुलाई 2018

सुर-२०१८-२०१ : #जिसके_गीतों_बिन_नीरस_जिंदगी #वो_हैं_सर्वाधिक_लोकप्रिय_गीतकार_आनंद_बक्षी




तेरे मेरे बीच में कैसा हैं ये बंधन अंजाना
मैंने नहीं जाना तूने नहीं जाना...

एफ.एम. पर जैसे ही ये गीत बजा ‘रूहानी’ उस कालखंड में पहुँच गयी जब ये फिल्म रिलीज हुई थी उस वक़्त वो अपनी उम्र के उसी साल में तो थी जिसके बारे में इस फिल्म के ही एक गीत में ‘आनंद बक्षी साहब’ ने लिखा था ‘सोलह बरस की बाली उमर को सलाम... ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम’ और उन नजरों का सलाम आँखों ही आँखों में दोनों ने कुबूल किया और सबसे छिपकर अनकहा इश्क़ दोनों के दिलों में पलने लगा था जिसका इज़हार लबों से होना बाकी था तो कॉलेज के वार्षिकोत्सव में उसने अपने गाये गीत के जरिये इशारा किया जो अभी भी उसके कानों में गूंज रहा था...

दिल क्या करें जब किसी से किसी को प्यार हो जाये
जाने कहाँ कब किसी से किसी को प्यार हो जाये...

उस दिन उसका दिल इतनी जोर से धड़का था कि उसे लगा सारा कॉलेज ही उसकी धड़कन सुन रहा हैं तो शर्म के मारे उसकी पलकें ही उपर न उठी और वो अपने दिल की बात बयाँ भी न कर सकी वो कोई आज का दौर तो था नहीं कि मोबाइल या इमेल पर तुरंत जो मन चाहा टाइप कर दिया या जहाँ जी चाहा जिसके भी साथ चले गये तब तो एक-दूसरे की एक झलक देखने तक को निगाहें तरसती थी ऐसे में तन्हाई का सहारा गीत ही थे तो उन्हें बजा लेती...

अंखियों को रहने दे अंखियों के आस-पास
दूर से दिल की बुझती रहें प्यास...

वो अँखियाँ भी कितनी देर पास रहती केवल तब तक जब तक कॉलेज में हो उसमें भी कितनी मुश्किलें लडकों से बात करना भी कोई इतना आसान थोड़े न था उन दिनों न ही बॉय फ्रेंड्स का चलन या लडकों का घर आना ही आम बात तो किसी भी एक झलक या मुलाकात को रब की इनायत समझा जाता था जो कभी अचानक किसी के घर या मार्किट या फिर सिनेमा हाल में हो जाये आमने-सामने की उस पहली मुलाकात के तो दोनों ख्वाब ही देखते रहे और गुनगुनाते रहे...

आज उनसे पहली मुलाकात होगी
फ्री आमने-सामने बात होगी
फिर होगा क्या, क्या पता क्या खबर...

वो मुलाकात तो कभी हुई ही नहीं मगर, खुशबू से भरा एक गुलाबी खत किताब में रखकर  जरुर उसके नाम आया जिसे पढ़कर उसका मन मयूर की तरह झूम उठा और उस दिन सारे घर में इधर-से उधर डोलते हुये उसके होंठों पर यही तराना था...

आपका ख़त मिला आपका शुक्रिया
आपने याद मुझको किया
शुक्रिया... शुक्रिया...    

अपने पागल मन की बेताबी को वो समझ नहीं पाती किस तरह से खुद को समझाये कैसे मन को संभाले कि उसके हाव-भाव या किसी बात से भी किसी को ये अहसास न हो कि उसे प्रेम का रोग लग चुका हैं आखिर क्यों वो प्रेम के चक्कर में फंस गयी यही सोचती रहती...

किस लिये मैं ने प्यार किया
दिल को यूँ ही बेक़रार किया
शाम सवेरे तेरी राह देखी
रात दिन इंतज़ार किया... 

इंतजार भी ऐसा कि उसके अंत का कोई पता नहीं होगा भी या नहीं और जो होगा तो सुखद या दुखद उसके दिन-रात इस तरह बैचेनी से कटने लगे यूँ तो ‘दो लफ्जों की हैं दिल की कहानी या हैं मुहब्बत, या हैं जवानी’ और उसकी कहानी में तो दोनों ही शामिल थे फिर भी कहानी आधी-अधूरी थी भले ही उन दिनों ‘प्यार करने वाले कभी डरते नहीं, जो डरते हैं वो प्यार करते नहीं’ जैसे गाने भी बजते थे पर, सिर्फ फिल्मों में ये संभव था असल जिंदगी में तो कशमकश ही भरी थी वो तो मीरा की तरह सुध-बुध भूलकर गाती ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके’ और सारा दिन यही सोचती...

जाने क्यों लोग मुहब्बत किया करते हैं
दिल के बदले दर्द-ए-दिल लिया करते हैं...

दर्दे दिल, दर्दे जिगर दिल में जगाकर वो भी तो बेकरार होगा तभी तो उसको भी वैसा ही महूसस होता यही सब बातें कर वो अपने मन को बहलाती कि वो अकेली ही परेशां नहीं हैं वो भी इस वक़्त उसकी तरह लेटा हुआ यही ख्वाब देख रहा हैं...

झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा...

अकेले-अकेले बहुत सारे सपनें देख डाले थे उसने बिन ये जाने कि वो भी उसकी ही तरह दीवाना हुआ या नहीं उसे तो बस ये पता था कि, ‘प्यार दीवाना होता हैं, मस्ताना होता हैं, हर ख़ुशी से हर गम से अंजाना होता हैं...’ तो बस, अपने दर्द से अंजान बनकर वो अपने अंतर्मन में बसी उसकी छवि से कहती ‘मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊं कहीं, तू मुझे आजमाने की कोशिश न कर...’ और फिर उसे पता चला कि वो नौकरी करने दूसरे शहर चला गया तो जब याद में बेहद बेसब्री हो जाती तो रेडियो में गाना लगाकर जोर-जोर से गाती...

याद आ रही हैं, तेरी याद आ रही हैं
याद आने से तेरे जाने से जान जा रही हैं...

वो पलकें बिछाये उसका इंतजार करने लगी मगर, सालों-साल बीत गये वो नहीं आया और यदि आया भी होगा तो उसे पता न चला होगा क्योंकि, कोई जरिया तो था नहीं जिससे पता चलता सहेलियाँ भी धीरे-धीरे शादी के बाद उसे छोड़कर चली गयी तो कैसे पता चलता फिर और उसके आने का तो सवाल नहीं ऐसे में उसने ये स्वीकार करना पड़ा...

ये जीवन है
इस जीवन का
यही है, यही है, यही है रंग रूप
यही है, यही है, यही है रंग रूप
थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ
यही है, यही है, यही है छाँव धूप
ये जीवन है...

और ‘जिंदगी’ के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते...’ तो उसकी उम्मीद ही छोड़ दी अब तो ‘लंबी जुदाई चार दिनों दा प्यार ओ रब्बा बड़ी लंबी जुदाई...’ जैसे दर्द भरे गीत उसकी तन्हाई के साथी बन गये आज जब ‘आनंद बख्शी साहब’ के जन्मदिन पर उनके लिखे गीत बजे तो मानो उन दिनों की फिल्म उसके समाने घुम गयी और उसने मन ही मन उनको धन्यवाद दिया जिनके गीत उसके जीवन का अहम हिस्सा बने उसके सुख-दुःख के साथी और यदि ये न होते तो वो किस तरह एकाकी जीवन बिताती क्योंकि, यही तो हैं जिन्होंने उसको कभी तन्हा न होने दिया और फिर वो बजते गीत के बोलों को गाने लगी...

आएगी आएगी आएगी किसी को हमारी याद आएगी
मेरा मन कहता है प्यासे जीवन में कभी कोई बदली छाएगी... ☺ ☺ ☺ !!!
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ जुलाई २०१८

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