शनिवार, 1 अप्रैल 2017

सुर-२०१७-९१ : ख्वाहिशों को कैद करने की चाह... मानो, पानी को मुट्ठी में बांधने का प्रयास...

साथियों... नमस्कार...


कितनी हसरतें लहरों की तरह जनम लेती हैं मन के गहरे समंदर में जिनमें से कुछ टकराकर मजबूरी के साहिल से दम तोड़ देती तो कुछ उसे तोड़ बाहर निकल जाती और कुछ वापस भीतर समा जाती पर, मिटती नहीं कभी कि वो तो मन की ही जमीन से उगने वाली कामनाएं होती जिनकी जड़ें भीतर ही गहरे तक धंसी होती और यदि कभी लगे भी कि उम्मीदों का वृक्ष सूख गया हैं तब भी उसके झड़े हुये बीज फिर से सर उठा लेते याने कि वे अमर पक्षी की तरह अपनी ही आग में जलती-बुझती और फिर उसी राख से दुबारा पैदा हो जाती...

कोई चाहे भी कि वो उन्हें अंतर में ही कैद कर के रख ले तो ये संभव नहीं क्योंकि भले ही किन्ही परिस्थितियोंवश या किसी मज़बूरी के कारण कभी वे अपूर्ण भी रह जाये तो भी मरती नहीं कि वे कोई देह नहीं जो मिट जाये बल्कि वो तो रूह का अंश होती इसलिये शरीर के मिट जाने पर भी वो आत्मा की भांति पुनर्जन्म लेती ऐसे में तन बदल जाता मगर, मन वही रहता तो फिर अगले जन्म में वो उभर आती बोले तो ख़्वाहिशें भी आत्मा जैसी अमर होती और जब तक पूर्णता का मोक्ष नहीं पा लेती देह के लिबास को बदलती रहती...

कभी-कभी अंनत काल तक तो कभी अल्प काल तक ही ये सिलसिला चलता पर, कितनी भी अवधि लगे ये काया बदल-बदल खुद को तृप्त करने की राह देखती रहती... ऐसे में किसी भी कारणवश हमारा ये समझना कि हमने उन पर विजय प्राप्त कर ली या उनको भीतर ही बंद कर के रख लिया या मर दिया महज़ हमारा भ्रम होता कि इन्हें किसी भी पिंजरे में कैद करना नामुमकिन होता केवल इंद्रजीत ही ये दावा कर सकते कि उन्होंने इसे पकड़ लिया फिर भी कहीं एक संदेह उत्पन्न होता कि उनका ये ख्याल भी तो आख़िरकार एक तमन्ना ही हैं याने कि वे भी शत-प्रतिशत ये नहीं कह सकते कि अब उनके मन के किसी भी कोने में कोई भी इच्छा शेष नहीं रही...

तो अंततः यही निष्कर्ष निकलता कि मनोकामनाओं को किसी गिरफ़्त में जकड़ कर रखना संभव नहीं वे हर हाल में अपने निकलने का मार्ग तलाश लेती चाहे फिर उन्हें इसके लिए कितना भी इंतज़ार ही क्यों न करना पड़े मगर, वे हार नहीं मानती तो फिर उनको दबाने या पकड़ने की कोशिश करने की जगह उस राह को ढूंढने की कोशिश करें जिन पर चलकर वो मंज़िल तक पहुँच सके... अस्तु... एवमस्तु... तथास्तु... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०१ अप्रैल २०१७

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