रविवार, 8 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१७८ : #हाथों_में_थी_तकदीर #मगर_देख_न_सके_उसे_हम




कोई इस कदर भी गाफ़िल न हो कि जिसे वो ढूंढ रहा हो वो उसकी आँखों के सामने होकर भी उसे नजर न आये इस तरह उसकी नजरों पर लापरवाही का पर्दा पड़ा हो अक्सर, ऐसा देखने में आता कि किसी को कोई अवसर बड़ी आसानी से मिल जाता लेकिन, उसकी नासमझी या बेवकूफी से वो उतनी ही सरलता से उसके हाथों से छूट भी जाता उसके बाद लाख पछतावा हो या सर ही पटक-पटक के क्यों न रो ले कोई मगर, गुज़रे हुये पल लौटकर नहीं आते फिर भले, उससे बेहतर या उसे बदतर कुछ मिल जाये मगर, जो खो जाता वो तो केवल उस लम्हें का ही हासिल होता गोया कि दाने-दाने पर ही नहीं पल-पल पर भी लिखा होता उसे भोगने वाले का नाम पर, केवल नाम अंकित होने से तो कुछ नहीं होता उस तक पहुंचना या उसे पहचानना तो स्वयं को ही पड़ता वरना, हाथ में आया मौका या हाथों में पड़ी तकदीर भी नासमझी की भेंट चढ़ जाती जिसके बाद जीवन खत्म लगने लगता हैं

ये किसी के भी साथ हो सकता तभी तो किसी को बिना किसी प्रयास कुछ मिल जाता तो हम कहते कि देखो, इसने कोई मेहनत ही न की पर किस्मत कितनी अच्छी हैं जो अपने आप ही सब कुछ प्राप्त हो गया और एक हम हैं कि कितनी कोशिशें करते फिर भी मायूसी ही पल्ले पड़ती जिसमें भाग्य का नहीं अपनी चतुराई का भी हिस्सा होता तभी तो जो काम तकदीर से नहीं बनते तदबीर से बन जाते किस्मत को तो किसी ने नहीं देखा न ही उसके भरोसे रहना ही समझदारी मगर, अपने हाथ जगन्नाथ तो अपने साथ होते जिन पर भरोसा करना कभी गलत नहीं होता परंतु, इसके बावजूद भी किसी-किसी को ही अपने प्रयासों का सुपरिणाम मिलता बाकी तो ताकते ही रह जाते क्योंकि, उनमें वो क्षमता नहीं होती कि वे वक़्त की नब्ज को पहचान सके और जैसे ही वो लम्हा आये उसे झट से पकड़ ले और कोई तो इतना ज्यादा चालाक कि बिना ज्यादा परिश्रम के केवल अपनी त्वरित निर्णय लेने की क्षमता या अपने स्व-विवेक से कम-से-कम मेहनत में अधिक-से-अधिक हासिल कर लेता

ऐसे में सोचना लाजिमी कि इसके पीछे की वजह क्या हैं तो जवाब मिलेगा कि हमारी अपनी कमी चाहे फिर वो सटीक आंकलन की हो या फिर उस घड़ी को समझने की जिसने अपनी आँखों को खुला रखा और चौकन्ने होकर हर एक पहलू पर नजर रखी वो असफल हो ही नहीं सकता लेकिन, जिसके हाथों में सब कुछ था पर, उसने ही अपनी लापरवाही से अनदेखी कर दी उसे सफ़लता क्यों कर मिलती ये कुछ ऐसी सूक्ष्म बातें जो अमूमन नजर नहीं आती क्योंकि, कौन-सा पल हमारे जीवन की दिशा बदल सकता या कौन-सा निर्णय हमारे लिये सही साबित हो सकता इसे समझना सबके बूते की बात नहीं मगर, जिनको विरासत में सब कुछ मिला वो यदि ऐसी हरकते करें तो उनके लिये मुर्ख या बेवकूफ के सिवाय भला दूसरा कौन-सा विश्लेषण प्रयोग में लाया जायेगा

कुछ ऐसा ही हुआ ‘शीतल’ के साथ जिसे पढ़ाई पूरी करते ही बढ़िया नौकरी और जीवन का हर एक सुख, ऐशो-आराम, अपनी खुद की कंपनी चलाने वाला पति, घर, गाड़ी सब कुछ मिल गया पर, शायद जरा जल्दी और बिना किसी मेहनत के तो उसे संभाल न सकी और जब महसूस हुआ कि पति की बड़ी हैसियत के आगे उसका अपना वजूद दबा जा रहा तो अपनी खुद की स्वतंत्र पहचान हासिल करने के लिये उसे छोड़कर विदेश चली गयी जबकि, उसमें कोई खराबी नहीं थी सिवाय इसके कि वो उससे अधिक सफल था जिसका नतीजा कि एक दिन उसके दोनों हाथ खाली थे आर्थिक मंदी के चलते नौकरी गयी उधर पति ने भी दूसरी शादी कर अपना अलग नया जहान बसा लिया तब उसे अहसास हुआ कि उसने ही अपने हाथों में आई दौलत लुटा दी अऔर ब रोने या पछताने से क्या हो सकता हैं तब उस सुविधापूर्ण माहौल में दम घूंट रहा था, पति के कद के आगे अपना कद बौना लग रहा था और ऐसे में सबकी समझाइश ज़हर लग रही थी पर, आज खुद जहर की शीशी लेकर जीना नहीं चाहती थी पार्श्व में कहीं गीत बज रहा था, “सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया, दिन में अगर चराग जलाये तो क्या किया”          

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०८ जुलाई २०१८

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