मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१२० : #तिरंगे_का_रंग_हरा #बहादुर_हरि_सिंह_नलवा




1967 में भारत कुमार के नाम से प्रसिद्ध अभिनेता व निर्देशक ‘मनोज कुमार’ की एक फिल्म आई थी ‘उपकार’ जिसका एक गीत ‘मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे-मोती...” बेहद मशहूर हुआ और आज भी देशभक्ति के गीतों में इसका अपना स्थान है इस गाने की अंतिम पंक्तियों में कई जाने-माने देशभक्तों के नाम के बीच एक नाम आता है ‘रंग हरा, हरिसिंह नलवे से...” जिसे हम दूसरे नामों की तुलना में कम जानते है तब इसे सुनकर ये जानने की इच्छा होती कि ये आखिर, कौन है ?

जब इतिहास में इनकी वीरगाथा पढ़ी और इन्हें जाना तब अहसास हुआ कि यही वो लोग जिनकी वजह से देश की सांस्कृतिक विरासत व एकता-अखंडता कायम रह सकी और जिन्होंने मुग़ल हो या ब्रिटिश काल हर युग में हिंदुस्तान की आत्मा ‘हिन्दू धर्म’ को बचाने अपना सर्वस्व गंवाने में भी संकोच नहीं किया इसलिये इनका नाम देश की हवाओं और माटी में इस तरह से रच-बस गया कि तिरंगे के हरे रंग का पर्याय बन गया और ये हमारी ही नासमझी या स्वार्थान्धता कहलायेगी कि हम इनके बलिदान और उस शौर्य को विस्मृत कर दे जिनकी वजह से ही हम आज भी अपनी वास्तविक पहचान को सहेजे हुये है

भारत के प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित ‘ख़ैबर दर्रा’ माना जाता है कि ये वही स्थान जहाँ से विश्व विजेता बनने का सपना लिये ‘सिकन्दर’ ही नहीं यूनानी, हूण, शक, अरब, तुर्क, पठान और मुगल सभी ने सोने की चिड़िया ‘भारत’ की हरी-भरी वसुंधरा पर कदम रखा था । पंजाब के ‘महाराजा रणजीत सिंह’ के सेनानायक जाबांज यौद्धा ‘सरदार हरिसिंह नलवा’ ने अफगानिस्तान तक अपनी विजय पताका लहराकर राज्य का विस्तार किया और अफगानियों को ‘खैबर दर्रे’ से परे खदेड़कर उस मार्ग पर भी अधिकार जमाया जिससे होकर दुश्मन देश में आकर उस पर कब्जा जमाना चाहते थे ।      

उन्होंने अपने अद्भुत पराक्रम व कुशल रणनीति से सिख साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने ‘कश्मीर’ और ‘काबुल’ को जीत वहां हिन्दू धर्म की रक्षा की तो साथ-ही-साथ अफगानिस्तान पहुंचकर वहां हिन्दुओं पर लगे जजिया कर को हटवाकर हिन्दुओं को गर्व से सर ऊंचा करके जीने का उनका जन्मसिद्ध अधिकार दिलावाया जो आज पुनः खतरे में है क्योंकि, कश्मीर से न केवल पंडितों को निकाला गया बल्कि, उसे भारत से अलग करने की साजिशें भी रची जा रही है ऐसे में ‘सरदार हरिसिंग नलवा’ तो वापस आकर पुनः स्वाभिमान से जीने का हक़ नहीं दिला सकते क्योंकि, अपनी लापरवाही से हमने ही उसे गंवा दिया है

ऐसे में उनके साहस, वीरता और बहादुरी को फिर से स्मरण करने की जरूरत जो शेर जैसे खतरनाक जीव को आसानी से मार देने के कारण ‘नलवा’ कहलाये क्योंकि, उससे पहले ‘राजा नल’ के इस तरह के किस्से विख्यात थे तो उनके द्वारा इस कारनामे को अंजाम दिये जाने पर ‘’महाराजा रणजीत सिंह’ ने उन्हें यह उपनाम प्रदान किया था । आज हम अपने इन सपूतों की जीवनी पढ़ने की जगह मोबाइल की आभासी दुनिया में भटक रहे और जिस तरह अपने इतिहास को ही बदलने में लगे निश्चित कि आने वाले समय में अगली पीढ़ी को इन महापुरुषों की जानकारी नहीं होगी जिसके कसूरवार हम ही होंगे जो उस तरह के हालात दुबारा बनने की अटकलों के बीच भी नहीं जाग रहे है ।

जब हम ही इनको याद करने की जहमत नहीं उठा रहे तब उस जनरेशन से जिसे ‘देशभक्ति’ या ‘राष्ट्रवाद’ काल के गाल में समाये शब्द लगते ये उम्मीद करना गलत ही होगा इसलिये जितनी जल्दी हम ये समझे उतना ही बेहतर कि अभी उम्मीदों की शाम ढली नहीं है । जिस दिन कयामत की रात आई इतनी देर हो चुकी होगी कि जिसे बचाने हमारे अनगिनत देशभक्तों ने अपने प्राण गंवा दिये वो खुबसूरत लोकतांत्रिक आज़ादी फिर गुलामी में तब्दील हो जायेगी इसलिये जब किसी हुतात्मा का स्मरण दिवस आये तो हम पूरे दिन में से बिल्कुल थोड़ा-सा समय ये सोचने में जरुर बिताये कि यदि वे न होते तो क्या होता ??? तब शायद, हम समझ पाये कि उन्होंने हमारे लिये क्या किया है ।

‘सरदार हरि सिंह नलवा’ जब तक जिये पूर्ण समपर्ण एवं लगन से देश की रक्षा में संलग्न रहे और लड़ते हुये ही वीरगति को प्राप्त हुये आज उनके ‘बलिदान दिवस’ पर उनकी बहादुरी व राष्ट्रभक्ति को सलाम करते है     

जय हिन्द... जय भारत... वंदे मातरम...
        
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल ३०, २०१९

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११९ : #सिर्फ_कला_नहीं #नृत्य_में_खूबियां_कई



कहने को तो 'नृत्य' एक कला, एक साधना और मन के भावों की अभिव्यक्ति की एक विधा होती है लेकिन, यदि इसको गहराई से समझे और जाने तो पता चलता कि ये उससे भी बढ़कर बहुत कुछ है जिसमें अनगिनत खूबियां छिपी हुई है यदि कोई व्यक्ति इसमें निपुण हो जाये तो वो एक साथ अनेक क्रियाओं को संपादित कर सकता है और साथ ही अपने मनो-मस्तिष्क को भी सयंत रखते हुये एक शांत जीवन व्यतीत कर सकता है क्योंकि, ये महज़ कला का एक प्रकार नहीं बल्कि, सम्पूर्ण तन-मन को सयंमित करने की एक वैज्ञानिक विधि भी है

जिसे यदि अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लिया जाये तो इसके नियमति अभ्यास से ईश्वर की आराधना के साथ-साथ ध्यान, व्यायाम, टाइम व स्ट्रेस मैनेजमेंट जैसे टास्क भी अपने आप हो जाते और फिर दूसरी किसी एक्सरसाइज या कसरत की आवश्यकता नहीं रहती है इसमें समस्त शारीरिक व मानसिक क्रियाएं समाहित जो साधक को बाहरी, आंतरिक, भौतिक व आध्यात्मिक सभी स्तरों पर इस तरह कुंदन की भांति तपा देती है इसके माध्यम से वो एक साथ कई सारे कामों को करते हुए तनाव रहित भी रह सकता जरूरत केवल इसे अपने आप में एक संपूर्ण कला के रूप में अपनाने की है

जिसके बाद व्यक्ति में ऊर्जा व अदृश्य शक्तियों का जागरण होता जो उसे अपनी सीमाओं से परे जाकर असीमित व असाधारण करने की अतिरिक्त शक्ति देता है इसलिये तो इसे करने से पूर्व ईश्वर का आशीष भी प्राप्त किया जाता और अपनी इस कला का प्रदर्शन उसकी सूक्ष्म उपस्थिति को महसूस करते हुये उसे ही समर्पित किया जाता है जिससे कि यह ईश्वरीय प्रसाद सम बन जाता और देखने वालों को भी इससे उसी दैवीय अनुकम्पा की अनुभूति होती अहसासों की जिन परतों से गुजरकर वो अंतस के गहन भावों को अपने हाव-भाव के जरिये प्रदर्शित करता है

शायद, तभी तो समस्त प्रकृति उसकी हर शय किसी अनंत शक्ति के समक्ष नृत्यरत दिखाई देती है यही नहीं हमारे ईश्वर भी आनंदित हो या क्रोध में अपने भीतर की उस अवस्था को नाचकर ही दर्शाते हैं ‘नटराज’ यदि हमारे यहाँ नृत्य के देवता कहलाते तो ‘वीणापाणि शारदा’ सभी कलाओं की देवी मानी जाती जिनको नमन कर के ही इसका शुभारंभ किया जाता है आज ‘विश्व नृत्य दिवस’ पर यदि हम अपने शास्त्रीय नृत्यों को सहेजने का संकल्प ले और उसे प्रचारित-प्रसारित करने का बीड़ा उठाये तो इनसे दूर हो रही नई पीढ़ी जो पाश्चात्य डांस फॉर्मेट में डूबकर अपनी धरोहर से दूर हो रहे वे भी इसके प्रति जागरूक होकर इसके सच्चे प्रचारक बन सकेंगे और देश-विदेश में इसका नाम रौशन कर गुरुऋण से मुक्त हो सकेंगे

आखिर, गुरुदक्षिणा मात्र ही तो अपने गुरुदेव से प्राप्त अमूल्य शिक्षा का मूल्य चुकाना नहीं होता उसे आगे बढ़ाना भी तो एक शिष्य का फर्ज बनता है ।

#World_Dance_Daye_29_April

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २९, २०१९

रविवार, 28 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११८ : #हाउसवाइफ_बनाम_वर्किंग_वीमेन




शैफाली, जल्दी करो चिया की प्रिंसिपल ने हम दोनों को मिलने के लिए सुबह 10 का टाइम दिया है ।

रोनित, तुम्हें क्या लगता उन्होंने हमें क्यों बुलाया होगा ।

मुझे कोई आईडिया नहीं वही जाकर पता चलेगा चलो वी आर ऑलरेडी लेट ।

प्रिंसिपल चैम्बर में पहुंचकर जब प्रिंसिपल ने बोलना शुरू किया तो दोनों के चेहरे की हैरानी बढ़ती रही और उसी रफ्तार में आंखों का दायरा भी आश्चर्य से फैलता गया ।

मि. एंड मिसेज मल्होत्रा कल 'चिया' की क्लास टीचर ने बच्चों को 'आप अगले जनम में क्या बनना चाहोगे' विषय पर लिखने एक टास्क दिया तो आपको पता आपकी बेटी ने उसमें जो लिखा वो आज के अधिकांश बच्चों के मन की बात है जो वो महसूस तो करते पर, बोल नहीं पाते और इस टास्क का उद्देश्य भी यही था कि उनकी अनोखी विश का पता लगाया जा सके तो वही हुआ भी सभी बच्चों ने कुछ अटपटी ख्वाहिश ज़ाहिर की पर, चिया ने लिखा कि, "मैं अगले जनम में भी अपने ही मम्मी-पापा की बेटी ही बनना चाहती हूं बस, मेरी इच्छा ये है कि अगले जनम में मेरी माँ हाउस वाइफ हो ताकि मैं उनके साथ अधिक वक़्त बिता सकूं और पापा थोड़े फ्रेंडली हो जिनसे मैं बेहिचक हर बात शेयर कर सकूं" तो आप दोनों को यहाँ बुलाने का मकसद यही कि हम जान सके कि आप क्या अपनी बेटी को पर्याप्त समय नहीं देते जो वो ऐसा लिख रही है ।

मैम, ये सही है वर्किंग वुमन होने की वजह से उसके साथ कम समय बिताती हूं पर, क्या करूँ काम भी तो जरूरी है और अगर, हाउसवाइफ ही रही तो फिर उसे इतने महंगे स्कूल में पढ़ाना डॉक्टर बनाना किस तरह सम्भव होगा आप खुद भी वर्किंग वुमन है ये समझती होंगी कि ये कॉम्पिटिशन का दौर जिसके लिए पति-पत्नी को मिलकर घर चलाना पड़ता है ।

एक्सक्यूज़ मी, क्या मैं अंदर आ सकती हूं ।

अरे, मिसेज शर्मा आइये आइये बैठिये । मैं जब तक मिसेज शर्मा से बात करूं आप दोनों चिया की स्क्रिप्ट पढ़ ले ।

जी कहिये कैसे आना हुआ मिसेज शर्मा ।

जी, वो कल दिव्यांशी की क्लास टीचर ने माय फैमिली पर निबंध लिखवाया तो उसमें पापा को तो ऑफिस जाते लिखाया पर, मम्मी को किचन में खाना बनाने भेज दिया अब जबकि, समय बदल गया तो क्या हमारी स्टडी में भी वो चेंजेस नहीं दिखना चाहिए ऐसे में तो बच्चों के मन में मम्मा की इमेज बदलने से रही वो उसे किचन में ही देखने के अभ्यस्त रहेंगे जबकि, अब तो पापा लोग भी खाना बनाते है ।

उसकी बात मिसेज मल्होत्रा और प्रिंसिपल दोनों ने विस्मय से एक-दूसरे को देखा कि ये बदलाव का वक़्त जहां स्त्री समय ही नहीं इतिहास को भी बदल रही और संक्रमण काल में छवियों का ओवरलैप होना बेहद सामान्य बात है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २८, २०१९

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११७ : #दयालुता_की_जीवंत_तस्वीर #जीत_जिसने_लिया_सबका_दिल



4 अप्रैल को सोशल मीडिया पर एक बेहद मासूम तस्वीर ने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया जिसमें एक 6 साल का नन्हा बच्चा अपने एक हाथ में चूजा और एक हाथ में 10 रूपये का नोट लिये खड़ा है उसके चेहरे के भाव से असमंजस ही नहीं अपराधबोध का संकोच भी दिखाई दे रहा है पर, उस निर्दोष अबोध आँखों में झलकती सच्चाई और एक मुर्गी के बच्चे के लिये पीड़ा जिस तरह से झलक रही उसने हर किसी को अनायास ही उससे से कनेक्ट कर दिया और जब उस चित्र के पीछे की कहानी सामने आई तो हर दिल से उस क्यूट बच्चे जिसका नाम ‘डेरेक सी लालचनहिमा’ एवं जो कि मिजोरम के एक छोटे-से गाँव सैरंग का रहवासी है के लिये दुआ निकली

वो अपने घर से छोटी-सी साइकिल से कहीं जा रहे थे कि अचानक गलती से अपनी साइकिल उनके पड़ोसी के एक नन्हे-से चूज़े पर चढ़ गई जिसे देखकर डेरेक बुरी तरह घबरा गए और ये जाने बिना कि चूजा मर चुका है उसको हाथ में उठाकर भागे-भागे घर आए और अपने माता-पिता से चूज़े को अस्पताल ले जाने की ज़िद करने लगे लेकिन, माँ-बाप ये देखकर कि चूजा जीवित नहीं तो उसके साथ जाने तैयार नहीं हुये तब डेरेक ने अपने जोड़े पैसों में से 10 रुपये लिये व दूसरे में हाथ में चूज़े को उठाकर भागते हुए अपने इलाके के सबसे नज़दीकी अस्पताल पहुंच गए

जहाँ एक नर्स ने उनकी मासूमियत व दयुलता को देखते हुये उसकी तस्वीर क्लिक कर ली और जब वो सोशल मीडिया पर आई तो जबरदस्त वायरल हुई जिसके बाद उनके स्कूल ने भी शॉल और प्रमाणपत्र देकर उनको सम्मानित किया और जब पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार के पक्षधर व पशु अधिकार के प्रति सचेत संगठन ‘पेटा’ ने ये फोटो देखी तो इस बच्चे को 'कंपेसिनेट किड अवार्ड' देकर उसकी इस नेकनीयत को सारी दुनिया के सामने लाये ताकि, अन्य बच्चे भी उसकी स्टोरी को जाने और उससे प्रेरणा लेकर जानवरों के लिये इतने ही रहमदिल बने इसी तरह परपीड़ा को महसूस कर द्रवित हो तो इंसानियत को बचाया जा सके जो नित खोती जा रही पर, इस नन्हे बालक ने ये उम्मीद जगाई कि हम इस पीढ़ी को लेकर निश्चिन्त रह सकते है

इनके हृदय में वही कोमलता और दयाभाव भरा जो अपेक्षित है और जिसकी गाथाएं हम पढ़ते आ रहे यदि आज की ये जनरेशन एक चूजे को लेकर इतनी सजग है तो वो इस निर्दय समाज में मनुष्यता को भी इसी तरह से सहेजकर रखेगी और उन जीवन मूल्यों को आगे बढ़ाएगी जिनके खोने का भी डर सताता रहता है इस बच्चे के लिये <3 से दुआयें कि वो इसी तरह उनके भीतर की पवित्रता व ईमानदारी बनी रहे क्योंकि, आज के स्वार्थी युग में जहाँ कोई किसी का एक्सीडेंट होने पर भी अपनी गाड़ी नहीं रोकता और अपनी व्यस्तता के चलते किसी की मदद के लिये नहीं रुकता वहां ये बच्चा आशा की किरण बनकर आया है     

संयोग से आज 'विश्व पशु चिकित्सा दिवस' भी है जो विश्व पशु चिकित्सा संघ के द्वारा अप्रैल महीने के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है तो ये प्रेरक प्रसंग इस दिन के औचित्य को सटीक तरीके से व्यक्त करता है अतः यदि हम इसके संदेश को ग्रहण करें तो इससे बेहतर इस दिन का कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता जहाँ एक छोटा-सा बच्चा इससे अपरिचित होने पर भी स्वविवेक से ही उस नेक काज को आगे बढ़ा रहा जिसे पूरा करने सारी दुनिया में इस दिन का आयोजन किया जाता है अतः आज इस भावी भविष्य के जिम्मेदार नागरिक के नाम ये दिन समर्पित इस कामना के साथ कि हम अपने संस्कारों को भूले नहीं और सह-अस्तित्व की अपनी पुरातन परम्परा को फिर से फिर से एक बार प्राणदान दे प्रकृति को भी बचाये ऐसे इस दिवस को मनाये ।


#विश्व_पशु_चिकित्सा_दिवस
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २७, २०१९

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११६ : #बौद्धिक_सम्पदा_को_समझे #अनजाने_में_अपनी_रचनात्मकता_न_खोये



वाकया – ०१ :
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रिनी, तू कितनी अच्छी ग्राफिक डिज़ाइनर है
मेरी कम्पनी का एक बढिया वाला-सा लोगो बना दे न यार...

क्यों नहीं जरुर बना दूंगी तू बता तो सही कैसा डिजाईन चाहती है

‘रिनी’ ने अपनी सहेली की बात मानकर बिना किसी मेहनताने के उसे एक सुंदर-सा जैसा वो चाहती थी लोगो बनाकर दे दिया जिस पर अब उसकी जगह उसकी सहेली का कॉपीराइट था तो वो खुद भी उसकी इजाजत के बिना उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी

वाकया – २ :
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मम्मी, मुझे कल स्कूल में बेटी बचाओ विषय पर ओरिजिनल स्लोगन लिखना है पर, कुछ सूझ ही नहीं रहा क्या करूं ?

अरे, इसमें इतना परेशान होने की क्या जरूरत वो तेरे महेश अंकल रहते है न पड़ोस में बड़े अच्छे लेखक है जा उनको बुला ला तब तक मैं उनके लिये चाय बनाकर रखती हूँ एक कप चाय में वो तुझे बेहतरीन और मौलिक कुछ लिखकर दे देंगे

वही हुआ जैसा सोचा था बिटिया ने प्रतियोगिता जीत ली और अब वो स्लोगन स्कूल की वेबसाइट पर उसके नाम से रजिस्टर्ड हो चुका था      

वाकया – ०३ :
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पापा, देखो मैंने आपके लिये क्या बनाया है आप बहुत दिनों से कह रहे थे न कि यूँ तो मोबाइल में फिटनेस के लिये बहुत सारे एप्प पर कोई भी आपकी जरूरत के हिसाब से नहीं इसलिये मैंने एक ऐसा एप्प बनाया जो इससे आपको ऑफिस में चेयर पर बैठे-बैठे ही वर्कआउट करने में हेल्प मिलेगी और आप जो बढ़ते वजन व मोटापे से परेशां हो वो समस्या भी खत्म हो जायेगी

श्रेयांस, दिखाओ तो सही क्या है ?
   
पापा, ये एक असिस्टेंट एप्प है जिसमें मैंने एक ग्राफ़िक ट्रेनर भी बनाया जो आपको ब्रेक और एक्सरसाइज रिमाइंड कराने के साथ-साथ आपकी मदद भी करेगा

अरे वाह, ये तो बिल्कुल वैसा है जैसा मैं चाहता था

ऑफिस में उसके बॉस को तो एप्प का कांसेप्ट इतना पसंद आया कि उन्होंने प्रोफेशनल सॉफ्टवेयर इंजीनियर से उसे अपडेट करवाकर मार्किट में लांच कर दिया जिसे जबरदस्त रिस्पांस मिला और श्रेयांस को क्रेडिट तक नहीं दिया गया क्योंकि, बॉस के कहने मात्र से उन्होंने वो एप्प उनको यूँ ही दे दिया था      

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ऐसे अनगिनत वाकये आस-पास घटित होते रहते जबकि, किसी भी तरह का कुछ ‘क्रिएटिव’ या ‘इनोवेटिव’ रचने वाले को ये इल्म ही नहीं होता कि जो कुछ उसने बनाया वो उसकी ‘बौद्धिक सम्पदा’ जिस पर उसे कानूनन अधिकार भी प्राप्त है वो कभी अपने किसी फ्रेंड के चक्कर में तो कभी अपने बड़े ऑफिसर को खुश करने या अपने पड़ोसी की मदद करने की खातिर उसे यूँ ही दे देता मगर, अगला उसका व्यवसायिक रूप से उपयोग कर आपको उसके लाभ का हिस्सेदार तक नहीं बनता है केवल, औपचारिकतावश शुक्रिया या धन्यवाद अदा कर या फिर ट्रीट दे देता और आप इन सब बातों से अनजान इसमें ही खुश हो जाते क्योंकि, आपने तो वैसे भी किसी फायदे को सोचकर उसे वो दिया नहीं था ऐसे ही लोगों को जागरूक करने की खातिर ‘विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन’ 26 अप्रैल को ‘विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस’ मनाता पर, अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा कि बहुत से लोगों को तो ये भी नहीं पता है

किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई भी ‘रचना’ भले वो किसी भी विषय या क्षेत्र से सम्बन्धित हो एवं किसी भी प्रकार का नूतन ‘संगीत’, कोई भी मौलिक ‘साहित्यिक कृति’ या किसी भी तरह की कला हो कोई खोज या नाम अथवा डिजाइन आदि ये सब उस व्यक्ति या संस्था की बौद्धिक संपदाकहलाती है । जिस पर उस व्यक्ति या संस्था को ‘पेटेंट’, ‘ट्रेडमार्क’, ‘इंडस्ट्रियल डिजाईन’, ‘कॉपीराइट’ जैसे अधिकार भी प्रदान किये गये है जिन्हें बौद्धिक संपदा अधिकारकहा जाता है । इसके द्वारा वो न केवल अपनी कृति पर अपना हक प्राप्त करता है बल्कि, उसके अनुचित या बिना अनुमति दूसरों के द्वारा प्रयोग किये जाने को भी प्रतिबंधित कर देता है । यही हर किसी को बताने आज ‘बौद्धिक सम्पदा दिवस’ मनाया जा रहा तो इस पर सभी से यही कहना है कि जानकार बने नासमझी में ऐसा न हो अपनी ही बनाई किसी रचना को आपको ही उपयोग करने के लिये किसी से इजाजत लेना पड़े तब आप से बड़ा बदनसीब कोई न होगा ।

इसलिये इस दिवस के सन्देश को समझे और स्मार्ट बने... !!!

#World_Intellectual_Property_Day  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २६, २०१९

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११५ : #धार्मिक_समन्वय_एवं_शांति_हेतु #आओ_इंसानियत_को_बनाये_सेतु



सबसे पहले तो हम ये समझने का प्रयास करते है कि इस विषय की आवश्यकता क्यों है?

जब तक हम इस प्रश्न का जवाब नहीं ढूंढेंगे तब तक हम धार्मिक समन्वय की स्थापना हेतु समाधानों पर भी विचार नहीं कर पायेंगे क्योंकि, ‘ग्लोबलाइजेशन’ के इस दौर में अब सम्पूर्ण विश्व एक विशाल परिवार है और आज हम जिस ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘वैश्वीकरण’ की बात करते है हमारे शास्त्रों में इस अवधारणा को पहले से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के नाम से वर्णित किया गया है अर्थात हम इस समस्त भूमंडल या वसुंधरा को बिना किसी सरहद या देश की सीमाओं से परे एक ‘कुटुंब या परिवार’ मानते है और इस नाते से हम सब ‘विश्व बंधुत्व’ की डोर से आपस में बंधे हुये है जिस तरह से एक फैमिली में अलग-अलग विचारधारा के लोग एक साथ मिलकर रहते उसी प्रकार इस संसार में भी अलग-अलग धमों को मानने वाले रहते है और यह इसकी खुबसूरती जो विविधता में एकता को दर्शाती है इसे हम यूँ भी कह सकते कि जिस तरह एक बगिया में भांति-भांति के पुष्प उसकी शोभा बढ़ाते ठीक उसी प्रकार से भिन्न-भिन्न मतान्तर के लोगों से संसार की कुटिया भी महकती है इसमें समस्या तब आती कब कोई एक ‘धर्म’ या ‘मज़हब’ कट्टरपंथी का लबादा ओढ़कर खुद को सर्वश्रेष्ठ या सुपीरियर समझने लगता है और यही नहीं वो अपनी इस कट्टर सोच को दूसरों पर लादने हिंसा पर भी उतारू हो जाता है जिसके अनगिनत उदाहरण हम लगभग सारे विश्व में देख चुके है फिर भी खासतौर पर उसका जिक्र करना चाहूंगी जो ताजा-तरीन हादसा श्रीलंका के कोलम्बो में ईस्टर संडे के पवित्र दिन पर ईसा मसीह की रक्तरंजित मूर्ति की तस्वीर के रूप में हमें देखने को मिला इस दर्दनाक हादसे के निशान अभी ताजा है कई ताबूतों को हमने कल सामूहिक रूप से उठते देखा इसने घटना न जाने कितने लोगों को मौत की आगोश में सुला दिया और सबसे हैरतअंगेज बात कि दूसरों को जान से मार डालने के लिये अपनी जान देने तक से कुछ लोगों परहेज नहीं है इसका मतलब कि जितना हम सोच रहे बात उससे भी बहुत आगे बढ़ चुकी है क्योंकि, अभी तक तो ‘धर्मांतरण’ जैसी खबरें ही सुनने में आती थी पर, जब उनकी बात इतने भर से नहीं बनी तो अब ये इतने घृणित स्तर तक उतर आये कि दूसरे धर्म के अनुयायियों की जान लेने लगे फिर भले ऐसा करते समय खुद की ही जान क्यों न चली जाये जो कि बेहद चिंताजनक स्थिति है     
ऐसी विकट परिस्थितियों में ‘धार्मिक समन्वय एवं शांति के लिये व्यवहारिक सुझावों’ की सख्त जरूरत स्वतः ही महसूस होती है जिन्हें अपने व्यवहार में उतारकर मतभेद या उस घटिया सोच पर पाबंदी लगाईं जा सके जो अपने सिवा किसी को भी पनपने नहीं देना चाहती है इस हेतु मेरी तरफ से चंद सुझाव या परामर्श जो मुझे उपयुक्त लगते इस प्रकार है...

  १.    सबसे #पहली बात कि हम हर एक ‘व्यक्ति’ को इंसान / मानव समझे न कि उसे धर्म के चश्मे से देखें – पता नहीं ये हमारी सामाजिक व्यवस्था का दोष है या हमारी सोच कि हम जिस किसी से भी मिलते उसे जात-पात या धर्म नुमाईंदे के तौर पर देखते और इस नजरिये को जल्द-से-जल्द बदलने की जरूरत क्योंकि, हर व्यक्ति की रगों में दौड़ने वाले खून का रंग एक और जब हमें रक्त की आवश्यकता होती तो हम बिना उसका धर्म या जाति जाने बगैर उसे ग्रहण करते फिर जब हम किसी से मिलते तो उसे उसके धर्म के लेबल के हिसाब से क्यों पहचानते है उसे केवल इंसान या मानव क्यों नहीं समझते जिस दिन हमारी ये निम्न सोच बदल जायेगी तब देखना धार्मिक समन्वय की विचारधारा खुद-ब-खुद पनप जायेगी केवल मन की धरा पर उसका बीजारोपण करने की जरूरत है

  २.   #दूसरी अहम बात कि हम हर एक व्यक्ति की धार्मिक भावना का सम्मान करे उस पर अपनी आस्था न लादे – क्योंकि, ‘धर्म या ‘जात’ कोई पैरहन या कपड़े नहीं जो पुराने उतरकर नये पहन लिये जाये या फिर किसी को जबरदस्ती अपने वस्त्र पहना दिये जाये जैसा कि धर्मान्तरण के माध्यम से किया जाता जो साबित करता कि हम सबको एक ही रंग में रंगना चाहते जबकि, इन्द्रधनुषी रंगों से आसमान सुंदर लगता और अलग-अलग धर्मों से जमीन की सुन्दरता है । ऐसे में हमें हर एक व्यक्ति वो जिस भी धर्म या मान्यता में विश्वास करता हो उसका सम्मान करना चाहिये उस पर अपनी आस्था या धर्म थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिये क्योंकि, ‘धर्म’ व ‘जात’ वो जन्म के साथ ही लेकर पैदा होता जिसे बदल देने से उसका बाहरी स्वरुप भले अलग नजर आने लगे लेकिन, उसका मूल स्वभाव उसकी आंतरिक श्रद्धा तो बदलने से रही वो उसकी स्वाभाविक वृति है जो कभी नहीं बदलती । अपने प्रतीक चिन्ह या नया नाम दे देने से आपको भले ये लगे कि वो अब आपके जैसा बन गया मगर, वास्तव में कुछ नहीं बदलता तो इस तरह कुचेष्टा गलत अतः इसे रोकने का प्रयास करना चाहिये हर व्यक्ति को उसके निजधर्म के साथ स्वीकार करना चाहिये उसे बदलने की जो घटिया मानसिकता है वास्तव में वही धार्मिक समन्वय व शान्ति के मार्ग में बाधा है ।         

  ३.    #तीसरी बात कि अपने धर्म को ठीक तरह से जाने - अपने धर्म ग्रंथों को अपनी बुद्धि विवेक से समझे न कि दूसरों की गलत व्याख्या से अर्थ का अनर्थ समझे और विनाश की राह पर चले जैसा कि आजकल देखने में आ रहा है कुछ विशेष धर्म के लोग खुद को सुपीरियर मानकर दूसरे धर्म के अनुयायियों को ‘काफ़िर’ की संज्ञा दे देते और ये कहते कि इन्हें जीने का कोई हक नहीं बल्कि, इनको मारना तो खुदा की इबादत है । अर्थात ये खून-खराबे या हिंसा को धर्म के नाम पर जायज ठहराते तो सुनने वाले भी इसे दीन की सेवा समझ इसमें जुट जाते जिसके लिये वे जान देने या लेने जैसे जोखिम कदम उठाने को भी खुदा की राह में लिया गया फैसला समझते जबकि, यदि वे स्वयं अपने धर्म को जाने, अपने धर्म ग्रंथों का स्वयं अध्ययन करें और जो समझ में न आये उसे किसी सद्गुरु या अपने माता-पिता से क्लियर करें पर, कभी-भी किसी भी हाल में उनकी बात न माने जो अपने मिशन को सफल बनाने आपको अपना हथियार बनाकर इस्तेमाल करना चाहते है । उनके पास गये यदि तो वे आपको वही बतायेंगे जिससे उनका टारगेट पूरा हो और आप आतंकवादी या मानव बम में तब्दील होकर विधर्मियों को मारने पर उतर आओ वे इतनी नफ़रत आपके भीतर भर देंगे कि दूसरा आपको दुश्मन और उसकी जान लेना भी सबाब का काम लगेगा लेकिन, यदि आपने अपना धर्म खुद तलाशा और समझा तो आप एक ऐसी रूह में परिवर्तित हो जाओगे जिसे सभी जीवात्माओं में परम पिता परमात्मा नजर आयेगा फिर आप एक ऐसे इंसान होगे जो किसी आदमी तो क्या चींटी तक को भी कष्ट पहुँचाने की कल्पना मात्र से द्रवित हो जायेगा । जबकि, दूसरों के कहे अनुसार धर्म को समझा तो हिंसक हो जाओगे बन्दुक उठाकर दूसरों को मारने लगोगे जैसा कि ज्यादातर हमलों के पीछे की वजह जानने पर सामने आया पर, यह उपाय अमल में लाकर ‘आतंकी’ से ‘रूहानी’ बन जाओगे सनके प्यारे कहलाओगे ।

  ४.    #चौथा सुझाव कि ‘इंसानियत’ या ‘मानवता’ को ही मूल धर्म समझे – इस सृष्टि में ‘इंसानियत’ या ‘मानवता’ ही एकमात्र ऐसा धर्म जो दुनिया के समस्त मानवों को एकजुट करने की ताकत रखता है और यही वजह कि जब कोई निर्दोष-मासूम धर्म के नाम पर मारा जाता तो हर आँख नम होती भले उससे हमारा कोई परिचय या रिश्ता न हो क्योंकि, ‘आत्मा’ या ‘सोल’ या ‘रूह’ जिसे कहते एक ऐसा तत्व जो सबके भीतर समाया जिसकी कोई जाति या धर्म नहीं होता और जब हम आत्मदृष्टि से किसी को देखते तो वो अपना-सा लगता है । यही वजह कि हम सभी इंसानों से एक आत्मिक रिश्ता महसूस करते यही तो ‘इंसानियत’ है यदि हम सब इसे अपना ले तो किसी में कोई भेदभाव न रहे और धार्मिक समन्वय भी कायम हो जाये, मगर अफ़सोस कि ये सब जानते हुये भी हम इंसानों को अलग-अलग दबड़ों में देखने के आदि हो चुके इसलिये ‘इंसानियत’ दोयम दर्जे पर है और ‘धर्म’ ने प्रथम स्थान पर कब्जा जमाया हुआ है जबकि, ‘संप्रदाय’ व्यक्तिगत व ‘मानवता’ सार्वजनिक धर्म होना चाहिये ।

  ५.    #अंतिम सुझाव खुद को सर्वश्रेष्ठ न समझे – अब वापस उसी बिंदु पर लौटते जिससे इस विषय की शुरुआत की थी कि अपने को सुपीरियर समझने की भूल ही इस समस्या के मूल में है उसकी शर्ट मेरी शर्ट से ज्यादा सफेद की सोच ने पूरी दुनिया में धार्मिक उन्माद या आतंकवाद फैला रखा है इसलिये हम धार्मिक स्तर पर सबको सम या बराबर देखने का दृष्टिकोण विकसित करने की जरुर जिससे इस भीषण समस्या का न केवल अंत हो जायेगा बल्कि, सब धर्मों के लोग आपस में घुल-मिलकर रहते हुये ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की उस प्राचीन मान्यता को फिर विश्वस्तर पर स्थापित कर मानवता की अखंड ज्योत जलाकर दुनिया को मिटने से बचा सकेंगे आखिरकार, अनेकता में एकता ही हमारी विशेषता जो है ।     

अंत में किसी की लिखी ये पंक्तियाँ याद आ रही है जो इस विषय पर एकदम सटीक बैठती है...

मैंने गीता और कुरान को
कभी लड़ते नहीं देखा
और जो लड़ते है
उन्हें इसे कभी पढ़ते नहीं देखा

इसी के साथ मैं ये आह्वान भी करती हूँ कि आओ हम ‘मानवता’ के पथ पर चलकर सर्वधर्म के बीच बढ़ती वैमनस्यता को समाप्त करने का बीड़ा उठाये अब इसके सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २५, २०१९

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११४ : #खेद_प्रकट_करने_वालों_से_बचे #बहत्तर_हजार_के_जुमले_में_न_फंसे



(कृपया करदाता विशेष ध्यान दे...)

सुप्रीम कोर्ट के हवाले से दिये गये 'चौकीदार चोर है' वाले बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर खेद प्रकट किया साथ ही अपने बयान पर सफाई देते हुए राहुल गांधी ने कहा है कि, “चुनाव प्रचार के दौरान उत्तेजना में उनके मुंह से यह बयान निकल गया था”

महज़ दो दिन पूर्व की खबर है जिसने देश के सभी मुख्य पृष्ठों पर सुर्खियाँ बटोरी फिर भी समस्त मतदाता तो अख़बार पढ़ते नहीं और न ही टेलीविजन देखते या सोशल मीडिया पर ही रहते तो ऐसे में ज्यादातर को तो ये पता ही न होगा और जिन्हें पता भी तो उन्होंने इसे इस पहलू से सोचा न होगा कि, जो व्यक्ति अपने कहे शब्दों के लिये देश के सर्वोच्च न्यायालय में लिखकर खेद व्यक्त कर अपनी ही कही बात से मुकर जाये उसका क्या भरोसा कल को वो अपने घोषणा पत्र में लिखे वायदों पर भी इसी तरह से प्रतिक्रिया दे सकता है । वैसे भी वो केवल चुनाव में चंद वोट हथियाने का हथकंडा मात्र है तो उससे मुकरना कोई आश्चर्य की बात नहीं और वैसे भी इस देश में किसी राजनैतिक दल को मेनिफेस्टो में लिखी अपनी घोषणाओं को पूरा करना न तो आवश्यक होता और न ही कोई नैतिक जिम्मेदारी होती इसलिये सभी पार्टीज के पास वोटरों को लुभाने आकर्षक वादे होते है ।

‘देश के 5 करोड़ परिवार या 25 करोड़ लोगों को सालाना 72 हजार रुपए मिलेंगे’ जिस तरह विधानसभा चुनाव के ठीक पहले किसानों के 2 लाख रूपये तक की कर्जमाफ़ी का जुमला एक सोची-समझी साजिश के तहत उछाला गया था ठीक उसी तरह लोकसभा चुनाव में ये नया वाला नारा लाया गया है जिसे बड़ी खुबसूरती से ‘न्यूनतम आय योजना’ व ‘न्याय’ जैसे शब्दों के रैपर से इस तरह पैक किया गया है कि जिस तरह लुभावनी पैकिंग देखकर उपभोक्ता या बच्चा मचल जाता कि हमें तो यही लेना है भले घर लाकर उसे खोलने पर ठगे जाने का अहसास हो मगर, उस वक़्त तो उसका वो आकर्षक रूप इस कदर मन मोह लेता कि कुछ भी नहीं सूझता बस, जैसे भी हो उसे खरीदने का मन बना लेता ऐसा ही इस मामले में होने की सम्भावना क्योंकि, उन्होंने इसके साथ ‘पायलेट प्रोजेक्ट’ जैसे अंग्रेजी वर्ड का भी प्रयोग किया पर, कितनी भोलीभाली जनता जो इसे जानती-समझती है वो तो सिर्फ अपना फायदा ही देखती है ।

इसलिये जैसे ही सुनती कि फलाना कम्पनी कोई छूट या मुफ्त उपहार दे रही या किसी सेल में सस्ते दाम पर बचा हुआ सामान बिक रहा भीड़ टूट पड़ती वो तो वहां जाकर ही पता चलता कि ये तो उन्हें उन तक खींचकर लाने का इक विज्ञापन मात्र था जिसमें ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ वाली लाइन बड़े शातिराना तरीके से छोटे-छोटे हर्फों में इस तरह से नीचे लिखी जाती कि उस पर आसानी-से नजर ही न जाती आखिर, उनका उद्देश्य भी तो केवल ग्राहकों को किसी भी तरह से बहला-फुसलाकर दुकान तक लाना होता फिर उसे किस तरह मूर्ख बनाना या अपना उत्पाद बेचना ये दुकानदार पर निर्भर करता वैसे भी यदि व्यापारी चालाक होता तो जैसा कि कहा गया है है कि ‘एक सफल सेल्समैन वही होता जो एस्किमो को बर्फ और गंजे को कंघी बेच दे’ जो इस श्रेणी के सयाने बिजनेसमैन वो कामयाब हो जाते अपने मकसद में फिर बेचारा कस्टमर किश्त के रूप में खामियाजा भुगतता रहता अपने ठगे जाने की कीमत इन्सटॉलमेंट में भरता ठगे जाने का ये सिलसिला चुनाव दर चुनाव इसी तरह चलता रहता पर, इसके बावजूद भी कोई उसे नहीं चुनता जो वाकई इसका हकदार है ।

पिछली दफा का 2 लाख वाला वादा भी ऐसी ही कई छिपी हुई शर्तों के साथ बंधा था जो बाद में पता चली इसलिये जब फिर ऐसा ही ऑफर दिया जा रहा तो उसे केवल सुने नहीं बल्कि, किसी चतुर सुजान की तरह उसका पोस्टमार्टम करे कहीं इसमें भी तो कोई ऐसी T&C नहीं जिसे फ़िलहाल ज़ाहिर नहीं किया हो और सत्ता में आते ही बताया जाये तब सर धुनने के सिवा कोई विकल्प न होगा क्योंकि, इसे पायलेट प्रोजेक्ट कहना कुछ ऐसा ही दर्शाता है जिस पर ज्यादातर लोगों का ध्यान ही नहीं गया अतः ये विचार कर ले एक बार कि न तो इसे जल्द लागू किया जायेगा और न ही उन सबको इसका लाभ प्राप्त होगा जिनका जिक्र किया जा रहा है क्योंकि, इसे दो चरणों में क्रियान्वित करने की बात इतने दबे शब्दों में कही गयी कि 72 हजार के शोर में दब गयी तो कृपया उस विडिओ को दुबारा देखे व जो कहा गया उसे बड़े गौर से सुने दूसरी बात कि इसके ऐलान के साथ ही रेडीमेड पोस्टर्स के जरिये प्रचारकों ने कहना शुरू कर दिया कि, “यदि मेरे एक वोट से किसी गरीब का फायदा होता गई तो मेरा वोट फलाना-ढीमकाना पार्टी को” जो किसी सोची-समझी साजिश की तरफ इशारा करता है ।                 

यदि आप सचमुच ये सोचकर मत देने का मन बना रहे कि इससे किसी वंचित या सच्चे व्यक्ति का भला होगा तो ये बहुत अच्छी बात फिर भी कम से कम इस पर तो अपने मस्तिष्क के घोड़े जरुर दौडाये कि बेरोजगारी का आंकलन किस तरह किया जायेगा जबकि, आप चाय वाले, पकौड़े तलने वाले, चाट वाले, रिक्शे वाले, अख़बार बेचने वाले अपनी काबिलियत से चार पैसे कमाने वाले, गृह कार्य करने वाले सहायक/सहायिकाओं या ऐसे ही छोटे-मोटे रोजगार करने वालों को भी बेरोजगार समझते है ऐसे में संभव कि वे अपना काम-धंधा छोड़कर आपके पाले में आ सकते या फिर अपना नाम छिपकर आपसे ये आय लेते रह सकते है क्योंकि, बेरोजगारों का तो कोई पंजीयन नहीं, न ही कहीं नामांकन तो इस तरह केवल 20 फ़ीसदी नहीं सब आपकी योजना के हकदार लेकिन, जिनको सचमुच इसकी जरूरत उनको आईडेंटिफाय करना मुश्किल ऐसे में लग रहा जिस तरह संसद में कागज के प्लेन उड़ाते या आंख मारते उसी तरह बिना किसी ठोस प्लान के हवा में ये तीर चला दिया गया है

चलो ये एक बार ये मान लिया जाये कि किसी तरह बेरोजगारों का चयन कर ही लिया गया तो ये किस तरह से कह सकते उसमें रोहिंग्या / अपराधी / आतंकवादी / फर्जी शरणार्थी / धोखेबाज / झूठे प्रमाणपत्र वाले शामिल नहीं होंगे इस तरह तो जो टैक्स पेयर या व्यक्ति गरीबों के हितार्थ अपना कीमती वोट देगा वो धोखा खायेगा कि उसने अनजाने में आतंकियों की सहायता कर दी उन्हें देश पर हमला करने हथियार खरीदने सरकारी खजाने में से सहयोग राशि दिलवा दी और ये नामुमकिन या इसकी सम्भावना नहीं इससे इंकार नहीं किया जा सकता अतः जो इसके दायरे में नहीं उन शेष मतदाताओं बोले तो देश की आबादी के एक फ़ीसदी टैक्स पेयर्स जिन पर इनका बोझ डाला जाना है को इस तरह की बातों या पहलूओं पर ठंडे दिमाग से विचार करने की सख्त जरूरत है क्योंकि, उनकी कमाई से दिये गये टैक्स से ही इसे अमल में लाया जायेगा अतः समस्त करदाता इसे अवश्य पढ़े और समझने की कोशिश करें कि क्या वाकई आपका वोट किसी के काम आने वाला है ???

सनद रहे कि एक ही गड्ढे में तो ‘गधा’ भी दुबारा नहीं गिरता फिर यहाँ तो चौथी पीढ़ी आ गयी वही झुनझुना लेकर ‘गरीबी हटाओ’ जब वो उनके 55 साला शासन में न हटी तो अब क्या हटेगी कहीं ऐसा न हो कि आप अपना वोट देकर साबित कर दो कि ‘गधा ही दुबारा नहीं गिरता’ तो अंतिम फैसला आपका, आखिर वोट भी तो आपका है

#दिखावे_में_न_आओ_अपनी_अक्ल_लगाओ             
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २४, २०१९

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११३ : #किताबें_खो_रहीं #बचा_लो_हमें_कह_रहीं




●●●
सोचो...
‘किताबें’
जो न होती अगर
जान पाते कैसे
सुनहरा अतीत अपना
मिलती कहाँ से 
ज्ञान-विज्ञान की बातें
धर्म की गाथाएँ
पहचानते किस तरह
मोतियों जैसे वर्ण
समझते कैसे
जीवन का ककहरा
सीखते फिर किस तरह
गिनती और पहाड़े
उलझ जाते
रिश्तों के गणित
जान पाते न कभी हम
शब्दों के गूढ़ अर्थ
लिखना-पढ़ना भी तो न आता  
कि पुस्तकों से ही सीखा
अक्षर होता ‘ब्रम्ह’
मिटाता जो हर एक भ्रम   
....
‘किताबें’
न होंगी अगर तो
खो जायेगा
छिपा वो रहस्य
साथ उनके
बड़े जतन से खोजा जिसे
सदियों की परतों से
विद्वान और मनीषीयों ने   
देकर गये हमको
गौरवशाली वो इतिहास
गर्व करते है जिस पर हम
हो रहा सुलभ आज
इंटरनेट’ के जरिये भले  
कल को हो सकता
अंतरिक्ष में फिर गुम
हो जायेगा तब्दील
उन्हीं सूक्ष्म कणों में दुबारा   
मुश्किलों से किया गया
परिवर्तित जिनको
बनाया अक्षर-अक्षर ‘ब्रम्ह’
हो न जाये पुनः भ्रम   
……….●●●

#World_Book_and_Copyright_Day

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २३, २०१९

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११२ : #गंगा_सप्तमी_और_पृथ्वी_दिवस #प्रकृति_सरंक्षण_के_प्रति_करे_सजग



‘पृथ्वी’ और ‘जल’ दोनों के बिन जीना नामुमकिन होगा कल...

ये हम सब जानते-समझते फिर भी गाफिल रहते कि अभी भी पीने को दो घूंट पानी तो रहने को सर पर छत और जरूरत भर जमीन मुहैया हो रही है ऐसे में लगता जिस दिन इनके लिये युद्ध छिड़ेगा शायद, तभी हमारी आँख खुलेगी नहीं तो अलार्म तो रोज ही बज रहा है हम ही कान बंद कर के बैठे है आज भी यही होगा कि ये दिवस मनाया जायेगा चंद बातें की जाएगी संदेशों की भरमार होगी मगर, आज के बाद कल जिस तरह चल रहा उसी तरह सब चलता रहेगा जबकि, खतरे के संकेत मिलना शुरू हो चुके है सनद रहे कि ‘प्रकृति’ व ‘जल’ ही ऐसी चीज़ जिसक हम निर्माण नहीं कर सकते केवल सरंक्षण ही हमारे हाथ में है पर, ये जानने के बाद भी केवल चंद लोग ही है जो इसके प्रति सजग होकर मुहीम चला रहे या अपने स्तर पर कोई प्रयास कर रहे है

जिनका जिक्र पढकर भी हमारे भीतर वो जज्बा नहीं जगता जो हमें भी उनकी तरह धरातल पर उतरकर कुछ कर गुजरने को प्रेरित कर सके पर, अब जिस तरह से दुनिया के हर कोने से खबरें आ रही हम सबका ये कर्तव्य बनता कि हम अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी ही यदि निभा ले तो आने वाले विश्व युद्ध को रोक सकते है जिनके केंद्र बिंदु यही दो मुख्य घटक होंगे उस वक़्त पछताने या रोने की जगह यदि हम आज से भी भविष्य की सुरक्षा के जतन करें तो जिस तरह हमारे पूर्वजों ने हमारे लिये हरी-भरी वसुंधरा की व्यवस्था की हम भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को कुदरत की सौगात देकर जायेंगे न कि जल, वायु और धरा का ऐसा अभाव जिसकी वजह से मानव के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाए वैसे भी हमें अपनी स्वार्थान्धता के कारण वन, जंगल और वन्य प्राणियों व वनस्पतियों को तो नष्ट कर ही दिया अब जो बाकी बचा उसे सहजने की सख्त जरूरत है

यही याद दिलाने प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ का आयोजन किया जाता और आज तो अद्भुत संयोग कि उसके साथ ही ‘गंगा सप्तमी’ या ‘गंगा अवतरण दिवस’ भी है जो हमें इन दोनों की महत्ता ही नहीं बता रहा बल्कि, बचाव के लिये भी सचेत कर रहा है क्योंकि, जीवनदायिनी ‘गंगा’ हमारे लिये महज एक नदी नहीं आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टिकोण से भी वो हमारे लिये पूजनीय है हम तो धरती को भी ईश्वर मानते और ऐसा करने के पीछे हमारे बुजुर्गों को यही एकमात्र उद्देश्य कि हम इन्हें इस बहाने ही सही सुरक्षित रखे पर, न जाने कैसा समय आया कि ये सब बातें हमें बैकवर्ड लगने लगी और आधुनिकता के चक्कर में हम कुदरत से लगातार दूर होते गये और आज खुद एक कृत्रिम मशीन की तरह बन गये जिसके अंदर संवेदनाएं भी इनकी ही तरह खत्म होती जा रही है जिसे बचाने अब एकजुट होकर आगे आना होगा यही इसकी सार्थकता भी है        

‘गंगा’ और ‘पृथ्वी’
दोनों के बिना जीवन नहीं
बचाये इनको हम
कदम उठाये आज अभी

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २२, २०१९

रविवार, 21 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१११ : #आतंकवाद_का_कोई_मजहब_नहीं #पर_कोई_भी_धर्म_इसके_हमले_से_बचा_नहीं




दुनिया के हर कोने में इस पखवाड़े किसी न किसी धर्म का कोई न कोई पर्व मनाया गया जिसकी वजह से फिजाओं में उत्सवी रंग घुल हुआ चाहे वो ‘दुर्गा उत्सव’ हो या ‘राम नवमी’ या ‘वैशाखी’ या ‘महावीर जयंती’ या ‘शबे-बारात’ या फिर ‘ईस्टर संडे’ हो तो एक तरह से ये ऐसा दौर जब सभी अपने-अपने परिवार के साथ हंसी-ख़ुशी से इसे मनाने में लगे हुये पर, ऐसे आनंद के अवसर पर पहले भी शोक की हवायें चली थी और आज फिर ऐसा ही दर्दनाक व बर्बर हमला हुआ उन निर्दोष-बेकुसूरों लोगों पर जो ईस्टर की प्रार्थना के लिये चर्च में एकत्रित हुये थे और नहीं जानते थे कि दुआ में उठे हाथ वैसे ही फैले रहे जायेंगे घर वापस जाकर परिजनों के साथ मिलकर छुट्टी और फेस्टिवल दोनों को एन्जॉय करेंगे मगर, जो भी सोचा गया था वो पूरा होने के पहले ही ऐसे पवित्र स्थान पर आतंकियों ने जिनका कोई मजहब या धर्म नहीं होता उन लोगों को जो अपने रिलीजन के एक बेहद खुशियों से भरे दिन प्रभु यीशु के समक्ष प्रेयर कर रहे थे तब न जाने वो कौन थे जिन्होंने बड़ी निर्दयता से इन मासूम लोगों को धमाके भरी मौत दे दी जिसने एक बात फिर ये साबित कर दिया कि आतंकियों का वाकई कोई मजहब नहीं होता

क्योंकि, यदि उन्होंने सचमुच धर्म को समझा या ग्रहण किया होता तो वे किसी भी इंसान पर इस तरह का खतरनाक आक्रमण करना तो दूर सोचा भी नहीं सकता था क्योंकि, दुनिया का कोई भी धर्म ऐसा नहीं जो खून-खराबे की शिक्षा देता हो या जो उनके धर्म को नहीं मानता हो उसे जबरन उसे अपनाने या फिर उनका नामो-निशान मिटाने के लिये दबाब बनाता हो ये केवल वही कर सकता जिसका सपना पूरी दुनिया में एकमात्र अपना परचम लहराने या अपना एकछत्र राज्य कायम करने का हो लेकिन, जिहाद के नाम पर लोगों को भड़काने वाले मजहब को हथियार बनाकर मासूमों के दिलों-दिमाग पर कब्जा कर लेते और फिर उनसे मनमाना काम करवाने वाले ये नहीं सोचते कि ऐसा मुमकिन ही नहीं पहले भी कई आक्रमणकारी ऐसा घिनौना मकसद लेकर इस धरती पर आये मगर, कामयाब कोई न हुआ और न कभी होगा कि भारत हो या देश का कोई मुल्क ऐसा करने वालों पर शिंकजा कसना जानता है और आतंकवाद के मामले में भी सारी दुनिया एक साथ है क्योंकि, ऐसा कोई देश नहीं जो इसकी बुरी नजर से बचा हो कुछ दिनों पूर्व न्यूजीलैंड और अब श्रीलंका में हुये ये सीरियल ब्लास्ट यही दर्शाते कि इस मामले को अब अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है ताकि, जीने का अधिकार जो कुदरत ने उसे दिया उसे कोई छीन ले और जहाँ शांति स्थापित होना चाहिये वहां चीख-पुकार मचे

आखिर, उस परम पिता परमेश्वर ने इस सृष्टि का निर्माण प्रेमपूर्वक रहने के लिये किया न कि आपस में लड़कर मरने के लिये पर, जिन्हें ये बात समझ में नहीं आती उन्हें किस तरह से ये समझाया जाये किस तरह उनका ब्रेन वाश किया जाये कि ‘आतंकवाद’ के जरिये सबको खत्म करने के बाद क्या ? जब आपस में लड़ मरना है तो उसके लिये इतना खून-खराबा क्यों ?? आत्मघाती हमला कर अपनी जान देते किसके लिये ???

काश, कोई इन्हें बता दे कि ‘मज़हब’ को किसी शातिर से समझने की जगह पढ़ लो और किसी की कठपुतली बनने की जगह खुद के इशारों पर चलो और ‘आतंक’ से कभी-भी किसी का भला नहीं हो सकता और अपनी जान देकर दूसरे को मारकर किसको जीवन दे रहे हो वो जो आपको मौत के मुंह में ढकेल कर खुद सुरक्षित अपने खेमों में बैठे कम से कम इतना तो सोचो कि जो ये आपसे आत्मघाती हमले करवाते वो खुद क्यों नहीं आगे आते अपनी जान देने क्योंकि, वे जानते है कि जब तक आप जैसे अक्ल के अंधे उनके पास है कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ऐसे में समझो इनकी साजिश को और जान ही देना है तो फिर देश के लिये दो क्यों मुफ्त गंवाकर ‘आतंकी’ कहलाते हो मरकर भी बद्दुआ लेते हो तुम जिसे मज़हब की सेवा समझ रहे दरअसल ये गद्दारों का सेवक बनना है                

आज कोलम्बो में हुये सिलसिलेवार धमाकों में घायल हुये लोगों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना व मृतात्माओं परिजनों के लिये शोक संवेदना व्यक्त करने के साथ ही आतंकवाद के समूल नष्ट होने समस्त विश्व को एकजुट होने का आह्वान करते है    
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २१, २०१९