शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

सुर-४५७ : "लघुकथा : प्रेम बनाम अहम्... !!!"


 दोस्तों...

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कई दिन हो गये इंतज़ार करते-करते लेकिन ‘सयाली’ महसूस कर रही थी कि अब ‘वरुण’ उसे पहले जैसा रिस्पांस नहीं देता यहाँ तक कि उसके मेसेज इनबॉक्स में प्रतिउत्तर की रह तकते-तकते बेमानी हो जाते पर, जवाब नहीं आता और ये कोई पहली बार नहीं हो रहा था तो ऐसे में उसने उससे मिलकर ही बात करना तय किया और फोन कर बता दिया कि वो शाम को पांच बजे उसी स्थान पर उसकी राह देखेगी जहाँ वो हमेशा मिलते

शाम को जब पार्क में वो दोनों मिले तो ‘सयाली’ ने तुरंत कहा, “क्या हुआ वरुण, कुछ दिनों  से तुमने मेरे किसी भी संदेश का जवाब क्यों नहीं दिया बोलो”

“क्यों दूँ ? तुम जरा इनबॉक्स में गौर से देखने तुमने एक महीने पहले के मेरे मेसेज का जवाब नहीं दिया आज तक तो फिर मैं क्यों दू ?”

‘सयाली’ ने आश्चर्य से कहा, वो... वो तो उस वक्त मेरी बुआजी आई हुई थी तो मैं बहुत व्यस्त थी तुम्हें बताया भी तो था तो फिर ये कौन-सी बात हुई?

वही बात जो होना चाहिये थी सच तो ये कि तुमने जान-बुझकर ऐसा किया जबकि उन दिनों में भी मैंने हजारों बार तुम्हें ऑनलाइन देखा ? तो क्या सिर्फ मेरे लिये ही समय नहीं था ?

वरुण, तुम तो हजारों बार मुझे जवाब नहीं देते वो भी मेरे अच्छे-खासे जरूरी से जरुरी संदेशों पर, मैंने तो आज तक कभी ये बात नहीं कही क्योंकि मैं समझती थी कि तुम व्यस्त होगे तो कभी भी इन बातों को मुद्दा नहीं बनाया पर, तुम तो हमेशा ही मेरे जवाब न देने को इशू बना देते हो

तुम्हारी बात अलग तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता पर, मुझे बहुत बुरा लगता जब तुम मुझे इग्नोर करती हो

वरुण, तुम्हें ऐसा क्यों लगता बताऊँ क्योंकि तुम अब तक अपने ‘अहम्’ से बाहर नहीं निकले फिर तुम ‘प्रेम’ किस तरह से कर सकते क्योंकि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते सच, अब हद हो गयी आखिर, कब तक मैं ही सब कुछ भूलकर आगे कदम बढ़ाऊं तुम तो हमेशा अपने इगो को लेकर चुप्पी साधकर बैठ जाते, मैं ही जानती कि इस दरम्यां मैं कितनी मुश्किलों से गुजरती इसलिये मुझे लगता कि अब फैसला हो जाये तुम इन दोनों में से किसी एक को चुन लो

फिर उसने देखा कि ‘वरुण’ जो उसकी बात सुन गुस्से में आ चुका था, बिना कुछ बोले अपने ‘अहम्’ को साथ लेकर उसे छोड़कर चला गया और वो अपने ‘प्रेम’ के साथ अकेली रह गयी      
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०१ अप्रैल २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री

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