गुरुवार, 31 मार्च 2016

सुर-४५६ : "दर्द की देवी 'मीना कुमारी'... की न कभी अदाकारी...!!!"


दोस्तों...

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पीड़ा का
साकार रूप बनी
‘दर्द की देवी’ कहलाई
जब-जब भी
पर्दे पर कोई रूप धरी 
‘महजबीन’ की पहचान खो गई
‘मीना कुमारी’ ऐसी अभिनेत्री बन गई
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मित्रों...,

वो समय जब भारत में मनोविनोद के बड़े ही सीमित साधन थे तब ‘सिनेमा’ का उदय होते ही वो ‘मनोरंजन’ का ऐसा पर्याय बन गया कि आज भी लोग उसे व उसके कलाकारों को हद से ज्यादा तवज्जों देते और उनकी इस दीवानगी ने ही उस दौर से लेकर आज तक इन अदाकारों के प्रति लोगों का जुनून कम नहीं होने दिया तभी तो उनके बारे में हर जानकारी पाना चाहते और वो दौर जबकि इस जानकारी को पाने के लिये भी इतने यंत्र-तंत्र नहीं थे तब पत्र-पत्रिकाओं में उनके चित्र देखकर और उनके बारे में पढ़कर या फिर ‘रेडियो’ पर उनकी आवाज़ सुनकर ही खुश हो जाते थे तभी तो उस जमाने में सिने-सितारों को जो दर्जा हासिल हुआ वो आज सभी तरह की आधुनिकतम मशीन होने के बावज़ूद भी उनसे कम अभिनय करने वाले लेकिन उनसे अधिक पारिश्रमिक पाने वाले कलाकारों को भी नहीं मिला यही वजह कि उन नींव के पत्थरों को भूल पाना संभव नहीं तभी तो आज भी उस दौर के चलचित्रों को न सिर्फ ‘क्लासिक’ का तमगा दिया जाता हैं बल्कि उसमें काम करने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी उनके प्रशंसक उतनी ही शिद्दत से याद करते और ढूंढ-ढूंढकर उन फिल्मों और कलाकारों को ‘नेट’ पर देखते रहते उनसे सीखने का प्रयास करते क्योंकि ये वो लोग हैं जिन्होंने बिना किसी अभिनय के पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण के ही सहजता से ही जिस तरह रुपहले पर्दे पर किरदारों को अभिनीत किया तो वो चरित्र जैसे जीवंत ही हो उठे तभी तो आज भी यदि कोई सिर्फ़ ‘छोटी बहु’ बोले तो लोगों की जुबान पर अपने ही आप ‘मीना कुमारी’ का नाम आ जाता जिसने इस कदर डूबकर उस पात्र को जिया कि किसी को भी नहीं लगा कि ये विमल मित्र की ‘साहिब बीबी गुलाम’ उपन्यास का कोई काल्पनिक चरित्र हैं जिसे रजतपट पर ‘मीना कुमारी’ ने सिर्फ़ निभाया हैं

यही थी ‘मीना कुमारी’ के अभिनय की सहजता जिसने उसको दो दशक तक अव्वल नंबर पर रखा और आज तलक भी उनकी यही अदा उन्हें अपने चाहनेवालों के दिलों में भी जीवित रखे हुये हैं क्योंकि भले ही पेशे से वो एक अदाकारा थी लेकिन उसने कभी भी किसी बनावटी भाव-भंगिमा को अपने चेहरे पर आने नहीं दिया बल्कि जब भी जो भी रोल मिला उसे इस तरह से सजीव किया कि देखने वाले को वो झूठा नहीं लगा उनका बचपन जिस अभाव और वेदना से गुज़रा था उसने उनके भीतर दर्द का एक उफनता हुआ सागर पैदा कर दिया जिसकी लहरें उनकी आँखों के रास्ते से आने का मार्ग ढूंढ ही लेती थी यही था उन बोलती हुई सम्मोहक आँखों का राज़ जिसके माध्यम से वो बिना जुबान का इस्तेमाल किये भी इतना कुछ बोल देती थी कि सामने वाला मंत्रमुग्ध-सा बस उनको देखता ही रह जाता था उफ़... क्या बला का जादू था मीना की दर्दीली मय से भरी छलकती नजरों में कि अब तक भी उनके दीवानों को होश नहीं आया हैं इसलिये तो उनके इस दुनिया से जाने के बाद भी हम उनको उतने ही प्यार से याद करते हैं आज उनकी पुण्यतिथि पर उनकी यादों का चले आना ही बताता कि भले ही वो सादगी भरी सुंदरता की प्रतिमा अब हमारे बीच नहीं हैं पर, उनकी अभिनीत सभी फिल्म और उनकी मौजूदगी का अहसास तो अब भी हैं न... जो काफी हैं ये बताने को कि जाने वाले चले जाते... इंसान मर जाते पर, यदि वो एक भी ऐसा काम कर जाते जो उसके बाद भी इस जहान में उसके नाम, उसकी पहचान को जिंदा रखता तो सच मानिये उसने सही मायनों में जिंदगी जी हैं... अपने जीवन को सार्थक बनाया हैं फिर भले ही उसके लिये उसने कोई-सा भी सकारात्मक मार्ग चुना हो पर, जिससे किसी को सुकून या ख़ुशी मिली जाये वो कभी-भी गलत नहीं हो सकता

बालपन से ही अपने परिवार को पालने की जिम्मेदारी उनके नाज़ुक कंधों पर आ गयी जिसने उसे वक़्त से पहले ही संजीदा बना दिया तभी तो बिना ही ग्लिसरीन के उनकी आँखें छलक जाती और पर्दे पर अनवरत दर्द को अभिव्यक्त करते हुये वो साक्षात ‘दर्द की देवी’ बन गयी और इसमें उनका साथ दिया उनकी पुरसुकून ह्रदय को बेधने वाली उस कशिश भरी आवाज़ ने जिसे सुनकर आदमी अपनी सुध-बुध भूल जाता... इस तरह वो मासूम बाला जिसका नाम कभी ‘महजबीन’ था वो बाल चरित्र, धार्मिक किरदारों को निभाते-निभाते ‘मीना कुमारी’ नाम की एक महानतम अभिनेत्री बन गयी जिसने हर तरह के सम्मान और पुरस्कार तो अपनी झोली में किये ही साथ-साथ अपने अंतर की बैचेनी को सफे पर उतारते-उतारते वो एक ‘शायरा’ भी बन गयी जो ये ज़ाहिर करता हैं कि कुछ ऐसा भी था उनके भीतर जिसे वो अभिनय से भी अभिव्यक्त नहीं कर पा रही थी तो उसके लिये उन्होंने अपनी ‘डायरी’ को अपना हमदम अपना हमनवां बनाया और उसमें अपने मन की पीड़ा को लिखती गयी जिसे पढ़कर पता चलता हैं कि वो कितनी नाज़ुक और भावुकता से भरी नारी थी पर, अफ़सोस कि उसे उसका ही परिवार, उसका शौहर या उसके जीवन में आने वाले तमाम लोग भी उसे रत्ती भर भी न समझ पाये... अमूमन ख़ामोशी के पीछे कोई तूफ़ान छूपा होता लेकिन सबको देर से खबर होती जब वो आकर गुजर जाता... ‘मीना कुमारी’ उर्फ़ ‘महजबीन’ नाम की ‘सितारा’ आसमान से टूटकर आने वाली एक दुआ थी जिसे कोई दामन या प्यार भरे हाथों का सहारा नहीं मिला वरना, वो यूँ पूरी हुये बिना ही तो चली नहीं जाती... अक्सर लोग टूटते तारे को देखकर उससे कोई ‘विश’ मांगते लेकिन जब अनजाने ही वो पूर्ण होकर उसके आंचल में आ जाती तो उसे समझ नहीं पाते शायद... तभी तो वो किसी भी कोने या दरार से टपक जाती... यही तो उसके साथ भी हुआ... तो आज पुण्यतिथि पर यही चंद अल्फाज़ समर्पित हैं... रंजोगम की उस जीती-जागती दिव्य आत्मा को... :) :) :) !!!
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३१ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
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