सोमवार, 4 अप्रैल 2016

सिर-४६० : "चिंतन : सब, बातें हैं... बातों का क्या..???"

 दोस्तों...

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नेतालोग भाषण में केवल वही बातें बोलते जिनसे चुनाव के पहले उनकी सीट पक्की होती और चुनाव के बाद बनी रहती... लेकिन लोगों की गलती जो इतने बरसों से इतने दलों और उनसे अधिक नेताओं के गिरगिटाना रवैये को देख कर भी सुधरे नहीं, उसे सच मान अन्धविश्वास करते यहाँ तक कि उनके अपने तक उनको पहचान नहीं पाते ठगे जाते ।

यकीन न हो तो जरा इस पर नजर डाले---
 
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आज मंत्रीजी
बड़े जोश में बोले---
"ये जातिप्रथा, ये भेदभाव
हमारे लिये कलंक हैं
हमें इसे मिटाना ही होगा
आपस में मेल करना पड़ेगा
सबको इससे उपर उठकर
एक दूजे का हाथ थामना होगा"।
.....
सदन में बड़े उत्साह से
सबने उनकी इस पहल को
देशहित में प्रेरक बताया
घर में सभी ने उनकी
दिल खोलकर तारीफ़ की
और बेटी ने तो इस बात पर खुश हो
आगे बढ़कर अपने प्रिय पापा से
अपने विजातीय प्रेम का
खुलासा कर दिया
फिर क्या ???
सारे घर में सन्नाटा छा गया ।
..........
अगले दिन अख़बार में छपा
भीषण रोड हादसे में
मंत्रीजी की इकलौती बेटी की मौत
जिसे उन्होंने विपक्ष की चाल बताया
इस तरह एक बार फिर
मीडिया ने 'ऑनर किलिंग' को
राजनितिक रंग देकर
नेताजी का रास्ता साफ़ कर दिया ।।
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जब नेताका समय आता तो सब उसके गुलाम होते उसके बिना बोले ही उसकी बात समझ जाते और वैसा ही करते जैसा वो चाहता तभी तो जनता के सामने वही आता जो वो कहता... और रहे हम... हमें तो जी, आदत पड़ गयी उनको कथनी-करनी का विलोम देखकर भी न सुधरने की फिर भी शिकायत क्यों करते समझ नहीं आता :( :( :( ???

जबकि हम चाहे तो सत्ता पलट दे और चाहे तो आसमान को जमीन पर झुका दे लेकिन तब न, जब ऐसा करना चाहे, भई यदि एक के बाद एक पार्टी को मौका देने से हमारा काम चला रहा तो फिर कोई इतना कष्ट काहे उठाये... क्यों न बैठकर चैन की बंशी बजाये... जो उसका प्रिय काम... :) :) :) !!!
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०४ अप्रैल २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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