रविवार, 3 अप्रैल 2016

सुर-४५९ : “हम दोनों नदी के किनारे... पर, जीने के सहारे...!!!”


दोस्तों...

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‘अवनि’ और ‘कौस्तुभ’ एक-दूसरे को हद से ज्यादा चाहते थे लेकिन उन दोनों के घरवाले किसी भी तरह से उनकी शादी के लिये तैयार नहीं थे ऐसे में उन्होंने अलग-अलग ही रहने का फैसला किया लेकिन मन के भीतर पलता प्रेम तो इन बातों को नहीं मनाता उसने तो जिसे अपना मान लिया फिर वो भले ही हर पल साथ न हो पर, वो तो जुदाई में भी खुश होने के बहाने ढूंढ लेता---
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मिलते नहीं
नदिया के किनारे
पर, सदा चलते
साथ-साथ
एक दूजे के सहारे
हर राह, हर पड़ाव पर
इस आस में कि
कहीं तो आयेगी कोई
संकरी गली
जहां बढ़ाकर हाथ
छू लेंगे परस्पर
ये भी न हुआ तो
कोई गम नहीं
नजदीकी का अहसास ही
कोई कम तो नहीं
जब मिलन न लिखा हो
तकदीर के पन्नों पर
तो इतना आसरा ही बहुत हैं
दुनिया में जीने के लिये
कि बेचैन दिल को
इक सुकून तो मिलता
आस-पास रहने का
आमने-सामने होने का
कम से कम...
इतना ही हो जाये तो
हर एक तूफान को हंसकर
पार किया जा सकता हैं
सच...!!!
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वो दोनों भी नदी के किनारे की तरह एक-दूसरे से दूर होकर भी खुश थे कि भले ही मिल नहीं सकते लेकिन जीवन के हर पडाव, हर राह में सदा साथ तो रहेंगे एक दूसरे का सहारा बन कर... इस तरह से उन दोनों ने अपने माता-पिता के फैसले का सम्मान करते हुये अपने प्यार को भी सम्मानित किया कि उन्होंने अपने जीवन को तन्हां होकर रोते हुये बिताने की जगह उसमें ही मुस्कुराने की एक प्यारी-सी वजह जो ढूंढ ली थी... :) :) :) !!!  
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०३ अप्रैल २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
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