शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

सुर-२०१८-१९३ : #जज्बातों_में_लिये_गये_फैसलें #आगे_चलकर_पैदा_न_करें_शिकवे_गिलें




किसी ने सच ही कहा हैं,
जब आप बहुत खुश हो या जब आप बहुत गुस्से में हो
यहाँ तक कि बेहद दुःख में भी हो तब भी
किसी से कोई वादा न करें...

क्यों ???

जब इस पर विचार करें तो गहन चिन्तन से ये निष्कर्ष निकलता कि भावनाओं की इस तीव्रता में मानसिक तौर पर हम कुछ कमजोर पड़ जाते या दूसरे शब्दों में बोले तो दिमागी घोड़ों की लगाम हमारे हाथ से छूट जाती और उस वक़्त हम इन क्षणिक जज्बातों से ही संचालित होते तो जो भी निर्णय लेते वे कमजोर होते जो समय गुजरने के साथ या तो हमारे जेहन से कपूर की भांति उड़ जाते या फिर जिस तरह गर्म तवे पर पानी की बूंदे छन-छनाकर जरा-सी देर में गायब हो जाती कुछ वैसे ही इन पलों की बातें भी बिना किसी निशां के अदृश्य हो जाती और यदि इनकी कुछ स्मृतियाँ शेष रहती भी तो वो केवल याद दिलाये जाने पर या उस हालात के दुबारा सामने आने पर ही पुनः ताजा हो जाती लेकिन, फिर भी उसमें वो बात नहीं होती जो एक स्थिर मानसिकता के साथ सोच-समझकर किये गये फैसले में होती और यहीं वो वजह जो हमें इस तरह की नाजुक अवस्थाओं में किसी भी तरह का वादा करने से रोकती हैं फिर भी अक्सर, इस समझाइश को भूलकर हम वही करते जिसके लिये हमें पहले से ही सचेत किया गया था      

ऐसे में वो सारी बातें या नैतिक ज्ञान किसी काम का नहीं जिसे रट-रटकर हमने बचपन के दिन बिता दिए जिसे सिखाते-सिखाते हमारे बड़ों ने अपना जीवन बीता दिया मगर, जब उनको अमल में लाने का समय आया तो हमने उनको याद तक न किया और जब किसी बात पर क्रोध आया या मन उदास हुआ और फिर आंसुओं का सैलाव आया या किसी खुशखबरी ने दिल बाग़-बाग़ कर दिया तो बिना सोचे-समझे हमने सामने वाले से कुछ ऐसा कह दिया जिसके मायने शायद, हमारे लिये उतने महत्वपूर्ण नहीं थे कि हम तो अपने होश में ही नहीं लेकिन, सुनने वाले के लिये तो मानो वो ब्रम्ह वाक्य या किसी संत का दिया हुआ वरदान था जिसे उसने ‘कैकयी’ की भांति सहेजकर रख लिया कि जब सही वक़्त आयेगा वो उसे याद दिलायेगा मगर, ऐसा होने पर बोलने वाला भी ‘दशरथ’ की तरह पछताया कि क्यों नहीं उसने उन क्षणों में अपने आप पर काबू रखा अन्यथा आज ये स्थिति उत्पन्न नहीं होती पर, अब क्या हो सकता हैं अब तो वर देना ही पड़ेगा और यदि मुकर गये तो हमेशा के इमेज धूमिल होने का दंश झेलना पड़ेगा पर, अब क्या हो सकता तीर तो कमान से निकल ही चुका हैं जिसे रोका जा सकता था पर, ये भान तो होता कि भविष्य में यही तीर हमारे सीने में आकर चुभेगा और हमारी जान का दुश्मन बनेगा

कुछ ऐसा ही हुआ ‘मोहित’ के साथ जो कॉलेज के विदाई समारोह में ‘पायल’ से बिछड़ने के ख्याल से इस कदर ग़मगीन हो गया कि जब उसे रेलवे स्टेशन छोड़ने गया तो उसे ट्रेन में बिठाने से पहले अपने दिल के हालात खुलकर बयान कर दिये कि वो उसे बहुत अधिक चाहता हैं और उसके बिना जी नहीं सकता और चाहे वो उसका प्रस्ताव स्वीकार करें अथवा नहीं वो आजीवन उसे भूल सकता नहीं इसलिये हर रोज यहाँ आकर उसका इंतजार करेगा शायद, कभी कोई रेल उसे वापस ले आये ‘पायल’ को ये उम्मीद ही नहीं थी तो वो समझ ही न पाई कि इस बात का क्या जवाब दे इसलिये बस, इतना ही कहा कि वो उसका सबसे अच्छा दोस्त हैं और हमेशा रहेगा यदि उसे भी उसकी तरह फील हुआ तो वो जरुर आयेगी इस बात ने तब ‘मोहित’ को बहुत बड़ी सांत्वना दी दिल में उम्मीद की शमां रोशन कर दी थी उधर घर जाकर ‘पायल’ अपने माता-पिता से इस बारे में बात नहीं कर सकी लेकिन, उसके कानों में लगातार ‘मोहित’ के शब्द गूंजते और धीरे-धीरे घड़ी की सुइयां ही नहीं कैलंडर ही बदल गया और उसके पिता उसकी शादी कहीं पक्की करने लगे तब हिम्मत कर उसने उसने ये बात उनसे कह दी जिसे उसके माता-पिता ने मंजूर कर लिया ये खुशखबरी उसे सुनाने उसने जब ‘मोहित’ को फोन लगाया तो सिम को बंद आया ऐसे में उसने खुद जाने का निर्णय लिया परंतु, वहां जाकर उसका उस हक़ीकत से सामना हुआ जिसके बारे में उसे इल्म तक नहीं था कि ‘मोहित’ ने जो भी उससे कहा वो वक्ती जुनून था बदली हुई परिस्थितियों में वो किसी और का दीवाना बन चुका था और उससे शादी भी करने जा रहा था और एक वो थी कि उसके वचन को सीने से लगाये उससे मिलने आ गयी थी काश, समझ पाती कि भावुक पलों में कही गयी बात पानी का बुलबुला मात्र थी            

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१३ जुलाई २०१८

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