बुधवार, 31 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२१२ : #आम_आदमी_की_आवाज़_तीन #प्रेमचंद_मोहम्मद_रफी_और_उधम सिंह




अक्षर ज्ञान के साथ जब किताबों से पाला पड़ा तो उसके साथ ही हामिद, अलगू चौधरी, जुम्मन शेख, घीसू-माधव, धनिया, होरी, मुंशी वंशीधर, बूढी काकी जैसे कुछ बेहद सामान्य व दिल के करीबी लगते चरित्रों से परिचय हुआ और साथ ही जाना उनके रचयिता कथा सम्राट ‘प्रेमचंद’ के बारे में भी जिन्होंने समाज के आम आदमी की समस्याओं और उसके इर्द-गिर्द के माहौल में साँस लेते उन निचले तबके के लोगों पर भी अपनी कलम चलाई जो अक्सर, अछूते रह जाते और ऐसी चलाई कि उनके मनो-मस्तिष्क की गहन कन्दराओं में उमड़ने-घुमड़ने वाले विचारों को भी पन्नों पर भी उतनी ही ईमानदारी से उकेरा कि सामने नजर आने वाले दृश्यों के पीछे उन अदृश्य परतों के बीच चलने वाली उथल-पुथल को समझना मुमकिन हुआ साथ ही उनके दृढ़ चरित्र की नींव में जिन गहरे संस्कारों का योगदान उनको भी जान पाना आसान हुआ जो केन्द्रीय पात्रों की निर्णय क्षमता को मजबूती प्रदान करता जिसकी वजह से वे विषम हालातों में भी डिगे बिना जीवन मूल्यों का ह्रास नहीं होने देते और हर अत्याचार व अन्याय के खिलाफ़ खुलकर आवाज़ उठाते है

इसी तरह जब इतिहास में जाने का अवसर मिला तो ज्ञात हुआ कि जो कुछ भी आज हम देख रहे या जिस आज़ादी का उपभोग कर रहे वो एक दिन में या अचानक ही आधी रात में नहीं मिल गयी उसे पाने के लिये इस देश के अनगिनत वीर-वीरांगनाओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी तब जाकर हम उन्मुक्त हवा में सांस ले सके तो इन्हीं ऐतिहासिक क्रांतिकारियों को पढ़ते हुये ये जाना कि इनके बीच अपने नाम के अनुरुप एक ऐसे जाबांज बहादुर ‘उधम सिंह’ की हैरतंगेज हकीकत का वर्णन भी है जिसने अपने देश की धरती नहीं बल्कि, विदेशी भूमि में जाकर अपने मासूम, बेकुसूर, असहाय देशवासियों के उस जघन्य हत्याकांड ‘जलियावाला’ का बदला लिया जिसे कि इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है तब आँख ही नम नहीं होती बल्कि, श्रद्धा से सर भी नत हो जाता है कि इस धरा ने ऐसे पराक्रमी सपूतों को जन्म दिया जो अपनी जान की परवाह न करते हुये भी अपने स्वाभिमान का प्रतिकार लेना जानते और दुश्मन के घर घुसकर बुलंद आवाज़ में दहाड़ते है

मन को सुकून पहुँचाने वाले साधनों में सबसे पहला क्रम ‘संगीत’ का आता जिसे आँखें बंद कर के सुनो तो अंतर का सारा विषाद, तनाव और सरदर्द जैसा विकार भी आने आप मिट जाता कि स्वर लहरियां कर्ण के रास्ते जब मस्तिष्क तक पहुँचती तो एक मदहोशी स्वतः ही तारी हो जाती जो भीतर चलने वाले झंझावातों को मिटाकर राहत की अनुभूति भरी देती और कब सुनने वाला नींद की आगोश में आ जाता पता न चलता कि सुरों का जादू और मखमली आवाज़ की खनक किसी रूहानी शांति से कम नहीं अगर, गाने वाले के गले में सरगम का वास हो कुछ ऐसा ही वरदान महान गायक ‘मो. रफी’ को भी प्राप्त था जिनके गाये गीतों, गज़ल व भजनों ने श्रोताओं पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे उनकी गायिकी के दीवाने हो गये और आज तलक भी उनके तराने युवाओं की जबान से सुनने की मिल जाते व रिमिक्स करने वालों की पहली पसंद बने रहते कि जब गानों में आम आदमी के दिल व परिस्थितियों का हाल मिल जाता तो वो उसकी अपनी आवाज़ बन जाता है          

आज आम आदमी की इन तीनों अलहदा आवाजों का स्मरण दिवस जिसने इन्हें 31 जुलाई से इस तरह जोड़ दिया कि किसी एक को भी भूल पाना मुमकिन नहीं... तीनों को नमन... !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ३१, २०१९


मंगलवार, 30 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२११ : #समय_की_मांग_सब_साथ_आओ #ओ_सोने_वालों_अब_तो_जाग_जाओ




‘न्याय’, ‘कानून’, ‘इंसाफ’ ये सभी शब्द आज मानो अपने अर्थ खोकर मजाक का विषय बन चुके है इसलिये अब तो इनको जुबान पर लाने में भी ये राहत की जगह हास्य पैदा करते कि जिस तरह इन्होने लगातार बढ़ रहे अपराधिक मामलों से अपनी फ़जीहत करवाई तो लगता कि किताबों में दर्ज मुंह छिपाने के सिवाय अब इनके लिये कोई दूसरी जगह ही नहीं बची है दुष्कर्म के प्रकरणों में तो इसने अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो दी कि कठोर कानून बनने के बाद भी स्थिति ज्यों की त्यों जबकि, होना था कि इन पर पूरी तरह विराम लग जाता लेकिन, दुराचारियों के हौंसलों में तो लगाम लगने की जगह लगता छूट मिल गयी हो वे तो अब हदों से आगे बढ़ते बढ़ते लोगों के घरों की दहलीज तक पहुंचने लगे है

सरकार बदलने के बाद होना तो ये चाहिये थी कि हर लड़की खुद को सुरक्षित महसूस करती मगर, हुआ ये कि न केवल उसके साथ दुराचार किया जा रहा बल्कि, उसके सारे परिवार को भी दिन दहाड़े खुलेआम सबके सामने मौत के घाट उतारा जा रहा और अपराधी जिसको फांसी पर लटकाया जाना था कानून उसको सरंक्षण दे रहा है इस देश में ‘लॉ एंड आर्डर’ महज़ आम जनता को धोखा देने वाला एक शब्द जिसकी आड़ में उसको ये भरम दिलाया जाता कि सब कुछ ठीक है मगर, भीतर ही भीतर ये केवल, अमीर और शक्तिशाली लोगों को सुरक्षा प्रदान करने का काम करता इसलिये ज्यादातर आम आदमी इससे बचने का प्रयास करता और छोटी-मोटी वारदात को नजरंदाज कर आगे बढ़ जाता कि शिकायत करने पर इलज़ाम उसके ही सर मढ़ दिया जाता है

‘उन्नाव दुष्कर्म प्रकरण’ में भी यही हुआ अव्वल तो पीड़िता की बात सुनी ही नहीं गयी जब दबाब में आकर FIR दर्ज भी की गयी तो अपराधी की जगह पिता को पकड़ लिया गया और इस तरह उसके साथ होने वाले अन्यायों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो उसका अंत ही नहीं आ रहा जिसमें ताजा-तरीन मामला उसके उपर हुये हमले का है एक तो वो ‘लड़की’ दूसरा ‘गरीब’ तीसरा ‘मुखर’ जो अत्याचार सहती नहीं उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाती और सरकार को झुकाती कि उसके साथ अत्याचार करने वाले को सज़ा दिलाई जाये जिसका खामियाज़ा उसे अपने परिजनों को खोकर भुगतना पड़ता है इस पर दुष्कर्मी ‘बाहुबली’ तो वो इंसाफ की उम्मीद किस तरह करती कि इस देश में ये आजकल अदालतों में भी मिलता कम खरीदा ज्यादा जाता है ऐसे में जिसके पास इसकी मुंहमांगी बोली लगाने रकम नहीं उसके साथ किस स्तर तक ज्यादती की जा सकती ये इस मामले में हम सबने देखा पर, अब इसके आगे इससे बुरा न देखना पड़े इसलिये सबको इस जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाने एक साथ पड़ेगा अन्यथा जब आग की लपटें आपके घर तक पहुचेंगी तो उसे बुझाने कोई मदद को साथ नहीं आयेगा इसलिये ये समय हर मतभेद व विचारधारा को त्यागकर एक बनने का है

किस उम्मीद से उत्तरप्रदेश की बागडोर अवाम ने एक ऐसे दल को सौंपी थी कि शायद, इसके बाद उसे जंगल राज से छुटकारा मिल जायेगा मगर, समझ में ये आया कि दल बदलते, नेता बदलते, चेहरे नये आते पर, फ़ितरत सबकी एक होती सब केवल सत्ता का सुख भोगने आते इसलिये कुर्सी से चिपके रहते नहीं तो अब तक उस विधायक को उसके अंजाम तक पहुँच जाना था । फिर भी जो अब तक न हुआ वो अब हो सकता यदि हम सब एक साथ मिलकर उसके विरुद्ध सरकार तक अपनी गुहार लगाये इतनी जोर से धमाका करें कि बहरी सरकार व अंधी इंसाफ की देवी दोनों उसे फांसी पर लटकाने मजबूर हो जाये इससे कम सज़ा हमे मंजूर नहीं है । इंसाफ जब अपने आप मिले नहीं तो उसे छीनने की जरूरत क्योंकि, ख़ामोशी से इनकी हिम्मत बढ़ती और हमारा बिखरा होना भी इनके पक्ष में जाता तो ऐसे में हम सब अगर, ऐसे हर मामले में एक साथ आगे आकर न्याय के लिये आवाज़ उठाये तो निसंदेह सामने कोई हो हम उसे झुका सकते है ।                

#Unnao_Rape_Case
#Hang_The_Rapist
#India_Wants_Justice 
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ३०, २०१९

सोमवार, 29 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२१० : #भज_मन_शिव_का_नाम #आया_द्वितीय_सावन_सोमवार



बेल पत्र
या हो अक्षत
पुष्प हो या ताम्बूल
जो भी करो प्रभु को समर्पित
मन ही मन में जपते रहो
प्रभु शिव का परम-पावन नाम
अंतर को जो करें पवित्र
तन में भी जगाये भक्ति का भाव
कर दे आत्मा निर्मल
मिटा दे भीतर भरे सारे कलुष
शिव नाम पारसमणि सम
कंकर को बना दे जो कुंदन और
प्राण फूंक जगा दे शव
हर पीड़ा मिटा दे
सारे कष्टों को कर दे दूर
आत्मदीप हो जगमग-जगमग
सर्वत्र फैलाये दिव्य प्रकाश
घोर तप से बने साधक कोहिनूर
योगबल से सधे मनोबल
अक्षम भी बन जाये पूर्ण सबल
इच्छा पूर्ति हो सकल
आदिदेव महादेव की पूजा
करें जो घर रहे उसका भरा-पूरा
सावन का आया सोमवार
प्रदोष का भी आज मिला है साथ
कर दो भक्तों आलस का त्याग
मुश्किल से होता ये संयोग
जब तन-मन हो जाते एकरूप
न जगेगा जब तक अंतःबोध
होगा न मनसा, वाचा, कर्मणा पूर्णकाम ।।
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २९, २०१९

रविवार, 28 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०९ : #प्रकृति_का_सरंक्षण_हो_किस_तरह #उसे_नुकसान_पहुंचा_रहे_जब_हम_निरंतर




‘समाचार पत्र’ हो ‘सोशल मीडिया’ या फिर ‘न्यूज़ चैनल’ सभी ‘भारत’ के विभिन्न इलाकों में आई बाढ़ के हृदय विदारक दृश्यों से भरे पड़े जिनमें इसे ‘प्राकृतिक आपदा’ या ‘विभीषिका’ कहकर ही उल्लेखित किया जा रहा है कोई भी ये नहीं कह या लिख रहा कि इसके लिये हम ही जिम्मेदार भूल गये कि हमने ही तो इसे आमंत्रित किया था उस दिन जब नदी-नालों को पाटकर उनके उपर अपने बड़े-बड़े आलीशान मकान बनवा लिये थे तब नहीं सोचा कि कल जब बारिश होगी तो उस पानी को आने वाले कल के लिये कहाँ सुरक्षित रखेंगे उस वक़्त तो गृह-प्रवेश की पार्टी में लोगों को बुलाकर उसकी नुमाइश कर खुश हो रहे थे अब जब घर में पानी भर गया तो उसे ही कोस रहे है पर, जरा एक बार सोचे तो सही कि जब हम नदी पर घर बनायेंगे तो फिर उसे घर में आने से किस तरह रोक पायेंगे काश, पहले ये ख्याल किया होता तो आज ये मुश्किल स्थिति न होती फिर भी अभी भी ये समझ ले तो बहुत देर नहीं हुई है

इसके बाद हो सकता स्थिति काबू से बाहर हो जाये जो अब तक नियन्त्रण में है अभी नहीं तो कभी नहीं ये ध्यान रखना होगा अन्यथा, आगे आने वाली तस्वीरें इससे भी अधिक भयावह हो सकती है इस भीषण बाढ़ के इन दारुण चित्रों को देखकर भी यदि हम इसे कुदरत का कहर मानकर ख़ारिज कर दे तो गलती हमारी ही होगी कि प्रकृति लगातार हर मानसून में हमें इस तरह से सचेत कर रही है फिर भी नहीं लगता कि कोई ये सोच रहा होगा उसके मन में तो यही ख्याल आ रहा होगा कि अगली प्रॉपर्टी कहाँ खरीदेगा किसी जंगल में या किसी खेत को खाली करवाकर वहां अपने बच्चों के लिये घर बनायेगा जिससे कि उसे कोई असुविधा न हो कोई ये नहीं सोचता कि जब जंगल या खेत ही नहीं बचेंगे तो फिर साँस किस तरह लेगा या खायेगा क्या कि सबकी सोच पैसे कमाने और उसके इन्वेस्टमेंट में ही टिकी जिससे कि फ्यूचर सिक्योर हो पर, जो सबसे जरूरी जीवन के लिये उस कुदरत को बचाने के लिये किसी के जेहन में कोई विचार नहीं आता है

जो इसे बचाने में लगे उनको भी कोई सहयोग नहीं करता कि सब अपने में बेहद व्यस्त जबकि, जरूरत पहले सांसों के लिये ऑक्सीजन की व्यवस्था करने की है न कि उसे प्रदान करने वाली हवा में जहर घोलने की जो हम सब अपनी प्रकृति विरोधी हरकतों से लगातार कर रहे है । हम प्लास्टिक के खतरों को जानने के बावजूद भी अपने घरों के सामान पर नजर नहीं डालते जिनमें से अधिकांश उसी से निर्मित हम में से कितने जिन्होंने कपड़े का थैला अपने बैग या गाड़ी में रखना शुरू किया या केवल दूसरों से अपेक्षा कि वे ही कुदरत बचाये हम तो बस, उसका उपभोग करेंगे । इसी तरह से लोग ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चिंता और बातें तो बड़ी करते लेकिन, ए.सी. या गाड़ी के बिना नहीं रह सकते घर में हर सदस्य का अलग-अलग ए.सी. / टी.वी. / गाड़ी इसके बाद न जाने किस मुंह से कहते इस बार गर्मी बहुत पड़ रही है । ज्यादातर किसानों ने खेती की जमीन को अधिक कीमत के लालच में बेच दिया उसके बाद सबके मुंह से यही सुनाई देता कि महंगाई लगातार बढ़ रही, खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे, गाय-भैंस कोई पालन नहीं चाहता पर, शुद्ध दूध-घी की कामना सबको तो किस तरह ये पूर्ति होगी कभी सोचा है ।   

इन सब सवालों व समस्याओं का एक ही जवाब ‘प्रकृति का सरंक्षण’ जिसके लिये सारी दुनिया में आज 28 जुलाई को ‘विश्व प्रकृति सरंक्षण दिवस’ मनाया जाता जो मनाने नहीं कुछ कर गुजरने का दिन है जिसकी बधाई देने की नहीं बल्कि, ये कटू सच्चाई सामने रखने की आवश्यकता इसलिये इन दृश्यों के माध्यम से इसे सबके समक्ष रखने का दुस्साहस किया जिससे कि हम जानें कि जो कुछ भी अप्राकृतिक या अमानवीय हो रहा उसकी नींव कहीं न कहीं हमने ही रखी फिर उस पर बनी इमारत किस तरह से न गिरती । हम सब जंगलों-खेतों की ही नहीं बचाये बल्कि, वे सभी उपाय भी अपनाये जिनसे कुदरत को नुकसान न हो चाहे फिर वो प्लास्टिक को ‘न’ कहने की हो या पेड़-पौधे रोपने की या फिर गेजेट्स व प्रोपर्टीज को कम से कम अपनाने की या नदी-तालाबों को बचाने की जो भी सम्भव हो सब कुछ करना है । ये नहीं सोचना कि ‘डायनासोर’ लुप्त हो गये तो बाकि के न होने से क्या हो जायेगा भला बल्कि, ये सोचना है कि उनकी तरह कहीं हम भी विलुप्त न हो जायें तभी ‘प्रकृति’ का बचाव हो सकता है ।    

#Say_No_To_Plastic
#Save_Forest_Save_Environment
#Minimize_The_Use_Of_Gadgets_Car_And_AC      
____________________________________________
_________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २८, २०१९

शनिवार, 27 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०८ : #आम_से_बने_ख़ास #मिसाइल_मैन_कलाम




अभाव, संघर्ष, गरीबी
कहने को नहीं होती अच्छी
कि, घोटना पड़ता है
अपने ही हाथों
नित ख्वाहिशों का गला
मन में उमड़ती हुई
दूसरों को देखकर जागती
कुछ पाने की ललक
जिसे भीतर दबाते-दबाते
लम्बे समय तक
हृदय में भी पड़ जाते घाव
सब में नहीं होता इतना ज्यादा सब्र
कि झेल सकें सभी झंझावात
अक्सर, विषम परिस्थितियों और
विपरीत हालातों के चलते
टूट जाते कुछ होकर लाचार
तो कुछ थाम लेते अपराध का हाथ
और कुछ बीच राह भटक जाते
महज़, चंद ही होते ऐसे
जो कठिनाइयों को बनाकर पुल
कर लेते इन दुर्दिनों को पार
मगर, रोते नहीं कभी-भी दुखी होकर
न ही बैठ जाते कहीं होकर मजबूर
न भाग्य पर फोड़ते ठीकरा
वे तो बस, अपने आप पर करते विश्वास
तो तोड़ देते पांवों की वो बेड़ियां
जो आगे बढ़ने से रोकती
अपने अलहदा कारनामों से फिर
बनाते नये-नये कीर्तिमान
ऐसे ही लोग तो रचते है इतिहास
जिस तरह आम से बने ख़ास
विज्ञान में किये अनूठे चमत्कार
कहलाये 'मिसाइल मैन'
'डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम'
आज पुण्यतिथि पर करते हम उनको
फिर एक बार दिल से सलाम ।।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २७, २०१९

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०७ : #कारगिल_विजय_दिवस #बलिदानियों_का_कराये_स्मरण



आज उस जबरन थोपे गये ‘कारगिल युद्ध’ को बीस साल होने जा रहे जो उन शातिर पीठ में खंजर मारने वाले दोमुंहे पाकिस्तानियों की साजिश का अंजाम था जो हमेशा से भारत पर चोरि-छिपे आक्रमण कर उसकी जमीन को किसी भी तरह से हथियाना चाहते तो लगातार उसके लिये दुश्चक्र रचते रहते जिसमें उनको मात भी हासिल होती मगर, अपनी गलत दूषित मानसिक प्रवृति की वजह से वे इसके बावजूद भी बाज नहीं आते न ही अपनी पराजय को ही स्वीकार कर पाते बल्कि, हर हार के बाद फिर ऐसे ही जाल बिछाने में जुट जाते अपनी नाकामियों से सीखने की जगह वो इन घृणित कोशिशों में अपनी समस्त ऊर्जा व समय का व्यवय करते जो आज भी उसी तरह से जारी है

भारतवर्ष की यही पहचान व ख़ासियत कि उसने आज तक किसी से आगे होकर जंग नहीं लड़ी और न हो किसी को अपने कब्जे में करने जैसे हथकंडे ही रचे मगर, यदि किसी ने सामने से आकर ललकारा या युद्ध का बिगुल बजाया तो उसके बाद भी शत्रु को पहले उसने शांति का पैगाम ही भिजवाया ताकि, उन बेकुसूर व निर्दोष लोगों को बचाया जा सके जिन्हें बेवजह ही इस आपदा या विभीषिका का कोप भाजन बनना पड़ेगा उसके बाद भी अगर, दुश्मन न माने तो कफिर बचाव के लिये जो भी सम्भव वे प्रयास अवश्य करता बोले तो डिफेन्स के लिये ही हथियार उठाता और इसमें भी उसकी कोशिश रहती कि बेवजह किसी बेगुनाह को मारना न पड़े वर्तमान में की गयी सर्जिकल व एयर स्ट्राइक में भी हमारे फौजी भाइयों ने किसी सिविलियन को घायल किये बगैर अपना पराक्रम दिखाया और इस तरह से ये दोनों हमले किये गये कि जान-माल का नुकसान कम से कम हुआ जो हमारी उस मानवीयता को दर्शाता जो ऋषि-मुनियों की भूमि ‘आर्यवर्त’ का दूसरा नाम है ।

‘इंसानियत’, ‘अमन’, ‘करुणा’ के अलावा ‘क्षमा’ हमारा ऐसा गुण जिसकी वजह से हम दुश्मन की नापाक हरकतों व घटिया आदतों को जानते हुये भी एक पिता व बड़े भाई की तरह हर बार उसे माफ़ कर देते जिसका फायदा वो इस तरह से उठाता कि हमें पीठ पर जख्म पर जख्म दिये जाता कि एक जहरीला नाग जिस तरह दबोचे जाने पर भले डंसता नहीं मगर, जब मौका मिलता वार कर देता उसी तरह ये पाकिस्तान है जो है तो इसी देश का हिस्सा मगर, अपने धड़ से जुदा होते ही अपनी तहज़ीब भूल गया और उसी पुरानी फ़ितरत पर वापस आ गया जो उसकी ख़ास पहचान जिससे वो कभी बाज आयेगा या नहीं इसकी उम्मीद कम ही पर, हमें अपने सैनिकों पर पूरा यकीन कि वो ऐसे किन्हीं भी हालातों में उसे मुंहतोड़ जवाब देने से पीछे नहीं हटेगा आज भी उन्हीं वीर बलिदानियों की पुण्यतिथि जो हमको उन जाबांज सपूतों की बहादुरी ही नहीं शत्रु की कमजोरी भी याद दिलाती है ।             

‘कारगिल विजय दिवस’ पर वीरगति प्राप्त सभी सिपाहियों को मन से नमन... जय हिन्द... जय भारत... वन्दे मातरम... !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २६, २०१९

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०६ : #चिड़चिड़ाहट_को_समझो #वास्विकता_से_मत_दूर_भगो




दूसरों की ऐसी हर बात जो हममें चिड़चिड़ाहट पैदा करती हैं, हमें अपने आपको समझने में मदद कर सकती हैं ।
---------- 'कार्ल जी. युग'

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि इस वाक्य को समझने का प्रयास करें तो इसका बेहद गूढ़ अर्थ कि जब भी हम किसी बात पर अत्यधिक चिड़चिड़ाते है तो ज़ाहिर है कि उसके पीछे हमारे मन का ही कोई ऐसा रहस्य छिपा जिसे हम जानकर भी अनजान क्योंकि, हमने ठहरकर उसे समझने का प्रयास नहीं किया बस, झुंझलाकर उस वक़्त को टाल दिया क्या करें जीवन की आपा-धापी और दौड़-भाग में इस कदर व्यस्त कि बेवजह यदि कहीं एक क्षण भी रुकना पड़े तो नागवार गुजरता लगता कि इस पल में न जाने कितना कुछ कर लेते जबकि, हकीकत यही है कि जो हम 24 घंटों या सारे दिन में नहीं कर पाते उसे उस अल्पावधि में किस तरह से कर लेंगे मगर, ये सहज मानवीय प्रवृति कि वो अनचाहे काम को किये जाने पर ऐसे ही चिड़चिड़ाकर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है इसे हम बेहद आसान तरीके से एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते है

मम्मा, मेरा होमवर्क करवा दीजिये न नन्हे ‘रोहन’ ने आकर अपनी मम्मी से कहा तो मोबाइल में व्यस्त उसकी माँ ने चिड़चिड़ाते हुये कहा, तुमसे तो कुछ होता ही नहीं, क्या है दिखाओ उसके हाथ से कॉपी झपटकर उसे देखकर मुंह बनाते हुये गुस्से में बोली, पता नहीं आजकल के टीचर्स कैसा पढाते कि बच्चों से कुछ बनता ही नहीं हमारे जमाने में न तो कोई ट्यूशन थी और न ही कोई बताने वाला पर, स्कूल में ही इतनी अच्छी पढ़ाई हो जाती थी कि किसी की मदद की जरूरत ही नहीं पड़ती थी इस तरह बडबडाते हुए उन्होंने उसे जैसे-तैसे थोड़ा-बहुत काम करवाया क्योंकि, मन तो फ्रेंड के साथ हो रही चैटिंग में ही लगा था जो बेटे के कारण अधूरी रह गयी तो उस खीझ को यूँ चिड़चिड़ाकर निकाला जिसका असर उनके मासूम बेटे के मन पर भी हुआ जो अब बहुत जरूरत पड़ने पर भी मम्मी से सहायता के लिये कम ही बोलता कि उसने पाया कि जब भी वो अपनी माँ से कुछ कहता वो ऐसे ही चिड़चिड़ाकर रियेक्ट करती थी आखिर, उनका मन मोबाइल, सहेलियों से गप्पे लगाने और घुमने-फिरने में जो लगता था तो इस तरह के विध्न से वो इसी तरह झुंझला जाती थी पर, उन्होंने कभी इसे समझने को कोई कोशिश नहीं की और न ही कोई जरूरत समझी    

मगर, यदि यहीं उन्होंने थोडा रुककर अपने इस व्यवहार पर गौर किया होता या जब भी चिड़चिड़ाहट होती तो उसकी गहराई में जाने की कोशिश की होती तो निश्चित ही वे समझ जाती कि इसका एकमात्र कारण यह है कि उनका मन इस स्थिति को स्वीकार कर पाने में अक्षम जिसकी वजह उनकी वो सोच जिसके कारण वे अपने मनपसन्द काम को तरजीह देना पसंद करती व उनकी प्राथमिकताओं में उन्होंने स्वयं को प्रथम व उसके बाद अपने दोस्तों को रखा हुआ जिसमें उनके घर-परिवार का स्थान शायद, अंत में आता कि उनके लिये जीवन के मायने अपनी खुशियों के इर्द-गिर्द सिमटे थे इसमें पति व बच्चे का क्रम भी निचले पायदान पर इसलिये पहुंच गया था कि उसके पति भी वैसे नहीं थे जैसा कि उसने शादी के पहले अपेक्षा की थी ऐसे में बच्चे के होने से भी उसको वो ख़ुशी न मिली कि मन को वो कभी इन हालातों के अनुरूप परिवर्तित ही नहीं कर पाई न ही खुद को मना सकी कि जो हो गया सो हो गया अब इसी तरह से ज़िन्दगी गुजारना है बल्कि, उसे तो हर पल तलाश रहती उन लम्हों की जिनमें वो जी ले पर, ये न समझ पाई कि अंततः न तो दोस्त और न ही ये सब साधन काम आयेंगे यदि परिजनों का लगाव भी कम हो गया तो बाद में पछताना पड़ सकता लेकिन, उनके लिये तो आज ही सब कुछ था ऐसे में रोज इस तरह चिड़चिड़ाने के दृश्य उनके घर में अक्सर, देखने में आते रहते थे     
  
आज ‘रीना’ बहुत खुश थी उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर फिल्म देखने और किसी रेस्टारेंट में जाकर खाने का प्रोग्राम बनाया था आखिर, सब बड़े दिनों बाद जो मिल रही थी और बड़ी मुश्किल से ऐसा अवसर आता कि सबकी छुट्टी हो और सब साथ जाने को तैयार हो मगर, अचानक मम्मी ने आकर बताया कि शाम को उसके दीदी-जीजाजी आ रहे तो घर पर बहुत-सा काम होगा इसलिये आज वो शाम का कोई कार्यक्रम न रखे क्योंकि, वे केवल अपने बच्चों को छोड़ने आ रहे उन्हें सुबह आगे की यात्रा पर निकलना ऐसे में ‘रीना’ उन्हें ये बता तो नहीं पाई कि उसका पहले से ही प्रोग्राम सेट बस, बेमन से साथ देने लगी जिसका नतीजा निकला कि दीदी-जीजाजी के आने के बाद भी वो नॉर्मल न हो पाई और आखिरकार, चिड़चिड़ करते ही वो समय गुजरा जिसका वो आनंद नहीं ले पाई दूसरों को तो ये पता नहीं तो वे भी समझ ना पाए तो उसका नकारात्मक प्रभाव उन सबके मन पर पड़ा और दीदी के साथ आई उसकी ननद जो अपने देवर का उससे रिश्ता कराना चाहती थी उसके इस रूप को देखकर पीछे हट गयी जबकि, ‘रीना’ चाहती तो इन हालातों को सम्भाल सकती थी मगर, ख्यालों में तो सहेलियों का मस्ती करना, खिलखिलाना और एन्जॉय करना ही घूम रहा था तो मन किसी की भी बातों में न लग सका यदि वो उसे वर्तमान से जोड़ पाती तो सब न सिर्फ खुश होते बल्कि, उसे भी राहत की अनुभूति होती       

इसी तरह हम सब भी कभी-न-कभी किन्हीं अवसरों पर चिड़चिड़ा जाते तो जब भी ऐसा हो खुद को तुरंत, प्रतिक्रिया देने से रोक ले और इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करें अवश्य समझ आ जायेगा कि ऐसा क्यों हो रहा तो बस, तुरंत ही उसे मनोस्थिति को बदलें और जो सामने उसमें अपने आपको ढाल ले अन्यथा, अंजाम चिड़चिड़ाहट या अलगाव ही होगा क्योंकि, क्रिया की प्रतिक्रिया उसी तरह होती है
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २५, २०१९

बुधवार, 24 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०५ : #बांग्ला_फिल्मों_के_दिलीप_कुमार #संवेदनशील_कलाकार_उत्तम_कुमार




हिंदी सिने जगत के ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले महानायक ‘दिलीप कुमार’ एक ऐसे महान अभिनेता है जिन्होंने अपने संजीदा अभिनय व दिल में उतरने वाली सम्वाद अदायगी से उस दौर में न जाने कितने ही युवाओं को इस क्षेत्र में आने को प्रेरित किया और एक के बाद एक कई अदाकार आये जिन्होंने आने जीवन के किसी पड़ाव पर ये स्वीकार भी किया कि वे उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों को देखकर ही अभिनय की दुनिया में आने के बारे में सोच सके और जब अवसर मिला तो उन्होंने अपने द्वारा निभाये गये पात्रों में कहीं न कहीं उनकी तरह एक्टिंग करने का प्रयास किया

हालाँकि, कोई भी दूसरा ‘दिलीप कुमार’ नहीं बन सका मगर, सबका लक्ष्य यही था कि कम से कम उन्हें एक बार तो सही ऐसा अवसर मिले कि वे बता सके कि उनको भी उस तरह से अदाकारी करना आता है जिसमें कौन कितना सफल हुआ ये तो नहीं पता मगर, 'अरुण कुमार चटर्जी' आज जिनकी पुण्यतिथि जिन्हें हम सभी ‘उत्तम कुमार’ के नाम से भलीभांति जानते वे बांग्ला फिल्मों में काम करने वाले और अपनी फ़िल्मी दुनिया के बेताज बादशाह थे एवं उनके यहाँ उन्हें ‘बांग्ला दिलीप कुमार’ कहा जाता था क्योंकि, उनके काम की शैली भी वही थी और वे जो किरदार निभाते उसी रूप में ढल जाते जिस तरह से ‘दिलीप साहब’ किये करते एवं उनकी छवि में भी दिलीप कुमार का अक्स दिखाई देता था

इस तरह से इस उपनाम ने उनके कद को बढाने का ही काम किया जिसकी वजह से उनकी ख्याति किसी पुष्प की सुगंध की भांति इतनी फैली कि उन्हें हिंदी सिनेमा में भी काम करने के लिये आमंत्रित किया गया हालाँकि, उन्होंने हिंदी में कम ही फिल्मों में काम किया जिनमें ‘छोटी-सी मुलाकात’, ‘अमानुष’, ‘आनंद आश्रम’, ‘किताब’ एवं ‘दूरियां’ महज़ चंद फ़िल्में ही उनके खाते में दर्ज मगर, जो भी की वे मील का पत्थर कहलाई और उनके नाम से इस तरह याद की जाती  कि इन गिनी-चुनी फिल्मों की वजह से उन्हें जाना व पहचाना जाता और जो भी सच्चे सिने प्रेमी बिला शक उन्होंने ये सभी फ़िल्में अवश्य देखी होंगी कि इन सबने अपने केवल उनके अभिनय ही नहीं गीत व कहानी से भी सबका ध्यान आकर्षित किया था            

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा
बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा
एक भले मानुष को अमानुष बनाकर छोड़ा... 

शायद ही कोई हो जिसने ये गीत न सुना या देखा हो आज भी अक्सर, ये सुनाई दे जाता और उस पर अभिनय करते ‘उत्तम कुमार’ को भी लोग पहचान जाते जिनकी अदाकारी ने अपनी अलग छाप छोड़ी आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण उनके अभिनय की ही तरह सहज ही हो जाता कि अच्छे कलाकार सदैव संख्या नहीं गुणवत्ता के लिये जाने जाते इसलिये चंद फिल्मों से ही चाहने वालों के दिलों में अपनी याद छोड़ जाते है


अपनी इच्छा के अनुसार वे बांग्ला फिल्म में अभिनय करते हुये शूटिंग के दौरान 24 जुलाई 1980 को हुये हृदयाघात से हम सबको छोड़कर चले गये पर, इसके पूर्व 1979 में उन्होंने हिंदी मूवी ‘दूरियां’ में काम किया उसी के गीत के द्वारा उनको श्रद्धांजलि...  

जिंदगी, ज़िन्दगी...
मेरे घर आना ज़िन्दगी
मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ़ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी, ना आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है
हैं दीवारें गुम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त
खड़ी धूप है दोस्त
तेरे आंचल का साया चुरा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी
ओ ज़िंदगी मेरे घर आना
आना ज़िंदगी, ज़िंदगी मेरे घर आना

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २४, २०१९

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०४ : #तिलक_और_आज़ाद #स्वाधीनता_दोनों_का_ख़्वाब




23 जुलाई 1856
23 जुलाई 1906

बेशक, इतिहास में दर्ज इन दो तारीखों में 50 बरस का अंतराल पर, इन दोनों दिनांकों में देश के दो अलग-अलग प्रान्त व समाज में दो महान विभूतियों 'तिलक' 'आज़ाद' का जनम ये बताता कि गुलामी की बेड़ियों में जकड़े देश की भूमि पर पैदा होने वाले इन दोनों वीरों की सोच में कोई अंतर नहीं था । पचास बरस का लम्बा समय या दोनों की जन्मभूमि के मध्य की दूरियां कोई भी इनके हृदय में उठने वाले भावों में भेद न कर सकी क्योंकि, भले इन्होंने अलग परिवारों में अलग-अलग माताओं की कोख से जन्म लिया मगर, सांकेतिक तौर पर 'भारतमाता दोनों की ही जननी थी तो उसके प्रति अपने फर्ज को दोनों बखूबी समझते थे और आजीवन उसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये दोनों संघर्षरत रहते हुये ही अपने प्राणों का बलिदान देकर दोनों अमर हो गये हमारे जेहन में आज भी जिंदा है ।

ये उस दौर में जन्मी अनगिनत आत्माओं का स्वप्न था जिसके लिये उन्होंने जहां थे वहीं से यथासम्भव प्रयास किया और उनमें से ज्यादातर तो आज़ादी को देख भी नहीं पाये मगर, अन्तस् में ये सुकून था कि हमारी अगली पीढियां तो आज़ादी भोगेगी उसी तरह जिस तरह पौधा रोपने वाला नहीं जानता कि उस वृक्ष के फल कभी वो खा पायेगा या नहीं लेकिन, ये उसका फर्ज तो वो अपने जीवन में कई पेड़ लगाता कि भले मैं न रहूं पर, भविष्य में जो भी आयेंगे उनको तो इसके फल नसीब होंगे कि परोपकार एक निःस्वार्थ भावना जिसमें स्वार्थ नहीं परमार्थ छिपा होता है । ऐसी ही पवित्र भावनाओं ने 'बाल गंगाधर तिलक' को 'लोकमान्य' तो 'पंडित चंद्रशेखर' को 'आज़ाद' बना दिया और इतिहास में इस तरह से अपना नाम अंकित करवा दिया कि वो अमिट है फिर भी कुछ कृतध्न जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के महज़ 72 सालों बाद ही उन महापुरुषों को विस्मृत कर दिया जबकि, उनके न होने से जंगे आज़ादी लम्बी भी खींच सकती थी मगर, जब कोई चीज़ हासिल हो तो उसके प्रति लापरवाही का भाव आ ही जाता चाहे फिर वो कितनी भी अनमोल क्यों न हो तो हम जिन्होंने खुली हवा में सांस ली उस देश को उसी पश्चिमी संस्कृति में डुबो दे रहे जिससे बचाने की खातिर ये क्रांतिकारी अपना जीवन होम कर चले गये ।

'तिलक' और 'आज़ाद' पचास बरसों के अंतर से 'महाराष्ट्र' एवं 'मध्यप्रदेश' में जन्म लेने के बाद भी चिंतन के धरातल पर एक थे उनकी इसी विचारधारा ने उनको अपनी-अपनी जगह से ही अपनी लड़ाई शुरू करने का हौंसला दिया 'तिलक' ने जहां स्वराज्य को अपना जन्मसिद्ध अधिकार माना तो 'आज़ाद' ने घोषणा कर दी कि मैं आज़ाद हूं और आज़ाद ही मरूँगा तो अपने विचार को मूर्त रूप देने उन्होंने अपने-अपने स्तर पर स्वाधीनता संग्राम छेड़ा और अपने सम्पर्क में आने वालों को भी इस हेतु से प्रेरित किया और ये परिणाम हुआ कि 22-25 साल के नवजवान ही नहीं 11-12 साल के किशोर तक इस अघोषित युद्ध में अपने जान की परवाह न करते हुये शामिल व शहीद हुये कि देश स्वतंत्र हो सके जो हुआ भी पर, वे देख न सके और जिन्होंने देखा वे उनको भूल गये ये बेईमानी नहीं तो और क्या है । उनके बीच 50 साल का गैप भी वो फर्क नहीं डाल पाया जो इतने कम वक्त में आज हमारी घटिया सोच में आ चुका है अब जबकि, हम संवैधनिक रूप से एक है पर, मतांतर इतने कि अनेकता में एकता केवल एक भ्रम लगता क्योंकि, अधिकांश झगड़े तो खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने को लेकर चल रहे जिसमें कोई पीछे हटने को तैयार नहीं इसलिए किसी निष्कर्ष पर भी नहीं पहुंच पा रहे है ।

यदि हम सब भी अपने इन राष्ट्रभक्त सपूतों की तरह सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक समझे और इसकी तरक्की के लिए अपने निजहितों को उनकी तरह त्याग सकें तो निश्चित ही विश्व में अव्वल आ सकते पर, हम तो सरकार से सारी आस लगाकर बैठे रामजी की गिलहरी की तरह हम भी कुछ कर सकते ये भूल गये ऐसे में वोट देने के अलावा भी हम राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका अदा कर सकते ये समझना पड़ेगा अन्यथा, हमको शिकायत करने का कोई हक नहीं क्योंकि, यदि हम समाधान का हिस्सा नहीं तो हम खुद समस्या है ।

जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम... 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २३, २०१९

सोमवार, 22 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०३ : #श्रावण_सोमवार_विथ_तिरंगा_दिवस #चन्द्रयान_दो_का_हो_कामयाब_मिशन




ये समस्त सौर मंडल, अंतरिक्ष, नील आसमान और उस पर टिमटिमाते नन्हे सितारे व नक्षत्र जो बहुत दूर नजर आते सदैव से मानव मस्तिष्क की जिज्ञासा के केंद्र रहे जिनको जानने के प्रयास भी हर कालखण्ड में चलते रहे व आज तलक भी जारी है । इस परिप्रेक्ष्य में आज चन्द्रयान-2 को भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा चन्द्रमा पर भेजा गया इसके पूर्व 22 अक्टूबर 2008 में चन्द्रयान-1 को भी भेजा गया था ताकि, इस ग्रह से इतर दूसरे ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा सके और वो चांद जो कवि-कवयित्रियों की कविता का मुख्य पात्र होता उसकी हकीकत से सबको रूबरू किया जा सके कि ये महज़ सौंदर्य का प्रतीक नहीं है ।

बहुत कुछ तो इसके बारे में ज्ञात किया जा चुका उसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ अभी बाकी जिसकी खोज जारी है और जब ये सब कुछ हासिल हो जायेगा तब किसी और ग्रह या उपग्रह को निशाना बनाया जायेगा कि टेक्नोलॉजी इतनी अधिक विकसित हो चुकी कि जो कुछ भी कभी कल्पना या ख्याल था आज उसकी वास्तविकता को सामने लाया जा चुका या लाने की पुरजोर कोशिशें जारी क्योंकि, ज्ञान का कोई अंत जो नहीं है । श्रावण मास के प्रथम सोमवार पर आज भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान उस चन्द्र पर जाना मानो कुछ अन्य अनसुलझे रहस्यों से भी पर्दा उठना और शशिशेखर के आशीर्वाद से ये सम्भव हो सकता कि ये पावन दिवस सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर समस्त ब्रम्हांड में गूंजता ॐ नमः शिवाय का अनंत जाप इसे शक्ति प्रदान करेगा जिससे कि ये अपेक्षित परिणामों को लाने में कामयाब हो सके कि शुभ काम में शुभ संयोगों का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है ।

इसके अलावा 22 जुलाई का महत्व इस वजह से भी ऐतिहासिक कि आज ही के दिन 1947 में हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को अंगीकार किया गया था जिसकी वजह से आज 'राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस' भी मनाया जाता जो हमारे लिये गौरव व हर्ष का विषय कि इस तिरंगे की वजह से हमें विश्वपटल पर अपनी एक अद्वितीय पहचान मिली जिसके द्वारा हम आज भी अपनी खुशी व विजय ही नहीं शोक का भी इजहार करते है । इस तरह से ये केवल तीन रंगों का कपड़ा नहीं हमारी आन-बान-शान का प्रतीक है और अब चन्द्रयान-2 के द्वारा इसे फिर एक बार अंतरिक्ष में लहराया जायेगा जो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदा-सदा के लिए अंकित हो जायेगा और अभी देश की बेटी ढिंग एक्सप्रेस 'हिमा दास' लगातार दुनिया में इसे फहराकर ये साबित कर ही रही कि सच्ची लगन हो तो अभाव या मुश्किलें कभी-भी किसी लड़की की राह की बाधा नहीं बन सकते है ।

ये अभियान या मिशन मून भी इस बात को प्रमाणित कर रहा है क्योंकि, चन्द्रयान-2 की कमान दो महिला वैज्ञानिक ही संभाल रही हैं और इसरो के इतिहास में यह पहली बार होगा जब किसी अंतरिक्ष मिशन की कमान दो महिला वैज्ञानिकों के हाथों में है याने कि देश-विदेश से लेकर अंतरिक्ष तक स्त्रियां अपने हूनर व कौशल का परचम लहरा रही है । इसमें 'वनिता मुथैया' चन्द्रयान-2 मिशन में 'प्रोजेक्ट डायरेक्टर' हैं तो दूसरी वैज्ञानिक 'रितु करिढाल' मिशन डायरेक्टर के रूप में इस मिशन पर काम कर रही हैं । यही नहीं इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 को कागज से उड़ान भरने तक संभव करने वाले स्टाफ में 30 प्रतिशत महिलाएं ही शामिल हैं और सबसे बड़ी उल्लेखनीय बात यह है कि भारत का यह मिशन सफल हो जाता है तो चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा मिशन बन जाएगा, जो चन्द्रमा की दक्षिणी सतह पर उतरेगा जो कि वह अंधियारा हिस्सा है, जहां ‍अब तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुंचा है।

इस तरह चन्द्रयान-2 से कई विशेषताएँ जुड़ी जो इसे विशेष बनाती और हमें ये बताती कि कुछ महिलाएं जहां श्रावण सोमवार पर महाकाल का अभिषेक कर खुद को धन्य समझ रही तो वही दूसरी तरफ कुछ शिव के ललाट पर चमकते उस चांद तक पहुंचने उड़ान भर रही तो कोई दौड़कर उसे छूने में लगी इस तरह एक 'चांद' सबकी अपेक्षाओं का सिंबल जिसके मायने वही या फिर भगवान शिव समझते है । वो औघड़दानी सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर उनको मनोवांछित परिणाम दे और बेटियों पर यूँ ही अपनी कृपादृष्टि व वरद हस्त रखता रहे ताकि, वे केवल मनचाहा वर नहीं बल्कि, जीवन की सार्थकता को समझ उसके अनुरूप कामनापूर्ति हेतु से शिवाभिषेक करें यही तो आज की जरूरत भी है ।

सब देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई... 💐💐💐

हर हर महादेव... जय हिन्द... जय भारत... 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २२, २०१९

रविवार, 21 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०१ : #लघुकथा #आखिर_कमी_क्या_थी




गरिमा, तूने सुना दिव्या भाभी ने आज आदर्श भैया को तलाक दे दिया है ?

क्या बकवास करती है मर्यादा, विश्वास नहीं होता भाभी तो बहुत सीधी-साधी भोली-भाली नजर आती थी फिर ऐसा कांड कैसे कर दिया ।

तभी उसकी बात काटती संस्कृति बोली - अरे, तू नहीं जानती आजकल की लड़कियों को ऊपर से सती-साध्वी नजर आती पर, भीतर-ही-भीतर गुल खिलाती उनका भी जरूर कोई चक्कर रहा होगा वरना, आदर्श भैया जैसे पति को कौन छोड़ता है ।

तू सही कहती है संस्कृति, वरना भैया में कोई कमी नहीं थी यहां तक कि सास-ससुर भी बहुत अच्छे और भाभी का ख्याल रखते थे फिर भी उन्होंने किसी का ख्याल न किया और सबसे सम्बन्ध तोड़ लिया इससे अच्छा तो उन्हें शादी ही नहीं करनी थी ।

मुझे तो सुनकर आश्चर्य हो रहा कि ये कैसे सम्भव ? भैया सरकारी नौकरी में ऐसा कोई व्यसन भी न उनमें सिवाय धूम्रपान के पर, पैसों और सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं घर में हर काम के लिए नौकर, बड़ी कार, बंगला, जमीन-जायदाद, प्रॉपर्टी सब कुछ था और एक औरत को इससे ज्यादा और क्या चाहिये । ऐसे में समझ नहीं आता कि भाभी ने ऐसा क्यों किया, आखिर क्या कमी थी भैया में जो उनका जीवन बर्बाद कर दिया खुद तो अब ऐश कर रही होगी लेकिन, मैं चुप न रहूंगी पूछकर रहूंगी उनसे ये प्रश्न अभी फोन करती हूं उनको ।

सही कह रही तू अभी की अभी फोन लगा और स्पीकर ऑन रखना हम भी तो सुने महारानी जी क्या कहती है ।

गरिमा ने तुरंत कॉल किया उधर से दिव्या की आवाज़ आई तो पहले कुछ औपचारिक बात कर उसने सीधे अपना सवाल जड़ दिया, भाभी हमें अभी पता चला कि आपने भैया से तलाक ले लिया क्या ये सच है उधर से ‘हां’ कहे जाने पर उसने अगला प्रश्न दागा, भाभी क्या आप ये बतायेंगी कि आपने ऐसा क्यों किया भैया में आखिर, क्या कमी थी ???

कुछ नहीं बस, शुक्राणु कम थे ।

उधर से ये जवाब सुनकर उसके हाथ से मोबाइल छूट गया और गरिमा, संस्कृति व मर्यादा के चेहरों पर झलकता सवालिया निशाना बता रहा था वो ये जानकर सदमे में थी कि, शादी टूटने की वजह ये भी हो सकती है जो एक औरत के लिये समाज में अपनी खराब छवि निर्मित होने से भी अधिक मायने रखती है । 
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २१, २०१९