साथियों... नमस्कार...
बड़ी देर से
बड़ी दूर से
ताक रहा था जो
एक 'कुत्ता' था
वो
बड़ी नादान
बड़ी अंजान
बेखबर इस बात से
खेल रही थी जो
एक 'गिलहरी' थी
वो
आखिरकार...
एक लंबी प्रतीक्षा के बाद
हुई सफल साधना जिसकी
'कुत्ता' था
वो
गंवा बैठी अपनी जान जो
'गिलहरी' थी
वो
माना कि
छोटी सी, नन्ही सी
भोली-भाली और नासमझ
'गिलहरी' थी
वो
तो बच न सकी घात से
मगर, जो बड़ी हैं
सब कुछ समझती हैं
क्या बच पाती वो ???
_____________________________________________________
© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ अप्रैल २०१७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें