सोमवार, 30 जुलाई 2018

सुर-२०१८-२१० : #आया_सावन_सोमवार #शिव_अभिषेक_करती_बरसात





हिंदू धर्म ने बारह महीनों को किसी न किसी खूबी से नवाजा है परंतु, इसके बावजूद भी कुछ महीने बेहद खास होते जिनकी महिमा विस्तृत तरीके से बखान की हैं । जिसमें 'श्रावण मास' भी एक हैं जिंसके तीसों दिन आदिदेव महादेव को समर्पित है जो औघड़ दानी और आशुतोष कहलाते केवल बेलपत्र चढ़ाने मात्र से प्रसन्न हो जाते और अपने भक्त को मनचाहा वरदान देते इसलिये तो सब इसका इंतजार करते है । इस महीने में पड़ने वाले सोमवार की तो अलग ही विशेषताएं बताई गई हैं जिसकी वजह से भक्तगण इस दिन व्रत-उपवास कर उनका अभिषेक पूजन कर आशीर्वाद ग्रहण करते है । इस महीने प्रकृति भी बारिश की मोतियों जैसी बूंदों से निरंतर शिवजी का अभिषेक करती जिससे प्रसन्न होकर वे संपूर्ण सृष्टि को हरा-भरा और उर्वरा होने का वर देते है ।

जिससे कि वो रोपे ये पौधों व बीजों को पकने व फसलों को नये दानों से भरने का आशीष प्रदान करे जिन्हें खाकर सभी संतुष्ट रहे और अपनी धरती माता के इस अहसान के बदले उसकी सेवा का वर ले जिससे कि किसान भी खुश होकर कृषि करते न कि उदास या परेशान होकर अपनी जमीन बेचने या आत्महत्या को मजबूर हो और दोष ईश्वर को दिया जाये । धीरे-धीरे मगर, एक तबका जो हिंदू धर्म के खिलाफ वो इसकी हर एक परंपरा में ढोंग या दिखावे का नाम देकर उसके विरुद्ध कोई न कोई मुहिम छेड़ देता कभी ईश्वर को लताड़ता तो कभी इसके रीति-रिवाजों पर उंगली उठाता पर, कभी इसकी गहराई में जाकर इसके उद्देश्य को समझने का प्रयास नहीं करता अन्यथा जानता कि हर एक रवायत के पीछे बड़ा ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण, भविष्य के प्रति अनोखी दूरदर्शिता और जनहित में कमाल का नजरिया है ।

शिव उपासना में ऐसी कोई भी सामग्री या वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता जो दुर्लभ हो बल्कि, सहज व सरल तरीके से उपलब्ध वस्तुएं उनको समर्पित की जाती हैं । उनमें भी ज्यादातर वे होती जिन्हें लोग जंगली या त्याज्य समझते तो उनके महत्व को उजागर करने भगवान भोलेनाथ की पूजा में इन्ही चीजों का प्रयोग किया जाता फिर चाहे वो बेल पत्र हो या शमी की पत्तियां या फिर अकौआ का फूल या फल या केवल जल चूंकि पहले दूध, घी, शहद, शक्कर सब बड़ी आसानी से ही नहीं बहुल मात्रा में पैदा होता तो लोग वही उनको अर्पित करते थे । समय के साथ चोर बाजारी, घूसखोरी, मिलावट, कृषि के प्रति उदासीनता होने से सभी सामग्रियों के उत्पादन में कमी आई तो लोग इनका इस्तेमाल न करने की सलाह देने लगे जबकि, पंचगव्य का उपयोग केवल उपलब्धता पर निर्भर यदि कमी तो कोई बाध्यता नहीं और यदि संभव तो किया जा सकता अन्यथा केवल श्रद्धा-भक्ति दरकार जिनके बिना महंगी से महंगी और दुर्लभ वस्तु भी बेमोल हैं नहीं तो सिर्फ एक मंत्र भी अनमोल हैं ।

वैसे भी इन दिनों मानसिक या पार्थिव पूजन का विशेष उल्लेख जिसके जरिये हम इस बदलते मौसम के साथ कदमताल कर सके और कमजोर होते अपने शरीर को इस पावन महीने में यम, नियम, संयम के पालन से पुनः नूतन ऊर्जा से भरकर रिचार्ज कर ले जिस तरह रोज दिन में न जाने कितने बार अपने मोबाइल को करते है । सामान्यतः देखा जाता कि जब व्यक्ति खुद किसी कठोर दिनचर्या या अनुशासन को अपने जीवन में स्वयं उतार नहीं पाता तो वो दूसरों को ऐसा करते देख हीन-भावना से भर जाता तब ऐसे में उसके विपरीत बातें कहने लगता जैसा कि आजकल के अधिकांश लोग कर रहे पर, जिनके भीतर पुराने संस्कार गहरे तक जड़ जमाकर बैठे उन्हें इन बातों से तनिक भी फर्क नहीं पड़ता वे यथावत अपनी परंपराओं का विधिवत पालन करते जिसे देख ये इतने तिलमिला जाते कि धर्म के मर्म पर चोट करते जिसे हर हिंदू अपने सहिष्णु स्वभाव के चलते सहता रहता मगर, सिर्फ श्रीकृष्ण की भांति इन शिशुपालों के सिर्फ 100 अपराध तक चुप रहता फिर इनकी ही भाषा में इनके ही तरीके से शब्द बाण चलाकर इनका संहार कर देता हैं । ये राक्षस या अधर्मी लोग भी कुम्भकर्ण की तरह जागते और चालू हो जाते जिनका जवाब यही हैं कि हम अपनी जड़ों से दूर हुये बिना अपना काम करते रहे... ॐ नमः शिवाय...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० जुलाई २०१८

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