बुधवार, 22 मई 2019

सुर-२०१९-१४२ : #जैव_विविधता_घट_रही #जान_संकट_में_पड़_रही




ईश्वर ने प्रकृति में कोई भी शय निरर्थक नहीं बनाई सभी का सृष्टि के कुशलतापूर्वक संचालन में अपना-अपना महत्वपूर्ण योगदान है । सिर्फ जीवित ही नहीं निर्जीव तत्व भी अपनी सहयोगी भूमिका निभाते है जिनके आपसी सामंजस्य से तंत्र विधिवत चलता रहता जिनमें से किसी एक का भी सन्तुलन बिगड़ने से खतरा बढ़ जाता है ।

पंचतत्व के बिना जीवन संभव नहीं ये हम सब जानते लेकिन, इनके अलावा भी अनगिनत जीव-जंतु-प्राणी चाहे वे सूक्ष्म हो या अदृश्य या फिर विशालतम सब कुदरत का संतुलन साधने में जुटे रहते चूंकि, ये सब हमें दिखाई नहीं देता अतः हम उनके इस सहयोग व योगदान से अनभिज्ञ रहते है । जिसका अहसास हमें तब होता जब कुदरत अपने प्रकोप को किसी न किसी आपदा के रूप में प्रकट करती तब यही कहते कि पता नहीं ऐसा क्यों हुआ लेकिन, दुनिया बनाने वाले को मालूम की कहाँ क्या गड़बड़ हुई और इसे किस तरह से दर्शाना है ।

शरीर हो या गेजेट्स यदि उनमें भी कोई वायरस प्रवेश कर जाता तो वे भी किसी न किसी संकेत या संदेश के माध्यम से उसे जता देते फिर प्रकृति जो सबको जीवन दे रही उसी का ढांचा अस्त-व्यस्त हो रहा हो तो वो भी तो उसे किसी न किसी तरीके से ज़ाहिर करेंगी ही न तो कभी ग्लोबल वार्मिंग, असमय वर्षा, बाढ़, सूखा, जल स्तर में गिरावट, कम बारिश, आंधी-तूफान के रूप में उस गिरावट को प्रदर्शित करती है । जिसे उस समय तो हम इग्नोर करते या थोड़ी-बहुत चिंता जताकर फिर बेफिक्र सो जाते तब तक अगली कोई मुसीबत दस्तक देने लगती पर, मानवीय स्वभाव के चलते हम तब तक जागृत नहीं होते जब तक कि अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न न हो जाये इसी घृणित सोच ने आधी से अधिक प्रकृति को बर्बाद किया है ।

जो कुछ शेष बचा उसके प्रति भी हम कितना सजग दिखाई दे रहा कि आधुनिकता व विकास की अंधी दौड़ में अपने सिवाय कुछ दिखाई न दे रहा जब तक हम सुरक्षित हमें किसी की न तो परवाह न ही मतलब है । पेड़-पौधे, चिड़िया-पक्षी और जानवरों की अनेक दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त हो गयी बाकी विलुप्ति की कगार पर फिर भी हमें फर्क नहीं पड़ रहा कि सांसें तो ले पा रहे भले, पृथ्वी को सांस लेने में कठिनाई हो रही उसे हम देख नहीं रहे क्योंकि, आग उगलती ये धरती भी हमें आंदोलित नहीं करती कि इसके बीच जीने हमने तरह-तरह के यंत्र बना लिये है ।

ये मशीनें केवल हमें ही नहीं समस्त वसुंधरा को भी प्रभावित कर रही जिनकी वजह से कई तरह के प्रदूषण व मुश्किलें पैदा हो रही यहां तक कि अब तो इनसे उत्पन्न हो रहा इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है । इसी के प्रति जागरूक करने संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 मई को विश्व जैव विविधता सरंक्षण दिवस मनाने का निश्चित किया ताकि हम उनके महत्व को समझे और उनको बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए अन्यथा अपने साथ-साथ धरती को मिटते देखने बाध्य हो क्योंकि, काफी कुछ हम खो चुके जो शेष उसे भी अपनी लापरवाही से गंवा रहे है ।

अपनी दूरदर्शिता व भविष्य का आंकलन करने की दूरगामी सोच की वजह से हमारे पूर्वजों ने सबको साथ लेकर चलने का मंत्र अपनाया और चींटी तक को न मारने के साथ-साथ नदी-तालाब, लता-वृक्ष, कीट-पतंग सबको धर्म से जोड़ दिया कि इसी वजह से सही मनुष्य इनकी सुरक्षा करेगा पर, वो तो धर्म से ही विमुख हो गया है । हमने विज्ञान की कसौटी पर आस्था को परखने की कोशिश की जिसने हमसे हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं हमारी प्राकृतिक परंपराएं भी हमसे छीन ली अफसोस कि अब भी हमको खबर नहीं हम गाफिल होकर मोबाइल में उंगलियां चला रहे बीमारियों को खुद ही आमन्त्रित कर रहे है ।

#International_Day_of_Bio_Diversity
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई २२, २०१९

मंगलवार, 21 मई 2019

sur-2019-141 : #सच_सामने_आने_लगे #झूठे_लोग_घबराने_लगे



भारत में जब से संवैधानिक व्यवस्था व लोकतंत्र की स्थापना हुई तब से एक दल ने निरंकुश एकछत्र राज्य किया और अपने एकाधिकार ने उसे इस कदर मदमस्त कर दिया कि वो देश को अपनी जागीर और सभी संस्थाओं को अपना मातहत समझने लगा उस पर भक्ति का आलम ऐसा कि जनता को जो पढ़ाया जाता या जितना सामने आने दिया जाता उसे ही सच समझकर स्वीकार कर लिया जाता क्योंकि, प्रजा भी यही समझने लगी थी कि अंग्रेज भले चले गये और हम आज़ाद हो गये पर, जिन्होंने हमको स्वतंत्र कराया अब राज उनका चलेगा लेकिन, ख़ुशी की बात कि ये अपने ही है तो इनकी नियत पर शक किया ही नहीं जा सकता ये कुछ गलत थोड़े करेंगे आखिर, जंग लड़कर देश को दुश्मनों से बचाया है 

सब कुछ बढ़िया चलने लगा मगर, धीरे-धीरे जब जागरूकता व जानकारियां बढ़ी तो शासन करने वालों की मुश्किलें भी बढ़ी जिसकी वजह से विपक्ष मजबूत होना शुरू हुआ क्योंकि, कभी विपक्षविहीन व तो कभी कमजोर विरोधियों के रहने से सरकार की तानाशाही बढ़ने लगी थी जिसे अवाम समझने लगी थी वो देख रही थी कि देश को कुछ लोग अपनी जायदाद समझकर पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बेटे-बेटियों ही नहीं पोते-परपोतियों तक के नाम करते चले जा रहे और आगे की जनरेशन भी अब मैदान में आ चुकी है जो इस देश को अपनी प्रॉपर्टी समझती है उस पर उनके चाटुकार ऐसे जिनमें न तो स्वाभिमान और न ही जिन्हें अपनी उम्र या पद का ही लिहाज वे तो रीढ़विहीन अपने से छोटो के पैरों में झुके जा रहे और चमचों का तो कहना ही क्या हर हाल में अपने राजा के साथ चाहे वो देश को बेचे या मिटाये पर, वे अपनी स्वामिभक्ति पर आंच न आने दे सकते तब ऐसे में सबने वाले का गुरुर क्यों न बढे वो देश को अपनी विरासत और खुद को राजा क्यों न समझे तो वही शुरू हो गया था

इन हालातों देख-देखकर इन नासमझों के हाथ में देश की बागडोर आये और देश पूरी तरह से बर्बाद हो जाये जागृत जनता ने इन्हें हटाने का फैसला कर लिया और ई.वी.एम. पर बटन दबाकर अपने अधिकार का ऐसा प्रयोग किया कि एकाएक सत्ता ही नहीं देश का भाग्य परिवर्तन भी हो गया जिसके बाद बहुत कुछ ऐसा हुआ जो उन 55 सालों में बहुत पहले ही हो जाना था मगर, जब हाथ में पॉवर रहती तो व्यक्ति समझता कि ये सिंहासन व गद्दी सदा से उसकी थी और सदैव उसकी रहेगी तो बेफिक्र होकर मनमानी करने लगता कि प्रजा बेचारी तो उसकी गुलाम क्या कहेगी लेकिन, जब उसका बेआवाज़ वोट शोर गूंजता तो उसके शोर से अचानक नींद टूटती है तब समझ में आता कि चैन से सोने के दिन गये अब मशक्कत करनी पड़ेगी तो वही हुआ इन पांच सालों में जिसे हम सबने भी देखा कि राजमहलों में सुख-सुविधाओं के बीच रहने वाले गलियों-गलियों भटकने लगे अफ़सोस कि तब तक बहुत देर हो चुकी थी

इस बीच इनके बरसों से बोले गये झूठ जनता के सामने आने लगे, इनके घोटाले के राज खुलने लगे और बड़े शातिर तरीके से छुपाये गये सच पर्दाफाश होने लगे चूँकि इतने लम्बे समय से सत्ता में रहने से ये इतने शक्तिशाली हो गये कि पत्रकार भी उनके इशारे पर नाचने लगे तो जो लिखा जाता सबको वही सच लगता और जो किसी ने सच लिखा भी तो तकनीकी कमजोरी से वो सामने नहीं आ पाता था । मगर, अब सोशल मीडिया व इन्टरनेट का जमाना जहाँ क्षण भर में कोई भी खबर दावानल की तरह फ़ैल जाती तो वही हुआ जब भी पुरानी सरकार की कोई सच्चाई सामने आई उसे हाथों-हाथ प्रसारित व प्रचारित किया गया जिसका नतीजा कि जनता की बंद ऑंखें खुलने लगी वो जान गयी कि उसके साथ विश्वासघात किया गया । वो तो बेचारी, आँख मूंदकर अपना बहुमूल्य मत उसको देती रही और उस पर पूरा भरोसा करती रही लेकिन, सरकार ने उसका निजहित में उपयोग कर अपने आपको शक्तिशाली बनाया अपना स्वार्थ पूरा किया उसको धोखा दिया इस बात ने उसे बहुत आहत किया पर, जल्द ही वो सम्भल गया, समझ क्या कि उसे अब आगे क्या करना है । 

उनके अनगिनत झूठों की पोल खुल चुकी जिनमें चंद का ही उल्लेख यहाँ किया जा रहा जो अभी सुर्ख़ियों में बने हुये है और जिनसे जनता का जुडाव अधिक क्योंकि, इनका सिरा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है....

जिसका ताजा-तरीन उदाहरण कल सेना ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा यू.पी.ए. शासनकाल के दौरान 6 सर्जिकल स्ट्राइक होने के दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया उन्होंने अपनी सफाई में कहा कि, “सितंबर 2016 से पहले कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं उत्तरी कमांड के जी.ओ.सी. इन चीफ ले.जनरल रणबीर सिंह ने एक बयान जारी करते हुये कहा कि कुछ दिनों पहले डी.जी.एम.ओ. ने एक आर.टी.आई. के जवाब में कहा कि देश की पहली सर्जिकल स्ट्राइक सितम्बर 2016 को हुई थी ।

शायद, उन्होंने ये झूठ ये सोचकर कहा होगा कि हमारे 6 बार सर्जिकल स्ट्राइक की बात का यदि कोई सुबूत मांगेंगा तो हम कह देंगे कि सेना के शौर्य पर शक कर रहे हो और इस तरह से हम बच जायेंगे हमारा सच कभी सामने न आएगा पर, अब जनता जागरूक है तो उसने आर.टी.आई. का उपयोग कर जानकारी निकाल ली और ये सोचकर उसे सदमा लगा कि जिस मनमोहन सिंह पर उसे  यकीन था कि भले वे खामोश रहेंगे पर झूठ न बोलेंगे वे भी अपनी स्वामिभक्ति के लिये इस स्तर पर उतर आये ऐसे स्थिति में अन्य कार्य भी शक के दायरे में आ जाते है और सोचना पड़ता है कि अब तक यही सुना और देखा था कि रिमोट कंट्रोल से रोबोट चलते है मगर, इन्सान भी इस सच को सहन कर पाना नामुमकिन है ।

इसी तरह से बालाकोट एयर स्ट्राइक में भी पूरा विपक्ष लगातार हमला करता रहा और ये मानने की तैयार नहीं था कि ऐसा कुछ हुआ भी है और एक भी आतंकवादी मारा गया इन्हें पाकिस्तान के वजीरे आजम पर तो शत-प्रतिशत भरोसा था लेकिन, अपनी सेना पर नहीं तो सब मिलकर सुबूत-सुबूत चिल्लाने लगे । वहां 300 से अधिक मोबाइल के एक्टिव होने का प्रमाण दिए जाने पर इन्होने विश्वास नहीं किया और देशी मीडिया को नकारकर विदेशी मीडिया की क्लिपिंग्स दिखाने लगे । ऐसे में इटली की विशेष गौर फरमाये इटली की पत्रकार ‘फ्रेंचेस्का मारीनो’ ने 8 मई को अपनी रिपोर्ट के माध्यम से ये दावा किया है कि, “भारतीय वायुसेना द्वारा 26 फरवरी को सुबह 03:30 बजे पाकिस्तान के बालाकोट में की गयी एयर स्ट्राइक में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के करीब 130-170 आतंकवादी मारे गये और पाकिस्तानी सेना सुनाह 6 बजे मौके पर पहुंची और घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया” । चूँकि, ये विदेशी मीडिया को ही सच मानते तो चलो वही सही फिर भी ये न मानेंगे क्योंकि, इनको ये स्वीकार करना ही नहीं है विपक्ष जो है तो बस, विरोध करना जानते लेकिन, ये नहीं सोचते कि देशहित में पक्ष-विपक्ष सब एकमत होते है । अफ़सोस, इनका एजेंडा तो सरकार के खिलाफ माहौल बनाना तो झूठ ही क्यों न बोलना पड़े बोलेंगे जानते कि हजार बार दोहराने से झूठ सच बन जाता मगर, सनद रहे कि देश की सुरक्षा का मामला हो तो जनता माफ़ नहीं करती है ।    

 नौसेना के कई पूर्वी अफसरों ने दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के द्वारा आई.एन.एस. विराट का ‘निजी टैक्सी’ की तरह उपयोग किये जाने का समर्थन किया जो बताता कि उस कालखंड में जनता अंधभक्त, निरंकुश शासन, संस्थाओं पर कब्जा और देश को जागीर समझने वालों ने ये सोचा न होगा कि कभी उनका ये सच इस तरह से सामने आयेगा । वे तो समझते थे कि सदियों तक उनका खानदान और उसके वंशज ही इस देश पर शासन करेंगे पर, ऐसा हुआ नहीं और ये बात सामने आई नेवी के पूर्व अफसर लेफ्टिनेंट कमांडर हरिंदर सिक्का ने कहा कि, “मुझे नहीं पता कि उस दौरे को ऑफिसियल कहा जायेगा या अन ऑफिसियल लेकिन, राजीव जी जिस समय छुट्टियाँ मनाने लक्षद्वीप गये थे उस दौरान आईएनएस विराट का प्रयोग हुआ था वे एडमिरल के कमरे में भी गये थे और जब पूर्व पी.एम. के साथ उनके परिजन युद्धपोत पर आये तो नौसेना की एक टुकड़ी ने अपना विरोध भी जताया था पर, हम लाचार थे हमारे कमाडिंग ऑफिसर ने हमें चुप करा दिया था” । इसी तरह पूर्व नेवी कमांडर अब रिटायर्ड वी.के. जेटली ने भी कहा कि, “छुट्टियों के दौरान गाँधी परिवार ने बड़े पैमाने पर नौसेना के संसाधनों का इस्तेमाल किया था मैं इसका गवाह हूँ क्योंकि, मैं तब उस पर तैनात था” पर, जब आपको लगे कि आप ही सर्वेसर्वा है तो ऐसी गलतियाँ हो जाया करती है ।

सबसे बड़ा खुलासा हुआ जब वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. फुल्का ने दावा किया कि, “1984 के दंगों के दौरान सिखों को मारने का निर्देश सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से मिला था उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और गृह मंत्री सेना बुलाना चाहते थे लेकिन, पीएमओ ने इसकी अनुमति नहीं दी जबकि, सेना की मदद से 2000 जानें बच सकती थी जो सरकार की वजह से हो न सका औ इसके पर्याप्त सबूत ऑन रिकॉर्ड उपलब्ध है” ।

ये सिर्फ चंद प्रकरण पर, बेहद महत्वपूर्ण क्योंकि, ये सभी देश की सुरक्षा और गरिमा से जुड़े जो बताते है कि किस तरह एक परिवार ने देश का निज लाभ में उपयोग किया और क्यों वो इस समय बोखलाये हुये फिर रहे है ।

उन्हें ये डर सता रहा है कि सारा सच सामने आने पर जब जनता उनकी असलियत जान जायेगी तब क्या होगा ? हमारे लिये इससे भी बड़ी चिंताजनक बात तो ये है कि महज़ दो-चार सच ही सामने आये तब ये हाल है यदि उन 55 सालों का सारा कच्चा चिट्ठा और सच सामने आ गया तो क्या होगा ?? जनता की जागरूकता व अंधभक्ति का चश्मा उतरने से ही ये सम्भव हुआ फिर भी जो इनके क्यूटनेस, भोली सूरत और खानदानी होने के गुण गाये जा रहे उनकी सोच व मानसिकता पर तरस आता कि एक परिवार के प्रति निष्ठा क्या देश की सुरक्षा से भी ज्यादा बड़ी है ???

सारे विरोधियों का एकजुट होना यही दर्शाता कि कहीं न कहीं किसी मामले में उनकी भी पूंछ दबी हुई हो अन्यथा देश के आगे कुछ नहीं खुद भी नहीं जिनकी सोच होगी वो कभी भी किसी व्यक्ति या नेता या दल के गुण नहीं गायेंगे सदैव देश राग ही उनकी रगों व आत्मा में गूंजेगा जो सच के सिवाय कुछ न सुनेगा न ही समझेगा चाहे सामने कोई हो और आज की युवा पीढ़ी भी इस सत्य को स्वीकार कर चुकी... उसके लिये राष्ट्र प्रथम है... राष्ट्र रहेगा तभी हम रहेंगे... इसलिये देश के खिलाफ कुछ न सुनेंगे, न कहेंगे... यही संकल्प हमारा है... जय हिन्द... वंदे मातरम... भारत माता की जय... !!!                                
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई २१, २०१९

सोमवार, 20 मई 2019

सुर-२०१९-१४० : #नारद_मुनि_गुगल_से_तेज #देते_खबर_सच्ची_करते_सचेत




'नारद मुनि' के चरित्र एवं कार्यकुशलता को आज इंटरनेट के जमाने में समझना मुश्किल नहीं कि जो काम आज हम घर बैठे उंगलियों पर सहजता से कर पा रहे वो उसे स्वर्गलोक में जगह-जगह घूमकर सबकी बातें सुनकर फिर उसमें अपने तथ्यों का तड़का लगाकर तब दूसरों तक पहुंचाते थे ताकि, बुरी खबर का जायका भी मन को भला लगे और उसका असर सामने वाले पर उसी प्रकार हो जैसा अपेक्षित तो क्रिया की वही प्रतिक्रिया पूरे मामले को इस तरह से बदल देती कि हर बार एक नई कहानी बन जाती जिसके परिदृश्य में नारद मुनि अदृश्य रूप में मुस्कुराते कि किस तरह से उन्होंने अपनी भूमिका का सटीक निर्वहन कर परिणाम को धर्म हित में कर दिया जो उनकी विशेषता मानी जाती है ।

कई बार यूँ भी होता कि उनकी वजह से परिस्थितियां बिगड़ भी जाती और बनता हुआ काम अचानक से असंभव लगने लगता पर, अंत तक आते-आते उसे उनके वही इष्ट सुधार देते जिनका नाम जपकर वे अपनी गतिविधियों को संचलित करते है बोले तो... नारायण-नारायण उनका मन्त्र जो उनको अपने प्रभु के नेटवर्क से जोड़े रखता व आंतरिक रूप से उनमें ऊर्जा का संचार भी करता जिसकी वजह से वे अनवरत अथक इस लोक से उस लोक विचरण करते रहते और अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक पड़ाव पर तनिक ठहरकर वहां से सूचनाएं एकत्रित कर आगे बढ़ जाते बिल्कुल, उसी तरह जैसे सर्वर सभी वर्कस्टेशन से डेटा कलेक्ट कर उसे एंड यूज़र तक पहुंचाता है ।

वे अकेले ये सब कुछ करते उनका सर्च इंजिन उनके भीतर ही मौजूद और आंख मूंदकर वे तत्काल उस स्थान पर पहुंच जाते ये ध्यान की ताकत जो मन की गति से साधक को तत्क्षण उस जगह पर ले आती और सारी जानकारियां ब्रम्हांड में बिखरी पकड़ी जिन्हें एकत्रित कर अपने डेटा स्टोरेज में संग्रहित करते जाते गूगल के डाटाबेस में दुनिया भर की इन्फॉर्मेशन का कलेक्शन होता और जब कोई व्यक्ति किसी विशेष जानकारी की डिमांड करता तो वो उसी समय उस तरह की समस्त सूचनाएं पटल पर प्रदर्शित कर देती कुछ ऐसा ही काम वे भी करते जो हम अब समझ पा रहे कि किस तरह सम्पन्न किया जाता होगा क्योंकि, अब हमारे पास अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी व सुविधाएं जो है ।

आज गूगल महाराज से भी तेज आदि पुरुष देवर्षि नारद मुनि की जयंती पर ढेर सारी शुभकामनाएं... 💐💐💐 !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई २०, २०१९

रविवार, 19 मई 2019

सुर-२०१९-१३९ : #इनबॉक्स_की_राजनीति #रोक_रही_कलम_की_अभिव्यक्ति



मामला – ०१ : ‘निधि’ ने तत्कालीन ‘गाँधी-गोडसे विवाद’ के मद्देनजर उसके पक्ष में अपना मत फेसबुक पर क्या लिखा मानो भूचाल आ गया उसकी पोस्ट पर तो उसकी जबरदस्त खिंचाई की ही गयी साथ-साथ मेसेंजर / व्हाट्स एप्प पर भी उसे बहुत बातें सुनाई गयी यहीं नहीं कुछ लोगों ने तो उसका पर्सनल नम्बर तक सार्वजानिक कर दिया जिसकी वजह से उसे गंदे-गंदे गालियों से भरे कॉल्स आने लगे और आखिर में उसने अपना प्रोफाइल ही नहीं मोबाइल भी बंद कर दिया और इस तरह उसकी लेखन प्रतिभा को कुछ असामाजिक तत्वों ने समय से पहले ही उभरने से रोक दिया

मामला – ०२ : ‘दीपिका घोष’ का प्रकरण भी एकदम ताजा है जो आई.पी.एल. मैच में अपनी पसंदीदा टीम को चीयर अप करने गयी थी लेकिन, वहां कैमरे की नजर में क्या आई उसकी निजता पर ही मानो ताला लग गया कहने की ये उसके लिये ख़ुशी की बात थी कि वो अपनी तस्वीर वायरल होने से रातों-रात सेलेब्रिटी बन गयी थी लेकिन, कुछ छिछोरे टाइप के लोगों ने ने केवल उसे इन्स्टाग्राम पर ढूंढ निकाला बल्कि, उसके इनबॉक्स में घुसकर उसे सन्देश भी भेजने लगे जिसने उसकी प्राइवेसी पर ऐसा आघात किया कि उसे सामने आकर अपनी बात कहनी पड़ी लेकिन, क्या इससे उसकी समस्या का समाधान हुआ ?     
  
ये तो महज़ छोटे-छोटे साधारण लोगों के उदाहरण जिनके पास पॉवर नहीं लेकिन, हमने इसी माध्यम पर कई नामी हस्तियों जिनमें कई राजनेता व पत्रकार भी शामिल को इसी तरह की अपराधिक हरकतों का शिकार होते देखा जब उनके द्वारा अपनी बात कहने पर उनके मोबाइल नम्बर को पब्लिक डोमेन में जारी कर दिया गया और फिर उन्होंने अपनी पोस्ट्स व स्क्रीन शॉट्स के जरिये बताया कि उन्हें किस तरह की गंदगी का सामना करना पड़ रहा है पर, वे लोग तो मशहूर शख्सियत तो इस तरह की पोस्ट्स से उनको लाभ ही हुआ और उन्होंने इसे सहानुभूति पाने का जरिया बनाकर अपना हित साध लिया लेकिन, एक सामान्य व्यक्ति के लिये ये सब बेहद घिनौना अनुभव होता है   

कहने को तो कलम आज़ाद है और सबके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है फिर भी आजकल सोशल मीडिया में ये सब कुछ जो देखने में आ रहा है कि जिसमें यदि किसी के व्यक्तिगत विचार या उसकी पोस्ट से कोइ असहमत है तो वो अपनी असहमति केवल उसके कमेन्ट बॉक्स में ही नहीं दर्शाता बल्कि, अपने साथियों के साथ मिलकर उसके इनबॉक्स में गाली-गलौच करने से भी बाज नहीं आता ऐसे में जिसे इस तरह के माहौल या इन लोगों से लड़ने और इन्हें मुंहतोड़ जवाब देना आता वो तो इनसे बेख़ौफ़ होकर निपट लेते लेते लेकिन, चन्द ऐसे भी होते जिन्होंने कभी ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं किया या जिसे इस तरह की निम्न भाषा का प्रयोग करना नहीं आता उन्हें मैदान छोड़कर भागना पड़ता या फिर अपना नया प्रोफाइल बनाकर अपनी पहचान गोपनीय रखकर काम करना पड़ता है

क्योंकि, जब कई लोग एक साथ टारगेट कर उन्हें अटैक करते तब इस तरह के विकट माहौल में ब्लॉक का ब्रम्हास्त्र भी काम नहीं आता आखिर, कोई कब तक कितने समय तक यही करता रहेगा इससे उसकी रचनात्मकता व लेखनी दोनों प्रभावित होती जिस ऊर्जा को वो किसी सकारात्मक क्रिया में व्यव करना चाहता उसे बेवजह ही इस तरह की नकारात्मकता में खर्च करना पड़ता जो अनावश्यक रूप से उसे मानसिक तनाव व कभी-कभी अवसाद में भी धकेल देते ऐसे में लगता कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ उनको ही हासिल जो दबंगई से इसका इस्तेमाल कर सके साधारण लोग तो इतनी परेशानी झेल नहीं पाते और अनचाहे ही सही इस जगह से विदा ले लेते है जबकि, इस प्लेटफार्म में अपने मन की भडास निकालने लोग भगवान् हो या धर्म या फिर कोई राजनैतिक दल या फिर कोई संस्था या देश का प्रधानमंत्री किसी की भी आलोचना करने में पीछे नहीं रहते है

सबको अपनी-अपनी बात कहने का हक़ है और सब अपने पक्ष को अपने नजरिये से पेश कर सकते फिर भी कुछ लोगों को लिखने से समूह बनाकर रोका जा रहा केवल, इसलिये कि उनके शब्द, उनकी बातें और उनके विचार उनकी बनाई धारणाओं के खिलाफ़ है जिसके टूटने का भय इस कदर सता रहा कि इसके लिये गैंग बनाकर इस तरह की असंवैधानिक / अमानवीय हरकतों को अंजाम दिया जा रहा जिसके प्रति सजगता जरुरी अन्यथा बहुत-सी प्रतिभायें वक़्त से पहले दम तोड़ सकती और बहुत-सी नवीन विचार धाराएँ या नये रिसर्च आर्टिकल प्रकाशित होने से पहले जेहन में ही सिसकते रह सकते है         
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १९, २०१९

शनिवार, 18 मई 2019

सुर-२०१९-१३८ : #हुआ_जब_आत्मबोध #राजकुमार_सिद्धार्थ_बने_बुद्ध



जीवन का होता एक
स्थायी सत्य
जो सबकी अंतरात्मा में
निवास करता है
मगर, किसी में ये सोया तो
किसी के भीतर ये जागृत होता है
सबको नहीं दिखता
ये चिरसत्य
जिसको पाना ही होता है
जीवन का लक्ष्य
इसका ज्ञान तो केवल
‘आत्मदर्शन’ से ही होता है
मन की गहन कंदरा में
जल उठती जब भी दिव्य ज्योत
छिपा वो दर्शन झलकता है  
ध्यान-अध्यात्म के माध्यम से इसे पाना
योगियों का ध्येय होता है  
फिर इस साक्षात्कार से मिलता
जो दुर्लभ आत्मज्ञान
उसे समस्त संसार में वितरित करना
भटकतों को मार्ग दिखाना
साधक के जीवन का उद्देश्य बन जाता
उच्च मनोबल से ही तो
उसे आत्मसात किया जा सकता
अंतर्मन की आत्मिक आस्था के बिना   
न मुक्ति मिलती
न ही मिलता निर्वाण है
आत्मबल की रौशनी से ही फिर
अज्ञानता का तमस मिटता  
सत्य और ज्ञान का सूर्य उदित होता
तोड़ देता जो सारे भ्रम
मिल जाता ब्रम्ह
देवगण भी आकाश से उस पर
आशीषों की वर्षा करते
घटित हुआ कुछ ऐसा ही  
जिस दिन राजकुमार सिद्धार्थ को हुआ
जीवन की निरर्थकता का बोध
छोड़ दिया राजमहल
त्याग दिये सारे जीवन के सुख
एकांत साधना में हुआ
आत्मसाक्षात्कार
मोक्ष प्राप्ति का स्वप्न
एकाएक ही हो गया साकार
उसी क्षण हुआ मानो चमत्कार   
बना ‘बुद्ध’ राजकुमार

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १८, २०१९

शुक्रवार, 17 मई 2019

सुर-२०१९-१३७ : #कुल_नहीं_कर्म_देवता_बनाते #इसलिये_प्रह्लाद_राक्षस_न_कहलाते




'हिरण्यकश्यप' और 'प्रह्लाद' दोनों एक ही कुल में जन्मे एक ने 'पिता' तो दूजे ने 'पुत्र' का रूप पाया फिर भी स्वाभाविक प्रवृतियां दोनों की एकदम उलट बोले तो पूरब-पश्चिम की तरह विपरीत एक को ईश्वर के नाम से नफरत थी तो दूसरा उनका अनन्य भक्त था और उनकी यही विचारधारा बताती कि 'राक्षस' या 'देवता' कोई अलग-अलग जात या व्यक्ति नहीं बल्कि, 'मानव' के ही दो भिन्न स्वरूप है ।

इंसान अपनी करनी से खुद को 'दानव', 'मानव' या 'भगवान' बना सकता है जैसा कि इनकी कहानी में भी देखने में आता है 'हिरण्यकश्यप' में कोई भी कमी नहीं थी केवल, उसकी परवरिश व परिवेश ने उसके भीतर हिंसक वृतियां अधिक विकसित कर दी जिससे वो ऋषि 'कश्यप' का पुत्र होकर भी 'राक्षस' कहलाया जिसकी वजह उसकी मां 'दिति' को माना जाता है जो इसी तरह की नकारात्मक शक्तियों वाले पुत्र की कामना करती थी ।

वही दूसरी तरफ 'हिरण्यकश्यप' की पत्नी 'कयाधु' है जो दानव 'जम्भ' की पुत्री होने के बाद भी विचारों से पवित्र और करुणामय हृदय की ईश्वर भक्त स्त्री है और अपने पति की दुष्ट प्रवृतियों को जानते हुये भी नहीं चाहती कि उसकी सन्तान में भी वही दुर्गुण आये तो वो अपने पति से अनजाने में नारायण-नारायण का 108 जाप करवा लेती है जिससे उसके भीतर भ्रूण रूप में स्थित 'प्रह्लाद' के अंतर में इशभक्ति का बीजारोपण होता है और ‘भक्त प्रह्लाद’ राक्षस पुत्र होकर भी ‘भगवान’ कहलाते है ।

यही इसी परिवार में 'हिरण्यकश्यप' की बहिन 'होलिका' भी है जो अपने भ्राता की ही तरह खराब सोच वाली है और वह भी अपने भाई की तरह ये जानकर कि उनके खानदान में जगतपालक विष्णु के परम भक्त ने अवतार लिया है उसका नामो-निशान मिटा देना चाहती है लेकिन, उसकी इन हरकतों से उस नन्हे बालक को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि, उसी की मृत्यु हो जाती है फिर भी उसके भाई को समझ नहीं आती है ।

'हिरण्यकश्यप' के अत्याचार उस मासूम पर लगातार जारी रहते है पर, हर बार उसके इष्ट देवता उसकी जान बचा लेते है और अंततः उसको कष्टों से पूर्णतया स्वतंत्र करने के लिये वे 'नृसिंह' के विकराल रूप में आते है जिसमें 'हिरण्यकश्यप' को क्षत-विक्षत कर धरती को भी उसके पापों से मुक्त कर देते है और ये सब होता है वैशाख के पावन महीने की पुण्यदायी चतुर्दशी को जिसे 'नृसिंह जयंती' के रूप में मनाया जाता है ।

भक्त शिरोमणि 'प्रह्लाद' की ये प्रेरक कहानी बताती है कि इंसान किसी भी कुल, परिवार या जात में जन्म लेकर अपने कर्मों से अपनी श्रेणी को बदल सकता और यही हिन्दू धर्म का सबसे शक्तिशाली तथ्य जो सदियों से अनगिनत आततायियों के शासन व जुल्मों-सितम के बावजूद भी उसके अस्तित्व को समूल नष्ट नहीं होने देता और न ही कभी ये मिटेगा जब तक कि उसके मानने वाले उसके मूल तत्व को सहेजकर रखेंगे जो कि एक सार्वभौमिक सत्य है ।

प्रत्येक वर्ष 'वैशाख माह' में इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाना और विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करना हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति व धर्म से जोड़े रखता अतः जब भी हिन्दू धर्म का कोई तीज-त्यौहार आये पूरे दिल से खुश होकर उसके महत्व को समझते हुये उसे जोर-शोर से मनाये । यही छोटे-छोटे सूत्र जो हमें अपनी प्राचीनकालीन परंपराओं से जोड़े रखते अन्यथा टूटे पत्ते की तरह न जाने कब के कहाँ बिखर जाते, न जाने कहाँ पहुंच जाते अध्यात्म का ये रसायन दूर परदेस में भी सबको एक डोर से बांधकर एक साथ रखता है ।

सभी को 'नृसिंह भगवान' के प्रकटोत्सव व भक्त प्रह्लाद के अटूट विश्वास के विजय के प्रतीक इस उल्लेखनीय दिवस की बहुत-बहुत बधाई... 💐💐💐 !!! 
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १७, २०१९

गुरुवार, 16 मई 2019

सुर-२०१९-१३६ : #काल_पुरुष




सारा जग जीत ले कोई
या फिर कर ले फ़तह कोई साम्राज्य
समेट ले मुट्ठी में सारा जहाँ
या फहरा दे परचम सबसे ऊंची चोटी पर
हो चाहे वो त्रिलोकी ‘रावण’
या विश्व विजेता बनने निकला ‘सिकंदर’
या विजयी सम्राट ‘अशोक’
आये बड़े-बड़े सूरमा
मगर, मिल गये
सब के सब ख़ाक में
जब तक जिये
इस भरम में रहे कि
शेष न रहा जीतना कुछ भी
पर, क्या वो सत्य था
या महज़ वहम?
कि,  
सारा इतिहास
सारे बड़े-बड़े ग्रन्थ
खंगालने के बाद
यही पाया है
अब तक भी न हुआ  
एक भी ऐसा
जिसने पराजित किया हो
‘काल’ को
और पलट दिया हो
‘समय-चक्र’ को  
बस, एकमात्र वही तो है
जो अपराजेय था
आज भी है
और, रहेगा... ‘हमेशा’ !!!

#No_one_can_win_time
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १६, २०१९


बुधवार, 15 मई 2019

सुर-२०१९-१३५ : #पहले_केवल_सयुंक्त_मिटे #अब_एकल_परिवार_भी_खो_रहे




कभी पचास-पचास सदस्यों से भरे-पूरे परिवार होते थे जिनमें माता-पिता ही नहीं दादा-दादी, ताऊ-ताईजी, कई चाचा-चाची और उनके बच्चे सब मिलकर एक-साथ रहते थे जिससे कि न केवल रिश्तों की अहमियत पता चलती बल्कि, सबके संग रहने से घर-खर्च व कामों में भी सांझेदारी होती फिर इतने सारे बच्चे कब एक साथ पलते-बढ़ते तो उनमें आत्मीयता व प्रेम भी बरकरार रहता एवं एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता जिसके लिये आज बच्चों की तमाम तरह की क्लासेस में भेजना पड़ता और जब तक वो वापस न आ जाये धड़कते दिल से इंतजार में पलकें बिछाये बैठना पड़ता यही नहीं आज के आधुनिक परिवेश की तरह जहाँ एकल परिवार में एक बच्चा होने से खेलने-कूदने के लिये भी अन्य बच्चों की राह तकनी पड़ती या किसी तरह की मदद चाहिये तो तरसना पड़ता पर, सयुंक्त परिवार में सब तरह संगी-साथी घर में ही मौजूद रहते तो बड़ी आसानी से हर मुश्किल का समाधान कर लिया जाता और जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे से किसी भी तरह के सामान चाहे गहने हो या कपड़े या फिर कोई भी वस्तु लेन-देन में भी कोई संकोच नहीं होता क्योंकि, सबके मध्य परस्पर स्नेह का बंधन होता जो बचपन से उनमें शेयरिंग की आदत को पैदा करता भले, कभी कुछ मन-मुटाव हो जाते या पल भर को मन में खटास पड़ जाती फिर भी रक्त संबंधों की कशिश का रसायन डोर को टूटने नहीं देता जो अब सिर्फ अतीत की बातें रह गयी है

क्योंकि, गाँव हो या शहर सयुंक्त परिवारों का चलन कम होते-होते धीरे-धीरे समाप्ति की तरफ बढ़ता जा रहा जिसकी जगह न्यूक्लिअर फैमिलीज़ ने ले ली जहाँ केवल हम दो हमारे दो वाला परिवेश होता पर, अत्यंत दुःख की बात की अब तो ये भी खतरे में पड़ता जा रहा क्योंकि, लोगों को अब बच्चे पालना ही नहीं पैदा करना भी अपनी लाइफ में हस्तक्षेप लगता तो पहले दो से एक पर आये और अब वो भी नहीं करना चाहते क्योंकि, अपनी ज़िन्दगी अपने लिये जीना चाहते या अपनी लाइफ में इस कदर व्यस्त रहते कि कब वो समय निकल जाता एहसास ही नहीं होता जो कि आने वाले समय के लिये परिवार नामक संस्था के लिये बेहद खतरनाक है हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता को मानना पड़ेगा जो पहले तो हमको बकवास लगती लेकिन, समय आने पर समझ में आती कि किस मानसिकता व दृष्टिकोण के साथ उन्होंने विवाह व परिवार बढ़ाने की उम्र का निर्धारण किया जो उस वक़्त तो बुरा लगता लेकिन, बाद में रिएलाइज करना पड़ता कि वो कितने सही थे जिन्होंने अपने लम्बे अनुभवों के बाद ये जान लिया कि यदि समय से शादी व बच्चे हो तो भले, युवावस्था में ये जिम्मेदारी बोझ या अपरिपक्वता लगे लेकिन, आगे चलकर उस उम्र में जब हम समर्थ नहीं होते उसके पूर्व ही उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते तब जाकर जानते कि अच्छा हुआ जो उस वक़्त वो काम कर लिया अब इस उम्र में ये सब करना बोझिल महसूस होता

इसका ताजा-तरीन उदाहरण टी.वी. धारावाहिक एफ.आई.आर. में एस.आई.‘चंद्रमुखी चौटाला’ का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ‘कविता कौशिक’ का ये कथन जो उपरोक्त उक्ति का समर्थन करता है और जिसने ये लिखने की प्रेरणा भी दी...

38 साल की कविता ने इंटरव्यू में कहा, “मैं बच्चे के साथ अन्याय नहीं करना चाहती अगर, मैंने 40 की उम्र तक बच्चा पैदा किया तो जब वह 20 साल का होगा मैं और मेरे पति बूढ़े हो चुके होंगे और मैं नहीं चाहती कि 20 साल की उम्र में मेरे बच्चे बूढ़े मां-बाप की सेवा में अपना समय गंवाएं। शायद, हमारे अंदर औरों की तरह पेरेंट्स बनने की चाहत भी नहीं है और हम दुनिया को एक हल्की जगह बनाना चाहते हैं वैसे भी इस भीड़भाड़ वाले शहर मुंबई में बच्चे को पैदा कर उसे संघर्ष के लिए नहीं छोड़ सकते” ।

उनके इस कथन को पढ़ें तो इसके अनेक पहलू नजर आयेंगे-

पहला – आज के युवा जब पढ़-लिखकर नौकरी पाकर अपनी जिंदगी को एन्जॉय करना शुरू करते तो उन्हें वो सब इतना अच्छा लगता कि वे ये भूल जाते कि हमेशा सब कुछ ऐसा ही नहीं रहने वाला इसलिये कुछ समय खुद को देकर फिर भविष्य के बारे में भी सोचना जरूरी है और ये सब आजकल बेहद कॉमन हो गया जिसने विवाह तक को अनावश्यक बना दिया है            

दूसरा – माय लाइफ, माय चॉइस के मन्त्र ने सब पर ऐसा असर किया कि वो अपने से आगे देखना ही नहीं चाहता इसलिये विवाह जैसे रिश्ते में निभ नहीं पाता क्योंकि, अपनी आत्मनिर्भरता व आर्थिक स्वतंत्रता की वजह से उसे रिश्ता निभाने समझौते और सहन करने जैसी बातें तुच्छ लगती तो विवाह क्या लिव-इन जैसे उनके पसंद के फैसले भी उनके ही झूठे अहम की भेंट चढ़ जाते और ऐसे में कोई समझाये भी तो जहर-सा लगता है

तीसरा – जैसे ही अपने लाइफ की बागडोर अपने हाथ में आती वे जी भरकर हर एक पल को जी लेना चाहते जिसमें कुछ गलत नहीं लेकिन, हर एक चीज़ का एक समय होता जो उस वक़्त न हो तो उसके मायने नहीं रह जाते इसलिये प्रकृति में भी सारे बदलाव समयानुकूल होते और आजकल जो विपरीत लक्षण दिखाई भी दे रहे तो वो हमारी ही गलतियों का परिणाम है यदि हमने उसे समझ लिया तो जीवन को समझना भी कठिन नहीं होगा आखिर, जीवन भी कुदरत से ही संचालित होता जिसे हम अप्राकृतिक बना रहे तो फिर भुगतने भी तैयार रहना पड़ेगा अतः बेहतर होगा कि देर होने से पहले ही समझ ले नहीं तो हमारे साथ ही सब खत्म हो जाना है

आज भले ये एक मामूली-सी बात या पर्सनल मेटर लग रहा मगर, जब कल इस तरह के प्रकरणों का प्रतिशत बढेगा तब तक देर हो चुकी होगी और यदि इनके माता-पिता भी यही सोचते तो ये किस तरह आते और अभी जब दुनिया में संघर्ष दिख रहा तो आगे जटिलताएं अधिक बढ़ेगी तो ऐसे में हथियार डालना नहीं बल्कि, उसका समाधान निकालना अधिक जरूरी है तो जिस वजह से ये स्थितियां उत्पन्न हो रही उनका विश्लेषण कर कुछ ऐसा हल निकाले कि बच्चों की किलकारी बची रहे... तभी ये ‘विश्व परिवार दिवस’ भी सार्थक होगा । 
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १५, २०१९

मंगलवार, 14 मई 2019

सुर-२०१९-१३४ : #हिन्दू_धर्म_से_जो_अब_तक_रहे #आज_भगवाधारी_बनकर_मन्दिर_मन्दिर_क्यों_घूम_रहे




कभी जिस ‘भगवा’ और ‘हिन्दू’ शब्द को बदनाम करने की साजिश रच रहे थे वो लोग आज खुद को न केवल गर्व से ‘हिन्दू’ कह रहे बल्कि, माथे पर त्रिपुंड सजाये तन पर भगवा धारण कर रहे है यही नहीं कल तक जो लोग समझते थे कि भारत में केवल एक ही मजहब के लोग रहते तो उनको संतुष्ट करने तमाम नेतागण सारी योजनायें और नीतियां ही नहीं कानून भी उनके अनुसार ही बनाते थे लेकिन, वही लोग आज सब कुछ भूलकर केवल हिन्दुओं को खुश करने में लगे है क्यों ???

क्योंकि, इनके हाथ से सरकार जाते ही इनको एहसास हुआ कि इनसे कितनी बड़ी गलती हो गयी जो इन्होने बहुसंख्यकों को जगह सिर्फ अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश की और ये करते समय भूल गये कि अत्याचार सहते-सहते तो गूंगा भी बोलने लगता है जब सालों-साल इस तरह से भेदभाव का व्यवहार किया जाये और हिन्दू धर्म को कमतर दिखाने का प्रयास किया जाये जिससे कि न्याय का पलड़ा एक तरफ झुक जाये तब उस समुदाय को अपना वजन दिखाना पड़ता है । यूँ तो हिन्दू बेहद शांत व हर हाल में खामोश रहता पर, जब बात उसके अस्तित्व को कायम रखने या उसकी पहचान पर बढ़ते खतरे की हो तो उसको सोचने पर मजबूर होना पड़ता है । उसके बाद भी कोई कोई हथियार उठाकर अपना प्रतिकार नहीं दर्शाता और न ही किसी पर जुल्म-जबरदस्ती करता केवल, अपने मताधिकार का प्रयोग कर के अपना विरोध जता देता है । ऐसे में उसने जब 55 साला सरकार को तुष्टिकरण की राजनीति करते और हिन्दू धर्म को गलत साबित करने का दुष्प्रचार करते देखा तो उसका माथा ठनका कि बात उतनी सरल-सहज नहीं इसमें कोई गहरा षड्यंत्र है ।

एक पक्ष किसी भी तरह ‘हिन्दू धर्म’ को इतना बदनाम कर देना चाहता कि इसके मानने वालों को खुद को ‘हिन्दू’ कहने में ही शर्म आये जिसके लिये ‘आतंकवाद’ जैसा घृणित शब्द जो अब से पहले तक किसी विशेष मजहब से जुड़ा उसे किसी भी तरह हिन्दू धर्म के साथ चस्पा कर देना चाहते है । अपने इस मिशन को पूरा करने ये हिन्दू धर्म के प्रतीकों को अपराधों से जोड़ने लगे और अपने ही कर्ताधर्ताओं को भगवा पहनाकर व कलावा बंधवाकर दंगे करवाये ताकि, पहले तो ये ये रंग हिंसा का प्रतीक बन जाये फिर आगे इसके अनुयायियों पर निशाना साधा जाये । इसी क्रम में हिन्दू धर्म प्रचारक चाहे वो आशाराम बापू हो या राम रहीम या फिर सबको एक-एक कर ऐसे आरोपों में फंसाया गया कि खुद हिन्दुओं ने उनके लिये कड़ी-से-कड़ी सजा की मांग करने गुहार लगाई । ये कहने का मतलब नहीं कि ये लोग गुनाहगार नहीं दूध के धुले है लेकिन, क्या सिर्फ यही ऐसे है यदि ऐसा है तो फिर जिन पादरियों या मौलाओं पर इस तरह के आरोप लगे उनका इतना प्रचार क्यों नहीं किया गया और उन्हें जमानत किस आधार मिली ।

पहले लोग ऐसे मामलों में चुप रहते थे पर, अब न केवल खड़े होकर सवाल करते बल्कि, गलत को गलत भी कहते है जबकि, पहले तो ये होता था कि जो भी कह दिया गया या किताबों में लिखकर पढ़ा दिया गया सब उसे ही सच मानते थे । इसकी वजह ये थी कि एक ही परिवार की सरकार होने से कुछ लोगों को पूरा देश ही अपना घर और इसकी संपत्ति अपनी जायदाद लगने लगा था तो उन्होंने मनमर्जी से इसका भरपूर दोहन किया पर, सौ सुनार की तो एक लुहार की इसलिये सत्ता परिवर्तन होना था जो हुआ । ऐसा होते ही उनका तिलमिलाना क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप सामने आया क्योंकि, इन पांच सालों में उनका कच्चा चिट्ठा जनता के सामने आने लगा तो अब वापस बागडोर अपने हाथ में लेने सभी ठगों में मिलकर एक होने का प्लान बनाया । इसे भी समझदार अवाम समझ गयी कि इनको देश की नहीं खुद की फ़िक्र जिसकी खातिर ये हर दांव आजमा लेना चाहती इसलिये अब उसी जनता को खुश करने शैतानों ने भगवान की शरण लेने की ठानी । जिनके शब्दकोश में भी कहीं ‘हिन्दू’ शब्द नहीं था अब वे ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ जैसा नया शब्द लेकर आये और मन्दिर-मन्दिर की ख़ाक छानने लगे यहाँ तक कि तीर्थ यात्रा भी कर लिए जो कभी सोचा न था वो सब भी कर रहे और उनके इस बनावटी रूप को देखकर ‘रंगे सियार’ की कहानी याद कर जनता हंस-हंसकर लोटपोट हो रही है ।

जनता को पता कि चुनाव बाद ये रंग उतर जाना है फिर उसके पीछे छिपा भेड़िया सामने आ जायेगा जो अभी भगवान का नाम ले रहा, यज्ञ-पूजन कर रहा वो महज़ दिखावा वोट हथियाने का तरीका है । फ़िलहाल भले उसने अपनी मासूमियत, क्यूटनेस, स्माइल और मधुर वाणी की आड़ में अपने तीखे नाख़ून, अपने तेज सींग और राक्षसी दांत छिपा लिये पर, जैसे ही कुर्सी मिली सब बाहर आ जायेंगे जिससे ये फिर अपने नोचने-खसोटने का काम शुरू कर देंगे जो पहले से करते आ रहे है । इस बार तो वे अंतिम वार करेंगे क्योंकि, बहुत मजबूर होकर उन्हें हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों को अपनाना पड़ रहा जो कि इनकी स्वाभाविक प्रवृति नहीं है और कृत्रिमता कितने दिन ठहरेगी एक दिन तो पोल खुनी ही है । इसलिये अब समय आ गया कि हिन्दू इसे जितनी जल्दी हो समझ जाये अन्यथा अपनी सत्ता को फ्रीज करने ये कुछ ऐसा करेंगे जिससे कि हिन्दू फिर इनकी मुट्ठी में आ जाये यही इनकी असलियत है । ‘हिंदुत्व’ की ताकत उन तस्वीरों में झलकती जिसमें खुद को हिन्दू कहने से शर्माने वाले हिन्दू बने नजर आ रहे जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता क्योंकि, लम्बे इंतजार के बाद ये समय आया जो तभी थमेगा जब हम अपनी अहमियत समझेंगे नहीं तो अभी सिर्फ राम मन्दिर बनवाने को तरस रहे फिर जो शेष वो भी नहीं बचेंगे पहले भी तो यही हुआ है ।

कल ‘कमल हासन’ जिस इस देश की जनता ने सर आँखों पर बिठाया सुपर-स्टार बनाया उसने हिन्दू धर्म को कलंकित करने राष्ट्रपिता ‘महात्मा गाँधी’ के हत्यारे नाथूराम गोडसे को हिन्दू आतंकवादी कहा । वो उसे केवल आतंकी भी कहते तो शायद, उतना बवाल नहीं मचता लेकिन, उन्होंने जान-बुझकर उसे पहला ‘हिन्दू आतंकवादी’ कहा क्योंकि, उनका टारगेट और एजेंडा एकदम साफ़ कैसे भी हो हिन्दू धर्म के साथ इस शब्द को चिपकाना है जिसके लिये वे किसी भी हद तक जा सकते उस पर उन्हें पता कि हिन्दू धर्म को कुछ भी कहो वे लोग सब सुनकर चुप रहते है । ये हमारी स्वाभाविक प्रवृति जो हम धैर्य, शांति व क्षमा भाव को प्राथमिकता देते पर, यदि हमारी यही ख़ामोशी हमें कमजोर साबित कर दे तो सोचना लाज़मी है कि आखिर, क्यों सब हमारे धर्म पर ही लांछन लगाते रहते है क्योंकि, एक तो हम में एकजुटता नहीं दूसरे, हम पर शासन करना आसान है । गोडसे अगर, वाकई आतंकी होता तो हमारे भी 50-60 न सही कम से कम 5 या 6 तो ‘हिन्दू राष्ट्र’ जरुर होते लेकिन अफ़सोस कि एक भी नहीं है और जो बन सकता था उसे बनने भी न दिया गया क्योंकि, जब भारत के दो टुकड़े करने का निर्णय लिया गया तब ‘जवाहर लाल नेहरु’ को पाकिस्तान के पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र बनने पर तो कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन, हिंदुस्तान को हिन्दू राष्ट्र का दर्जा मिले ये मंजूर नहीं था । यहाँ तक कि ‘धर्म निरपेक्ष’ शब्द भी ‘भारतीय संविधान’ में बाद में जबरन जोड़कर नेताओं को एक ऐसा हथियार दे दिया जिसकी ढाल बनाकर ये केवल एक धर्म को ही सपोर्ट करते यहाँ तक कि ‘अल्पसंख्यक’ शब्द के मायने भी केवल एक समुदाय विशेष से लिये जाते है ।

हमें किसी भी मजहब से कोई समस्या नहीं और सब इस देश में मिलकर रहे ये भी हम सबने स्वीकार कर लिया लेकिन, बात अपने अस्तित्व को बचाने की हो तो चींटी भी काट लेती है तो वही करने की आवश्यकता है ।         
    
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १४, २०१९

सोमवार, 13 मई 2019

सुर-२०१९-१३३ : #सीता_सम_बने_जो_नारी #स्वयं_उठाये_अपनी_जिम्मेदारी



जनकसुता जग जननि जानकी।
अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ।
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
--- श्रीरामचरितमानस

जिस तरह से लगातार आये दिन ‘हिन्दू धर्म’ को निशाना बनाया जा रहा ऐसे में जरूरी कि हम न केवल अपने धर्म को जाने और समझे साथ ही उसके उपर लगने वाले हर गलत आक्षेप का तर्कयुक्त तथ्यपूर्ण सत्य जवाब भी दे न कि नजरअंदाज कर अपने में ही मगन रह क्योंकि, हमारी इस लापरवाही ने ही ऐसी स्थिति बना दी कि धीरे-धीरे प्रतीकों व रीति-रिवाजों से शुरू हुई बातें उनको गलत बताते-बताते कब सम्पूर्ण धर्म को ही कलंकित करने लगी पता नहीं चलता ऐसे में हिन्दुओं का अब भी खामोश रहना अखरता है ‘धर्म निरपेक्षता’ के नाम पर केवल एक ही मजहब की बात की जाती जो कि इस दर्जा एकतरफा मामला है कि उसमें हिन्दू धर्म का काम केवल सहनशीलता की मूर्ति बनकर हर अन्याय और अपने पर लगे हर इल्जाम की चुपचाप सहन करना है और जो उसने कुछ कहा या अपना विरोध दर्ज करवाया सभी सेक्युलर व लिबरल्स के कलेजे में पीड़ा होने लगती और उसे कुछ ऐसे घृणित आरोप लगाकर अपराधी के कटघरे में खड़ा किया जाता कि यदि वो अपने धर्म के प्रति सजग एवं जानकार नहीं तो अंततः ‘हिन्दू आतंकवादी’ घोषित कर दिया जाता है

आज ये सब इसलिये कहना पड़ रहा कि आज ऐसा पुनीत-पावन दिवस जब कि जगत जननी जनक दुलारी ‘सीता’ धरती की कोख से प्रकट हुई पर, दुनिया भर के तमाम डेज मनाने वालों को वो सब तो याद रहता लेकिन, अपने ही धर्म की इतनी महत्वपूर्ण तिथियाँ या तो याद नहीं या किसी ने बता भी दिया तो ऐसा कोई जज्बा भीतर नहीं जगता कि उस पर अपना कीमती समय बर्बाद करें जबकि, दूसरे मजहब के लोग अपने रिलिजन के प्रति इतने अलर्ट रहते कि अपने किसी रिवाज से कोई समझौता नहीं करते है यही लोग मगर, बड़े-बड़े आलेख लिखकर हिन्दुओं को बताते रहते कि उनके धर्म की प्रथाएं कितनी निरर्थक व अनुपयोगी जिनको अब भी मानते रहना बेहद गलत तो जब भी कोई त्यौहार या तिथि आये सब एक साथ चालू हो जाते जिससे कि सब न सही जितने भी लोग उनके पाले में आ जाये उतने ही ठीक लगातार अपने एजेंडे पर कायम रहने से एक दिन वे इस मिशन में सफलता हासिल कर ही लेंगे तो इसी उम्मीद पर डटे रहते है      

‘माता जानकी’ के चरित्र एवं उनके मानवीय गुणों पर भी ऊँगली उठाने से बाज नहीं आते जिससे कि वे हिन्दू स्त्रियों बरगला कर वे इतना कमजोर बना दे कि उन पर आसानी से शासन कर सके तो उनको इस तरह प्रस्तुत करते कि जैसे वे कोई अबला और सताई गयी स्त्री हो जिनका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं सिर्फ अपने पति श्रीराम की परछाई हो और उनके जैसा बनने से हम पर भी उनकी तरह बंदिशें लगाई जाएगी और अग्नि परीख्सा जैसी कुप्रथा के नाम पर अपमानित भी किया जायेगा जो कि केवल अर्धसत्य है जब हम खुद उनको पढेंगे व जानेंगे तो समझ आयेगा कि वे बेहद सशक्त, आत्मनिर्भर व मजबूत इच्छाशक्ति वाली नारी है जो किसी भी तरह की विषम परिस्थितयों में घबराती नहीं और मुश्किल आने पर निर्णय लेने से भी पीछे नहीं हटती इसलिये राजमहल छोड़कर वनगमन करना हो या वनवासी होकर प्रतिकूल परिस्थियों में रहना या फिर अशोक वाटिका में आसुरी शक्तियों के मध्य बिना भयभीत हुये रहना हो या अपने बच्चों को सिंगल पेरेंट के रूप में जन्म देना व पालना और वापस पृथ्वी में ही समाना हो सभी फैसले बिना किसी दबाब के लेती जो उनके अपने होते है    

आज ‘जानकी नवमी’ पर हमको उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये और ऐसी ही महतवपूर्ण तिथियों व तीज-त्यौहारों का ज्ञान रखकर हम अपने अपने धर्म का सम्मान कर सकते है क्योंकि, धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात तुम धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा अन्यथा बिना धर्म के व्यक्ति अधर्मी ही नहीं असुर भी बन जाता है

जगत जननी माता जानकी के अवतरण दिवस की सबको शुभकामनायें... !!!
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १३, २०१९