मंगलवार, 17 सितंबर 2019

सुर-२०१९-२६२ : #षड्यंत्रकारियों_को_पहचानो #अपने_धर्म_देश_के_रक्षक_बनो




दृश्य - ०१ : एक उच्च शिक्षित कॉलेज में प्रोफेसर स्त्री ने करवा चौथ मनाते हुए पूर्ण श्रृंगार सहित अपने पतिदेव संग पूजा करते हुए सोशल मीडिया पर फोटो क्या डाली बड़ी बिंदी गैंग, लिबरल्स, सो-कॉल्ड बुद्धिजीवी सब उसके पीछे पड़ गये कमेंट करने लगे इतनी पढ़ाई-लिखाई का क्या फायदा जब पढ़-लिखकर यही सब करना है, यदि एजुकेशन आपको पाखंड और आडम्बरों से दूर न कर सकी तो फिर वो व्यर्थ है, स्त्रियों को बरगलाकर पुरुष अपना हित साधते बताओ कोई एक व्रत जो पति करता हो तुम्हारे लिए पर, तुम नौकरी, बच्चों, घर को संभालते हुए आत्मनिर्भर होकर भी उसके लिए भूखी रही सारा दिन अब उसके खिलाने पर व्रत तोड़ोगी इन्ही सब बातों ने तो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोका हुआ है ब्ला... ब्ला... ।

दृश्य - ०२ : रांची विश्वविद्यालय के कॉन्वोकेशन में मारवाड़ी कॉलेज का ग्रेजुएशन सेरिमनी चल रहा था जिसमें कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू टॉप ग्रेजुएट को सम्मानित करने मंच पर थी और सबसे पहले ओवरऑल बेस्ट ग्रैजुएट स्टूडेंट ऑफ द ईयर 'निशात फातिमा' का नाम पुकारा गया तो 93.50 परसेंट लाने वाले निशात बुर्का पहने हुए अपना गोल्ड मेडल और सर्टिफिकेट लेने स्टेज पर पहुंची तो उन्हें सेरेमनी के लिए निर्धारित ड्रेस कोड में आने को कहा गया लेकिन, निशात बगैर बुर्का पहने मेडल लेने से इनकार कर दिया और वापस लौट गई जिस पर उनके विभागाध्यक्ष का कहना है कि रांची यूनिवर्सिटी की तरफ से निर्धारित ड्रेस कोड में ही डिग्री दिया जाना था और जो कि निषाद ने ड्रेस कोट पहनने से इनकार किया इसलिए प्रोटोकॉल के तहत उसे डिग्री नहीं दी गई लेकिन, वह कभी भी कॉलेज आ कर अपना गोल्ड मेडल और डिग्री ले सकती हैं ।

चूंकि, मामला धर्म नहीं मज़हब और समुदाय विशेष से जुड़ा था तो पुनः वही बड़ी बिंदी गैंग, सो कॉल्ड बुद्धिजीवी, लिबरल्स और बिकाऊ मीडिया फिर चालू हो गया पर, इस बार भी उनके निशाने परवही थे जिनको लताड़ने का कोई अवसर वे नहीं जाने देते और उनकी सहानुभूति का पात्र भी वही जिनको पुचकारने का मौका वे ढूंढते रहते मगर, शब्द बदल गये थे अब उनको इस 93.50 प्रतिशत लेने वाली के परिधान से कोई आपत्ति नहीं उनके अनुसार वो उसकी चॉइस का मामला है पर, जो पूजा-पाठ, व्रत-उपवास में सिंदूर लगाये, मंगलसूत्र पहने, अपने रीति-रिवाजों परम्पराओं का पालन करें उसको अपनी मर्जी करने का कोई हक नहीं है अन्यथा उसकी शिक्षा बेकार है पर, ये कितना भी पढ़-लिखकर अपनी मान्यताओं से जकड़े रहे उससे कोई समस्या तो छोड़ो ऐतराज तक नहीं आखिर, इनकी ट्रेनिंग ही ऐसी हुई ये क्या करें इन्हें केवल एक ही धर्म और उसके अनुयायियों से दिक्कत और उनको ट्रोल करने के लिए विशेष तौर प्रशिक्षित किया जाता व विशेष अनुदान, सम्मान भी दिया जाता तो फिर क्यों न पूरी ईमानदारी से वे दिन-रात इस सेवा में न लगे रहे समझना तो हमको कि ये इनका षड्यंत्र जिसके तहत ये काम करते तो इनको इग्नोर करते हुए अपने धर्म पर डिगे रहो अपने रिवाजों का पालन करो न कि आधुनिकता के चक्कर में कपड़े पहनना ही छोड़ दो बल्कि, इनसे सीखो किस तरह ये विदेश में रहकर भी अपनी परम्पराओं से जुड़े रहते है और एक हम अपने ही देश में अपने त्यौहार इनके निर्देशानुसार मनाते ।


कभी देखा किसी समाचार पत्र को जिसने बकरी ईद या मोहर्रम पर कोई मुहिम चलाई हो या कोई अपील की हो कि, मिट्टी का बकरा बनाकर कटा जाये या ताजिये से पर्यावरण को खतरा तो कृपया प्रतीकात्मक रख लिए जाए मगर, होली, दीवाली, नवरात्र, गणेशोत्सव, छठ या कोई पर्व हो इनकी हिदायत शुरू हो जाती जैसे सारी पृथ्वी की चिंता इनको ही है, यही सबसे बड़े पर्यवारण शुभचिंतक है जबकि, असलियत तो ये है कि इन सोशल कॉज के रैपर में छिपाकर अपने एजेंडे को पूरा करना है ।

दृश्य -०३ : नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित पाकिस्तान की शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई ने सोशल मीडिया के जरिये संयुक्त राष्ट्र से अपील करते हुए कहा कि वह घाटी में प्रतिबंधों के बीच जम्मू और कश्मीर के स्कूलों में बच्चों की वापसी में मदद करें. इसके साथ ही मलाला ने कहा, 'मैं संयुक्त राष्ट्र से आगे आकर कश्मीर में शांति की दिशा में काम करने, कश्मीर के लोगों की आवाज को सुनने और बच्चों को सुरक्षित स्कूल जाने में मदद करने के लिए अपील करती हूं.' मलाला ने भारत सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि घाटी के हालात पर पत्रकारों, मानवाधिकार वकीलों और छात्रों सहित सभी क्षेत्रों के कश्मीरियों ने नाराजगी जताई है ।

ये वही मलाला है जिन पर इनके अपने ही देश के कुछ लोगों ने पढ़ने की वजह से गोलियां चलाई पर, आज तक अपने देश के खिलाफ मुंह न खोली जबकि, इस देश में ऐसे अनेक गद्दार जो यहीं का खाते पर, उन्हें अपने देश में डर लगता और जब मुंह खोले इसकी बुराई ही निकलती यहीं नहीं इन मलाला को अपने देश के अलोसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार, धर्म-परिवर्तन, उत्पीड़न नहीं दिखता चाहे कोई सामने आकर दुहाई दे या कितनी भी मदद की गुहार लगाये इनको न सुनाई देता, न दिखाई देता और न ही कोई फर्क पड़ता इस मामले में मानना पड़ेगा पक्की देशभक्त है इनसे यही सबक हमारे यहां के दगाबाज नहीं सीखेंगे वे तो ऐसे बयान देंगे जिनसे पकिस्तान का फायदा हो जिसे वो टीवी पर चलाकर दुनिया के सामने भारत को गलत साबित कर सके और ये कोई नई बात नहीं इतिहास में ऐसे अनगिनत मक्कारों का उल्लेख लेकिन, खुशी की बात कि इसके साथ ही इससे कई गुना अधिक देशभक्तों की वीरता गाथाएं जो आज भी लोगों को प्रेरित करती है ।

दृश्य – ०४ : आज अभी कुछ देर पूर्व ही कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने भोपाल में कहा कि, “भगवा वस्त्र पहनकर लोग चूरन बेच रहे हैं। भगवा वस्त्र पहनकर बलात्कार हो रहे हैं। मंदिरों में बलात्कार हो रहे हैं। उन्होंने पूछा क्या यही हमारा धर्म है। कांग्रेस नेता ने कहा कि जिन्होंने हमारे सनातन धर्म को बदनाम किया है, उन्हें ईश्वर भी माफ नहीं करेगा” । इनका इसी तरह का ब्यान कोई नया नहीं इनकी तो आदत है ऐसा कहते रहने की और इसी के इनको पैसे मिलते तो ये तो इनका फर्ज बनता कि अपने आकाओं का काम ईमानदारी से करें इसलिये इन्हें आपने कभी हरे या सफेद रंग पर कुछ भी कहते न सुना होगा भले ही मस्जिदों, मदरसों या चर्चो में कितने भी रेप हो जाये पर, जुबान पर ज़िप बकायदा कसकर लगी रहेगी जो किसी तरह से न खुलेगी लेकिन, बात भगवे रंग की हो तो फिर चाहे किसी भी हाल में हो चुप न बैठेंगे जनाब भगवा से  चुनाव हारने के बाद भी इन्हें इल्म नहीं कि अब लोगों ने इनको पहचान चुके इनकी सच्चाई जान चुके तो बकते रहो जो बकना किसी को परवाह नहीं क्योंकि, देश के लोग अब इनके झांसों में नहीं आने वाले वे सच या झूठ को जानते यदि कोई आरोपी तो फिर चाहे वो कोई दल या रंग का हो उनकी नजरों में वो गुनाहगार ही होता है   

ये विरोधी लोग और उनके कमेंट्स साबित करते कि, इनकी असली समस्या राष्ट्र, राष्ट्रभक्त, हिन्दू और सनातन धर्म है इसलिये हमको ही अपने धर्म, अपने सिद्धांतों, अपनी मान्यताओं, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, तीज-त्यौहारों व उनकी वास्तविकता को समझे इनके कुतर्कों में न आये बल्कि, जिस तरह ये अपनी पाबंदियो के प्रबल सर्मथक किसी भी कीमत पर उनको छोड़ने तैयार नहीं हम भी ऐसे ही बने और जो कमजोर इनके षड्यंत्रों का शिकार उनको समझाये कि इन्हें तो ऐसा करने नियुक्त किया जिसके लिये इन्हें ईनाम मिलता पर, तुम्हारा तो दीन-ईमान सब लुट जाता जबकि, ‘श्रीमद्भाग्वात्गीता’ भगवान् के श्रीमुख से निकली वाणी में ये स्पष्ट कहा गया कि, “दूसरों का धर्म कितना भी मनमोहक हो पर, अपने पथ से डिगना नहीं अपने धर्म में मरना भी श्रेयस्कर है”  

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
सितम्बर १७, २०१९

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

सुर-२३५ : #हाथी_घोड़ा_पालकी_गूंजेगा #घर_घर_से_कान्हा_निकलेगा




भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी की काली अंधियारी रात में वासुदेव अपने लल्ला को उफनती यमुना के बीच में से शेषनाग की छैय्या की तले लेकर चले तो समस्त ब्रम्हांड से उनके जयकारे के समवेत स्वर के साथ ही उन पर आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी उनके नन्हे-नन्हे पाँव को छुने लहरें मचलने लगी और पृथ्वी उनके आगमन से धन्य हुई जिसकी करूण प्रार्थना सुनकर जगतपालक स्वयं बालरूप धरकर धरा पर आये थे

फिर जब उन्होंने अद्भुत मनोहारी बाल लीलायें की तो वसुंधरा भी उनकी चरणधूलि बनकर अपने भाग्य पर इतराने लगी कि लोग उस रज को माथे से जो लगाने लगे थे और बाल-गोपाल उसके लड्डू बनाकर भी खा रहे थे यही नहीं गायें भी रंभाकर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने लगी कि नन्हा कान्हा उनका उद्धारक भी तो बना जो ग्वाला बनकर उनको चराने ले जाता तो उनके दुग्धपान करे बिना तृप्त ही नहीं होता था

इस तरह एक अन्य अवतार लेकर विष्णु ने शेष जो उनकी कृपा से वंचित रह गये या जिनको उनका सानिध्य प्राप्त नहीं हुआ उनको भी अपने स्नेह का आशीष और अपनी शरणागति का वरदान देने तो धरती को असुरों के भार और जन-जन को उनके भय से मुक्त करने आये थे जिनके आगमन मात्र से भूलोक के आधे कष्ट मिट गये थे कि उस घनघोर काली रात्रि में वे पूर्ण चन्द्रमा की भांति रौशनी का आभामंडल अपने साथ जो लाये थे   

यूँ तो उनका हर स्वरुप मोहक था तभी तो वे मनमोहन कहलाये लेकिन, बालरूप जितना आकर्षक था उतना उसके पूर्व दिखाई न दिया कि द्वापर के अंत और कलयुग की शुरुआत के पहले का ये संक्रमण काल ऐसा था जब आसुरी शक्तियाँ अत्यंत प्रबल थी तो बाल्यकाल से ही उनका सामना इनसे हुआ जिसको पराजित कर उनकी शक्तियाँ ही नहीं तेज में भी उत्तरोतर वृद्धि होती गयी और गोपियों की प्रेम भक्ति उनके सौन्दर्य को निखारती गयी कि वे सोलह कला युक्त पूर्णावतार जो थे

आज पांच हजार साल से अधिक व्यतीत हो गये मगर, आज भी हर एक माता-पिता अपनी सन्तान चाहे वो बालक हो या बालिका उसे एक न एक बार मोर मुकुट धारी रूप में माखन-मिश्री खाते हुये जरुर देखना चाहते कि वो केवल एक भगवान की नहीं बल्कि, एक ऐसी छवि थी जिसमें हर कोई अपने लड्डू गोपाल के दर्शन कर सकता इसलिये उन्हें खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता न ही कठिन साधना या तपस्या करनी पडती वे तो सिर्फ, माखन के भोग से ही प्रसन्न हो जाते है  

ऐसे लघु से विराट स्वरुप धारी... विष्णु अवतारी के प्रकटोत्सव की सबको बधाई... !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त २३, २०१९

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२२५ :#प्रचलित_मापदन्डों_से_हटकर #लोकमाता_रानी_अहिल्याबाई_होल्कर




न जाने अबला, कमजोर या बेबस कब नारी के पर्याय बना दिये गये जबकि, इस देश के इतिहास ही नहीं हर क्षेत्र में उनका योगदान बहुमूल्य है और उन्होंने सभ्य समाज की नींव रखी होगी इसमें संदेह नहीं क्योंकि, जिस तरह से वो समायोजन कर हर एक कार्य को दक्षता के साथ कर सकती है वैसा पुरुषों के द्वारा सम्भव नहीं है

शायद, यही वजह कि उसकी इन खूबियों को देखते हुये ही आदमी ने ऐसे शास्त्रों व ग्रन्थों का निर्माण किया व करवाया जिनके माध्यम से इस तरह की भ्रामक जानकरियां प्रसारित-प्रचारित की गयी कि औरत की सीमा घर की दहलीज तक है, लज्जा उसका गहना है और रसोई व घर ही उसकी कर्मस्थली तो उसी परिपाटी का पालन करते हुये उसकी असीमित सम्भावनाओं पर ताले जड़ दिये गये, उसके पाँव में बेड़ियाँ तो दरवाजों पर कुण्डी लगा दी गयी और उसे गृहस्थी के तमाम कामों में इस कदर उलझा दिया गया कि उसके पास अपने बारे में सोचने तक की फुर्सत शेष न रही और यदि कुछ समय बाकी बचा भी तो वो कल की चिंता में व्यय हो गया

चूँकि, उसे अपना दिमाग इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी तो वो जो दूसरों ने कह दिया उसका ही अक्षरशः पालन करती थी और जो अपनी तर्क क्षमता से इन प्रचलित धारणाओं को काटने का प्रयास करती तो उनको बिगड़ी-मुंहफट औरतों के नाम से घर-बाहर में फेमस कर दिया जाता व उनसे बचकर रहने की सलाह दी जाती यही वजह कि लम्बे समय तक स्त्रियाँ चूल्हे-चौके से आगे नहीं बढ़ पाई पर, इनके बीच ऐसे भी महान नारियां हुई जिन्होंने इस अवधारणा को पुर्णतः ध्वस्त कर दिया और ये सिद्ध किया कि बाहुबल हो या बौद्धिकता वो किसी में भी कम नहीं है

आवश्यकता पड़ने पर चूड़ी वाले हाथ तलवार भी उठा सकते है जिन्हें कोमल कहकर उसे अपनी ही इस ताकत से अनजान और शिक्षा से वंचित रखा गया पर, धीरे-धीरे चंद महिलाओं ने अपनी मर्यादा को कायम रखते हुये न केवल घर की चारदीवारी बल्कि, रवायतों की चौखट भी लांघी जिसके बाहर आकर उसने जाना कि वो सब कुछ जिसे हव्वा बनाकर उसे डराया जाता वो महज़ एक छलावा, एक जाल है जिसमें उलझाकर उसे पीछे धकेल दिया गया तभी शायद, वो उस दूरी को जल्द-से-जल्द लांघ लेना चाहती जो उसके व मर्दों के बीच है और इसलिये उसने जमीन हो या आसमान या अन्तरिक्ष हर जगह अपने पाँव जमा लिये और ये साबित किया कि वो सब कुछ कर सकती यदि उसे भी समान अवसर व समान अधिकार मिले और जब वे नहीं मिले तो उन्हें हासिल करने भी उसके कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जिसके बूते पर आज वो शिक्षा, विज्ञान, अंतरिक्ष, राजनीति, वाणिज्य आदि सभी कार्यक्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही है        

इसके लिये जिन आदर्शवादी स्त्रियों का नाम लिया जाता है उनमें इंदौर की महारानी ‘अहिल्याबाई होल्कर जी’ प्रथम पंक्ति में है जिन्होंने उस दौर में प्रचलित मापदन्डों से अलग हटकर अपनी वो छवि बनाई जिसने ये दर्शाया कि एक स्त्री यदि कुशलतापूर्वक परिवार की बागड़ोर संभाल सकती है तो वो उसी दक्षता के साथ राजपाट और जरूरत पड़ने पर युद्ध के मैदान में अस्त्र-शस्त्र भी चला सकती है और अपने अद्भुत कौशल व सफलतापुर्वक किये गये अनुकरणीय शासन संचालन से उन्होंने इसे सत्य प्रमाणित किया जो आगे आने वाली पीढ़ियों की औरतों के लिये मिसाल बना जिसे भूलाना या जिससे अनभिज्ञ रहना अपनी जड़ों से विलग होना है अतः अब समय है कि, हम इन सशक्त नारियों की असल कहानियों से जुड़े उन्हें पढ़े और वैसा बनने का प्रयास करें न कि आज की थोपी हुई गलत छवियों को अपना आइडियल माने जो ऊपर से भले कामयाब दिखाई देती हो मगर, भीतर से एकदम खोखली होती तभी तो लम्बे समय तक अपनी छाप नहीं छोड़ पाती है जबकि, ये सदियों सालों से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और घर-बाहर की जिम्मेदारी निभाते हुये एक संतुलित जीवन का शानदार उदाहरण प्रस्तुत करती है

आज पुण्यदिवस पर उनको शत-शत नमन... !!!     
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त १३, २०१९

बुधवार, 7 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२१९ : #स्त्री_सशक्तिकरण_की_मिसाल #मदर_इंडिया_की_स्वरुप_सुषमा_स्वराज




जब हम ‘स्त्री सशक्तिकरण’ शब्द से न तो परिचित थे और न ही इसके मायने ही जानते थे उस दौर में इन शब्दों को अर्थ का अमली जामा पहनने का काम किया कुछ ऐसी आत्मबल से मजबूत आत्मनिर्भर महिलाओं ने जिनकी वजह से आज लडकियाँ न केवल ‘माय लाइफ, माय चॉइस’ का नारा लगा रही है बल्कि, आज़ादी से मनचाहा जीवन भी जी रही है मगर, उनके लिये ‘वीमेन एम्पोवेर्मेंट’ का मतलब महज़ मनमानी करना है जबकि, जो नारी सही अर्थों में इसे ग्रहण करती वो जानती कि इसका तात्पर्य कतई ये नहीं कि ‘औरत’ अपने भीतर की कोमलता या नारीत्व को खत्म कर के स्त्री का ‘मेल वर्शन’ बन जाये बल्कि, वो तो अपने स्त्रीत्व को कायम रखते हुये इस तरह से अपने व्यक्तित्व का निर्माण करती कि उसकी शख्सियत को देखकर स्वतः ही अबला, कमजोर, असहाय स्त्री की छवि धूमिल पड़ जाती कि वो समाज की विडम्बनाओं व कुरीतियों से जूझते हुये अपने वजूद को इस्पात में ढाल लेती जिसके भीतर उसकी संवेदना उसी तरह सुरक्षित रहती जैसे की सीप में मोती पर, उपर से सख्त इरादों की झलक ही दिखलाई पड़ती और मौके के अनुसार वो अपने स्वरुप को उसी तरह से बदल लेती जैसे कि कोई कलाकार कहानी की मांग के अनुसार अपने पुराने चोले को उतारकर नया धारण कर लेता है कुछ ऐसा ही साकार किया इन शब्दों को भारतीय राजनीति के क्षेत्र में ‘महिला सशक्तिकरण’ के प्रतीक के रूप में उभरकर विश्वपटल पर सामने आने वाली राजनेत्री व आयरन लेडी ‘सुषमा स्वराज’ ने जिनका कल रात 70 बरसों से प्रतीक्षारत 370 हटने वाले सुनहरे पलों को देखने के बाद असमय निधन हो गया पर, वे तो अनेकों दिलों में जीवित है और सदैव रहेंगी कि उन्होंने अपने कर्मयोगमय जीवन से सदैव भारत की नारियों को प्रेरणा देने का काम किया और उनको देखकर न जाने कितनी स्त्रियों ने इस कार्यक्षेत्र में आने का निर्णय लिया होगा जो अब तक ये समझती थी कि ‘राजनीति’ तो महिलाओं के लिये बनी ही नहीं है पर, उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन से जिसमें 50 साल तो उन्होंने इस क्षेत्र में ही बिताये और अलग-अलग पदों पर रहते हुये अपनी स्वच्छ बेदाग छवि, ओजस्वी वाणी और सतत देशहित व सामाजिक कार्यों से अपने कद को आदमकद में बदल दिया जिसकी ऊँचाई के आगे हिमालय भी बौना है तभी तो आज सोशल मीडिया हो या प्रिंट मीडिया हर कोई उनको नम आँखों से अपनी श्रद्धांजली अभिव्यक्त कर रहा है

वे शुरुआत से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थी और शैक्षणिक जीवन में अपनी योग्यता से अनेक सम्मान हासिल किये और जब राजनीति में आने का निर्णय लिया तो वहां भी अनगिनत कीर्तिमान स्थापित किये कि छोटी-सी उमर में उन्होंने जब इस जगत में पदार्पण किया तो फिर रुकी नहीं महज़ 25 साल की कमसिन आयु में प्रथम कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव हासिल किया तो २७ वर्ष की उम्र में स्वराज हरियाणा राज्य में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष बनी उसके बाद तो वे रुकी नहीं विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुये वाजपेयी सरकार में उनको १९ मार्च १९९८ से १२ अक्टूबर १९९८ तक की अल्पावधि में दूरसंचार मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पद पर रहते हुये काम करने का अवसर मिला पर इतने कम समय में ही जो सबसे उल्लेखनीय काम किया वह था ‘फिल्म उद्योग’ को एक ‘उद्योग’ के रूप में घोषित करना जिससे कि भारतीय फिल्म उद्योग को भी बैंक से क़र्ज़ मिल सके और ये भी कम लोग ही जानते हैं विश्व का अनोखा अनूठा साहित्य संस्कृति और कला का एकमात्र चेनल ‘डी.डी.भारती’ उनकी ही सोच का परिणाम था यही नहीं उन्होंने अपने हर दायित्व का पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से पालन किया चाहे उनका कार्यकाल पूर्णकालीन हो अथवा अल्पकालीन इसलिये जब वे १२ अक्टूबर १९९८ को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और ३ दिसंबर १९९८ को इस पद से इस्तीफ़ा भी दे दिया पर, इतने कम समय में भी अपनी छाप छोड़ गयी और फिर जब 2014 में जब ‘विदेश मंत्री’ का कार्यभार सम्भाला तो इतिहास रच दिया कि उनके मार्फ़त हमने भी जाना कि एक विदेश मंत्री की भूमिका जब विश्वस्तरीय हो जाती तो वो अपनी अनवरत सेवा से उसके माध्यम से ‘मदर इंडिया’ में भी परिवर्तित हो सकती है और उस पर यदि उसे उच्च तकनीक का साथ मिल जाये तो फिर चाहे देश-विदेश के किसी भी कोने से किसी भी समय कोई सहायता मांगे या ट्वीट करें वे तत्काल हाजिर होकर उसके लिये मदद का हाथ बढ़ा सकती थी और इस तरह वे ट्वीटर पर सबसे अधिक फॉलो की जाने वाली पहली महिला राजनेत्री भी थी ।

सिर्फ, यही नहीं वे स्कूल व कॉलेज से लेकर अपने कार्यक्षेत्र में कई मामलों में प्रथम थी चाहे फिर वो भाजपा की ‘राष्ट्रीय प्रवक्ता’ बनने वाली पहली महिला हो या कैबिनेट मन्त्री बनने वाली भाजपा की पहली महिला या फिर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमन्त्री हो या भारत की संसद में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार पाने वाली पहली महिला अनगिनत रिकॉर्ड उनके नाम है इतना होने के बाद भी वे अपनी भारतीय नारी की छवि की गरिमा को किसी भी तरीके से कम नहीं होने देती जो उनकी पहचान बन गयी उनका नाम लेते ही सामने भारतीय परिधान साड़ी पहनकर माथे पर चमकती लाल बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर लगाये ओजपूर्ण वाणी में अपनी बात रखता उनका लौह व्यक्तित्व नजरों में दिखाई देने लगता और यही तो ‘नारी सशक्तिकरण’ की वास्तविक परिभाषा भी है कि पुरुषों से भरी सभा के बीच अपनी शेरनी जैसी दहाड़ से अबला के मिथक को तोड़कर ‘सबला’ में बदल देना जिसे अपने सम्पूर्ण जीवन से उन्होंने प्रतिस्थापित किया और अब वही सदा-सदा के लिये उनकी पहचान बन चुका है ।

आज उनकी अंतिम विदाई पर उनको शब्द सुमनों से ये भावपूर्ण श्रद्धांजलि...
                 
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त ०८, २०१९

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२१८ : #देश_का_युवा_प्रतिनिधि_कैसा_हो #जामयांग_सेरिंग_नामग्याल_जैसा_हो




देश की संसद ही नहीं सोशल मीडिया में भी पक्ष-विपक्ष होता जो हर मुद्दे पर अपनी राय देता जिसमें कुछ भी गलत नहीं लेकिन, कुछ लोगों को तो वर्तमान सरकार और अपने देश के प्रधानमंत्री से इतनी ज्यादा नफ़रत है कि उनके हर काम में मीन-मेख निकालना उसे गलत बताना उनके जीवन का एकमात्र ध्येय लगता जिसके लिये वे किस भी हद तक ही नहीं पाकिस्तान की शरण तक में जा सकते क्योंकि, घृणा ने इनके भीतर इस कद्र स्थायी पैठ बना ली कि इनको न तो देश दिखाई देता और न ही उसके हित में किया गया कोई काम ही सार्थक लगता इनको तो हर हाल में उनके निर्णयों में से नेगेटिव पोइंट को खोजकर अपने आप को सही सबित करना होता इसलिये कल जब से 370 को हटाने का संकल्प लिया गया इनको मानो करंट लग गया तभी से बिलबिला रहे और इस तरह जता रह मानो इनके सिवा कश्मीरियों का हितैषी कोई दूसरा नहीं इसलिये जब इन्हें इस मसले पर विरोध करने कोई भी बिंदु नहीं मिला तो खुद से कल्पित मुद्दे गढ़कर सरकार समर्थकों को सम्बोधित करते हुये लिखना शुरू कर दिया कि, वहां की लडकियों या प्रॉपर्टी को लेकर अभ्रद टिप्पणी न करें जबकि, वास्तविक धरातल में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा या फिर हमारी मित्रता सूची में ही ऐसे लोग नहीं जो इस तरह की कुत्सित मानसिकता रखते हो तो उनका यह कदम यही साबित करता कि इन्हें तो किसी भी बहाने केवल सरकार को कोसना है जब कुछ नहीं मिलता तो स्वयं ही अपने से कुछ भी रच लेते है

कभी कश्मीरियों के बहाने से तो कभी समाज सुधारक या हितैषी बनकर अपने एजेंडे को साधने में लगे हुये जबकि, हकीकत में देखा जाये तो इनका न तो जमीन से और न ही देश से ही कोई जुड़ाव महज़ अपनी भड़ास निकालना ही उद्देश्य तभी तो इन्हें वो भी नजर आ रहा जो न तो कहीं घटित हो रहा और न ही उसकी सम्भावना ही नजर आ रही क्योंकि, जो इस भूमि से इसकी जड़ों से जुड़े उनको पता कि सच्चाई क्या है और इसका प्रमाण खुद एक युवा ही नहीं बल्कि, संसद बनकर चुने गये एक जनप्रतिनिधि से अपनी ओजपूर्ण वाणी से दिया जो उस धरती का पुत्र जहाँ के लिये ये फैसला लिया गया याने कि लद्दाख का लाड़ला जब उसने बोलना शुरू किया तो अपने भाषण से उसने हर एक देशवासी का दिल जीत लिया और ये बता दिया कि यदि देश का युवा वर्ग उनकी ही तरह अपने देश की आत्मा से कनेक्ट होगा तो वो उसकी पीड़ा को भी उसी तरह महसूस करेगा जिस तरह वो अपने किसी करीबी के दर्द को बिना कहे ही समझ लेता जैसा किये सरकार भी कर रही और उसने भी किया कि जम्मू-कश्मीर व लद्दाख पर सही प्रतिक्रिया वही दे सकता जो उस जगह का प्रतिनिधित्व करता हो न कि जिसने चंद झूठी किताबों को पढ़कर नेरेटिव सेट किया हो तो यही हुआ जब लद्दाख का बेटा बोला और धीरे-धीरे जिस तरह से उन्होंने अपनी बात रखी तो उन्हें पूरा सुनकर लगा कि ये जो कहा गया वो इन डिजाइनर रुदालियों के किताबी शब्द नहीं बल्कि, भोगा हुआ यथार्थ है जो दिल से निकलता और दिल तक पहुंचता है इसलिए आज हर जगह उसी का चर्चा है  

उन्होंने कहा कि, “71 साल तक लद्दाख को बिलकुल नहीं अपनाया गया। हम लोगों ने पहले कहा था कि हमें जम्मू-कश्मीर के साथ नहीं रखा जाए, किन्तु हमारी सुनवाई नहीं हुई, जिससे हमारा विकास नहीं हुआ। मैं करगिल से आता हूँ और मैं गर्व से कहता हूँ कि हमने UT के लिए वोट किया” । उनकी ये बात बताती कि जैसा ये वामपंथी या विरोधी कह रहा वो केवल उनका अपना मत है उसमें उनकी राय शामिल नहीं जो वास्तव में इसका हिस्सा है

यही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि, “UPA ने साल 2011 में कश्मीर को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय दिया, जम्मू लड़ा और केंद्रीय विश्वविद्यालय हासिल किया। मैं छात्र यूनियन का लीडर था हमने लद्दाख के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग की थी लेकिन हमें कोई केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं दिया गया। पीएम मोदी ने हाल ही में हमें विद्यालय दिया मोदी है तो मुमकिन है। जो ये बताता कि सच्चाई वो नहीं जो हमें दिखाई जाती रही बल्कि, ये जो हमसे छिपाने की कोशिश की गयी मगर, आखिर कब तक छिपती एक दिन तो उसे सामने आना ही था

इसके अलवा जिन्हें लग रहा कि कश्मीर व लद्दाख को विकास या मुख्यधारा में जोड़ना सिर्फ सरकार का बहाना उन्हें ये जरुर जानना चाहिये जो शेरिंग नामग्याल ने आज लोकसभा में कहा कि, “यदि लद्दाख आज अविकसित है तो इसके लिए आर्टिकल 370 और कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है लद्दाख के लोग केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे के लिए सात दशकों से संघर्ष कर रहे हैं लद्दाख की भाषा, संस्कृति अगर लुप्त होती चली गई तो इसके लिए अनुच्छेद 370 और कांग्रेस जिम्मेदार है” तब ये जाने कि इसके पहले जो सरकारें बनी या जो इस धारा की हिमायती इसमें केवल उनका स्वार्थ निहित है

बहुत से लोगों को ये लिखते देख रही कि ये एकदम गलत निर्णय इससे बहुत दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे तो उनके लिये भी जामयांग ने कहा कि, इस निर्णय से क्या नुकसान होगा? सिर्फ दो परिवार रोजी-रोटी खोएंगे और कश्मीर का भविष्य उज्जवल होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि करगिल के लोगों ने यूनियन टेरिटरी के लिए वोट किया था। कुछ लोग चिंतित हैं कि उनका झंडा चला गया। उन्हें बता दूं कि लद्दाख के लोगों ने 2011 में ही वह झंडा हटा दिया था। लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डिवेलपमेंट काउंसिल ने उसी समय प्रस्ताव पारित करके उसे हटा दिया था क्योंकि हम भारत का अटूट अंग बनना चाहते थे”।           

आन देश की शान देश की देश की संतान है ।
तीन रंगों से रंगा तिरंगा, अपनी यह पहचान

अपने भाषण के आख़िर में उन्होंने विपक्षी सांसदों की ओर देखते हुए कहा,

"देश के लिए प्यार है तो जताया करो, किसी का इंतज़ार मत करो”
"गर्व से बोलो जय हिंद, अभिमान से कहो भारतीय हैं हम”
“स्वाभिमान से कहो- भारत माता की जय और वर्तमान में करो इस बिल का समर्थन"

यदि देश का युवा ऐसा है तो हमें चिंता की कोई जरूरत नहीं भारत का भविष्य सही हाथों में है और उज्ज्वल भी है

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त ०६, २०१९

सोमवार, 5 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२१७ : #श्रावण_सोमवार_विथ_नाग_पंचमी #आज_जम्मू_कश्मीर_से_धारा_३७०_हटी




सावन का महीना तो हर बरस आता और उसके साथ ही सोमवार भी जो विशेष होते कि इन मास से जुड़कर उनकी महत्ता बढ़ जाती पर, इस साल जिस तरह से इसकी आमद हुई वो एकदम अलहदा है जिसका अहसास हर बीतते सोमवार के साथ होता जा रहा कि प्रथम सोमवार हमारे देश ने ‘चन्द्रयान-2’ की लॉन्चिंग कर समस्त देशवासियों को गौरवान्वित होने का शुभ अवसर दिया तो द्वितीय सोमवार ‘तीन तलाक बिल’ का पास होना सभी मुस्लिम बहनों के लिये खुशखबर लेकर आया और आज जब तीसरा सोमवार आया तो जो पिछले 70 बरसों से नामुमकिन था आज न केवल मुमकिन हुआ बल्कि, इस एक निर्णय ने इतिहास रच दिया और हम सब इन लम्हों में जिस तरह से गर्व व हर्ष का अनुभव कर रहे उसे शब्दों में बयाँ कर पाना संभव नहीं कि हम वो पीढ़ी जिसने आज़ादी की खुली हवा में सांस ली तो उन पलों के रोमांच की केवल कल्पना ही कर पाते जब हमारे राष्ट्र ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता पाई थी मगर, आज हम न केवल अपने ही देश के एक हिस्से को आज़ाद बल्कि, कश्मीर से कन्याकुमारी कथन को सत्य प्रमाणित होते हुये भी देख रहे है और वे युवा जो कहते थे ‘लेकर रहेंगे आज़ादी’ आज उनके ख्वाबों को भी पूरा होते देख रहे कि उन्हें इसे छीनना नहीं पड़ा बल्कि, अपने आप ही ये उनकी झोली में आ गयी जबकि, 15 अगस्त 1947 को जो भारतमाता को प्राप्त हुई उसमें लम्बा संघर्ष, अनगिनत शहादत और देशभक्तों का रक्त बहा था लेकिन, ये ऐसी आज़ादी जिसमें ‘बीसों का सर काट दिया, ना मारा, न खून किया’ टाइप का अहसास मिला हुआ कि बेहद शांतिपूर्ण तरीके से एक सोची-समझी रणनीति के तहत इसे लम्बी प्रक्रिया व सुनियोजित योजना के बाद अंजाम दिया गया जिससे न तो किसी तरह की हिंसा या दंगा और न ही कोई रक्तपात हुआ जबकि, इसके पहले बेवजह ही हमने उस सरजमीं पर अपने देश के सैनिकों का लहू बहते हुये देखा वो भी आतंकियों के हाथों और न जाने अब तक कितने जवानों ने अपनी जान गंवा दी मगर, समस्या जस की तस की इसे नासूर बनाने का काम पिछली सरकारों ने किया जिसमें चीरा लगाकर बरसों से भरे मवाद को आज बाहर निकाला गया जिसमें निसंदेह तकलीफ़ तो होगी और टांके के निशान भी आयेंगे मगर, जब कैंसर का इलाज अंग को काटना ही होता तब व्यक्ति पीछे नहीं हटता तो फिर यहाँ तो काटने की जगह जोड़ा जा रहा फिर भला किसी को क्या परेशानी हो सकती फिर भी जिनका मिज़ाज ही नकारात्मक और जिन्हें सरकार में खामी के सिवाय कुछ नहीं दिखता उन्होंने इस ऐतिहासिक निर्णय में भी अपना पेंच तलाश लिया खैर, ऐसे तो घर में सब एक बात पर एकमत नहीं होता फिर ये तो 125 करोड़ लोगों का विशालतम घराना है इसलिये ऐसी नेगेटिव मानसिकता वाले लोगों की बातों पर ध्यान दिए बिना आज सबके लिये ये ख़ुशी की बात और जहाँ तक उनकी सोच कि हम केवल कश्मीर को अपना समझते वहां के लोगों को नहीं तो ये कुछ वैसा ही है जैसा कि वे समझते कि ये देश तो उनका है पर, सरकार उनके मन की नहीं तो सोच का क्या वो तो व्यक्ति विशेष की अपनी होती जिस पर उसका अख्तियार जो चाहे समझ ले ऐसे में मेजोरिटी की बात करें तो वो वो उसी तरह इसके पक्ष में जिस तरह राज्यसभा में ज्यादातर सांसद बाकी, विपक्ष जितना जरूरी उतना कायम है जिसे रहना ही चाहिये मगर, जब वो व्यक्ति का विरोध करते-करते देश का ही विरोध करने लगे तो फिर उसे इग्नोर करना ही एकमात्र उपाय होता है आज तीसरे सावन सोमवार पर शिवजी के तीसरे नेत्र की कृपा का ये परिणाम है उस पर नागपंचमी का भी योग तो फिर तो कुछ बड़ा होना ही था इससे कम तो हमको मंजूर भी नहीं था कि मजबूत सरकार बनाने में सबका योगदान भी तो है ताकि, कहीं कोई बाधा न आये ऐसे में भारत माता की जय, वन्दे मातरम का उद्घोष ही नहीं कश्मीरी भाई-बहनों से दो-तरफा सम्बन्ध बनने पर बधाई भी बनती है... !!!      
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त ०५, २०१९

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२१४ : #देखकर_कानून_का_बुरा_हाल #बच्चियां_अब_कर_रही_सवाल




ऐसा कोई दिन नहीं होता जब अख़बारों या समाचार चैनल में किसी बेटी के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की खबर न हो जिसमें ज्यादातर मामलों में लड़की को न्याय मिलता मिलता ही नहीं और यदि मिलता भी तो इतनी देर हो चुकी होती कि वो अन्याय ही लगता उस पर यदि अभियुक्त सत्ताधीन या शक्तिशाली हो तो फिर इंसाफ भूल ही जाओ उसकी जान बच जाये वही गनीमत है कि ऐसे लोगों के खिलाफ खड़ा होना मौत को आमंत्रित करने जैसा होता है ताजा-तरीन उन्नाव दुष्कर्म केस में हम सबने इस बात को सत्य प्रमाणित होते देखा जिसने देश की बाकी बच्चियों के दिलों-दिमाग पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा कि वे भी अब खुद को लेकर चिंतित हो गयी है और उन्हें भी लगने लगा है कि यदि दुर्भाग्य से कभी उनके साथ ऐसा कुछ हो गया तो उनको भी कानून के पास जाकर शिकायत करना और अदालतों से न्याय की उम्मीद लगाना किसी काम का नहीं क्योंकि, वो तो उन रसूखदार दुष्कर्मियों की जेब में पड़ा रहता जिसे खरीद पाने की उसकी क्षमता नहीं है

नन्ही-नन्हीं बच्चियों के मन में इस तरह का ख्याल भी आना कितना खतरनाक और भयावह है हम सबको अब ये समझने की आवश्यकता है और यदि हम सबने इस स्थिति को अभी भी नजरअंदाज किया तो आज जो महज़ एक कल्पना वो आने वाले भविष्य की काली तस्वीर भी हो सकती है और शायद, उस वक़्त उसको नियंत्रण में करना संभव न हो इसलिये यदि आज हमारी बेटियां ऐसे सवाल कर रही है तो उनके जवाब भी हमें आज ही खोजने होंगे अन्यथा कल हो सकता बेटियां कोख में आने से ही इंकार कर दे कि उनके प्रश्नों के उत्तर देने वाला जो कोई नहीं बचा है । कल बाराबंकी में यू.पी. पुलिस इसी तरह की घटनाओं के लिये एक स्कूल में ‘बालिका जागरूकता कार्यक्रम कर रही थी तथा पुलिस लड़कियों को छेड़छाड़ की शिकायत के लिए एक हेल्पलाइन नंबर दे रही थी तभी एक बिटिया ने कानून से जो सवाल पूछे वे बेहद महत्वपूर्ण है और हर किसी को इनकी न केवल जानकारी होनी चाहिये बल्कि, इनके जवाब भी खोजने चाहिये क्योंकि, कल उस बच्ची के सामने कानून लाचार नजर आया उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे आया जो कि बेहद अफसोसजनक है ।   

इसी दौरान उस स्कूली छात्रा ने जो शंकायें व्यक्त की उन सवालों से पुलिस की बोलती ही बंद कर दी उसने कहा कि, उन्नाव की एक लड़की ने शिकायत की तो उसके पूरे परिवार को ट्रक से उड़ा दिया गया. ऐसे में अगर छेड़खानी करने वाला कोई ताकतवर आदमी हो तो शिकायत कैसे करें?

उसके बाद छात्रा ने कहा, 'सर, जैसा आपने कहा कि हमें डरना नहीं चाहिए और आवाज उठानी चाहिए, विरोध करना चाहिए तो सर मेरा यह सवाल था कि थोड़े दिन पहले एक नेता ने एक लड़की का रेप किया और फिर उसके पिता कि एक्सीडेंटली मौत हो गई जबकि, ये सबको पता है कि उसके पिता की जो मौत हुई वह ऐक्सिडेंट नहीं था

आगे वो बोली, इसके बाद रेप पीड़िता लड़की की गाड़ी को ट्रक ने टक्कर मार दिया गया तब भी हर किसी को पता है कि ये कोई एक्सीडेंट की घटना नहीं है ट्रक की नंबर प्लेट को छुपाया गया था जिससे साबित होता कि सामने वाला अगर साधारण व्यक्ति हो तो विरोध किया जा सकता है, लेकिन अगर वह एक नेता है या पावरफुल व्यक्ति हो तब क्या करना चाहिए?

उसने ये भी कहा कि, जैसा हमने निर्भया के मामले में देखा हम विरोध जताते हैं तो क्या गारंटी है कि हमें इंसाफ मिलेगा? क्या गारंटी है कि मैं सेफ रहूंगी? क्या गारंटी है कि मेरे साथ कुछ नहीं होगा?

इस पर हालाँकि, पुलिस अधिकारी ने कहा कि निश्चित रूप से बालिकाओं की सुरक्षा बढ़ेंगी और वह जागरूक होंगी व अपनी आवाज को उठाएंगी लेकिन, इसमें कहीं भी वो सांत्वना या संतुष्टि नहीं थी जिसकी अपेक्षा उस मासूम को होगी ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी कि हम ऐसा माहौल तैयार करें जिसमें बच्चियां बेख़ौफ़ होकर जी सके न कि आने साथ होने वाले अपराधों के खौफ में ही जीती रहें जैसा कि वर्तमान में हो रहा है

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त ०२, २०१९