सोमवार, 30 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१२० : #अप्प_दीपो_भव #जीवन_का_सर्वोत्तम_मंत्र



‘अप्प दीपो भवः’ समिधा लगने से पूर्व ‘गौतम बुद्ध’ ने अपने शिष्यों को अपने बाद सत्य का मार्ग देखने के लिये यह मंत्र दिया था जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति जो कि वास्तव में आत्म साक्षत्कार करना चाहता हैं उनकी ही तरह इस एक संबल के सहारे बिना किसी गुरु के भी उस रहस्यमय ज्ञान को प्राप्त कर सकता हैं और जीवन के अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर भी बिल्कुल उसी तरह अपने ही भीतर से पा सकता हैं जिस तरह उन्होंने स्वयं ही उन्हें खोजा था वो भी तब जब पहली बार जीवन की दुखद सच्चाइयों से सामना हुआ था तो जीवन के उस स्याह पक्ष को देखकर उनके भीतर अनगिनत सवालों के साथ श्वेत रौशनी की एक किरण जाग गयी जिसके बाद उनको राजमहल के बेहिसाब सुख और अनगिनत सुविधायें भी नहीं रोक पाई जीवन के उजाले की तलाश में वो काली रात में ही सब कुछ त्याग कर चले गये वो भी मात्र ३० वर्ष की अल्पायु में जिसे हम यौवन कहते हैं

आज के बहुत से युवा तो इस वय में अपने मकसद तक को नहीं समझते उस पर जीवन के रहस्यों के प्रति तो उनका क्षणिक भी लगाव नहीं तब वो दुर्लभतम ज्ञान किस तरह से प्राप्त हो उसके लिये तो खुद को तपाना पड़ता ध्यान की गहराइयों में जाकर आत्म दीपक को जलाना पड़ता जिसके प्रकाश में हमें वो खजाना भी दिखाई देने लगता जो हमारी ही अंतर की अँधेरी गुफाओं में छिपा हुआ पड़ा रहता जिसे उन्होंने भी आँखें मूंदकर बाह्य जगत से नाता तोड़कर पाया था आज जो युवा पीढ़ी इंटरनेट पर नफ़रत बाँट रही या अश्लीलता फ़ैलाने में लगी वो भला कब ये समझ पायेगी कि किस तरह से वो अपने अनमोल जीवन को नष्ट कर रही उसे तो अपनी ही खबर नहीं फिर भला उसके प्रति जिज्ञासा किस तरह से पैदा होगी जिसे उसने न देखा और न ही जिसके बारे में उसे तनिक भी कोई रूचि ये तो महज़ अपनी आंतरिक और आत्मिक बोध की बात हैं जो किसी को किसी भी पल हो सकता हैं

जिस तरह ‘राजकुमार सिद्धार्थ’ को सिर्फ चार दृश्यों को देखकर हुआ था पर, हमें नित पल-पल अपने हाथों में रखे ‘मोबाइल’ पर बिना कहीं जाये ही उनके दर्शन हो रहे पर, आत्मचक्षु खुल ही नहीं बल्कि बोले तो बाहरी नेत्र ही इतने अधिक चुंधिया रहे कि चश्मे लग रहे या नेत्र ज्योति पर ही खतरे मंडरा रहे ऐसे में अआरा ज्ञान या वे सभी मंत्र व्यर्थ जो उन्होंने अपने आपको खोकर हमें दिये कि हम तो उनके होने पर भी खुद को खो रहे फ़िज़ूल बातों में शायद, किसी दिन हम उनकी तरह ही ये समझ जाये कि जीवन केवल चार दृश्यों का ही खेल हैं उसके पहले हमें उसे सार्थक बनाना हैं अन्यथा दुनिया में हर क्षण आने-जाने की कोई कमी नहीं याद तो सिर्फ वही रहते जो अपनी छाप छोड़ जाता जैसे ‘राजकुमार सिद्दार्थ’ ने ‘गौतम बुद्ध’ बनकर केवल स्वयं का ही नहीं पूर्ण समष्टि का उद्धार किया कुछ ऐसे ही आध्यात्मिक, सामाजिक, जीवन दर्शनों से परिचित कराने प्रतिवर्ष वैशाख महीने में ‘बुद्ध पूर्णिमा’ आती हैं काश, इस बार ये ‘अप्प दीपो भव’ को फलीभूत कर दे हम सबके लिये... यही शुभकामना हैं... ☺ ☺ ☺ !!!        

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० अप्रैल २०१८

रविवार, 29 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११९ : #बदलती_हर_पल_ज़िंदगी_की_लय #धून_पर_जिसकी_करते_हम_सब_नृत्य




नृत्य ही तो कुदरत है अपने दिल की आवाज सुनिए, वो अपनी ही धुन में नाच रहा है
---बिरजू महाराज

भले ही किसी ने नृत्य की विधिवत शिक्षा न ली हो लेकिन, नाचना हर किसी को आता हैं क्योंकि, हमारे जन्म से लेकर हर एक रस्म-रिवाज और उत्सव में इसका समावेश हैं तो फिर हम इससे अनभिज्ञ किस तरह रह सकते उस पर जब आस-पास प्रकृति की तरफ नजर डालते तो उसकी भी हर एक शय अपनी धून में मगन नजर आती हो तो फिर कौन भला जो अपने थिरकते कदमों को मचलने से रोक सकता हैं इसलिये तो पंछी-पेड़-नदिया ही नहीं फूल-पत्ते-तितलियाँ और झरने-पहाड़-सीपियाँ भी पवन के झोंकों पर लहराते दिखाई देते हैं जो दर्शाता कि सजीव ही नहीं निर्जीव भी इसके जीवंत प्रभाव से अछूते नहीं हैं

बाहर ही नहीं भीतर अपने झांके तो वहां भी अपने हृदय की धडकनों को सुन सकते जो एक विशेष लय पर गिरती-उठती और जिसकी इस संगत पर अदृश्य आत्मा बिन घुंघरू बांधे ही कदमताल करती रहती और जब तक इनकी ये आपसी जुगलबंदी सम पर चलती रहती तब तक तन-मन के मध्य भी आपसी सामंजस्य बरकरार रहता और सकारात्मकता की तरंगें उत्पन्न होती लेकिन, यदि इनके बीच मतभेद हो तो अर्थात आत्मा अपने अंतर की ही आवाज़ को अनसुना करें तो बेकाबू होकर वो अपनी मनमानी करती जिससे नकारात्मकता उत्पन्न होती इसलिये इनके बीच तालमेल जरूरी होता हैं

जीवन के हर एक अहसास में नृत्य शामिल होता हैं जब भी कोई ख़ुशी महसूस हो तो तन-मन अपने आप ही नाचने लगता और यदि कहीं कोई गम मिले या उदासी भीतर प्रवेश कर जाये तो कदमों को झटककर उसे दूर किया जा सकता और हाथों को सांसों की गति के साथ उपर-नीचे करने मात्र से ही बड़े-से-बड़े तनाव को भी दूर किया जा सकता इस तरह यदि देखें तो पाते कि नृत्य भी एक ‘थेरेपी’ की तरह हैं जो हमारे मानसिक अवसाद या भीतरी असंतुलन को खत्म कर हमें राहत की अनुभूति से परिचित करवाती और गहन निराशा के क्षणों में भी आशा की मुस्कान होंठो पर लाती हैं
  
इतना ही नहीं इसके माध्यम से तो हम आध्यात्मिक परमानंद को प्राप्त कर सकते हैं और आत्मा-परमात्मा के मिलन की ऊंचाइयों तक भी पहुँच सकते हैं इसके लिये केवल अपने भीतर उतरने की आवश्यकता हैं जो इतना कठिन भी नहीं लेकिन, सबके वश की बात भी नहीं क्योंकि, हर किसी के अंदर सूक्ष्म जगत को अपने इशारों मात्र से चलाने वाले उस महानतम नर्तक से मिलने की उतनी तीव्र इच्छा भी नहीं तो फिर गहराई में उतरे बिना मोती की जगह पत्थर ही हाथ आते जितनी अधिक इसकी साधना की जाती उतना ही हम अलौकिक जगत की गहनतम अनुभूतियों से गुजरते हैं    
  
'पलक झपकने के साथ ही नाचने वाले आएंगे और जाएंगे, डांस हमेशा कायम रहेगा'
---माइकल जैक्सन
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ अप्रैल २०१८

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११८ : #भगवान_नृसिंह_आये_आज #भक्तों_का_अपने_किया_उद्धार




वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को राक्षसराज ‘हिरण्यकश्यप’ के अहंकार और अत्याचार की पराकाष्ठा हो गयी ऐसे में दुष्ट का संहार कर अपने भक्तों का उद्धार करने के लिये आधे नर और आधे सिंह बनकर ‘भगवन नृसिंह’ खंबे से प्रकट हुये और उसके बाद उस पापी को जिसे ये भरम था कि उसकी मृत्यु नहीं हो सकती उसे उसके महल में ही इस तरह से समाप्त किया कि एक बार पुनः ये साबित हो गया यदि भक्ति में शक्ति हैं तो उसकी पुकार अनसुनी नहीं रह सकती केवल मन में मिलन की तीव्र कामना होना जरूरी हैं

जब-जब दुष्ट अपने अहंकार के नशे में ये भूल जाता कि उसका सर्वनाश नहीं हो सकता तब-तब उसकी उस गलतफहमी को दूर करने के लिये किसी न किसी परम शक्ति को मानवीय रूप धारण कर आना पड़ता जिससे कि भक्तों की श्रद्धा भी कायम रहे और आस्था की डोर भी न टूटे और आने वाली पीढियों को भी ये ज्ञात रहे कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति होती जो सदैव उसके साथ रहती और उसकी रक्षा करती हैं

ऐसे ही प्रबल विश्वास की गाथा हैं भक्त प्रह्लाद और उसके आराध्य प्रभु नृसिंह देव की जिसे सुनकर मन प्रेम की तरंगों से भर उठता और उन्होंने जो वादा किया कि जब भी कोई भले ही वह किसी भी जाति या धर्म का हो उनको भाव विह्वल होकर पुकारेगा वे उसकी उस करुण पुकार को सुनकर तुरंत दौड़े चले आयेंगे प्रतिवर्ष नृसिंह जयंती उसकी याद दिलाती... सबको नृसिंह जयंती की मंगलमयी शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ अप्रैल २०१८

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११७ : #लघुकथा_जाने_मुझे_क्यों_पैदा_किया_?



लगभग पूरी दुनिया के सामने मंच पर जब ‘कामिनीजी’ को उनके सामाजिक कार्यों व योगदान के लिए सम्मानित किया गया तो गर्व से उनकी गर्दन तन गयी और जब पत्रकार ने पूछा कि मैडम आपने अपने पति व अपनी एकलौती बेटी व परिवार वालों के रहते हुए ये सब कैसे मैनेज किया तो उसी तनी गर्दन को कुछ और ऊंचा उठा सर तानकर उन्होंने कहा, मेरे मन मे करने की लगन व जज्बा था तो मैंने सबके साथ मैनेज करते हुए हर काम किया और उसकी परिणाम कि मेरी बेटी आज डॉक्टर हैं

उनके इस जवाब पर उनकी बेटी ‘नियति’ का चेहरा क्रोध से लाल व मुठ्ठियाँ भींच गयी जिसे कैमरे और तेज पत्रकार की नजर ने पकड लिया तो तुरंत उससे प्रश्न पूछा आपको अपनी मम्मी पर कितना गर्व हो रहा उसने उसी मुद्रा में तीखा रिप्लाई किया किया जरा भी नहीं क्योंकि ये झूठ बोल रही हैं अपनी समाज सेवा और एन.जी.ओ. के कामों के चलते इन्होंने न मेरा ध्यान रखा और न ही मुझे समय दिया

मेरा पूरा बचपन तो आया की गोद मे बीता मेरी हर पहली हरकत, हर अदा को उसने देखा इन्हें पता ही नहीं मैं कब बड़ी हुई स्कूल या कॉलेज गयी ये तो मगन रहती अपने बेकार के कामों में मैं कब घुटने चली कब दांत टूटे कब किलकारी भरी कब साईकल सीखी इन्हें नहीं पता जब इनको फेमिना बनकर महिला सशक्तिकरण का झंडा ऊँचा कर यही सब करना था तो न जाने क्यों इन्होने मुझे पैदा किया शायद, ऐसे ही किसी दिन को क्रेडिट देने और ऐसा कह वो मुंह फेरकर वहां से चली गयी

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ अप्रैल २०१८

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११६ : #मस्तिष्क_से_रचा_जो_सृजनात्मक_संसार #उस_पर_मिला_हमें_बौद्धिक_संपदा_अधिकार




यूँ तो सभी जीवित प्राणियों के शरीर में मस्तिष्क होता लेकिन, जिस तरह का उर्वरक और सृजनात्मक मानव का दिमाग होता वैसा अन्यत्र मिलना मुश्किल कि अपने इस छोटे-से दिमाग की काबिलियत से ही उसने न केवल आदिम या पाषाण युग से खुद को आधुनिक या तकनीकी युग तक पहुँचाया बल्कि, जहाँ भी जो कुछ भी सुंदर और उसके काम का था सब पर उसने अपना कब्जा जमाया चाहे फिर वो प्रकृति प्रदत्त संपदा हो या फिर जंगल में रहने वाले जानवर सबको अपने हिसाब से उपयोग में लाकर ऐसी स्थति पैदा कर दी कि सह-जीवन से चलने वाले प्राकृतिक वातावरण का संतुलन बिगड़ गया और आज कुदरत की तुला का पूरा पलड़ा मानव के बोझ से झुका जा रहा हैं

यदि विश्लेष्ण करें तो इसकी एकमात्र वजह ये ‘दिमाग’ ही हैं जो एक तरफ यदि रचनात्मक हैं तो दूसरी तरह विध्वंशक भी हैं ऐसे में अगर इसका सोच-समझकर व संभलकर इस्तेमाल न किया जाये तो ये जहाँ सृजन की वजह बनता वहीं विनाश का कारण भी बन जाता अपनी जेहनी काबिलियत से इन्सान जब खुबसूरत निर्माण कर सकता हैं तो फिर उसे ऐसी विनाशक वस्तुओं को बनने की क्या जरूरत जो मानवता के लिये खतरा हो विचार करें तो पाते कि कहीं न कहीं उनकी भी आवश्यकता जिस तरह वनों में शेर और खरगोश दोनों ही होते और अपना योगदान भी देते वो तो हम हैं जो अपनी तरह मुल्यांकन कर ये साबित करते कि फलाना जीव को ईश्वर ने नाहक बनाया या इसकी आबादी ज्यादा तो इसे मारकर खाना गलत नहीं याने कि अपनी सुविधानुसार नियम गढ़े जाते और चूँकि उन्हें विधाता ने बनाया तो उनके प्रति निर्मम व्यवहार किया जाता

आश्चर्य नहीं कि यही स्वार्थी इंसान अपनी बनाई या कल्पनाशक्ति से रची मौलिक कृतियों के प्रति बड़ा जागरूक होता जिसकी चोरी या दूसरे के द्वारा बिना उसे क्रेडिट दिये किसी एक वाक्य या लोगो या चित्र या कार्टून का उपयोग उसे आहत कर देता जो दर्शाता कि अपने हाथों से बनाई चीजों के प्रति हमें मोह होता उसी तरह ईश्वर को भी तो होता होगा कि उसने सबको स्वयं अपने हाथों से गढ़ा यदि वो अपने बौद्धिक संपदा अधिकार का प्रयोग करे तो हम सब कटघरे में खड़े होगे मगर, ये हो नहीं सकता अतः निश्चिंतता से भरे हम उनका दोहन करते पर, अपने सामानों की सुरक्षा के प्रति सजग रहते जो अच्छी बात क्योंकि, जो भी हम अपने मस्तिष्क की शक्ति से  बनाते वो हमारी ‘बौद्धिक संपदा’ कहलाती जिसे दूसरा हमारी अनुमति के बगैर इस्तेमाल न करें अतः हमें ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ प्रदान किया गया

फिर भी बहुत-से ऐसे लोग जिनको इसकी जानकारी नहीं तो वे अपनी रचनाओं, अपने शोध या अविष्कार का ‘कॉपीराइट’, ‘पेटेंट’ या ‘ट्रेडमार्क’ नहीं करवाते जिसकी वजह से हर कोई उन्हें आसानी-से कॉपी-पेस्ट कर इधर-से-उधर भेजता रहता और सृजनकर्ता को उसका लाभ नहीं मिलता तो इस उद्देश्य से विश्व बौद्धिक संपदा संगठन ने २६ अप्रैल को ‘विश्व बौद्धिक दिवस’ मनाने का निश्चय किया जिससे कि हम इसके प्रति जागरूक हो और अपनी मानसिक खोजों या नूतन विचारों पर अपना कानूनन हक हासिल करे आज सोशल मीडिया के जमाने में तो ये अत्यंत आवश्यक जहाँ एक क्लीक या फिंगर से आपकी मेहनत-मशक्कत से बनाई गयी कृति कोई भी अपने नाम से चेप सकता तो इसे समझे और सतर्कता के साथ अपनी चीजों को सार्वजनिक करें इसी संदेश के सतह सबको विश्व बौद्धिक दिवस की शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!
       
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२६ अप्रैल २०१८

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११५ : #विश्व_मलेरिया_दिवस #अकाल_मृत्यु_से_करता_सचेत



कहने को तो ‘मच्छर’ बड़ा-ही छोटा-सा एकदम नन्हा-सा जीव हैं लेकिन, उसके पास ऐसा जहरीला डंक हैं जिसे यदि वो किसी स्वास्थ्य व्यक्ति को तनिक भी चुभो दे तो उसकी अच्छी-खासी चलती हुई जीवन गाड़ी पर ब्रेक लग सकता हैं और यदि इसमें लापरवाही का थोड़ा-सा समावेश कर दिया जाये तो फिर बचना मुश्किल भी हो सकता हैं और प्रकृति ने बिना किसी भेदभाव के इसे समस्त दुनिया में पैदा किया तो ये भी पूर्ण ईमानदारी से रक्त चूसने के अपने काम में कोई कोताही नहीं बरतता और जिसे जब चाहे तब काट लेता हैं

जिसकी वजह से ‘मलेरिया’ जैसा रोग समस्त भूमंडल के सभी प्राणियों पर एक समान असर डालता इसलिये इसके बढ़ते प्रकोप को देखते हुये इसके प्रति जागरूकता पैदा करने ‘मलेरिया दिवस’ को वैश्विक स्तर पर मनाने का निश्चय किया गया क्योंकि, जब इसका कहर होता तो फिर ये बीमारी न जात देखती और न ही धर्म या स्थान वो तो जो उसके चपेट में आ जाये उसे अपने कब्जे में ले लेती ऐसे में जब देखा गया कि मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही तो ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया में इसके खिलाफ मुहीम चलाने के उद्देश्य से २५ अप्रैल को ये दिवस को मनाने का निर्णय लिया जिससे कि इस पर अंकुश लगाया जा सके

वैसे भी कौन-सा मच्छर वो भी मादा मलेरिया का वाहक ये समझना कठिन लेकिन, मच्छरों से किस तरह खुद को बचाना ये समझना और सीखना बेहद आसान तो इस तरह की बातों का प्रचार किया गया जिसने इससे मरने वालों की संख्या में कमी की फिर भी अभी तक इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सका हैं इसलिये ये जरूरी कि इस दिन को हम गंभीरता से लेते हुये इसके प्रति सावधान रहे और दूसरों को इससे बचने के उपाय बताये इस तरह धीरे-धीरे एक दिन हम इस रोग का पूरी दुनिया से नामोनिशान मिटा सकते हैं

इसमें कुछ विशेष या अधिक परिश्रम नहीं करना केवल अपने आस-पास स्वच्छता का ध्यान रखना हैं इसके अलावा कहीं भी पानी जमने नहीं देना हैं और मच्छरदानी का उपयोग करना हैं इसके साथ-साथ नीम की पत्तियों का धुंआ करने से भी मच्छर मर जाते हैं फिर भी यदि ये हो जाये तो अपना डॉक्टर से जांच कर इलाज करवाये और उसके निर्देशों का पालन करें इतना ही कर लिया तो इसको नियंत्रित करना नामुमकिन नहीं होगा... इस तरह से यदि हम ‘विश्व मलेरिया दिवस’ को मनाये तो निश्चित ही विश्व इसके मुक्त होकर इसे सफल बना पाये... ☺ ☺ ☺ !!!       

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ अप्रैल २०१८

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११४ : #सीता_सिर्फ_एक_नारी_नहीं_थी #महिला_सशक्तिकरण_का__प्रतिमान_भी_थी





सीताभारतीय नारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक ऐसा पौराणिक पात्र जिसके आदर्श चरित्र ने सर्वाधिक स्त्रियों को आकर्षित व प्रभावित किया यही वजह कि वे उनका अनुकरण करती उनके दिये गये सिद्धांतों तथा उनके जीवन मार्ग को आत्मसात कर उनके जैसा ही बनने का प्रयास करती बावजूद इसके कि उन्होंने अपने अर्धांग रामके निर्णय को मूक शिरोधार्य किया चाहे वो उनकी अग्निपरीक्षा को लेकर हो या फिर उनको गर्भवती अवस्था में त्यागने का उन्होंने कभी-भी कहीं भी उनका प्रतिरोध नहीं किया ।

क्योंकि, उनकी अर्धांगिनी होने के कारण वे इसके पीछे की वजह को बेहतर तरीके से जानती थी और उन्हें ये भी अच्छी तरह से ज्ञात था कि वे कोई साधारण आम महिला नहीं बल्कि, एक राजकन्या और राज कुलवधू हैं जिनके सर पर पृथ्वी की समस्त नारी जाति के गौरव का भार हैं उनकी एक छोटी-सी भी गलती या गलत कदम आने वाली कई पीढ़ियों को कुमार्ग की तरफ प्रेरित कर सकती हैं क्योंकि, प्रजा जिन्हें अपना रोल-मॉडलया आदर्शसमझती उनसे वे बेहद ही संतुलित, आदर्श, नैतिक और सदव्यवहार की अपेक्षा करती हैं ।

ऐसे में यदि उसके चरित्र में तनिक भी विपरीत लक्षण या निश्चित मापदंडों के प्रतिकूल कोई भी लक्षण नजर आता तो वो उसे उसके उस उच्च सिंहासन से तुरंत नीचे गिरा देती ऐसे में उनको हर कदम हर एक काम व व्यवहार बेहद सोच-समझकर करना पड़ता सामाजिक व्यवहार का यही भार उनके पति श्रीरामपर भी था जो केवल एक राजकुमार ही नहीं अयोध्या के राजा भी थे तो ऐसे में किस तरह वे अपने राज्य के नियम-कानून या संविधान के विपरीत कोई भी निर्णय ले सकते थे अतः उन्होंने अपने पद, अपने कर्तव्य, अपने राजधर्म के अनुकूल हर कार्य किया ।

जिस तरह आज भी उच्च पद पर स्थित किसी भी अधिकारी या नेता को संविधान की मान-मर्यादा का ध्यान रखना पड़ता अपने पद की गरिमा से वो बंधा होता थी उसी तरह वे सब भी राजकुल से जुड़े होने के वजह से नियमाधीन थे तो उसके अनुसार ही उन्होंने अपने सभी निर्णय लिये जिसे व्यक्तिगत या दुसरे शब्दों में सकुंचित दृष्टिकोण कहे तो अधिक उचित होगा से वे हमको गलत नजर आते लेकिन, यदि हम उस कालखंड के अनुसार उनकी व्याख्या करें तो वे उचित प्रतीत होते जिसे उस वक्त बदलना या धारा के प्रवाह के विरुद्ध बहना संभव नहीं था ।

अन्यथा अपने मनोनुकूल कानून में परिवर्तन करने से प्रजा भी निरंकुश हो जाती तो जो उस समय सही था श्रीरामने वही किया और सीता जी ने भी बिना किसी सवाल के उसका पालन किया मगर, जब अंत में वे उनको लेने आये तो उन्होंने एक पत्नी या एक माँ या एक रानी नहीं सिर्फ एक बेटी की तरह अपनी माँ की गोद में समाने का फैसला किया क्योंकि, उस वक़्त वे राजधर्म की मर्यादाओं से बाहर थी तो एक स्त्री मन की तरह अपने आत्म्सामन को प्राथमिकता देते हुये एक नया कीर्तिमान स्थापित किया ।

जिसने महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में पहला ठोस उदाहरण प्रस्तुत किया इस तरह सीताने जहाँ एक आदर्श बेटी, एक आदर्श बहु, एक आदर्श पत्नी और एक आदर्श माँ के रूप में अपनी भूमिका का पूर्ण रूप से निर्वहन किया तो एक नारी हृदय होने का भी प्रतिमान स्थापित किया जो दर्शाता कि अपने सीमित दायरे में घर की चारदीवारी के भीतर रहने पर यदि वो अपने नारी धर्म का पालन कर सकती हैं तो दहलीज के बहर भी अपनी छवि को स्वच्छ रखते हुये अपने भावी जीवन की दिशा तय कर सकती हैं ।          

वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि सीता नवमीया जानकी नवमीया मिथिलेश के जन्मोत्सवया जनकनंदिनी के प्रकाट्य दिवसके रूप में मनाई जाती तो हम सबकी प्रिय हमें अपने स्त्री धर्म का पाठ पढ़ाने वाली और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी बिना घबराये शत्रु का मुकाबला करने वाली, त्यागे जाने पर भी एकाकी अपनी सन्तान को जन्म देकर पालने वाली, अपने आत्मसम्मान को अक्षुण रखते हुये धरती की कोख में समाने वाली और एक साथ कोमल व मजबूत गुणों को अपने भीतर रखने वाली वैदेहीको जन्मदिवस की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ अप्रैल २०१८

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११३ : #विश्व_पुस्तक_एवं_कॉपीराइट_दिवस



उदास हैं किताबें
करीने से सजी हुई अलमारियों में
तरसती कोमल उँगलियों को
पर, अब निकलता न कोई इन्हें
ताकती रहती अपलक
खोये हुये बच्चें सारे मोबाइल में
पढ़ते नहीं पचतंत्रया अमर कथायें
न ही दिलचस्पी उनकी जो सुने किस्से पुराने
दादी-दादी और नाना-नानी के
सूखे गुलाब जो रखे गये पन्नों पर कभी
इंतजार में अब तलक भी हैं
कोई तो आकर फिर से पलटे उनको
जिये उन पुरानी यादों को जो छूट गई पीछे
आज भी बसती किताबों में सारी दुनिया
फूल-पत्तियां, पेड़-पौधे, चिड़ियाँ, गिलहरी और तितलियाँ
लिखे गये शब्दों से होते साकार चित्र
सामने उभरते नैन-नक्श और ऐतिहासिक चरित्र
संजोकर रखी जो उनमें अनगिनत स्मृतियाँ
रह जायेगी बनकर वो सिर्फ इतिहास
तकनीक के बढ़ते कदम लील रहे जिस तरह
प्राचीन संस्कृति और विरासत हमारी
एक दिन मिट जायेगा इनका नामो-निशां तक
जो अब भी दर्ज तो हैं किताबों में
मगर, कब तक सोचना पड़ेगा इसे अभी
विश्व पुस्तक दिवसये कहता...
खो गयी अगर, किताबें खो जायेगी सृष्टि
रहेगी ई-बुक्स या पी.डी.एफ. में बदली चंद पुस्तकें साथ
जिनमें न होगी कोई खुशबू न कोई अहसास ॥

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ अप्रैल २०१८

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११० : #भेड़_होने_का_अपना_मजा_हैं #भीड़_बनने_में_बड़ा_फायदा_हैं



‘भेड़’ बड़ा ही मासूम और निरीह जानवर जिसे सिवाय चरने और मुंह झुकाकर चलने के कोई काम नहीं आता और आँख होते हुये भी इसका चलना-फिरना इतना यांत्रिक कि बस, सर को झुकाये अगली भेड़ के पीछे-पीछे चुपचाप चलती चली जाती बोले तो किसी परछाई की तरह अपनी अग्रगामी का ऐसा अंधानुकरण करती कि सामने गड्डा हो या कुआं या खाई कुछ नहीं देखना या सोचना एक गिरी तो केवल दूसरी ही नहीं उसके पीछे की सारी भेड़ों को भी उसी में जाकर गिरना हैं संस्कृत में इस ‘भेड़ियाधमान’ को ‘गड्डलिका-प्रवाह’ कहते हैं

उनकी इस आदत में सबसे बड़ी सोचने वाली बात ये हैं कि सबके पास अपनी-अपनी अलग-अलग दो आँखें ही नहीं मस्तिष्क भी विद्यमान लेकिन, जो आनंद इस तरह पीछे-पीछे चलने में हैं वो भला कहीं और कहाँ क्योंकि इसका सबसे बड़ा फायदा कि, हम अगले पर सारा दोष मढ़ हर तरह के आरोप से मुक्त हो जाते चाहे फिर कोई हमें अंधभक्त कहे या फिर कोई हमें किसी का अनुयायी समझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपना दिमाग तो सहेजने की चीज़ जिसे फिक्स्ड डिपाजिट में बचाकर रखा तो भविष्य में अपने हित में प्रयोग लाया जा सकता हैं

इसी तरह ‘भीड़’ भी अपनी सोचने-समझने की क्षमता को गिरवी रख वही करती जो उसे समूह में करते लोग दिखाई देते इससे उसको कोई लाभ हो या न हो लेकिन, उसका गारंटीड स्वार्थ पूरा होता जो अपने फायदे के लिये इसका इस्तेमाल करता क्योंकि, वो अच्छी तरह से जानता हैं कि ‘गड़ेरिया’ बनकर ‘भीड़’ को ‘भेड़’ की तरह मनचाहा हांका जा सकता हैं तो बस, उसने एक मुद्दा लिया और हवा में उछाल दिया जिसे ‘भीड़’ कैच कर समझती कि उसके हाथ तो खजाने की चाबी लग गयी उधर वो चुपचाप छिपकर तमाशा देखता कि किस तरह से उसके इशारों पर भीड़ तमाशा कर रही हैं

इस कमजोर नब्ज का ज्यादातर फायदा राजनेता उठाते जो अच्छी तरह से जानते कि, जनता दिमाग होते हुए भी सोचने की जेहमत नहीं उठायेगी तो बस, वे संवेदनशील मामलों को जनता के हित में बताकर खुद अलग हट जाते फिर जनता आपस में भिड़ती और अनजाने में उनकी अवैतनिक सलाहकार या बोले तो प्रचारक बनकर उनका काम आसान करती जहाँ वो उनके पक्ष में पुरे दमखम से अपनी बात रख दूसरों को वही उपाधि देती जो वो स्वयं होती बोले तो ‘अंधभक्त’ इसमें उसका कुसूर नहीं उसे ये पता ही नहीं कि वो भी वही काम कर रही हैं     


इस तरह ‘भेड़’ या ‘भीड़’ बनने के मजे ही नहीं बड़े-बड़े फायदे भी होते जो ‘समाज’ ही नहीं ‘सोशल मीडिया’ में भी सब उठाते दिखाई दे रहे ‘एक’ तो जिनके पास कोई काम नहीं वो भी अब बेहद व्यस्त हैं ‘दूसरा’ कि इस बहाने से अपने मन की भड़ास भी निकल जाती तो व्यक्ति तनावरहित हो जाता ‘तीसरा’ जिससे चिढ़ उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अच्छी तरह से गरिया कर खुद का दामन साफ़ बचा लिया जाता ‘चौथा’ यदि हम कहीं गलत भी निकले तो कम से कम अकेले ही शर्मिंदा तो नहीं होंगे और सबसे अंतिम फायदा कि यदि कहीं हमारा तुक्का लग गया तो वो भी लाटरी से कम नहीं कोई न कोई पद तो मिल ही जायेगा इसलिये यहाँ कुछ लोग अपने फॉलोवर बढ़ाकर किसी ‘नेता’ या ‘सरगना’ या बोले तो ‘गड़ेरिया’ की तरह उन्हें निर्देशित कर रहे हैं   

ये किसी भी मुद्दे के पक्ष में उट-पटांग दलीलें देकर अपनी गलत बात को सही साबित करते और अत्याधुनिक तकनीक की वजह से इनका काम आसान हो जाता कि कभी कहीं से अपने किसी भाड़े के टट्टू से लिखवाये किसी आलेख की ‘लिंक’ दे दी तो कभी ‘फोटोशॉप’ किया गया कोई सुबूत पेश कर दिया अब जिसको इसका ज्ञान नहीं वो इसे ‘शेयर’ और ‘लाइक’ कर अपने आपको बहुत बड़ा समाजसेवक समझता जबकि, वास्तव में वो ‘भेड़’ बनकर गड्डे में गिर रहा इसमें ताज्जुब करने की कोई बात नहीं क्योंकि, अपनी आँखों में बंधी पट्टी की वजह से उसे अभी वो गड्डा दिखाई नहीं दे रहा इसलिये वो धीरे-धीरे उसमें धंसता जा रहा हैं       

ऐसे विषैले माहौल में ‘स्वामी विवेकानंद’ की ये उक्ति फिर से आत्मसात करने की सख्त जरूरत हैं...

“कोई व्यक्ति चाहे कितना भी महान क्यों ना हो कभी-भी आँख मूँद कर उसके पीछे नही चलना चाहिये । यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को  आँख, नाक, कान, मस्तिष्क और मुंह क्यों देता। ईश्वर ने जब ये सब हर किसी को दिया है तो हमें उसका उपयोग करना चाहिये। सोच समझ कर सारे  काम करने चाहिये” ।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० अप्रैल २०१८

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०९ : #विश्व_यकृत_दिवस #करे_लीवर_के_प्रति_सजग




यकृत’ / ‘जिगर’ / ‘कलेजा’ जिस भी नाम से उसे पुकारे वो हमारे शरीर के लिये बेहद महत्वपूर्ण जिसके बिना हमारा जीवन संभव नहीं होता ये सिर्फ पाचन के लिये ही सहायक नहीं होता बल्कि, ऐसे बहुत सारे काम करता जो हमारी देह के समस्त तंत्रों के संचालन के लिये जरूरी होते तो ऐसे में इसके प्रति थोड़ी-सी भी लापरवाही हमारे लिये जानलेवा साबित हो सकती हैं और जिस तरह के प्रदूषित वातावरण व कृत्रिम सुख-सुविधाओं के बीच रहकर हम प्रकृति से दूर होते जा रहे वो भी हमारे लिये घातक तो ऐसे में अत्यंत जरूरी कि हम अपनी इस अनमोल देह और इसके समस्त अंगों के प्रति सचेत रहे

ताकि बढ़ती उम्र में जब इनकी कार्यक्षमता घटने लगे तब भी हमारी नियमित जीवनशैली व अच्छी आदतें इसे सुचारू रूप से सक्रिय रखे जिससे कि हम वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहते हुये उस समय को कष्ट से कराहते हुये या रोग से ग्रसित होकर बिताने की बजाय मुस्कुराते हुए गुज़ारे इसलिये ही तो आज के दिन १९ अप्रैल को हमारी बॉडी के अत्यंत महत्वपूर्ण अंग ‘लीवर’ को समर्पित किया गया हैं जिससे कि हम इसकी महत्ता को समझकर इसके प्रति सचेत रहे अन्यथा हमारी खान-पान संबंधी छोटी-छोटी लापरवाही व अनियमित और योगरहित दिनचर्या से अंततः हमें बेहद दर्दनाक शारीरिक व्याधियों में गुजरना पड़ता हैं

यूँ तो हमारे शरीर में सभी अंगों की अपनी आवश्यकता व अनिवार्यता होती लेकिन, फिर भी कुछ ऑर्गन ऐसे होते जिनके न होने या खराब होने से हमारी जिंदगी में उतना फर्क नहीं पड़ता याने कि वो हो या न हो हमारा जीवन चलता रहता लेकिन, कुछ ऐसे भी अवयव जिनका न होना मतलब हमारे अस्तित्व पर खतरे की तलवार लटकना जिनमें से ‘यकृत’ भी एक हैं जो शरीर में होने वाली बीमारियों संक्रमण से ही हमें नहीं बचाता बल्कि, शरीर में से विषैले पदार्थों को भी अलग करता, शरीर में ग्लूकोज की कमी होने पर उसका पुनर्निर्माण करता और स्वस्थ के सबसे बड़े दुश्मन कोलेस्ट्रोल के लेवल पर नियंत्रण रखता हैं ।     

यूँ तो ‘लीवर’ अपनी छोटी-मोटी बीमारियों का उपचार स्वयं ही कर लेता लेकिन, सामान्यतः देखा जाता हैं कि ‘यकृत’ में होने वाले किसी भी बड़े रोग का पता तब तक नहीं चलता जब तक कि वो क्षतिग्रस्त न हो जाये याने कि खतरे के निशान तक पहुंचने से पहले इसके कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते तो ऐसे में इसका ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता हैं जिसके लिये कुछ बड़ी कवायद नहीं करना बस, अपने खान-पान में हरी सब्जी, ताजे फल, अखरोट, रेशेदार सब्जियां, मोटा अनाज, अदरक, नींबू, हल्दी जैसी चीजों को शामिल करने के अलावा नियमति व्यायाम या योग / प्राणायाम को शामिल करें और गलत आदतें न अपनाये नशे से दूर रहे व बिना डॉक्टरी सलाह के किसी भी दवा का सेवन न करें तथा ‘हेपेटाइटिस’ का टीका भी अवश्य लगवाये यही तो इस दिवस का उद्देश्य हैं... इसी संदेश के साथ सबको ‘विश्व यकृत दिवस की शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ अप्रैल २०१८

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०८ : #शुभ_अक्षय_तृतीया_आई #पावन_परशुराम_जयंती_लाई




वैशाख का महिना अपने आप ही बेहद पुण्यदायक और आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से विशेष माना गया हैं जिसमें पूरे मास विधि-विधान से आदिदेव भगवान भोलेनाथ का पूजन और अभिषेक किया जाता और जब शुक्ल पक्ष की तृतीया आती जिसे सदैव अक्षुण फलदायी ही नहीं बल्कि, इस दिन महादेव के अनन्य भक्त जिन्होंने अपनी तपस्या से उनको प्रसन्न कर परशु प्राप्त किया था ऐसे अत्यत बलशाली, ज्ञानी, विवेकवान ‘परशुराम’ की जयंती और जीवनदायिनी पतितपावनी माँ गंगा का अवतरण दिवस भी मनाया जाता

इस तरह यह दिवस जो अपने आप में स्वयंसिद्ध व अबूझ मुहूर्त समझा जाता अनंत गुना ऊर्जावान होकर परम सौभाग्यवर्धक बन जाता जिसमें किये गये दान, पुन्य व शुभ कार्य सदा-सदा के लिये अक्षय हो जाते इसलिये आज के दिन सभी लोग अपने-अपने घरों में इसे बड़ी धूमधाम से मनाते और साल भर इसका इंतजार करते क्योंकि, अपने जिस भी काज को वे हमेशा के लिये अक्षय रखना चाहते हैं वो इसी दिन के लिये प्रतीक्षित रखते ताकि वो निश्चित ही सफलता देने वाला और लाभकारी साबित हो जो आज संभव होता हैं

समस्त मित्रगणों को ‘अक्षय तृतीया’, ‘गंगा अवतरण दिवस’ और अमर शास्त्र-शस्त्र के ज्ञाता परशुराम जयंती की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ अप्रैल २०१८

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०७ : #जम्मू_कश्मीर_हमारे_देश_का_हिस्सा #चलती_वहां_मगर_उनकी_अपनी_दंड_संहिता




१ जनवरी २०१३ शाम ५ बजकर ७ मिनट पर तत्कालीन मानव संसाधन राज्य मंत्री ‘शशि थरूर जी’ ने उस वक़्त के सबसे जघन्य और शर्मनाक बलात्कार कांड पर पीड़िता जिसे कि ‘निर्भया’ नाम दिया गया था के वास्तविक नाम को गुमनाम रखने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये एक ट्वीट किया...
 
Wondering what interest is served by continuing anonymity of #DelhGangRape victim. Why not name & honor her as a real person w/own identity?

(मुझे समझ नहीं आता की पीड़ित को गुमनाम रख कर क्या मिलेगा। क्यों न उसे उसके नाम और असली पहचान के साथ सम्मान दिया जाए?)

5:07 PM - Jan 1, 2013

उसी के दो मिनट बाद ही ५ बजकर ९ मिनट पर उनका अगला ट्वीट अगली कड़ी के रूप में सामने आया जिसका मन्तव्य था कि हमें पीड़िता का असली नाम सबके सामने लाना चाहिये और नया कानून भी उसके नाम से ही बनाना चाहिये...


Unless her parents object, she should be honoured & the revised anti-rape law named after her. She was a human being w/a name,not just a symbol

(अगर उसके माता-पिता को आपत्ति न हो तो उस महिला को सम्मान देना चाहिए और रेप से जुड़ा जो नया कानून बनाया जा रहा है उसका नाम उस महिला के नाम पर रखना चाहिए। वो महिला भी एक इंसान थी, अपने नाम के साथ, वो सिर्फ एक प्रतीक नहीं थी।)

5:09 PM - Jan 1, 2013

इन दोनों ट्वीटस के बाद राजनीतिक हलकों और ‘सोशल मीडिया’ पर इस बात को लेकर बहस चालू हो गयी जिसमें ज्यादातर लोगों की दलील थी कि इससे पीड़ित बेटी की पहचान जाहिर हो जाएगी और ऐसा करना गैरकानूनी है यहाँ तक कि महिला आयोग ने भी इसे दुरुस्त नहीं माना उसका कहना था कि ऐसा करने से भारतीय समाज बलात्कार पीड़ित या उसके परिवार को कभी सहज भाव से नहीं स्वीकारेगा । भारतीय कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता, किसी भी यौण शोषण की शिकार महिला का नाम या पहचान बताना एक दंडनीय अपराध है आईपीसी की सेक्शन 228A के मुताबिक ऐसा करने पर दो साल की सज़ा हो सकती है और दिल्ली के दो अखबारों के खिलाफ दिल्ली गैंगरेप पीड़ित की पहचान का खुलासा करने पर केस तक दर्ज हो चुका है । उस वक़्त कांग्रेस ने कहा है कि इससे पार्टी का कुछ भी लेना-देना नहीं है और यह थरूर के व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं इस तरह उसने इस विवाद से अपना पल्ला छुड़ा लिया ।


इसके बाद २६ जुलाई २०१६ की घटना हैं जब दिल्ली महिला आयोग की चीफ ‘स्वाति मालीवाल’ के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया और उन पर रेप पीड़िता लड़की की पहचान उजागर करने का आरोप लगा सूत्रों के अनुसार बुराड़ी इलाके में 14 वर्षीय किशोरी से रेप का मामला प्रकाश में आया था पीड़ित किशोरी की इलाज के दौरान मौत हो गई थी तो इस मामले में दिल्ली महिला आयोग की चीफ ‘स्वाति मालीवाल’ ने बुराड़ी थाने के एसएचओ को चिट्ठी लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि आईपीसी की धारा 228 के तहत केस दर्ज किया गया है क्योंकि, चिट्ठी में मालीवाल ने बच्ची के नाम को उजागर किया इतना ही नहीं उन्होंने चिट्ठी को व्हाट्सएप पर अपलोड कर मीडिया को भेज दिया था।

इसी साल इसी तरह के एक और ट्वीट ने हंगामा मचा दिया जब बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष ‘तेजस्वी यादव’ ने सोशल मीडिया पर ‘गया’ में दरिंगदी का शिकार हुई बच्ची की फोटो और नाम उजागर कर दिया तब ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ ने इस मामले में गंभीर आपत्ति दर्ज की तथा आयोग की मेंबर ‘सुषमा साहू’ ने कहा कि रेप विक्टिम की पहचान बताना अपराध है, इसलिए महिला आयोग ‘तेजस्वी यादव’ को नोटिस भेजेगा।

ये हाल ही की घटना हैं जब ११ मार्च २०१८ को महिला आयोग सदस्य, कांग्रेस और शिवसेना के पदाधिकारियों ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बाल चिकित्सालय में भर्ती हैवानियत की शिकार चित्तौड़गढ़ के भदेसर निवासी 5 साल की मासूम बच्ची और उसकी मां के फोटो सार्वजनिक कर मीडिया को जारी कर दिए संवेदनहीनता की हद तो यह है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बने महिला आयोग की सदस्य ‘सुषमा कुमावत’ ने मासूम और उसकी मां की फोटो sushmakumawat105@gmail.com ईमेल से खबर प्रकाशित कराने के लिए मीडिया तक को भेज दी। वहीं भदेसर के पूर्व प्रधान और कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह चुंडावत ने भी बच्ची और उसकी मां के फोटो krishnapalsinghmlsu@gmail.com ईमेल से भेज सार्वजनिक कर दिए। ऐसे ही शिवसेना ने gaurav.nagdashivsena@gmail.com से बच्ची की मां की फोटो मय प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जब दैनिक भास्कर ने उनसे इस बारे में सवाल किया था तीनों के ही पदाधिकारियों ने गलती स्वीकार करते हुए कहा कि-हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है।

यूँ तो हम सब ही जानते कि भारतीय कानून इसकी इजाजत नहीं देता और किसी भी यौन शोषण की शिकार महिला का नाम या पहचान बताना एक दंडनीय अपराध है तथा आई.पी.सी. के सेक्शन 228A के मुताबिक ऐसा करने पर दो साल की सज़ा हो सकती है । यहाँ तक कि दिल्ली के दो अखबारों के खिलाफ दिल्ली गैंगरेप पीड़ित की पहचान का खुलासा करने पर केस तक दर्ज हो चुका है । फिर भी वर्तमान में देश में एक ऐसा प्रकरण नाम सहित न केवल देश को बदनाम कर रहा बल्कि, एक धर्म विशेष को भी टारगेट कर अपनी विकृत मानसिकता को ज़ाहिर कर रहा ऐसे में ये जानना जरूरी हैं कि बलात्कार पीड़िता का नाम लेना गैर-क़ानूनी हैं या नहीं और किन परिस्थितियों में ये लिया जाना कानून का उल्लंघन नहीं होता

इस तरह की परिस्थिति में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन अथवा ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है या पीडित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है या जहां पीड़ित व्यक्ति की मॄत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकॄतचित्त है वहां पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से नाम प्रयुक्त किया जा सकता है लेकिन, जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई बात मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । केवल किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में कोई अपराध नहीं है ।


ऐसे में वे सभी जो कि इस तरह की मुहीम चला रहे या इसमें भागीदार बन रहे स्वयं सोच ले कि कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं अपने कानून की खुलेआम खिल्ली उड़ा रहे जिनकी यदि शिकायत हो जाये तो दंड भी हो सकता अतः किसी भी घटना में अंधानुकरण करने या भेड़ की तरह किसी के पीछे आँख मूंदकर चलने से पहले ये सोच ले कि जो हम कर रहे कहीं वो कानूनन जुर्म तो नहीं ? इसके अतिरिक्त जिसके लिये नाम लेकर लड़ रहे उनके यहाँ तो हमारा कानून तक नहीं चलता हमारे देश का हिस्सा होकर भी वे खुद को अलग समझते और वहां अपनी अलग न्याय व्यवस्था चलाते हैं

सर्वाधिक गौर करने लायक बात हैं कि भारत भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) भारत के अन्दर (जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है किन्तु, जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता (RPC) लागू होती है।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ अप्रैल २०१८

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०६ : #ग़लतफ़हमी




बड़ी आसानी से
पाकर अवसर छपने का
वो भी घर बैठे-बैठे
बस, चंद जुमलों के टुकड़े
इनबॉक्स में फेंककर
हथिया लिये सम्मान भी कई
बिखेर मुस्कान की चांदनी
तो हो गयी ग़लतफ़हमी उनको
कि हो गये हम नामचीन
एकाएक बन गये बड़े लेखक
उच्च दर्जे के साहित्यकार
मगर, दिन एक हो गयी मुलाक़ात
जब साहित्य के बड़े मर्मज्ञ से
तब हुआ अहसास कि
कविता का '' भी नहीं पता
और समझ लिया खुद को
हर विधा का जानकार
बाँटने भी लगे सबको ज्ञान पर,
अब खोलकर ग्रंथों के पन्ने
पढ़ रहे पीछे छूटा हुआ ज्ञान तमाम
जो अगर जान लेते पहले तो
मुगालते में न गुज़रते वे दिन-रात ।।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ अप्रैल २०१८

रविवार, 15 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०५ : #लघुकथा_कंडीशनल_विरोध




अक्षिता, ये ले इसे पकड़ और जल्दी से एक फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर लगा दे

पहले ये तो दिखा क्या हैं ये ऐसा कहकर उसने उर्मिला के हाथों से वो पोस्टर छीन लिया जिसमें पीड़ित बच्ची के नाम व चित्र के साथ न्याय की मांग करते हुये देवस्थान को टारगेट किया गया था उसने पूछा, इसे लगाना जरूरी हैं क्या?

अपना टैब उसके सामने करते हुए बड़े गर्व से कहा, अरे, बेहद जरूरी ये देख बॉलीवुड की सभी बड़ी अभिनेत्रियों ने इसे हाथ में लेकर अपनी पिक लगाई और सब बड़े लोग ऐसा कर रहे अब देखना जस्टिस मिलकर रहेगा

हल्की मुस्कुराहट से उसने कहा, अच्छा जिस तरह #MeToo, #NotMyName, #Padman जैसे अभियानों से एक वर्ग विशेष को लाभ मिला वैसे ही तो करो तुम सब एक मेरे न करने से क्या फर्क पड़ेगा

उर्मिला ने जाते हुए तल्खी से कहा, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध

फिर तो इन लोगों को जरूर सोचना चाहिये कि, इनका नाम कहाँ आयेगा?

उसने मुड़कर देखा और चली गयी ।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ अप्रैल २०१८