बुधवार, 7 अगस्त 2019

सुर-२०१९-२१९ : #स्त्री_सशक्तिकरण_की_मिसाल #मदर_इंडिया_की_स्वरुप_सुषमा_स्वराज




जब हम ‘स्त्री सशक्तिकरण’ शब्द से न तो परिचित थे और न ही इसके मायने ही जानते थे उस दौर में इन शब्दों को अर्थ का अमली जामा पहनने का काम किया कुछ ऐसी आत्मबल से मजबूत आत्मनिर्भर महिलाओं ने जिनकी वजह से आज लडकियाँ न केवल ‘माय लाइफ, माय चॉइस’ का नारा लगा रही है बल्कि, आज़ादी से मनचाहा जीवन भी जी रही है मगर, उनके लिये ‘वीमेन एम्पोवेर्मेंट’ का मतलब महज़ मनमानी करना है जबकि, जो नारी सही अर्थों में इसे ग्रहण करती वो जानती कि इसका तात्पर्य कतई ये नहीं कि ‘औरत’ अपने भीतर की कोमलता या नारीत्व को खत्म कर के स्त्री का ‘मेल वर्शन’ बन जाये बल्कि, वो तो अपने स्त्रीत्व को कायम रखते हुये इस तरह से अपने व्यक्तित्व का निर्माण करती कि उसकी शख्सियत को देखकर स्वतः ही अबला, कमजोर, असहाय स्त्री की छवि धूमिल पड़ जाती कि वो समाज की विडम्बनाओं व कुरीतियों से जूझते हुये अपने वजूद को इस्पात में ढाल लेती जिसके भीतर उसकी संवेदना उसी तरह सुरक्षित रहती जैसे की सीप में मोती पर, उपर से सख्त इरादों की झलक ही दिखलाई पड़ती और मौके के अनुसार वो अपने स्वरुप को उसी तरह से बदल लेती जैसे कि कोई कलाकार कहानी की मांग के अनुसार अपने पुराने चोले को उतारकर नया धारण कर लेता है कुछ ऐसा ही साकार किया इन शब्दों को भारतीय राजनीति के क्षेत्र में ‘महिला सशक्तिकरण’ के प्रतीक के रूप में उभरकर विश्वपटल पर सामने आने वाली राजनेत्री व आयरन लेडी ‘सुषमा स्वराज’ ने जिनका कल रात 70 बरसों से प्रतीक्षारत 370 हटने वाले सुनहरे पलों को देखने के बाद असमय निधन हो गया पर, वे तो अनेकों दिलों में जीवित है और सदैव रहेंगी कि उन्होंने अपने कर्मयोगमय जीवन से सदैव भारत की नारियों को प्रेरणा देने का काम किया और उनको देखकर न जाने कितनी स्त्रियों ने इस कार्यक्षेत्र में आने का निर्णय लिया होगा जो अब तक ये समझती थी कि ‘राजनीति’ तो महिलाओं के लिये बनी ही नहीं है पर, उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन से जिसमें 50 साल तो उन्होंने इस क्षेत्र में ही बिताये और अलग-अलग पदों पर रहते हुये अपनी स्वच्छ बेदाग छवि, ओजस्वी वाणी और सतत देशहित व सामाजिक कार्यों से अपने कद को आदमकद में बदल दिया जिसकी ऊँचाई के आगे हिमालय भी बौना है तभी तो आज सोशल मीडिया हो या प्रिंट मीडिया हर कोई उनको नम आँखों से अपनी श्रद्धांजली अभिव्यक्त कर रहा है

वे शुरुआत से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थी और शैक्षणिक जीवन में अपनी योग्यता से अनेक सम्मान हासिल किये और जब राजनीति में आने का निर्णय लिया तो वहां भी अनगिनत कीर्तिमान स्थापित किये कि छोटी-सी उमर में उन्होंने जब इस जगत में पदार्पण किया तो फिर रुकी नहीं महज़ 25 साल की कमसिन आयु में प्रथम कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव हासिल किया तो २७ वर्ष की उम्र में स्वराज हरियाणा राज्य में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष बनी उसके बाद तो वे रुकी नहीं विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुये वाजपेयी सरकार में उनको १९ मार्च १९९८ से १२ अक्टूबर १९९८ तक की अल्पावधि में दूरसंचार मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पद पर रहते हुये काम करने का अवसर मिला पर इतने कम समय में ही जो सबसे उल्लेखनीय काम किया वह था ‘फिल्म उद्योग’ को एक ‘उद्योग’ के रूप में घोषित करना जिससे कि भारतीय फिल्म उद्योग को भी बैंक से क़र्ज़ मिल सके और ये भी कम लोग ही जानते हैं विश्व का अनोखा अनूठा साहित्य संस्कृति और कला का एकमात्र चेनल ‘डी.डी.भारती’ उनकी ही सोच का परिणाम था यही नहीं उन्होंने अपने हर दायित्व का पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से पालन किया चाहे उनका कार्यकाल पूर्णकालीन हो अथवा अल्पकालीन इसलिये जब वे १२ अक्टूबर १९९८ को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और ३ दिसंबर १९९८ को इस पद से इस्तीफ़ा भी दे दिया पर, इतने कम समय में भी अपनी छाप छोड़ गयी और फिर जब 2014 में जब ‘विदेश मंत्री’ का कार्यभार सम्भाला तो इतिहास रच दिया कि उनके मार्फ़त हमने भी जाना कि एक विदेश मंत्री की भूमिका जब विश्वस्तरीय हो जाती तो वो अपनी अनवरत सेवा से उसके माध्यम से ‘मदर इंडिया’ में भी परिवर्तित हो सकती है और उस पर यदि उसे उच्च तकनीक का साथ मिल जाये तो फिर चाहे देश-विदेश के किसी भी कोने से किसी भी समय कोई सहायता मांगे या ट्वीट करें वे तत्काल हाजिर होकर उसके लिये मदद का हाथ बढ़ा सकती थी और इस तरह वे ट्वीटर पर सबसे अधिक फॉलो की जाने वाली पहली महिला राजनेत्री भी थी ।

सिर्फ, यही नहीं वे स्कूल व कॉलेज से लेकर अपने कार्यक्षेत्र में कई मामलों में प्रथम थी चाहे फिर वो भाजपा की ‘राष्ट्रीय प्रवक्ता’ बनने वाली पहली महिला हो या कैबिनेट मन्त्री बनने वाली भाजपा की पहली महिला या फिर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमन्त्री हो या भारत की संसद में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार पाने वाली पहली महिला अनगिनत रिकॉर्ड उनके नाम है इतना होने के बाद भी वे अपनी भारतीय नारी की छवि की गरिमा को किसी भी तरीके से कम नहीं होने देती जो उनकी पहचान बन गयी उनका नाम लेते ही सामने भारतीय परिधान साड़ी पहनकर माथे पर चमकती लाल बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर लगाये ओजपूर्ण वाणी में अपनी बात रखता उनका लौह व्यक्तित्व नजरों में दिखाई देने लगता और यही तो ‘नारी सशक्तिकरण’ की वास्तविक परिभाषा भी है कि पुरुषों से भरी सभा के बीच अपनी शेरनी जैसी दहाड़ से अबला के मिथक को तोड़कर ‘सबला’ में बदल देना जिसे अपने सम्पूर्ण जीवन से उन्होंने प्रतिस्थापित किया और अब वही सदा-सदा के लिये उनकी पहचान बन चुका है ।

आज उनकी अंतिम विदाई पर उनको शब्द सुमनों से ये भावपूर्ण श्रद्धांजलि...
                 
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अगस्त ०८, २०१९

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