गुरुवार, 31 जनवरी 2019

सुर-२०१९-३१ : #हम_जरा_से_नकारात्मक_क्या_हुये #कई_चेहरों_के_नकाब_अनायास_उतर_गये




'तुष्टिकरण' ये शब्द अपने आप में कितना घातक इसका अनुभव कल बहुत अच्छे से हो गया इस एक शब्द के वास्तविक मायने को समझाने कल शहीद दिवस पर 'महात्मा गांधी' के संदर्भ में कुछ तथ्यों के आधार पर एक पोस्ट क्या लिख दी समस्त गांधी भक्त अपनी असलियत पर उतर आये वे गांधीजी जो विनम्रता पूर्वक अंग्रेजों के सामने तक अपनी बात रखते थे उनके समर्थन में उतरे उनके तथाकथित भक्त कल सारी मर्यादाएं-नैतिकता ताक पर रखकर अभद्रता के हर स्तर को टिप्पणी दर टिप्पणी पार करते गये यहां तक कि पोस्ट से जी न भरा तो इनबॉक्स तक अपनी गांधीगिरी दिखाने आ गये तब यकीन हो गया ये केवल ऊपरी तौर पर कहने को गांधी समर्थक है मगर, अंदर से वही जैसे इनबॉक्स में नजर आ रहे तब लगा कि क्या वाकई ये गाँधीजी को समझते है क्योंकि, जिसने गांधीजी को एक बार भी अंतर से समझ लिया उसके भीतर समस्त द्वेष खत्म हो जायेगा मन में किसी तरह का विकार शेष न रह जायेगा और कोई विरोध भी होगा किसी से तो शालीनता से अपनी बात रखेगा न कि गाली-गलौच का सहारा लेगा पर, इनका उद्देश्य तो सामने वाले को भड़काकर उससे झगड़ा मोल लेना है ।

गाँधीजी भी यदि इसी नीति से चलते तो उस लक्ष्य को हासिल न कर पाते और हमने कल जो भी लिखा उसका एकमात्र उद्देश्य केवल उस एक पक्ष को सामने रखना था जिसे उनकी मृत्यु का आधार समझा जाता न कि गोडसे को सही ठहराना या गाँधीजी या किसी मजहब विशेष के खिलाफ लिखना जैसा कि इनके द्वारा प्रचारित किया गया चूंकि हमारा लेखन अपने देश के शहीदों, क्रांतिकारियों, महापुरुषों, वीरों, साहित्यकारों और किसी भी क्षेत्र विशेष में देश का नाम रोशन करने वालों को समर्पित रहता तथा सदैव केवल सकारात्मकता को ही सामने रखने का प्रयास रहता है अतः किसी भी चरित्र के उजले पक्ष को ही उकेरते है जब से फेसबुक पर लिख रहे पिछले पांच सालों में गाँधीजी की जयंती व पुण्यतिथि पर लगभग 10 से अधिक पोस्ट्स लिख चुके जिन पर उनके जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर अपना नजरिया रखा पर, लोग सकारात्मकता नहीं नकारात्मकता पर ही अपनी राय रखते इस बात की भी कल पुष्टि हो गयी ।

कल एक बेहद चौंकाने वाला अनुभव भी हुआ जिसके बारे में सुनते तो बहुत थे पर, कभी अवसर न आया ऐसे में आश्चर्य अधिक न हुआ वरन, अफ़सोस हुआ कि जिन्हें हम बुद्धिजीवी समझकर अपना मित्र बनाते दरअसल वे तो किसी के हाथों की कठपुतली है और यहाँ गैंग बनाकर उनको रोबोट्स की तरह निर्देशित किया जाता है । वाकई, आप सबको विश्वास नहीं होगा कि यहाँ बाहर से सभ्य नजर आने वाले असलियत में इतने असभ्य है कि वे अपनी बात के विरुद्ध कुछ भी बर्दाश्त नहीं करते और जब बात सीधे तरीके से नहीं जमती दिखती तो दबाब तक बनाते और आपके खिलाफ पोस्ट लिखकर आपसे जुड़े मित्रों को अमित्र करने की खुलेआम धमकी देते याने कि यहाँ भी दादागिरी चलती है । ऐसे में जब कुछ लोग अलग हुये तो तनिक भी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि, ऐसे लोगों को दोस्त बनाकर करना भी क्या जिनके दिमाग किसी दूसरे के पास गिरवी रखे हो, जिनको अपने निर्णय लेने या अपने दोस्त चुनने तक की आज़ादी न हो और जो दूसरे के आदेश पर चलते हो जिनकी रीढ़ की हड्डी ही गायब हो ।

कल ये भी सिद्ध हो गया कि ईश्वर जो भी करता अच्छे के लिये ही करता कल न जाने कैसे एकाएक ही कुछ पढ़ते, कुछ सुनते तुष्टिकरण को गांधीजी के संदर्भ में प्रयोग करने की प्रेरणा प्राप्त हुई और बस, गाँधी भक्तों के मुखौटे उतर गये एक ने भी पोस्ट को पूरा पढ़ा हो या समझा हो संदेह है क्योंकि, किसी ने भी उसमें लिखी बात को गलत साबित करने कोई तथ्य या जानकारी नहीं दी बस, एक-दूसरे की देखा-देखी कमेंट्स करते रहे । सबसे बड़ी बात कि जो सालों से मित्र होते हुये भी कभी पोस्ट पर नहीं आये कल अपने मालिक से आदेश पारित होते ही एक-एक कर के आते गये और जो दिया गया था उसे पेस्ट करके जाते गये किसी ने भी अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया करता भी कैसे वो तो गिरवी रखा हुआ है । ऐसे में बहुत जरूरी कि हम जब भी किसी की पोस्ट पर कमेन्ट करें तो उसे पढ़े जरुर और उसके लिखे पर बात करे न कि उसे चरित्र प्रमाण पत्र बांटने लग जाये जबकि, आप उसे जानते तक नहीं हो और हर किसी को अपनी तरह भक्त, गुलाम या चमचा न समझे क्योंकि, सब आपकी तरह किसी के कहने मात्र से नहीं चलते । अपने मन में जो आये वो लिखे न कि जो आपसे कहा जाये वो, साथ ही किसी मदारी के जम्बुरे की तरह हुकुम का पालन न करें बल्कि, अपने स्वतंत्र अस्तित्व होना का प्रमाण दे कल की कार्यवाही देखकर तो निराशा हुई कि जिन्हें हम आज तक अच्छा लेखक समझते थे, जिन्हें खुद आगे बढ़कर अपना मित्र चुना था वे तो किसी के चिराग के जिन्न निकले जो उसके इशारे पर क्या हुक्म मेरे आका कहते है ।
            
(विगत ५ वर्षों में लिखी गाँधी सम्बन्धी पोस्ट कमेन्ट बॉक्स में है जो साबित करती कि हम गाँधी विरोधी नहीं है केवल अलग-अलग पहलुओं पर लिखने की कोशिश करते है)

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी ३१, २०१९

बुधवार, 30 जनवरी 2019

सुर-२०१९-३० : #कांग्रेस_के_भीष्म_पितामह #महात्मा_गाँधी_बने_पक्षधर




तुष्टिकरण की राजनीति किस हद तक घातक और खतरनाक हो सकती है इसका जीवंत प्रमाण ‘महात्मा गाँधी’ है जिनकी मौत की वजह यही थी कि वो बंटवारे के बाद जबकि, मुसलमानों को उनका हक, उनकी हिस्सा दे दिया गया था फिर भी उनके हितों की रक्षा के नाम पर अनशन करने जा रहे थे जो नागवार तो अनेकों को गुजरा मगर, एक था ‘नाथूराम गोडसे’ जिसे ये किसी भी कीमत पर मंजूर न था कि अखंड भारत को खंडित करने के पश्चात् हिन्दुओं के हिस्से में से उनका हक भी छीनकर दूसरों को दिया जाये

इसलिये उसने मन में ठान लिया कि वो महान हस्ती जिसने देश की आज़ादी के लिये लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसे देश का हर एक व्यक्ति न केवल पसंद करता है बल्कि, उन्हें प्रेम से ‘बापू’ और ‘महात्मा’ तक कहता है उसकी हत्या कर देना है ये कुछ उसी तरह का मामला था जैसे कि कोई पिता अपनी सम्पति में से किसी एक पुत्र को अधिक हिस्सा दे तो दूसरे की नाराजगी स्वाभाविक है मगर, यदि वो सहिष्णु हो तो खामोश रहकर इस अन्याय को सह लेता है मगर, जो न्याय के पक्षधर होते वे अर्जुन की तरह अपनों के ही खिलाफ़ युद्ध के लिये खड़े हो जाते फिर चाहे अपनों को मारकर ही उसे प्राप्त करना पड़े पीछे कदम नहीं हटाते क्योंकि, उन्हें पता होता है कि धर्म युद्ध में यदि ऐसे अपनों को छोड़ दिया जाये तो आगे जाकर वे परेशानी खड़ी कर सकते है

जैसा कि इस मामले में हुआ केवल ‘महात्मा गाँधी’ ही मारे गये पर, उनकी ‘कौरव सेना’ शेष रही जिसका खामियाजा न जाने कितनी पीढियां भुगत रही और न जाने कब तक झेलती रहेगी वो भी तब जबकि, अब न तो कोई ‘धर्मराज’ है और न ही कोई ‘अर्जुन’ या ‘भीम’ ही है ये पक्षपात देखकर जिसका खून खौलता हो अब तो सब सियासत में अपना-अपना हिस्सा पाकर मस्त है, अपने में ही व्यस्त है, मुफ्तखोरी ने उनकी जुबान पर ताले तो चाटुकारिता ने पैरों में बेड़ियाँ डाल दी है ऐसे में किसी को दूरगामी भविष्य दिखाई नहीं दे रहा कि किस तरह कौरव सेना बढ़ती जा रही है

ऐसे में पांच पांडवों को उस नारायणी सेना व सारथी की की बेहद जरूरत जो उनको सही दिशा दे सके क्योंकि, बिना संगठित हुये इस जंग को जीतना कठिन है अब परिस्थितियां ही नहीं मानसिकता भी बदल चुकी है जिनकी सफाई इतनी आसान नहीं क्योंकि, अब सोच का दायरा देश नहीं स्वार्थ है वो देश जिसे बंटवारे के समय ही ये निश्चित कर लेना था कि वो लोग जो धर्म के नाम पर बंटवारा चाहते है वे उसी समय सपरिवार दूसरे हिस्से में चले जायेंगे तो आज भारत का मानचित्र व तस्वीर ही कुछ अलग होती और रोज-रोज का ये झगड़ा एक बार में ही खत्म हो जाता पर, उन्होंने तो इसे स्वैच्छा पर छोड़ दिया जिसकी वजह ‘महात्मा गाँधी’ ही थे

१९४७ के बंटवारे में की गयी लम्हों की खता न जाने कितनी सदियों तक भुगतनी होगी, न जाने कब तुष्टिकरण व पक्षधरता की राजनीति खत्म होगी और न जाने ये सोच कितने ‘नाथुराम गोडसे’ पैदा करेगी जो न जाने कितनी जानें लेगी । ३० जनवरी की सुबह यही याद दिलाती है क्योंकि, अब कोई नहीं चाहता कि फिर से देश बंटे और फिर ‘महात्मा गाँधी’ की हत्या हो अब तो यही सबकी ख्वाहिश कि सब अपने इन क्रांतिवीरों की शहादत से सबक लेकर एक बने, नेक बने... देश तरक्की करें जिसमें भेदभाव न हो, न कोई तुष्टिकरण... जय हिन्द, जय भारत... वन्दे मातरम...  🇮🇳️ 🇮🇳️ 🇮🇳 !!!

हे राम...! हे राम...!! हे राम...!!!     

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी ३०, २०१९

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२९ : #प्रार्थना_का_भी_धर्म_खोज_लाये #षड्यंत्रकारी_फिर_नया_मुद्दा_ले_आये



इस देश को लगातार तोड़ने की साजिशें चल रही है जिसका आधार कभी जात-पात तो कभी मज़हब होता है और जब कुछ नहीं बचता तो ऐसे मुद्दे खड़े कर लिये जाते है जिसके द्वारा सीधे उसकी जड़ों पर हमला किया जा सके जिससे कि उसे समूल नष्ट किया जा सके क्योंकि, वो देश जिस पर न जाने कितने आक्रमण हुये, वो देश जिसकी सभ्यता-संस्कृति को मिटाने न जाने कितने आतातायियों ने दुष्प्रयास किये मगर, कोई कभी-भी सफल नहीं हो पाया और बार-बार गिरकर भी फिर ये अपने पैरों पर खड़ा हो गया सिर्फ इस वजह से क्योंकि, कोई भी उस जमीन को नहीं हिला पाया जिस पर ये देश खड़ा है तो ऐसे में अब उसकी नींव पर वार करने का षडयंत्र रचा जा रहा है जिसके कारण आये दिन कोई न कोई ऐसा मसला सामने आ ही जाता जिसके द्वारा इस देश की आधारशिला को कमजोर करने की कुचेष्टा की जाती है

अभी आज ही समाचार पत्रों में मुख पृष्ठ पर जो पढ़ा वो बेहद शॉकिंग था जिसके अनुसार जबलपुर के एक वकील विनायक शाह ने शीर्ष अदालत (सुप्रीम कोर्ट) में दायर याचिका में कहा है कि देश के सभी ११२५ केंद्रीय विद्यालयों में वर्ष 1964 से हिंदी और संस्कृत भाषा में जो प्रार्थना कराई जा रही है वो असंवैधानिक है जिसके लिये उनकी दलील है कि संविधान का अनुच्छेद 25 और 28 इसकी अनुमति नहीं देता क्योंकि इन स्कूलों को सरकार से सहायता दी जाती है ऐसे में उन्हें धार्मिक मान्यताओं और एक संप्रदाय विशेष को बढ़ावा नहीं देना चाहिए उनका ये भी मानना है कि इस तरह की प्रार्थनाएं वैज्ञानिक चेतना के विकास में बाधा खड़ी करती हैं । जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय विद्यालय संगठन के संशोधित एजुकेशन कोड को चुनौती दी है इसके तहत हर छात्र के लिए सुबह की प्रार्थना अनिवार्य है । याचिका में कहा गया है कि सभी केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना लागू है इस सिस्टम को नहीं मानने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को भी इसे मानना पड़ता है मुस्लिम बच्चों को हाथ जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता प्रार्थना के बजाय बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करनी चाहिए।

वो प्रार्थना जिसमें बच्चों द्वारा विद्या दान की मांग की जाती हो और खुद को सत्य के मार्ग व अंधकार से उजाले की तरफ ले चलने की याचना की जाती हो वो किस तरह से किसी धर्म विशेष से जुड़ सकती है साथ ही ये भी विचारणीय है कि वो किस तरह से बच्चों के मानसिक विकास में अवरोध पैदा कर सकती है या उनकी वैज्ञानिक चेतना को विकसित होने से रोक सकती है इसके अतिरिक्त जो दलील दी गयी वो तो एकदम हास्यास्पद है कि केन्द्रीय विद्यालय सरकारी सहायता से चलते अतः वो किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने का काम नहीं कर सकते इस आधार पर तो तमाम मदरसों में भी रोक लगाई जानी चाहिये जो सरकारी अनुदान से चलते व सरकार द्वारा मिलने वाले इमामों के मानदेय भी शीघ्रता से बंद किये जाने चाहिये जो एक सेकुलर देश के लिये सबसे अधिक खतरनाक व असंवैधानिक है और जिन्हें हाथ जोड़ना पसंद नहीं उन्हें हाथ फैलाने से भी गुरेज करना चाहिये पता नहीं उसके लिये इन्हें कौन मजबूर करता है

ऐसे में समझना कठिन नहीं होता कि ये हरकतें किसके माध्यम से की जा रही हैं और इनके पीछे किनका दिमाग या हाथ काम कर रहा है भले ही सामने कोई नजर आये मगर, पटकथा और निर्देशन किसी और का ही होता है जिसे यदि हमने समझने का प्रयास न किया या अभी भी आँखें मूंदकर बैठे रहे तो वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढियां हमें माफ़ नहीं करेंगी वो हमसे सवाल करेंगी कि विदेशियों से तो हमने आपको बचा लिया लेकिन, घर में ही छिपकर बैठे जयचन्दों से अपनी रक्षा नहीं कर पाये, हम 70% होकर भी कुछ न कर पाये और अल्पसंख्यक कह-कहकर वो बहुसंख्यक हो गये, अपनी नस्लों को वो संस्कार हस्तांतरित नहीं कर पाये हो हमारे पूर्वज हमारे हाथों में सौंपकर निश्चिन्त होकर गये थे कि हम इन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ायेंगे पर, हम तो अपनों के ही हाथों छले गये अपनों से धोखा खा गये मतलब, हमने अपने इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा जिन्होंने हमें सदा धोखा दिया हमने उन्हें ही सर पर बैठाकर खुद उनके हाथों अपना देश सौंप दिया अपनी पीढ़ियों से उनकी वास्तविक पहचान छीन ली तब हम उन्हें क्या जवाब देंगे, किस तरह से बता पाएंगे कि जब ये सब हो रहा था तो हम अपने में मस्त थे, अपनी लाइफ जीने में व्यस्त थे सोचा ही नहीं कि एक दिन अपना ही देश अपना न रहेगा और हम अपने ही देश में फिर से गुलाम बन जायेंगे जबकि, लक्षण दिखाई दे रहे थे पर, हमें लगा कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला सब ठीक हो जायेगा ऐसा करते-करते कब पानी सर से उपर निकल गया कब साँस लेना दूभर हो गया पता ही न चला और जब होश आया तो हमारे पास अपना कहने कुछ बचा ही नहीं था

इससे पहले कि ये भयावह दिन आये, हमसे हमारी पहचान छीन ली जाये अभी-भी वक़्त है हम जाग जाये भारत को बचाये यही दोहराये...      

असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥
--- बृहदारण्यक उपनिषद

ये जरुर हिन्दू धर्म के उपनिषद से ली गयी है परन्तु, इनमें ऐसा कोई सन्देश या अर्थ निहित नहीं जो धर्म का प्रचार-प्रसार करता हो बल्कि, सहज-सरल भाव से विनती की गयी है वो भी कितनी सार्थक भारत देश में जितने भी धर्म व दर्शन हैं उनका आधार ‘उपनिषद’ है और पूरी दुनिया के बड़े-बड़े विचारक व दार्शनिकों ने इसे सर्वोत्तम ज्ञानकोष माना है और इसमें गुरु-शिष्य सम्वाद के माध्यम से जिज्ञासाओं का शमन किया गया जिसे पढ़कर हम अपनी जड़ों तक पहुंच सकते है जिससे दिनों-दिन दूर होते जा रहे है भूले नहीं कि इतिहास हमेशा शक्तिशाली का ही बनता है कमजोर व शांतिप्रिय को तो सबकी बातें ही सुनना पड़ता है तो सोचे कि हम क्या है ???

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २९, २०१९

सोमवार, 28 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२८ : #डाटा_रहे_सुरक्षित_सदैव #डेटा_प्राइवेसी_डे_का_यही_उद्देश्य




ज्यादा पुरानी बात नहीं जब हर अखबार में यही खबर थी कि फेसबु क के सी.ई.ओ. मार्क जुकरबर्ग ने अपने उपभोक्ताओं के डेटा को बेच दिया जिसे उन्होंने खुद भी स्वीकार किया था इसके अतिरिक्त भी आये दिन कोई न कोई ऐसी खबर नजर के सामने आ जाती जिसमें कि सोशल मीडिया या इंटरनेट पर ऑनलाइन गतिविधियों के द्वारा उपयोगकर्ता की बहुमूल्य जानकारी चुरा ली जाती और निज हित में उनका दुरपयोग किया जाता है

ऐसे में जबकि, किसी भी व्यक्ति का ज्यादातर समय ऑनलाइन गुजरता हो और वो अपनी समस्त जानकारियां या गोपनीय आंकड़ों को भी अपने अकाउंट में सुरक्षित रखना पसन्द करता हो ये बेहद चिंतनीय कि उसकी सुरक्षा किस प्रकार की जाये कोई भी ऐसी तकनीक या तरीका दिखाई नहीं देता जो डेटा को पूर्णतया सुरक्षा प्रदान करें हैकर्स भी बेहद स्मार्ट जो हर जगह लूप होल्स ढूंढ ही लेते फिर उनका फायदा उठाकर सेंधमारी करते है

ऐसी स्थिति में ये अत्यंत आवश्यक कि हम अपने डेटा के प्रति जागरूक बने और उसे गलत हाथों में जाने से रोके अन्यथा जिस तरह दूसरे देशों में इसके माध्यम से चुनाव तक जीत लिये जा रहे उसी तरह हमारे देश में भी इसकी संभावना अधिक कि हमारे डेटा को चुराकर उसे अपने लाभ हेतु कम्पनियां कहीं भी प्रयोग में लाये जिसकी हमें खबर तक न हो क्योंकि, हम किसी सुविधा को प्राप्त करने इतने लालायित होते की बदले में भले हमारी कीमती जानकारियां चली जाये पर उस एप्प को अपने मोबाइल में इंस्टाल करना या किसी गेम को खेलना अनिवार्य समझते जिसका खामियाजा यूं तो प्रत्यक्ष रूप में हमें तब तक समझ नहीं आता जब तक कि उसके नुकसान हमें प्रभावित न करें और ये अहसास होने तक बहुत देर हो चुकी होती है

ऐसे में डेटा की गोपनीयता के प्रति सजगता व सतर्कता हर कदम पर हो चाहे काम ऑनलाइन हो ऑफलाइन हर डेटा जो हम किसी को दे रहे उसके बारे में हमें ज्ञान होना चाहिए कि उसे देना जरूरी है अथवा नहीं या कितनी जानकारी देने से काम चल सकते है अनावश्य रूप से अतिरिक्त डेटा न दे जितना कहा या मांगा जाये केवल उतना ही डेटा दे और ऑफलाइन देते समय अपने डेटा की फोटोकॉपी पर उल्लेखित भी कर दे कि आपने उसे किस उद्देश्य से दिया है ।

ऑनलाइन में ज्यादा सावधान रहने की जरूरत क्योंकि, यहां तो पूरी दुनिया के लोग बैठे तो कब, कहाँ और कौन किस डेटा का क्या करेगा कहना मुश्किल है इसी सजगता हेतु आज 28 जनवरी को भारत समेत 48 देशों में ‘डेटा प्राइवेसी डे’ मनाया जाता है जिसका उद्देश्य कि हम इंटरनेट का उपयोग बेहद सावधानी के साथ करें अन्यथा दुष्परिणाम भोगने तैयार रहे क्योंकि, अब तो सभी अपराध इसी जगह बैठकर होने लगे है लोग बातों-बातों में भी आपसे आपकी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आपको ब्लैकमेल कर सकते है अतः इनबॉक्स में भी उसी से बात करें जिन्हें जानते हो अपरिचितों से एकदम सीमित वार्तालाप करें जो कल को आपकी शर्मिंदगी की वजह न बने ऐसे में औपचारिक्त शिक्षा के अलावा तकनीकी जानकारी भी जरूरी जिनसे आप खुद की सुरक्षा कर सके जो इंटरनेट पर ही उपलब्ध भी है ।

इसके अलावा आप निम्न उपाय अपनाते हुये कुछ सावधानियां भी रख सकते है...

डाउनलोड करते समय ध्यान रखे कि कभी भी अनजान सोर्स से कुछ भी अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर इंस्टाल न करें

अपने मोबाइल में इंस्टाल किये गये एप्स को समय-समय पर अपडेट करते रहे जिससे कि कम्पनियां नये फीचर्स के द्वारा कमियों को दूर कर सके

अपने कंप्यूटर और मोबाइल को हमेशा पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखे साथ ही थोड़े समय पश्चात् उसे बदलने का भी ध्यान रखे

पब्लिक वाई-फाई का जहाँ तक हो उपयोग न करें

अपने कंप्यूटर / मोबाइल पर लेटेस्ट एंटी वायरस जरुर रखे ।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २८, २०१९

रविवार, 27 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२७ : #व्यंग्य_चुनाव_सर्वेक्षण




आने वाले आम चुनाव को देखते हुये टी. वी. चैनल जनता के विचार जानने व किसकी सरकार बनेगी इसका पता लगाने एक ओपन सर्वे कर रही थी ।

जिसके लिये रिपोर्टर सर्वे में आये हुए लोगों से एक-एक कर के प्रश्न पूछ रही थी...

रिपोर्टर - सबसे पहले आप बताये आप इस आने वाले चुनाव में किसे वोट देगी ?

गर्ल - (चहकते हुये) वो जो बहुत क्यूट है और जिसके गालों पर डिम्पल पड़ते मैं तो उसकी क्यूटनेस के लिये उसे ही अपना वोट दूंगी ।

रिपोर्टर उसके पीछे खड़े व्यक्ति से यही प्रश्न पूछती है ।

आदमी - (गर्व के साथ) मैं तो सिर्फ अपनी जात के नेता को ही वोट दूंगा क्योंकि, केवल वे ही हमारे बारे में बोलती व सोचती है ।

रिपोर्टर आगे बढ़कर एक नौजवान को माईक थमाती है ।

नौजवान - (जोशीली आवाज़ में बोला) मैं देश का भविष्य व युवा हूँ तो अपने जैसे नवजवान को ही वोट दूंगा ।

फिर थोड़ा पीछे नजर दौड़ाते हुये रिपोर्टर ने एक बुजुर्ग से भी यही सवाल पूछा

बुजुर्ग - (खांसते हुए) मैं तो शुरू से जिस पार्टी से जुड़ा और मेरे पिता-दादा भी मैं तो उसी को दूंगा ।

भीड़ के बीच खड़े एक कॉलेज स्टूडेंट पर जैसे ही नजर पड़ी उसने उसकी तरफ माईक घुमा दिया...

स्टूडेंट - (गुस्से में भरकर) अभी तक कुछ क्लियर नहीं था पर, अब सोच लिया जो हमको नौकरी देगा उसे ही हमारा वोट मिलेगा ।

रिपोर्टर - ये तो सुने हमने यहां खड़े चंद लोगों के विचार अब हम चलते है दूसरी तरफ यहां समंदर के किनारे बहुत लोग आ-जा रहे चलिये हम इनसे भी यही प्रश्न पूछते है ।

एक यंग लड़की को रोककर उससे जवाब मांगती है

यंग लड़की - (आंख मारते हुये) जिसकी इस अदा पर मेरे दिल में कुछ-कुछ होता है उसी को दूंगी ।

फिर वो एक कार वाले को रोककर अपना जवाब मांगती है

कार चालक - (ठंडी सांस भरते हुए) हम तो भई उसे ही चुनेंगे जिसकी सूरत इंदिरा गांधी से मिलती है ।

फिर वो कपड़ो से संत जैसे दिखते आदमी को माईक देती है...

संत - (राम-राम जपते हुए) जो राम मंदिर बनायेगा वोट वही ले जायेगा ।

रिपोर्टर - सबके विचार जानने के बाद तो यही समझ में आता है कि किसी को देश से मतलब नहीं किसी एक ने भी ये नहीं कहा कि हमारा मत उसे मिलेगा जो देश का विकास करेगा ऐसे में जब निजहित हो वोट का आधार तो फिर कैसे होगा देश का उद्धार सोचियेगा जरुर वोट देने से पहले एक बार... धन्यवाद

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २७, २०१९

शनिवार, 26 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२६ : #गणतंत्र_हमारा_प्यारा #संविधान_बना_बड़ा_निराला




२६ जनवरी १९५०, जिसने हमको दिया लोकतंत्र और मताधिकार जिससे बनी विश्व में हमारी एक अलग पहचान हम सबको भी मिले कर्तव्य बेमिसाल जिसका पालन दायित्व हमारा जिससे हो सकता देश का विकास बस, ये समझने की दरकार है महज, अपेक्षा नहीं करें सरकार से हम अपना फर्ज भी निभाये हम क्योंकि, जिस तरह गाड़ी के दो पहिये उसे सुचारू रूप से चलाते उसी तरह कर्तव्य और अधिकार दोनों जब न्याय की तुला पर एक समान होते तब ही सबको अपने हक़ मिलते है ।

हमें अपनी सरकार चुनने की जो बहुत बड़ी सुविधा प्राप्त हुई उसने आज जिस तरह देश में पक्ष-विपक्ष को एक-दूसरे के सामने खड़ा कर राजनीति के स्तर को निम्न स्तर पर पहुंचाया वो विचारणीय है कि क्या इस तरह की भाषा, संवाद उस देश की मर्यादा के खिलाफ नहीं है जिसे उसकी सभ्यता-संस्कार व गौरवशाली इतिहास की वजह से दुनिया में एक अलहदा मकाम हासिल हुआ है आजकल मगर, किसी के मन में देश की नहीं स्वयं की तरक्की ही बसी हुई दिखाई देती तभी तो सबके मेनिफेस्टो में एकमात्र एजेंडा सत्तासीन दल को हटाना ही दिखाई दे रहा मतलब, हर दल, हर नेता का लक्ष्य जैसे भी हो कुर्सी हथियाना है फिर चाहे कितना भी नीचा गिरना पड़े या चाहे किसी से भी हाथ मिलना पड़े या किसी को भी गले लगाना पड़े पर, उसको सत्ता हासिल हो जाये

ये सब देख-सुनकर लगता कि वो सभी क्रांतिकारी, शहीद जिन्होंने देश के लिए खुद को निछावर कर दिया ये सब देखकर सोचते होंगे किन कम्बख्तों के हवाले देश के दिया जिनके मन में भारत नहीं स्वार्थ विराजमान है । ऐसे हालात में आता यही ख्याल कि आज़ाद होने के बाद अब सबसे ज्यादा जरूरी है उसे बरकरार रखना देश के सौहार्द्र और एकता को बनाये रखना ताकि, हम अधिक मजबूत बन सके और तकनीक व ज्ञान का सही उपयोग करते हुए दूसरों को दिग्भ्रमित करने की जगह देश को आगे ले जाने में उसे खर्च करे फिर खुशी के साथ गणतंत्र दिवस मनाये अन्यथा ये दिवस औपचारिकता का निर्वहन मात्र बन जायेगा तो यही संकल्प ले कि लोकतंत्र को बदनाम नहीं करना है संविधान को केवल देशहित में बदलना है जय हिन्द, जय भारत... 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २६, २०१९

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२५ : #शब्दों_से_मन_मोहती #साहित्यकार_कृष्णा_सोबती




१८ फरवरी १९२५
शुरू हुआ इक ‘जिंदगीनामा’
जमीन से जुड़ा कोई
रिश्ता पुराना
कागज और कलम का  
सफर सुहाना
सिरा जिसका बंधा गया
सरहदों के दोनों ही सिरों से
आज़ादी से पहले कुछ
तो कुछ था आज़ादी के बाद
किस्से बुने गये सारे
दो वतनों की बुनियाद पर
देह की सीमाओं से परे
कलम ने तोड़ी डाली
समाज की तमाम वर्जनायें
डार से बिछुड़ी वो
उकेरती रही किरदार कुछ ऐसे
साहित्य जगत में न जो
दिखाई दिये कभी पहले जैसे
नारीवाद की बनी
पहली सशक्त हस्ताक्षर
लैंगिक समानता की मुखर पक्षधर
लिखती रही सदैव
कहानियां लीक से हटकर    
साहित्य में जो बनी
मील का पत्थर
दिखाई देने लगा सब पर
‘सोबती एक सोहबत’ का असर
छाये जब ‘बादलों के घेरे’
खिले तब ‘सूरजमुखी अँधेरे के’
‘समय सरगम’ छेड़ता रहा
जीवन अपनी रफ़्तार से बढ़ता गया
समय का चक्र फिर घुमा
‘दिलोदानिश’ का पन्ना नया खुला
जिस पर इतिहास गया रचा
‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’
अनुभवों का लम्बा सिलसिला
साल दर साल चला  
यात्राओं ने जो भी दिया
‘मार्फ़त दिल्ली’ दिल वाली ने फिर  
‘बुद्ध का कमण्डल’ गढ़ा
पाठकों को अनमोल तोहफ़ा दिया  
‘शब्दों के आलोक में’ जो
कोहिनूर-सा चमका
साहित्याकाश में नक्षत्र बन
नाम एक उभरा
‘लेखक का जनतंत्र’ जिसने
अपने हाथों से लिखा
पढ़कर उसकी संजीदा लेखनी  
‘यारों के यार’ चाहनेवालों ने कहा  
सम्मानों-पुरस्कारों से
कद उसका बढ़ा
आज मगर, अचानक
सूरज जब उगा
सबने ये दुखद समाचार पढ़ा    
२५ जनवरी २०१९
समाप्त हुआ एक युग
दुनिया को अलविदा कह गई
साहित्य की मित्रो मरजानी
“कृष्णा सोबती” !!!

श्रद्धांजलि... शब्दांजलि... <3

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २५, २०१९

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२४ : #राष्ट्रगान_अंगीकरण_दिवस #देश_की_जय_जयकार_करें_हम




२४ जनवरी हमारे लिये गौरव का दिन है क्योंकि, यही वो दिन जब १९५० को हमारे देश ने अपने राष्ट्रगान को अंगीकार कर हम सबको देश के प्रति सामूहिक रूप से अपने मनोभावों को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर दिया था आज हम मिलकर उसकी स्मृति में ‘राष्ट्रगान अंगीकरण दिवस’ मनाते है मगर, अफ़सोस कि इतने महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक दिन पर इसका आयोजन उस तरह से नहीं होता जिस तरह से हम अपने राष्ट्रीय पर्वों को धूम-धाम से मनाते है

विचार करें तो यही लगता कि इसका भी खूब प्रचार-प्रसार होना चाहिये ताकि, लोगों को ये ज्ञात रहे कि २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने से पूर्व उसके लिये विशेष रूप से एक गान का चयन किया गया जिसके द्वारा उसके स्वरुप को अभिव्यक्त किया जाता और हमें ये गान देने वाले कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने १९११ में ‘राष्ट्रगान’ के गीत और संगीत को रचा था और इसको पहली बार कलकत्ता में २७ दिसंबर १९११ को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मीटिंग में गाया गया था।

इसमें बड़ी खुबसूरती से लोकतंत्र का शाब्दिक चित्रण किया है जिसके एक-एक शब्द से अंतर में जोश की तरंगें और देशप्रेम हिलोरें लेने लगता है जिसकी धुन सुनकर ही हम गर्व से सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते है हालाँकि, इस पर विवाद भी कम नहीं क्योंकि, “जन गण मन अधिनायक जय है” में ‘अधिनायक’ पर सुधीजन प्रश्नचिन्ह लगाते रहे है मगर, इसके बावजूद भी जब इसे ‘राष्ट्रगान’ का दर्जा दे दिया गया और संविधान ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार कर लिया तो फिर हमारे मन में इसे लेकर कोई शक-शुबहा या किसी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए बल्कि, अधिनायक के रूप में अपने देश को ही सदेह महसूस कर उसकी जय-जयकार करना चाहिये जिसके लिये केवल, नजरिया बदलने की देर है

जैसे ही हम अपनी मानसिकता परिवर्तित करेंगे उसी पल हमें ‘अधिनायक’ की जगह अपना देश ही साकार रूप में दिखाई देगा अन्यथा, सोच का काँटा यदि उसी बिंदु पर अटका रहा तो फिर सिर्फ जुबान से ही शब्द निकलेंगे औपचारिकतावश हम उसको दोहरा जरुर देंगे पर, उसको सही मायनों में ग्रहण नहीं कर पायेंगे वैसे भी देश के समस्त प्रतीक जो संविधान में वर्णित हम सबके लिये सम्मान व गर्व के विषय है अतः संदेह करना गलत है

यदि हम चाहे तो इसके संक्षिप्त स्वरुप के माध्यम से भी अपने मन के देशभक्तिपूर्ण उद्गारों को प्रकट कर सकते है...

जन-गन-मन-अधिनायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
जय हे जय हे जय हे,
जय जय जय, जय हे.....
     
🇮🇳 ️🇮🇳️ 🇮🇳️ 
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २४, २०१९

बुधवार, 23 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२३ : #कांग्रेस_से_राह_अलग_अपनी_मोड़ #बने_लोकप्रिय_नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस




23 जनवरी 1897, ऐतिहासिक दिवस जब उड़ीसा के कटक में पिता जानकीनाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर संतान रूप में 'सुभाष चन्द्र बोस' ने जनम लिया ये वही समय जब देश की पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानन्द अपनी ओजस्वी वाणी व तेजस्वी व्यक्तित्व से एक नये भारत की इबारत लिख रहे थे ।

ऐसे में उन ऊर्जावान तरंगों से सुभाष का अप्रभावित होना असम्भव था तो उन पर उनके वचनों का गहरा असर पड़ा और उन्होंने भी अपने देश को उनकी ही तरह विश्व पटल पर स्थापित करने का एक सपना देखना शुरू कर दिया ये जानते हुए भी कि गुलामी की जंजीरें बहुत मोटी और दम घोटने वाली है ।

जिसका अनुभव उन्हें अपने आस-पास के माहौल व होने वाली घटनाओं से बाल्यकाल में ही होना शुरू हो गया था पर, 1916 की एक घटना ने तो उनके भीतर क्रांति की ऐसी मशाल जला दी कि अहिंसावादी सिद्धान्त पर चलकर आजादी पाने का विचार उनको रास न आया इस वजह से उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अलविदा भी कह दिया क्योंकि, वे समझ चुके थे कि लातों के भूत बातों से नहीं मानने वाले तो फिर उन्होंने वही रास्ता अपनाया और देश के पहले प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल कर देश को अपने हक के लिए लड़ना सिखाया बताया कि चरखे से सिर्फ कपड़ा बुना जा सकता है पर, आज़ादी के सपने को सच करने और देश बचाने तो खून बहाना पड़ता है ।

अपने हक के लिये लड़ने की उनकी आदत किशोरावस्था से ही थी जिसका प्रमाण उनके कॉलेज की इस घटना से लगता है बात 1916 की है जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपनी उम्र के 19 वे साल से गुजर रहे थे और निवास स्थल वही उनके आदर्श स्वामी विवेकानंद की जन्म व कर्मभूमि कलकत्ता था । जहां के एक कॉलेज में वे उस वक़्त अध्ययनरत थे और वहां अधिकांश प्रोफेसर अंग्रेज थे ऐसे ही एक दिन कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते ओटन नामक एक अंग्रेज प्रोफेसर ने भारत और भारतीयों की बुराई करना शुरू कर दी जो युवा सुभाष से सहन न हुई और जब बात इस लेवल पर पहुंच गई कि उन्होंने भारत को अपशब्द कहना शुरू कर दिया तब उनका खुद पर काबू न रहा गया

फिर भी पहले उन्होंने अंग्रेज प्रोफेसर को चेतावनी दी कि वे भारत के बारे में वे अब एक भी शब्द बुरा न बोलें मगर, जब उस प्रोफेसर ने युवा सुभाष की चेतावनी को यह सोचकर हल्के में ले लिया कि एक गुलाम छात्र भला क्या कर लेगा? इस ख्याल से प्रोफेसर ओटन ने फिर बोलना शुरू ही किया था कि सुभाष अपनी जगह से उठे और प्रोफेसर को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया अचानक हुये इस हादसे से प्रोफेसर सन्न रह गये थे वो कोई आज के युवा नहीं जो खुद अपने देश की बुराई करते और हंसते है ।

इसके बाद सुभाष ने आत्मविश्वास से भरे स्वर में जोश के साथ कहा- “मेरे भारत को कोई भी व्यक्ति अपशब्द नहीं कह सकता। यह देश दुनिया की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति और सबसे उन्नत सभ्यता वाला देश है और यह बात तुम अंग्रेज कभी नहीं समझ सकोगे”।

उन्होंने अपने देश की सभ्यता-संस्कृति पर गर्व था जिसके लिये वे मरने-मारने का दम रखते थे न कि कृतध्न युवाओं की तरह देश का मखौल बनाते फिरते थे और जब वे क्रांतिकारी विचारधारा का अपनी पार्टी कांग्रेस से तालमेल न बिठा पाये तो उन्होंने उसे छोड़कर अपनी अलग राह ही नहीं अपनी अलग सेना बनाई और आज़ादी की लड़ाई लड़कर विजेता भी बने आज उसी ऊर्जा से भरपूर देशभक्त राष्ट्रनिर्माता देश के एकमात्र नेता सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिवस है... समस्त राष्ट्र की तरफ से उनको <3 से बधाई... जय हिन्द...!!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २३, २०१९

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२२ : #मुझे_शिकायत_है




बचपन में मासिक पत्रिका सरितामें इस नाम से एक कॉलम आता था जिसके अंतर्गत पाठक किसी व्यक्ति विशेष या विभाग या फिर अधिकारी के खिलाफ अपनी कोई शिकायत खुलेआम दर्ज करना चाहता तो उसके नाम इस वाक्य से शुरुआत करते एक खुला पत्र लिखता जिसे छापा जाता था ।

आज भी ये प्रासंगिक है और अब तो इसकी अधिक आवश्यकता महसूस होती है क्योंकि, आज जबकि, समय बदल गया तो तकनीकी युग में लोगों के पास समस्यायें भी अधिक साथ ही अब सोशल मीडिया के जमाने में लोगों के पास अपने मन की बात/शिकायत रखने को अपना व्यक्तिगत कोना होता जिसके माध्यम से वो बेहिचक जो भी चाहे लिख सकता और आज तो समस्यायें भी अधिक है । ऐसे में वे सभी इसी तरह से जिसके प्रति भी चाहे अपने मनोभाव लिखकर पोस्ट कर सकते तो आज मैं अपना ये ओपन लैटर समर्पित करती हूँ प्रिंटेड / इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तमाम सम्पादकों / पत्रकारों को जिनका रवैया देखकर मन में बहुत दिनों से ये विचार उठ रहे थे तो आज की-पेड पर उंगलियाँ स्वतः ही मचलने लगी...

●●●
मुझे शिकायत है...
देश के पत्रकार बन्धु / भगिनियों से...
 
जैसा कि आप सभी जानते कि पत्रकारों को देश की व्यवस्था का चौथा स्तम्भ माना जाता जिसके बिना सिस्टम लडखडा सकता है चूँकि, आप भी एक तरह से जनता के प्रतिनिधि या सेवक होते अतः आपका निष्पक्ष होना एक अनिवार्य शर्त होती है । परन्तु, लम्बे समय से देख रही हूँ कि चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समस्त जर्नलिस्ट किसी विशेष दल के समर्थक नजर आते और खबरों को इस तरह से प्रस्तुत करते मानो इन्हें उस पार्टी ने खरीद लिया हो तो उनके पक्ष में ही अपनी राय रखते है । ऐसा करते समय आप दूसरे दल के खिलाफ इस तरह से लिखते मानो वे देश के दुश्मन हो यही नहीं जानकारियों या खबरों को पूर्णतया सामने रखने के बजाय तथ्यों से भी इस तरह खिलवाड़ करते है । ऐसे में जिनको सत्य का ज्ञान न हो वो आपकी आधी-अधूरी जानकारियों व भ्रामक समाचार से प्रभावित होकर उसे ही अंतिम सच मान लेता है । जिसके परिणामस्वरुप ऑनलाइन हो या ऑफलाइन दोस्तों में ही आपस में इस तरह से जंग शुरू हो जाती जैसे कि यदि उन्होंने उस खबर को अपने तर्कों से प्रमाणित नहीं किया तो उनकी देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा इस तरह से देखा जाये तो आपकी वजह से नफ़रत का ऐसा जहर अपने पाठकों के बीच फैलाया जा रहा जिसकी निर्दोष, नामसझ, भोली-भाली अवाम शिकार हो रही है ।

इसलिये आप-से सबसे विनम्र अनुरोध है कि, कृपया तत्काल प्रभाव से इस तरह के क्रियाकलाप बन्द करें और अपनी भाषा व समाचार प्रस्तुति का तरीका बदले भले ही आपकी किसी सियासी पार्टी के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा हो पर, उसे अपने मन में रखते हुये अख़बार या टी.वी. में सिर्फ और सिर्फ वही लिखे जो सत्य हो न कि जो आपको सच लगता हो । क्योंकि, तर्कों से गलत को जरुर सही साबित किया जा सकता लेकिन, इससे सच को कोई फर्क नहीं पड़ता अलबत्ता पढ़ने वाले जो आपकी तरह तार्किक नहीं वो जरुर आपके इस जाल में फंस जाते जिसका खामियाजा हम सब भुगतते है । क्योंकि, ये झूठी / भ्रमपूर्ण खबरें हम सबको आपस में लड़वा देती है रिश्तों में दरार डाल देती तो क्या ये आपका नैतिक दायित्व नहीं बनता कि आप ये जिम्मेदारी ले कि आप अपने पेशे ही नहीं अपने राष्ट्र के प्रति भी ईमानदारी से अपने फर्ज का निर्वहन करेंगे न कि किसी दल के रिप्रेजेंटेटिव बनकर केवल उसका गुणगान करते नजर आयेंगे इस काम के लिये तो पार्टीज के पास खुद अपने किराये के भोंपू होते जो दिन-रात उनका गान गाते रहते है ।

ऐसी परिस्थितियों में हम सब आपसे सिर्फ और सिर्फ निष्पक्षता की अपेक्षा रखते है, जो कोई इतनी बड़ी डिमांड तो नहीं जिसे आप पूरा न कर सके और न ही ये आपकी ड्यूटी के बाहर है मतलब, हम सब आपसे केवल सच जानना चाहते है सच के सिवाय कुछ भी नहीं ।

●●●            
शिकायतकर्ता :
सुश्री इंदु सिंह
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह 'इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २२, २०१९