मंगलवार, 31 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-३१ : दिल में दर्द बसा लाई.. पर, सबको बांटती खुशियाँ...‘सुरैया’ !!!

साथियों... नमस्कार...



मैं दिल में, मैं दिल में
दर्द बसा लाई
नैनों से नैन मिला आई
उनको अपने मन की बातें
बिना कहे समझा आई
मैं दिल में...

‘अनमोल घड़ी’ फिल्म में सुर सम्राज्ञी ‘नूरजहाँ’ के सामने पियानो पर उँगलियाँ चला इठलाती-इतराती और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को तरह-तरह से मटकाती अदाकारा ‘सुरैया’ जब ये गीत गाती हैं तो चेहरे की भाव-भंगिमायें उनके भीतर के दर्द को भले ही बयान न करती हो लेकिन फिर भी ये फ़िल्मी दुनिया का एक बहुत बड़ा सच था कि उपर से मुस्काराहट बिखेर अपनी अदाकारी से सबके दिलों पर बिजली गिराने वाली बला की हसीन ये नायिका जितनी बेहतरीन अभिनेत्री थी उतनी ही शानदार गायिका भी जिसके अभिनय और आवाज़ की दिलकशी की वजह शायद, उसका संवेदनशील हृदय था जो जितना कोमल और भावुक था उतनी ही संजीदगी उनके अभिनय और आवाज़ में थी जिसके कारण उनको सुनना व देखना एक अलग ही अनुभव देता था...

जिसकी वजह से रजत परदे पर उनको देखने वाले समझ नहीं पाता था कि उनकी उस बाहरी खुबसूरती को ही निहारे जो सामने दिखाई दे रही या फिर भीतर से आती उनके सुरीले कंठ की खनकदार ध्वनि को सुने या फिर उनके सहज-सरल लुभावने अभिनय को देखे क्योंकि वे हिंदी सिनेमा जगत की एक ऐसी बहुआयामी व्यक्तित्व की मलिका जो एक साथ आला दर्जे की सिने तारिका होने के साथ-साथ ही उतने ही ऊँचे स्तर की नायिका भी थी जिसे कुदरत ने हर फन से नवाज़ा था बस, कोई कमी की तो वो किस्मत में ही थी जहाँ कहने को ‘प्रेम’ का स्थान भरा था लेकिन उसके सूनेपन का अहसास केवल वही समझ सकती जिसने सच्चे प्यार को पाकर भी नहीं पाया फिर भी आजीवन उसको जिया और किसी दूसरे को वो जगह नहीं दी जिस पर उन्होंने किसी की तस्वीर सजा ली थी जबकि वो जिसके दीवाने सिर्फ़ देश ही नहीं विदेश में भी बसे थे और उनकी एक झलक का दीदार करने सात समन्दर पारकर भी आये थे...

लेकिन, जब एक बार उन्होंने अपने हिस्से की मुहब्बत कर ली तो फिर भले उसकी कमी महसूस की हो लेकिन उसे भरने की कोई कोशिश उनकी तरफ से नहीं की गयी क्योंकि जिसे वे चाहती थी उससे मिलन नामुमकिन था फिर ऐसे में उसकी यादों को ही अपने जीवन का सहारा बना एकाकी जीवन गुज़ारती वो प्रेम दीवानी जिसके ख़ुद लाखों-करोड़ों दिवाने थे अपने मन की बात मन में ही रख खामोश आज के दिन ही इस दुनिया से चुपचाप चली गयी... जिस पीड़ा को हम उनके गाये इस नगमे में सुन सकते हैं...

.....
तेरी कुदरत तेरी तदबीर मुझे क्या मालूम
बनती होगी कहीं तक़दीर मुझे क्या मालूम

, मेरा दिलदार न मिलाया
मैं क्या जानूँ तेरी खुदाई

होगा तेरे बस में जहाँ
अपने तो दिल मिल न सके
मुझ को तो है इतना पता
बिछड़े हुए मिल न सके
ओ मेरा दिलदार न मिलाया
मैं क्या जानूँ तेरी खुदाई...
.....

अब केवल उनके गाये नगमे, उनकी अदाकारी से सज्जित फ़िल्में ही उनकी धरोहर जिनको सुन-देखकर हम उनके होने की अनुभूति कर सकते हैं... उनकी पुण्यतिथि पर उनके दर्दीले नगमों को याद कर उनको ये गीतांजलि अर्पित करती हूँ... :) :) :) !!!         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ जनवरी २०१७

सोमवार, 30 जनवरी 2017

सुर-२०१७-३९ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘दूसरा – प्रपोज डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


काश,
बनकर फांस
चुभता न रहे आजीवन  
कर दो बयान
वो अहसास, वो जज्बात
जो बनकर गाँठ
कसकते रहते भीतर
उभरते तन-मन...   
  
दबी रही जाये कोई बात या मन के जज्बात अंतर में तो वो कचोटते रहते ताउम्र कि अनकहे लफ्जों की चोट सालती रहती रह-रहकर कभी लगे अगर भी कि नहीं शेष कोई जख्म दिल में भर गये सब वक़्त की मरहम से तब भी, जब कोई ऐसा वाकया हो या कोई ऐसा अवसर आ जाये कि बीते लम्हों के पन्ने अचानक खुल के सामने आ जाये तो एक हुक-सी कलेजे में उठती कि काश, उस समय ये अहसास बयान कर दिये होते, वो जो महसूस किया था उस पल में उसे शब्द दे दिये होते तो कितना अच्छा था पर, सिवाय अफ़सोस के फिर कुछ न हाथ रह जाता कि सबको ऐसा मौका नहीं मिलता कि वो अपनी गलती को ठीक कर सके या उन ‘काश’ को जो फांस बनकर चुभते रहते दिल की तलहटी में कहीं उन्हें नासूर बनने से रोक सके अक्सर, नासमझी या फिर अहम् अवरोध बनकर राह रोक लेते मन के अंदर उठती भावनाओं के शब्दों का ऐसे में वो भीतर ही भीतर घुटकर रह जाते और फिर किसी गाँठ की तरह उभरते तन-मन में जिन्हें हम समझ नहीं पाते और सोचते रहते कि ये किस तरह हुआ जबकि हकीकत यही कि देह की कोई भी गठान बेवजह नहीं होती ये तो अहसासों वो गिरहें हैं जो कभी खुली नहीं पर, हम इन्हें बीमारी समझ इनका इलाज खोजते रहते और परेशां होते जबकि कह दिया जाये उस मीठी-सी चुभन को तो भले वो उस समय उस तरह से परिणित न हो जैसा सोचा और इस भय से उसे व्यक्त करने से बचते रहे लेकिन कुछ समय बाद इस समझेंगे कि अच्छा किया जो बोल दिया ऐसे में मन के भीतर सिर्फ़ नाकामी का अवशेष बचेगा मगर, उसमें कोई दंश का भाव न रहेगा जो चुभते रहे आजीवन...  

इज़हार करने का तात्पर्य ये भी नहीं कि हम हर एक बात को अभिव्यक्ति दे इसे भी समझे कि क्या कहना और क्या नहीं और किससे कहना और किसे नहीं कहना... क्योंकि कुछ बातें ऐसी भी होती जिसे इसकी दरकार नहीं लेकिन हमने इसकी संजीदगी को समझा ही नहीं और बक दिया जो मन में आया तो इस बात का ख्याल रखना भी जरुरी और ये भी पहले ही सोच ले कि यदि अगला इस बात की प्रतिक्रिया हमारे मन मुताबिक न दे तो हमें आगे क्या करना हैं नहीं तो आजकल तो देखने में आ रहा कि युवा वर्ग में कुछ लोग अपने प्रपोज़ल का नकारात्मक प्रतिउत्तर पाते ही गलत कदम उठा लेते साथ ही हमारे ये कहने का तात्पर्य ये भी कि इज़हार केवल इश्क़ का ही नहीं किया जाता कोई भी अहसास जो किसी के भी प्रति मन में महसूस हो उसे सामने वाले से कह देना ही उसकी बयानगी हैं न कि हम ‘प्रपोज डे’ को सिर्फ प्रेयस-प्रेयसी से जोड़े क्योंकि प्रेम तो हम अपने सभी रिश्तों से करते तो फिर सबके प्रति भी तो मन में कोई न कोई अनुभूति तो होती ही पर, कहने में संकोच होता जो घाव बन जाता तो रोज-रोज न सही केवल आज के दिन ही अपनी उस अभिवृति को बोल दे, लब खोल दे... यही तो हैं ‘प्रपोज डे’ का मतलब जिसे प्रेमी-प्रेमिकाओं से जोड़कर हमने उसका रूप बिगाड़ दिया बल्कि हम तो उस देश के वासी जो कुरूप को भी सुंदर बना देते तो अब इसे इस तरह से समझे फिर इसका विरोध न कर लोग इस दिन अपनों से अपने मन की बात कहेंगे... :) :) :) !!!                
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ फरवरी २०१७

सुर-२०१७-३० : मार कर भी उसको... न रोक सके उसके विचारों की आंधी... जिसे हम कहते हैं ‘महात्मा गाँधी’...!!!

साथियों... नमस्कार...


जब भी महत्मा गांधी की बात हो तो अधिकांश लोगों को उनके खिलाफ़ ही बोलते सुनती हूँ जिसके समर्थन में उनके गिने-चुने तर्क होते हैं जिनसे अब तो सब वाकिफ़ हो चुके लेकिन इन सबके बावजूद भी ये अकाट्य सत्य कि जितना उनको दबाने या मारने का प्रयास किया गया वो उतनी ही तेजी से उभरे हैं कि उनके अंदर सत्य-अहिंसा परमार्थ सेवा में बिताये गये एक लम्बे तपस्वी जीवन की संचित शक्ति थी जिसने उनको तमाम तमाम आलोचनाओं और असंख्य विरोधियों के बाद भी उतनी ही मजबूती से अकेले अपने ही दम पर खड़े रखा ऐसे में वो लोग जो अपने जीवन में एक नियम या संकल्प दो दिन भी नहीं निभा पाते वो किस तरह से जानेंगे कि एक व्यक्ति ने किसी तरह विपरीत परिस्थितियों में गुलामी की जंजीरों में जकड़े होते हुये भी अपना सारा जीवन इन सदाचारों को समर्पित कर गुज़ारा उन्होंने सिर्फ हमवतनों के लिये ही आज़ादी का नारा बुलंद नहीं किया बल्कि दक्षिण अफ्रीका में भी जब रंगभेद से उपजा दर्द देखा तो संघर्ष का बीड़ा उठाया क्योंकि उनकी रगों में संवेदनाओं का लहू बहता था जो परपीड़ा से सहज ही द्रवित हो जाता था शायद, तभी उन्होंने कुछ गलत निर्णय ले लिये जो अपने ही देश के विरुद्ध साबित हुये जिसके कारण ‘नाथूराम गोडसे’ और उसके समर्थकों की जमात ने जनम लिया और जिस तरह चाँद के पाक-साफ़ अक्स पर दाग़ कुछ उसी तरह से उनके उजले जीवन चरित्र पर भी बदनुमा धब्बे लगा दिये जिसकी वजह से जो लोग इतिहास पढने की जहमत नहीं उठाते या जिनको ये जानने कि कोई गरज नहीं कि ‘गांधी जी’ के दुसरे पक्ष पर भी नजर डाल ले वो अंधों की तरह उसका हिस्सा बन वही पाठ दोहराता जो उसे रटाया गया लेकिन स्वविवेक से जो काम लेता वो हंस की तरह नीर-क्स्शीर को पृथक कर सार-तत्व ग्रहण करता

दुनिया में कोई भी व्यक्ति या चरित्र पूरी तरह स्वच्छ या बेदाग़ नहीं लेकिन हमारी मानसिकता कि हम चाहे कुछ भी हो लेकिन जन-नायकों से ये उम्मीद करते कि वो एकदम साफ़-सुथरे हो तभी तो जब किसी के जीवन में ऐसा कोई भी प्रसंग पाते जिससे उसकी छवि धूमिल होती तो उसके किये-कराये को भी भूल जाते कुछ ऐसा ही इस मामले में भी हुआ कि जब उनके विपरीत विचारधारा पनपी तो वो जो उस पक्ष में थे उन्होंने सारी नकारात्मक बातों का इतना अधिक प्रचार किया जिसमें उनकी सकारात्मक बातें, उनके त्याग के किस्से, उनकी तपस्या का बखान और उनकी अंग्रेजों के खिलाफ़ सत्य-अहिंसा-सत्याग्रह के हथियारों से लड़ी गयी स्वतंत्रता की जंग को भी कमतर आँका गया या यूँ बोले कि इस पलड़े को थोडा हल्का करना का प्रयास किया गया क्योंकि जिसने अपने जीवन में कुछ भी न किया हो उसे दूसरों के किये की खिंची बड़ी लाइन को छोटा करने का यही सबसे आसन रास्ता लगता तो गोडसे की विचारधारा से प्रभावित लोगों ने एकतरफा प्रचार से उनके विरुद्ध माहौल तैयार किया तो जिनको अपने जेहन को तकलीफ देने की आदत नहीं या जिनको दूसरों के किये की तारीफ करना पसंद नहीं या जिनको नायक को खलनायक साबित करने में ही आनंद आता वो सब एक तरफ होकर एकतरफ़ा बातें बनाने लगे मगर, ये उसके सत्कर्मों का ही प्रभाव कि इन बातों ने उसकी लोकप्रियता में और इज़ाफा किया उसके कद को आदमकद बना दिया

उन्होंने अपने जीवन से ये सिद्ध कर दिया कि “तुम मुझे प्रेम करो या नफरत दोनों ही मेरे हित में हैं क्योंकि दोनों ही तरीके से मैं युम्हारे जेहन में रहूँगा” मुझे लगता ये किसी के अमर होने का कारगर तरीका कि वो आपके दिलों-दिमाग पर इस कदर कब्जा जमा ले कि चाहे फिर प्यार से या फिर घृणा से आप उसे ही याद करो तभी तो उनकी जयंती हो या पुण्यतिथि हर कोई उनका स्मरण करता कि उस हस्ती ने पिस्तौल से निकली गोली से जो कि धोखे से चलाई गयी भले ही अपने देह त्याग दी लेकिन अशरीरी होकर वो सूक्ष्म रूप से सबके भीतर विराजमान हो गये जहाँ से उन्हें निकाल पाना नामुमकिन और यही उनके किरदार की जीत हैं... यदि आप उनके किन्ही गलत निर्णयों की वजह से उनके द्वारा किये गये महान क़ाज को बिसरा सकते हो तो फिर ‘रावण’ के किन्ही अच्छे कर्मों की वजह से आपको उसे भी पूजना चाहिये परंतु आप ऐसा नहीं करते क्योंकि उसके गलत कार्यों का पलड़ा भारी ठीक उसी तरह इनके सही कामों का पलड़ा भरी जो उनके लाखों-करोड़ों विरोधियों के बाद भी सदियां उनको दोहराती, इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित उनकी कहानी अमिट जो उनको ‘महात्मा’ का दर्जा दिलाती... पिता बनाना आसन लेकिन ‘राष्ट्रपिता’ तो जनता ही बनाती तो आज उस देशभक्त को उसके शहीद दिवस पर ये शब्दसुमन समर्पित करती हूँ... और जो अपनी देशभक्ति का प्रमाण दिये बिना उनकी खिलाफ़त करते उनसे यही कहना चाहती कि सिर्फ बुराई नहीं अच्छाई का भी आकलन करो... फिर तोलमोल कर सच बोलो... तो यही कहोगे ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’... :) :) :) !!!          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० जनवरी २०१७

रविवार, 29 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२९ : ख्वाहिश जो मरती नहीं... फूल बनकर वो खिलती...!!!

साथियों... नमस्कार...


जब हमें कोई पसंदीदा फूल या फसल चाहिये होती तो हम उसके बीज को बोते फिर उसे रोज नियम से पानी ही नहीं धूप-छाया के साथ-साथ खाद भी देते ताकि उससे वो पा सके जिसकी खातिर हमने उसे लगाया लेकिन ‘ख्वाहिश’ को हम इस तरह से रोपना और पालना-पोसना भूल जाते तभी तो हम इस दरम्यान सीखे हुए उस अनमोल सबक को भूल जाते जो कभी-कभी देखने में आता कि सारे बीज भले, एक साथ न पनपे लेकिन जरूरी नहीं कि जो बीज आज अंकुरित न हुआ वो आगे भी कभी न फलेगा-फूलेगा क्योंकि कुछ-कुछ बीज ऐसे होते जो अनुकूल मौसम आने पर ही फूटते बिलकुल उसी तरह से कुछ ‘ख्वाहिशें भी होती जो समय आने पर ही पूरी होती हैं इसलिये जरूरी कि हम उनके लिये उसी तरह से माकूल परिस्थितियों का इंतजार करें जब वे पल्लवित-पुष्पित होकर हमें मनचाहे पुष्प का उपहार दे...

नहीं तो तन्हाई में वही हमारा मजाक उड़ायेगी, हमें मुंह चिढ़ायेगी कि अपनी कमियों की वजह से हमने उसे खिलने का मौका नहीं दिया... नहीं तो एक दिन वो ही नहीं खिलती न जाने उसके साथ कितनी और उम्मीदों की कलियाँ भी मुस्कुराकर एक बगिया ही खिला देती... केवल हममें सब्र की कमी होने से वो भीतर ही कसमसा कर रह जाती तो अब याद रखना कि दबे बीज की तरह दबी हुई ख्वाहिशें भी पनपने की क्षमता रखती बस, धैर्य के साथ उस मौके का इंतजार करना पड़ता जबकि वो पूर्ण हो सके... तो एक अच्छे बागबान की तरह अब ये याद रखना...

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा ऋतू आये फल होय...

तो अब से निराश न होकर ऋतू का इंतजार करे... :) :) :) !!!          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जनवरी २०१

शनिवार, 28 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२८ : आया ‘डाटा प्राइवेसी डे’... रहकर सुरक्षित सब मनाओ रे...!!!

साथियों... नमस्कार...


इस तकनीकी युग में जबकि सब कुछ यंत्रचलित हो चुका हो और लोग वास्तव में सामाजिक होने की जगह ‘आभासी सोशल मीडिया’ पर न सिर्फ रिश्ते निभा रहे हैं बल्कि बिना सोचे-समझे नये रिश्ते-नाते बना रहे भी हो तब ये बहुत ज्यादा जरुरी हो जाता हैं कि एक ऐसा माध्यम जहाँ पर कि आपके द्वारा दी गयी जानकारियों को जान-पहचान के लोगों के अलावा अंजान भी देख-पढ़े रहे हो उसे किस तरह सुरक्षित रूप से साँझा किया जाये इसका ज्ञान आपको हो क्योंकि चंद लोग ही नहीं अब तो संपूर्ण विश्व ही इस जगह पर एक साथ खड़ा हैं तो ऐसी स्थिति में खतरे बहुत अधिक बढ़ जाते हैं इस अदृश्य प्लेटफार्म पर आप केवल चैटिंग या सेटिंग ही नहीं कर रहे बल्कि ऑनलाइन शौपिंग और बैंकिंग जैसे विकल्पों का भी धडल्ले से प्रयोग कर रहे हैं तो ऐसे में अपनी निजता की रक्षा और अपने महत्वपूर्ण आंकड़ों की सुरक्षा दोनों ही आपका दायित्व हैं क्योंकि एक जरा-सी चुक से आप किसी भी तरह के अपराध का शिकार हो जाते हैं

अजी, ये तो वो जमाना हैं जब मछली पकड़ने के लिये लोग किसी समंदर या तालाब के किनारे जाल डालकर बैठे हो बल्कि अब तो ‘फिशिंग’ भी यहीं पर की जाती हैं बस, आप को ही खबर नहीं कि मछलियाँ आप ही होते हैं जो उनके फेंके दाने याने कि आकर्षक संदेश, लुभावने ऑफर पर फिसल जाते हैं अफ़सोस कि इस बात का पता आपको तब चलता जब आपके बैंक अकाउंट से बड़ा भारी अमाउंट चोरी हो जाता या फिर आपकी व्यक्तिगत जानकारी का कोई दुरपयोग कर लेता इन सब तरह की परेशानियों से बचने ही आज के दिन २८ जनवरी को ‘इंटरनेशनल डाटा प्राइवेसी डे’ मनाया जाता ताकि वे लोग जो कि तरह-तरह के गेजेट्स के माध्यम से अपने संवेदनशील डाटा को शेयर कर रहे हैं वो सुरक्षित तरीके से बिना किसी अपराधी के झांसे में आये उसका उपयोग कर सके नहीं तो जरा-सी लापरवाही आपको किसी भी गिरोह के शिकंजे में फंसा सकती हैं

आये दिन न जाने कितने किस्से हम सब पढ़ते या सुनते रहते जो कि ‘साइबर क्राइम’ याने कि उस तरह के अपराधिक मामलों से जुड़े होते जिन्हें कि इस जगह इंटरनेट की माध्यम से अंजाम दिया जाता और अक्सर इसकी वजह हम स्वयं ही होते जो अपने लापरवहाना रवैये या सिक्यूरिटी के विकल्पों से अनभिज्ञ होने से खुद ही उन शातिर शिकारियों को जो जाल बिछाकर हमारे चारो तरफ बैठे ये मौका देते कि वो हम पर हमला कर सके । हम केवल नये-नये एप्स को डाउनलोड करना पसंद करते लेकिन उससे हमारी निजता भंग हो रही ये धयन नहीं देते तभी तो किसी भी ‘सॉफ्टवेयर’ या ‘एप्प’ को इंस्टाल करते समय उसके द्वारा जो ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ भेजी जाती उनको न तो उनको पढ़ने जकी जहमत ही उठाते और न ही गंभीरता से लेते हैं और हमारे आँख मूंद लेने या नजरअंदाज करने का ही वो फायदा उठाते इस तरह अनजाने में ही हम उन्हें अपना डाटा शेयर करने की अनुमति दे देते हैं ।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्स एप्प और भी जान कितनी सोशल साइट्स हैं जिनका उपयोग हम सब आजकल कर रहे और बड़ी बेबाकी से अपनी बड़ी पर्सनल फोटोज, अपनी गोपनीय जानकारी, अपने रिश्ते-नाते, अपनी छोटी-से-छोटी बातें, अपना पूरा टाइमटेबल, खाना-पीना, घूमना-फिरना, पल-पल की खबर अपडेट कर रहे बोले तो एकदम खुली किताब बन रहे और खुद को सेलेब्रिटी फील कर मगन हो रहे लेकिन ये सोच नहीं रहे कि जिनके बीच हम ये सब भजे रहे उनमें ही कोई अपराधी प्रवृति का व्यक्ति भी छिपा हो सकता जो इनको गलत तरीके से इस्तेमाल कर हमें ब्लैकमेल या फिर हमारे घर में सेंध लगा सकता क्योंकि कई ऐसे किस्से भी सुनने में आये जबकि लोगों ने बड़ी शान से सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि हम फलां जगह घूम रहे और उसी समय चोरों के गिरोह ने उनके घर डाका डाल दिया बोले तो एक तरह से हमने ही उनको निमंत्रण दिया कि आओ, हमारे घर चोरी करो अभी हम बाहर हैं । इसी तरह कई लडकियों की तस्वीरों का गलत ढंग से उपयोग किया गया हैं क्योंकि उन्होंने खुद को सेलेब्रिटी तो समझ लिया पर, ये भूल गयी कि उनके प्रोफाइल या पेज उनके फेंस के लिये सार्वजानिक होते और वे उसके लिये किसी विशेषज्ञ की मदद भी लेती ताकि इन परिस्थितियों को हैंडल कर सके लेकिन हम तो नकल के चक्कर में मारे जाते हैं न ।

हम किसी भी तरह के एप्प का प्रयोग करें या चाहे कहीं भी अपना अकाउंट बनाये पर, उनका पूरी तरह सावधानी से उपयोग करें और उनमें दिये गये सिक्यूरिटी फीचर्स को अच्छी तरह से समझकर फिर अपना डाटा उस पर शेयर करें नहीं तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि वो सब बातें जो आप सिर्फ अपने दोस्तों या फॅमिली से ही साँझा करना चाहती थी प्राइवेट की जगह पब्लिक हो गयी । सभी एप्लीकेशन में आपको इस तरह के अनेक सिक्यूरिटी ऑप्शन्स मिलेंगे पर, हो सकता आपको इनकी जानकारी न हो तभी तो ‘फेसबुक’ पर किसी-किसी की टाइमलाइन पर जाओ तो लगता ही नहीं ये उसकी व्यक्तिगत प्रोफाइल हैं क्योंकि दुनिया भर के लोगों की पोस्ट वहां चिपकी मिल जाती और उसी तरह सबको पता नहीं कि हर पोस्ट को सेट कर सीमित दायरे में ही प्रदर्शित किया जा सकता तो वो सबको शो हो जाती तथा टैग की गयी पोस्ट को भी पर्सनल रखकर अपनी टाइम लाइन को साफ-सुथरा रखा जा सकता हैं।

‘डाटा सिक्यूरिटी डे’ का उद्देश्य यही कि हम आपराधियों से डरकर भागे नहीं बल्कि इन सब प्लेटफॉर्म्स का जमकर उपयोग करें वैसे भी, आने वाला समय तो पूरी तरह इन पर ही आश्रित होगा तो फिर हम किस तरह से बचकर गुज़ारा कर पायेंगे इसलिये दरकार नहीं डटकर यहाँ हर स्थिति का सामना करे और यदि आपको जानकारी नहीं तो विषय विशेषज्ञ से हेल्प ले या गूगल पर जाके समझे या जानकर से पूछे लेकिन पलायन नहीं करे केवल सतर्कता, समझदारी और संयम से काम करे... तो इसी उम्मीद के साथ कि सब अपने डाटा को प्राइवेट एंड सिक्योर रखने का प्रयास करेंगे... सबको इस दिन की बहुत-बहुत शुभकामनायें... तकनीक में ही सब उपाय हैं बस, जरा ध्यान देने की जरूरत... नहीं तो एक गलत ‘क्लिक’ और आप दलदल में ‘स्लिप’... :) :) :) !!!                 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ जनवरी २०१७

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२७ : जीना नहीं मुश्किल.... गर, पास हैं ‘दिल’...!!!

साथियों... नमस्कार...

यहाँ हमारा दिलसे मतलब सिर्फ हांड-मांस का वो टुकड़ा नहीं जिसके धड़कने मात्र से हमारी जिंदगी चलती हैं बल्कि खुदा की उस नियामतसे हैं जहां पर, एक पूरी कायनातबसती हैं... जिसमें रहती हैं नन्हीं-नन्हीं उम्मीदें तो कहीं किसी कोने में पड़ी रहती हैं आधी-अधूरी ख्वाहिशें भी और कहीं-कहीं तो ऐसे स्वप्न भी दफ़न होते हैं जो हकीकत तो न बन सके लेकिन पूरी तरह मिट भी न सके याने कि मुआ दिलन हुआ बल्कि हमारी बेशकीमती स्मृतियों को सँभालने वाला लॉकरबन गया और कभी-कभी तो हमे इसे स्टोर रूमकी तरह भी इस्तेमाल करते और वो सब कुछ जिसे जीवन से निकालने का मन न करता उसे यहाँ सहेजकर रख देते जो कि कबाड़ातो नहीं होता कि किसी कबाड़ी को बेच दिया जाये बल्कि ये सब वो अनमोल खजाना होता हैं जो हमें तन्हाई में भी तन्हा होने नहीं देता और मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी जीने की उम्मीद देता हैं और जब भी कभी किसी कठिन वक़्त में हम सारे जहान से हारकर नाउम्मीद से होने लगते हैं तब इसके किसी हिस्से में से कोई भी एक तमन्ना मचलकर बाहर आ जाती हैं और फिर अकेले में बैठकर रोती हुई आँखें भी मुस्कुराने लगती हैं तो मुरझाई हुई निढ़ाल हसरतें भी उम्मीद की इस हल्की बूंदाबांदी से फिर खड़ी होकर लहराने लगती हैं तो हताश होकर जमीन पर गिरे हम ज्यूँ किसी अँधेरी खोह में अचानक कहीं से रौशनी की किरण मिल जाने पर आशा से जी उठते हैं कुछ यूँ इन बेसाखियों का सहारा पाते ही एकदम उठकर खड़े हो जाते हैं...

वाकई दिलके बारे में जिस किसी ने भी ये कहा एकदम सच ही कहा हैं---

खुदा ने दिल बनाकर क्या अनोखी शय बनाई हैं
जरा-सा दिल हैं इस दिल में मगर सारी खुदाई हैं

तभी तो इसमें झांककर देख लेने से हमें कभी उस रब के दर्शन भी हो जाते हैं ये वास्तव में जिसका घर होता लेकिन हम तो इसमें न जान क्या-क्या समोते रहते और जरा-से इस दिल को पूरी देह समझने की भूल कर बैठते तभी तो इसके धड़कने से या खामोश हो जाने से जीते-मरते... इसलिये यदि कभी उपर से यूँ महसूस हो कि कुछ न भी बचा हो लेकिन, भीतर से इसके होने का अहसास बाकी रहे तो यही समझना कि कुछ नहीं खत्म हुआ... जीवन फिर नये सिरे से जिया जा सकता परंतु बाहर से सबकुछ ठीक नजर आये लेकिन अंतर में सब कुछ मर जाये तो उस दिन खुद को जिंदा भले समझना मगर, बेजान लाश की भांति ही वो जीना होगा जिसमें कोई उमंग न रहेगी... कभी देखा हैं सूखे पेड़ को जिसमें सिर्फ टहनियां शेष रहती हैं लेकिन कभी कोई बारिश ऐसी होती कि सूखी डालियाँ भी हरिया जाती क्योंकि बाहरी रूप से जो तना हमें खोखला दिखाई देता कहीं न कहीं उसके भीतर कोई जीवन छिपा होता जो जरा-सी वृष्टि पाते ही कोपलों के रूप में फूट पड़ता तो जब कभी लगे कि सब कुछ खत्म हो गया मगर, ‘दिलकी अमानत शेष हैं तो यही समझना कि कुछ भी समाप्त नहीं हुआ... बस, उस मौसम का इंतजार करना जब दिल की डाली पर कलियाँ खिलने लगे... :) :) :) !!!     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ जनवरी २०१७

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२६ : अपनाया ‘संविधान’... गणतंत्र दिवस मना...!!!

साथियों... नमस्कार...


२६ जनवरी का दिन हमारे लिये सिर्फ इसलिये महत्वपूर्ण नहीं हैं कि १५ अगस्त १९४७ को हमने अंग्रेजों की दासता से मुक्ति पाकर अपने देश को सुचारू रूप से चलाने अपना ‘संविधान’ बनाने की ठानी और फिर ‘डॉ भीमराव अम्बेडकर’ के नेतृत्व में इस वृहत कार्य को पूर्ण करने की योजना बनी गयी इस प्रकार शुरू हुआ यह कार्य एवं इसे लिखने में पूरे 2 साल ११ महीने और १८ दिन लगे और फिर २६ नवम्बर १९४९ को ‘भारतीय संविधान सभा’ ने इसे अपनाया जिसके कारण हम २६ नोवेम्बर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाते हैं तथा इसके बाद २६ जनवरी १९५० प्रातः १०:१८ मिनट पर इसे एक ‘लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली’ के साथ लागू किया गया था। इसे अपनाने व लागू करने के लिये २६ जनवरी का दिन ही इसलिये चुना गया क्योंकि १९३० में इसी दिन ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ (आई० एन० सी०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित कर ‘स्वराज दिवस’ मनाया था इसलिये जब स्वतंत्रता हासिल हुई तो ये निश्चित किये गया कि यही दिन इसके लिये उपयुक्त रहेगा तो इस तरह ’२६ जनवरी’ हमारा ‘गणतंत्र दिवस बना ।

इसके अलावा भी इस दिन से कई अन्य रोचक तथ्य जुड़े हुये हैं जो इसे और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं लेकिन हम सब केवल यही याद रखते कि आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ जिससे हमारा भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना और यह दुनिया का सबसे बड़ा संविधान हैं परंतु हमें निम्न बातें भी ध्यान रखना चाहिये---

१.    २६ जनवरी १९५० को स्वतंत्र भारत के पहले और अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अपने पद से त्यागपत्र दिया
२.    डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने और आज ही के दिन उन्होंने ‘गवर्नमैंट हाऊस’ में अपने पद की शपथ ली थी
३.    यूँ तो हिंदी को १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया लेकिन २६ जनवरी १९५० को इसे संविधान में अनुसूचित किया गया तथा १९५४ में हिंदी व्याकरण तैयार करने समिति का गठन किया जिसकी वजह से ये आज दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा हैं तथा देश की उन सात भाषाओँ में भी शामिल जिसमें वेब एड्रेस लिखा जा सकता हैं  
४.    मोर के अद्भुत सौन्दर्य के कारण २६ जनवरी १९६३ को भारत सरकार ने आज ही दिन उसे ‘राष्ट्रीय पक्षी’ घोषित किया
५.    इसी दिन १९७२ में युद्ध में शहीद हुये सैनिकों की याद में दिल्ली के इंडिया गेट पर ‘अमर जवान राष्ट्रीय स्मारक’ की स्थापना भी की गयी जिसे याद न करना कोई अच्छी बात तो नहीं
६.    सन २००२ में भारत के 53वें गणतंत्र दिवस पर अग्नि-२ मिसाइल को प्रदर्शित किया जो भारत का गौरव व आकर्षण का केंद्र बनी
७.    भारत की पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने २००८ में परेड की सलामी ली

आज फिर इसके साथ एक और सम्मानीय बात जुड़ गयी कि विश्व की सबसे बड़ी इमारत ‘बुर्ज खलीफ़ा’ को भारतीय तिरंगे की लाइट्स के द्वारा सज्जित किया गया हैं और इसके अतिरिक्त आज 68वें गणतंत्र दिवस के मौके पर कई चीजें पहली बार परेड में शामिल की गईं... जैसे...

यूएई का दस्ता पहली बार परेड का हिस्सा बना

यूएई से परेड में हिस्सा लेने के लिए 144 जवान आये

इसके साथ देसी धनुष तोप पहली बार यहां दिखी

जबलपुर की गन कैरिज फैक्टरी द्वारा निर्मित 155 मिमी की इस तोप की लागत 14.50 करोड़ रुपये है यह भारत द्वारा 1980 के दशक में खरीदे गए बोफोर्स तोपों का उन्नत रूप है

टी-90 भीष्म टैंकों, इंफैंटरी कॉम्बैट व्हीकल बीएमपी -2के, वेपन लोकेटिंग रडार स्वाति, सीबीआरएन रीकान्सन्स व्हीकल को भी परेड में शामिल किया गया

ये हम सबके लिये गर्व की बात हैं और हम आज के दिन यही दुआ करे कि एक दिन सारी दुनिया हमारे रंग में रंगे... आमीन... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ जनवरी २०१७