साथियों... नमस्कार...
सदियों से हमारे ऋषि-मुनि और पूर्वज इस बात पर
जोर देते रहे हैं कि हमें अपने शरीर को स्वास्थ्य रखने हेतु शुरू से ही ध्यान देना
चाहिये क्योंकि एक स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता हैं जो जीवन की
आधारशिला और जिस पर हमारा मिज़ाज भी निर्भर करता जो हमारे आगामी क्रियाकलापों की
गति निर्धारित करता तो बचपन से ही हमें इसके लिये प्रेरित करते हुए इस तरह की
गतिविधियों में संलग्न किया जाता जिसमें सुबह सूर्योदय से पूर्व उठने से लेकर रात
समय से सोने तक के मध्य होने वाली दैनिक क्रियाओं का भी निर्धारण किया जाता हैं
ताकि हम इन्हें बचपन से अपनाकर अपने आपको सफ़ल बना सके मगर, समय के साथ जितनी तेजी
से तकनीक और विकास का क्रम बढ़ा उतनी ही रफ़्तार से लोगों की दिनचर्या में भी
परिवर्तन आने लगा, जिसके चलते वो सभी छोटी-छोटी क्रियायें जैसे कि दौड़-भाग, खेल-कूद,
उछल-छलांग, उतरना-चढना, लटकना-कूदना, व्यायाम, साइक्लिंग, हाथों से हर काम करना आदि
जो व्यक्ति को सजग और सतर्क बनाने के साथ-साथ स्वस्थ भी रखती थी पता नहीं कब स्वतः
ही मशीनों, यंत्रों, गेजेट्स, लिफ्ट्स, मोटर आदि के उपयोग से छुटती चली गयी अहसास
ही नहीं हुआ तो ऐसे में ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ का महत्व भी अपने आप बढ़ जाता कि अब
जबकि हमारी शारीरिक दौड़-भाग कम हो गयी हैं तो हम खुद को हेल्दी रखने के लिये कुछ अतिरिक्त
प्रयास करें ऐसे में ‘योग’ से बेहतर, आसान, सुविधाजनक विकल्प कोई दूसरा हो नहीं सकता...
‘योग’ वास्तव में कोई शरीर को तोड़ने-मरोड़ने वाली
विधि नहीं बल्कि ये तो हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा स्थापित की गयी पुरातन जीवन शैली
हैं जिसमें हमारे शरीर के प्रत्येक अंग को लचीला व सक्रिय बनाने के साथ-साथ हमारी
सांसों के उतार-चढ़ाव को भी इस तरह से नियंत्रित किया जाता हैं कि जो न सिर्फ हमे
ऊर्जावान बनाता हैं बल्कि दीर्घ आयु भी प्रदान करता हैं जिसके दम पर तपस्वी साधकों
ने लम्बा जीवन जिया और वही ज्ञान वो पुस्तकों में कैद कर हमारे लिये छोड़ गये कि हम
उनसे लाभ प्राप्त कर अपने आप को उनकी तरह ज्ञानवान, सुदृढ़, बलशाली, साहसी, चैतन्य
बना सके क्योंकि ‘योग’ एक ऐसा साधन जो तन ही नहीं मन को भी क्रियाशील बनाता हैं
जिसके दम पर हम अभूतपूर्व कार्य कर सकते हैं जैसा कि अनेक लोगों ने किया हैं और कर
रहे हैं इसके अनेक आसन, सूक्ष्म क्रियायें, सूर्य नमस्कार, दंड-बैठक, प्राणायाम
ऐसे हैं जो हमारी काया के सुप्त हिस्सों को जागृत कर हमारे भीतर असीमित ऊर्जा के
द्वार खोल देते तो फिर असंभव भी सम्भव बन जाता और यदि हम सभी आसनों का अभ्यास नहीं
कर सकते तो भी केवल ‘सूर्य नमस्कार’ मात्र से ही पूर्ण लाभ पा सकते क्योंकि इसे एक
संपूर्ण व्यायाम माना जाता और ध्यान से मन को एकाग्र कर इंद्रियों पर काबू पा अपने
ऋषि-मुनियों की तरह इंद्रियजीत बन सकते तो इस तरह एक योग की प्रत्यंचा से देह की
कमान को साध सकते...
आज के समय में जब शुद्ध वायु, जल, अन्न का मिलना
कठिन हो गया हैं तथा सारा वातावरण प्रदूषित हो चुका हैं और मोबाइल-कंप्यूटर जैसे
यंत्रों ने हमें अक्रिय बना दिया हैं तो योग का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं तो आज यही
संकल्प ले कि ज्यादा नहीं तो केवल दस-बीस मिनट का समय निकलकर हम इसे करेंगे अपनी
गलत आदतों को भी बदलने की कोशिश करेंगे तो न केवल डॉक्टर या बीमारी से दूर रहेंगे
बल्कि अपने स्वप्नों को भी पूरब कर सकेंगे इस तरह योग खुशियों की चाबी भी हैं...
जिसमें कठिन आसनों के अलावा हास्यासन भी हैं तो एक बार खुलकर हंसने से भी
नकारात्मकता को दूर भगा सकते हैं और ताली बजाकर अपनी खुशियों का जश्न अकेले भी मना
सकते हैं यकीन न हो तो आजमाकर देखें, योग को अपनाकर देखें... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०७ अप्रैल २०१७
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