बुधवार, 25 जुलाई 2018

सुर-२०१८-२०५ : #लघुकथा_फूलन_देवी_ नहीं





कॉलेज के पहले दिन लौटते ही 'गार्गी' ने अपनी मां से कहा, "मम्मा, आपने इतने देवी-देवताओं के बारे में बताया पर, 'फूलन देवी' के विषय में तो कुछ नहीं बताया कि ये कौन-सी देवी हैं"?

क्यों क्या हुआ कॉलेज से आते ही ये सवाल? माँ ने सवाल के जवाब में प्रतिप्रश्न किया

अरे मां, आज पहला दिन था तो क्लास में मैडम इंट्रोडक्शन ले रही थी और उन्होंने हम सबसे सवाल किया कि आपका आइडियल कौन हैं तब एक लड़की ने उसका नाम लिया लेकिन, मैंने तो ये नाम कभी नहीं सुना बोलो न कौन है ये?

बेटी, ये एक डाकू हैं और मुझे नहीं पता कि एक महिला डाकू के नाम के साथ ये सम्मानित संबोधन किसने जोड़ा पर, इतना जरूर पता कि वो अपना बदला लेने के लिये डाकू बनी और कई निर्दोष लोगों को भी मौत के घाट उतारा वो तो इस देश की घटिया राजनीति जिसने उसको मौत की सजा देने की बजाय संसद में पहुंचा दिया जहां तक मैं जानती हूं उसने ऐसा एक भी काम नहीं किया न ही उसका चरित्र उच्च और न ही उसमें ऐसा कोई भी सद्गुण जिससे उसे ‘देवी’ का दर्जा दिया जाये ।

माँ अपने ही वाल्मिकी की कहानी सुनाई थी जो एक डाकू थे पर, बाद में महर्षि बने तो क्या फिर एक महिला डाकू से ‘देवी’ नहीं बन सकती ?

बेटी, जरुर बन सकती हैं यदि वो पहले से ही वैसी होती जिस तरह कि ‘वाल्मिकी’ प्रारंभ से ही थे और एक घटना से उनका मानस परिवर्तन हुआ तो फिर वे पुर्णतः बदल गये और सत्य की तरफ ऐसे उन्मुख हुये कि कोई उन्हें अपने पथ से डिगा न सका अपने जीवन से उन्होंने एक मिसाल कायम की ये बताया कि हम जन्म से भले कुछ हो पर, ठान ले तो अपना भविष्य संवार सकते हैं । ‘फूलन’ अपने साथ हुये अत्याचार का प्रतिकार लेने डाकू बनी जिसके बाद उसे अपनी राह बदल देनी थी लेकिन, नहीं उसने निरपराधों पर उसी तरह जुल्म ढाये जैसा उसके साथ हुआ और जब अपनी जान का खतरा लगा तो आत्मसमर्पण कर दिया  

मां लेकिन, आप ही तो कहती हो न कि अन्याय के खिलाफ शस्त्र उठाना सही है फिर वो गलत क्यों?

यदि इस नजरिये से देखे तो सभी आतंकवादी, अत्याचारी, अपराधी देवी-देवता की श्रेणी में आ जायेंगे और इस आधार पर तो हमें ‘इंदिरा गाँधी’ और ‘राजीव गाँधी’ के हत्यारों को भी फांसी न चढ़ाकर उनकी पूजा करनी चाहिये बेटी, ‘देवी’ या ‘देवता’ बनना इतना आसान नहीं उसके लिये अपने निज स्वार्थ व सुखों सहित सर्वस्व त्याग अपने आपको देश व जनहित में समर्पित करना पड़ता हैं और फूलन इस कसौटी पर जरा-सी भी खरी नहीं उतरती हैं ।

मम्मा, फिर उस लड़की ने उसे क्यों अपना आदर्श माना?

हो सकता उसे सही जानकारी न हो या फिर उसकी नजरों में यही अच्छाई का पैमाना हो पर, तुम न भूलना कभी ये बात कि, जैसे हमारे आदर्श होंगे वैसा हमारा चरित्र बनेगा आजकल लोगों के आइडियल ऐसे ही लोग इसलिये तो अपराध बढ़ रहे हैं पहले लोग स्वामी विवेकानंद, भगत सिंह, राजा राम मोहन रॉय, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई, जीजा बाई, पन्ना धाय, दमयंती, सावित्री, मैत्रेयी आदि को अपना रोल मॉडल समझते तो वैसे ही सच्चरित्र बनते थे पर, आज डाकू को फिर तुम्ही बताओ अपराध कैसे रुकेंगे भला?

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ जुलाई २०१८

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