बुधवार, 13 दिसंबर 2017

सुर-२०१७-२५४ : ‘स्त्रीत्व’ और मातृत्व’ की कामना... जिसकी कीमत जान देकर पड़ी चुकाना...!!!



१३ दिसंबर १९८६.....
एक बच्चे को जन्म देने के बाद ‘स्मिता’ अभिनेत्री से माँ के वास्तविक किरदार में क्या आई कि अपनी नाज़ुक शारीरिक स्थिति को ही नजरंदाज कर गई जिसका नतीजा कि उनका कमजोर दिमाग उस तनाव को नहीं झेल पाया जो उनके मस्तिष्क को लगातार परेशान कर रहा था हिंदी सिने आकाश में एक नक्षत्र की भांति उदित हुई नायिका जिसने अपनी साधारण शक्ल-सूरत और सांवले रंग को दरकिनार कर अभिनय जगत में ऐसी स्थिति बनाई कि समानांतर सिनेमा हो या फिर व्यावसायिक हर जगह वो ही देती दिखाई उस पर उनकी प्रभावशाली उपस्थिति जो नायक को भी गौण बना देती थी लेकिन, इसके बावजूद भी भीतर तो उनके भी एक भावुक स्त्री ही बसती थी जो अन्य सामान्य लडकियों की भांति अपने घर, अपने परिवार और एक बेहद चाहने वाले राजकुमार का ही स्वपन देखती थी इसलिये जब उन्हें अपने ही साथी कलाकार ‘राज बब्बर’ के प्रति अपने मन में जागने वाली प्रेमिल अनुभूतियों को अहसास हुआ तो फिर वो लड़की जो नारीवाद का झंडा लहराये रहती थी, जो दूसरी औरतों की आवाज़ बुलंद करती थी यहाँ तक कि फिल्मों में भी वो प्रचलित रोने-धोने वाली नायिकाओं की भूमिकाओं की जगह अधिकतर सशक्त आत्मनिर्भर महिला का प्रतिनिधित्व करती थी वो भी कमजोर पड़ गयी

ऐसे में जब उन्होंने लोकप्रियता के चरम शिखर पर ये निर्णय लिया कि वे उनकी दूसरी पत्नी बनेंगी तो सबको बेहद अचरज हुआ सबसे ज्यादा तो उनकी माँ को जो ये बर्दाश्त ही न कर पाई कि उनकी बेटी जिसका अपना एक अलग व्यक्तित्व, अपनी एक अलहदा पहचान और अपना खुद का कमाई का जरिया हैं याने कि किसी भी तरह की कोई मजबूरी या निर्भरता नहीं कि उसे ऐसा फैसला लेना पड़े कि वो किसी की दूसरी पत्नी कहलाये, किसी दूसरी औरत का घर बिगाड़े जबकि वो तो घर तोड़ने वाली औरतों के खिलाफ़ खड़ी होती थी लेकिन, दिल का मामला ऐसा ही होता जहाँ मजबूरियां कोई न हो तो ‘प्यार’ ही मजबूरी बन जाता तो अपने दिल के आगे मजबूर होकर उन्होंने अपने परिवार वालों की इच्छा के विरुद्ध ये अनुचित कदम उठा ही लिया और जब उठाया तो उन्हें ऐसी बातों का भी सामना करना पड़ा जब उन्हें ‘दूसरी औरत’ के नाम से पुकारा गया जिसे उन्होंने किसी तरह चाहत की खातिर सहन कर भी लिया लेकिन, जब उस व्यक्ति जिसके लिये उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया उसने उसकी मुहब्बत की कदर नहीं की उसे उससे ही वो समर्पण हासिल नहीं हुआ जिसकी उसे अपेक्षा थी तो फिर वो इस तकलीफ को किस तरह किसी से बयान करती तो उसे जज्ब करने की आदत बना ली

आखिर, जेहन की भी एक सहनशक्ति होती कितना झेलता वो एकाकी उस पीड़ा को जिसका अंश मात्र भी कोई समझ नहीं सकता और जब निर्णय उनका अपना था तो फिर उसकी वजह से आने वाली दुःख-तकलीफों को दूसरों से साँझा करना भी उन्हें गंवारा नहीं था इसलिये अकेले-ही-अकेले सब कुछ सहती रही और इस बीच उन्हें अपने भीतर एक नन्ही जान के आने की कुलबुलाहट सुनाई दी जिसने उनको फिर एक बार उमंग से भर दिया तो उसके लिये सपनें देखना शुरू कर दिया पर, खुद को नजरअंदाज करती रही तो आंतरिक तनाव ने आख़िरकार खतरे के निशान को पार कर लिया और मातृत्व के जिस सुख को भोगने उन्होंने ये जोखिम उठाया वही उनकी मौत का फरमान बन गया और हम उस संवेदनशील अदाकारा से जुदा हो गये शादी, घर, परिवार, बच्चे ये ऐसे ख़्वाब जो अनजाने में बचपन से ही लडकियों की आँखों में टांक दिये जाते तब वो कितनी भी सफ़ल हो जाये या किसी भी पोजीशन को ही क्यों न हासिल कर ले लेकिन, जहाँ उसे इनके पूरा होने की हल्की-सी भी उम्मीद की किरण नजर आती वो अपनी भावनाओं के वशीभूत होकर उसके आगे झुक जाती और ‘स्मिता पाटिल’ की जिंदगी भी हमें यही बताती कि ‘फेमिनिज्म’ का परचम अपने हाथ में लेकर चलने वाली भी आखिर तो एक स्त्री ही होती जो अपनी प्रकृति से तो जंग नहीं लड़ सकती और जो ये कोशिश करती वो कितनी भी उंचाई पर क्यों न पहुंच जाये कहीं न कहीं खुद को पराजित महसूस करती

शायद, यही वजह कि ‘शबाना आज़मी’ हो या ‘श्रीदेवी’ या ‘ऐश्वर्या’ हो या ‘करीना’ या ‘अनुष्का’ सब अपने उस सपने को पूरा करने सब कुछ छोड़कर चली जाती कि यदि इसे खोकर सब कुछ पा भी लिया तो वो निरर्थक ही होगा... प्रकृति का कर्ज तो चुकाना ही हैं... ‘स्मिता’ ने भी सिर्फ़ अभिनय नहीं किया जिया भी भले वो जीवन छोटा-सा था लेकिन, अपने बेटे को अपनी गोद में लेने का वो सुख अवर्णनीय जिसके स्वाद को चखकर उन्होंने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया और हम उनकी फिल्मों में उन्हें ढूंढते रह गये... जबकि, वो तो अतृप्त कामना के रूप में हर जगह विचरण कर रही... बस, उसे पहचानने की देर हैं... उनकी ‘स्मित’ मुस्कान को देखकर उनकी माँ ने उन्हें ‘स्मिता’ नाम दिया जिसके कारण उनके पुत्र भी ‘स्मित प्रतीक’ कहलाये... हम उस मुस्कान और उन बोलती आँखों को चित्रों में देखकर उनको जानने के प्रयासों में लगे हुए हैं... फिर भी न जान पा रहे कि वो एक पहेली हैं... :) :) :) !!!                   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ दिसंबर २०१७

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