सोमवार, 9 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१७९ : #नौ_जुलाई_को_जन्मे_दो_कलाकार #एक_गुरुदत्त_तो_दूसरे_थे_संजीव_कुमार



पहले के कलाकारों के लिए उनका काम पूजा होता था और अभिनय को वो महज़ पेशा नहीं अपना धर्म समझते थे इसलिए उनके किये गए अभिनय में बनावटीपन कम ही नजर आता था यही वजह कि उस दौर के छोटे-से-छोटे कलाकारों के नाम भी लोगों के जुबान पर थे चाहे उसका रोल कितना भी नगण्य क्यों न हो मगर, अभिनय में यदि संपूर्णता हैं तो फिर उसे पहचानने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होती यहां तक कि उस जमाने के संगीतकार, गीतकार, कैमरामैन, एक्टर, एक्ट्रेस, कॉमेडियन, विलेन सबने अपनी पक्की छाप छोड़ी जिसके निशान आज भी मौजूद हैं और लोग उनको याद करते कि वे नींव के पत्थर जिन्होंने बॉलीवुड जैसे साम्राज्य को खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ऐसे ही दो सच्चे कलाकार थे 'गुरुदत्त' और 'संजीव कुमार' जो यूं तो अलग-अलग कालखंड में फिल्मों में आये मगर, उनकी पैदाइश की तारीख़ एक ही थी 9 जुलाई और आज का ये दिन उन दोनों को एक-दूसरे से जुदा होने पर भी आपस में जोड़ता हैं ।

'गुरुदत्त' जहां स्वप्नदृष्टा और अद्भुत कल्पना शक्ति संपन्न बहुमुखी प्रतिभाशाली कलाकार थे जिन्होंने केवल एक अभिनेता के तौर पर ही नहीं एक लेखक, नर्तक, निर्देशक और कला पारखी के रूप में भी बेहतरीन थे जिनके पास देखने की एक ऐसी दिव्य दृष्टि थी जिसके माध्यम से वे समय के पार जाकर देख सकते थे और संवेदनशील इतने कि किसी के आंसुओं में अपना वजूद गला सकते थे तो किसी की एकतरफा चाहत में अपने आपको मिटा सकते थे तभी तो जहां उन्होंने अभिनेता के रूप में एक से बढ़कर एक नगीने दिये वहीं निर्माता-निर्देशक के रूप में भी फिल्मी दुनिया की ऐसी अनुपम सौगाते देकर गये जिसे विश्वस्तर पर सराहा जाता हैं और कला के पारखी तो ऐसे कि धूल में छिपे हीरे की चमक को भी पहचान लेते और उसे मिट्टी से उठाकर ऐसे चमकाते कि उसकी चमक से रजत पर्दा जगमगाने लगाता उनकी इन्हीं खासियतों ने उन्हें एक अलग पंक्ति में खड़ा कर दिया पर, मन की अतिशय भावुकता ने उनको इतना कमजोर कर दिया कि किसी मायूस क्षण में उन्होंने जीवन छोड़ने का निर्णय लिया तो फिर चुपचाप ही किसी से अलविदा कहे बिन चले गये लेकिन, जो इस फिल्मी जगत को देकर गये वो इतना बेमिसाल कि सदियों तक उसका मूल्यांकन किया जायेगा मगर, कीमत न आंकी जा सकेगी कि अनमोल चीजें कभी मूल्य के दायरे में नहीं आती और उन जैसे अप्रतिम क्षमतावान कलाकारों का मोल करना भी असंभव हैं ।

'संजीव कुमार' गुरु दत्त की तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी नहीं थे फिर भी उन्होंने अपने अभिनय में ही इतनी विविधता पैदा कर ली कि एक होते हुए भी अनेक में बंट गये और जब-जब जो भी भूमिका अभिनीत की हूबहू वही नजर आये चाहे कवि हो या पुलिस इंस्पेक्टर या भूत या कातिल या प्रेमी या अपराधी या खलनायक या नायक या बुजुर्ग या युवा उन्होंने अपने हर चरित्र को कल्पना नहीं हकीक़त समझकर पर्दे पर जीवन्त किया और यही वजह कि वो कभी झूठा नहीं लगा अपनी नवजवानी में उन्होंने अपनी अभिनेत्रियों के साथ उनके पिता, पति, ससुर सब तरह के रोल्स को साकार किया जबकि, वो अभिनेत्रियां उनकी हमउम्र ही थी लेकिन, वे जब उनके सामने उनके पति या पिता बने तो उसकी गरिमा में कोई अंतर नजर न आने दिया उनकी इस व्यापकता ने उन्हें हर तरह के किरदार के अनुकूल बना दिया और व्यवहारिकता ने सबका मित्र तो हर किसी के साथ बराबरी से काम किया अभिनेताओं के साथ भी उनके संबंध इतने अच्छे थे कि किसी से कोई मनमुटाव की खबर नहीं आती थी उनके साथ भी वे कभी उनके दोस्त तो कभी पिता के रोल में उतने ही दमदार नजर आते थे एक अभिनेता के रूप में उन्होंने हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और अपने चरित्र को यादगार बना दिया हर तरह की भूमिका के खोल में घुसकर उसे जीवंत कर दिया जो उनकी अभिनय क्षमता के चरम को दर्शाता हैं जिस तक पहुँचना आज भी किसी अभिनेता के लिए संभव नहीं हैं ।

आज उन दोनों महानतम कलाकारों के जन्मदिन पर उनको करते याद... देते दिल से मुबारकबाद कि लेकर जन्म वे फिर से आये बार-बार... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०९ जुलाई २०१८

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