गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

सुर-२८१ : "अमर पात्रों के अमर रचनाकार... 'प्रेमचंद'...!!!"




होरी
घीसू
गोबर
हरखू
माधव
निर्मला
आनंदी
सुमन
जोहरा
जालपा
हामिद
बूढी काकी
जुम्मन शेख
अलगू चौधरी
कहने को तो हैं
महज कथा किरदार
लेकिन हो गये
सब एक जगह साकार
जो हैं कथा सम्राट
अमर साहित्यकार
सर्वप्रिय प्रेमचंदका
अनूठा काल्पनिक संसार ॥
---------------------------●●●
            
___//\\___ 

मित्रों...,

इस देश में यदि किसी को साहित्य से लगाव या प्रेम नहीं हैं तब भी शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कि कलम के जादूगर प्रेमचंदका नाम न सुना हो या उनकी कोई कहानी या उपन्यास न पढ़ा हो क्योंकि हम तो बचपन से ही अपने पाठ्यक्रम के किसी न किसी दर्जे में उनके सजीव पात्रों से रूबरू हुये हैं जो आज भी हमारे मानस पटल में उसी तरह जीवंत हैं मानो कि हमारे बाल्यकाल के सचमुच के साथी हो जिनके साथ हमने अपना वक्त गुज़ारा हो चाहे फिर वो पंच परमेश्वरके दो पक्के दोस्त अलगू चौधरीऔर जुम्मन शेखहो या फिर ईदगाहका नन्हा मासूम हामिदया फिर नमक का दरोगाकहानी के मुंशी वंशीधरएवं पंडित आलोपिदीनहो या फिर कफनके घीसूऔर माधवऔर वो एकाकी बूढी काकीये सब हमारी पाठ्य पुस्तकों की शान थी जिन्हें हम आज तक भूले नहीं हैं क्योंकि इसे लिखने वाले ने इतनी सहजता-सरलता से लिखा हैं कि वो सिर्फ़ दिमाग ही नहीं बल्कि शब्द दर शब्द दिल पर अंकित हो गयी सच, ये उनकी कलम का कमाल ही कहा जायेगा कि उससे न सिर्फ़ एक से बढ़कर किरदार बल्कि उतनी ही दमदार सार्थक रचनाओं ने भी जनम लिया जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कि अपने लिखे जाने के समय थी तभी तो आज उनके निधन के इतने बरसों के बाद भी उनका स्मरण कर उनके प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने मनोभावों का प्रदर्शन करते कि उन्होंने अपने कथा संसार में उस काल के समाज और परिवेश का दर्शन कराने के साथ-साथ कुरीतियों पर भी जबर्दस्त प्रहार किया जिसके कारण तत्कालीन फिरंगी सरकार ने उनकी कलम को प्रतिबंधित करना चाहा लेकिन वे तो साहित्य के सच्चे उपासक थे जिनके जीवन में लेखन ही उनका एकमात्र कर्म था जिसके जरिये वो अपनी जन्मभूमि के प्रति अपने फर्ज को पूरा करना चाहते थे अतः किसी भी तरह के दबाब से वे किंचित भी न घबराये और बेखौफ सृजन करते रहे जिसमें जीवन के सभी रंग शामिल हैं ।  

चाहे उनके पात्र नन्हे-मुन्ने बच्चे हो या युवा या फिर प्रोढ़ या वृद्ध सभी अपने से लगते और हमारा दिल जीत लेते जिनको विस्मृत कर पाना किसी भी तरह संभव नहीं आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके उन यादगार सजीव चरित्रों को याद कर उनको शब्दांजलि अर्पित करते हैं... धनी हैं वो कलमकार जिसने हमें ये खज़ाना दिया... मन से नमन... :) :) :) !!! 
___________________________________________________
०८ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: