गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

सुर-२०१७-३५५ : तेरी फिल्म और मेरे गीत... दोनों मिलकर रचेंगे अद्भुत संगीत...!!!



दिल का हाल सुने दिलवाला सीधी-सी बात,
न मिर्च-मसाला कहके रहेगा कहनेवाला...

30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी, पाकिस्तान में ‘शैलेंद्र’ का जन्म हुआ और उसके एक साल बाद ही 14 दिसंबर 1924 को पेशावर, पाकिस्तान में ही ‘रणबीर राज कपूर’ का अखंड भारत भूमि में जन्म हुआ लेकिन, मुलाकात विभाजित भारत में हुई वो भी बेहद नाटकीय अंदाज में जब देश आज़ादी के जश्न और विभाजन की त्रासदी झेल रहा था तब इस पीड़ा को उन्होंने अपने एक गीत में लिखा था, 'जलता है पंजाब साथियों...' और संयोग से जन नाट्य मंच के आयोजन में ‘शैलेंद्र’ जब ये गीत गा रहे थे तब श्रोताओं में ‘राजकपूर’ भी मौजूद थे जो उस वक़्त ‘आग’ बनाने की तैयारी में जुटे थे तब उनकी पारखी नजरों ने उनकी उस अद्भुत प्रतिभा को एक ही नजर में परख लिया था तो तुरंत अपने साथ काम करने का प्रस्ताव उनके सामने रख दिया लेकिन, तब उन्होंने फिल्मों के लिये लिखने या अपने इस हूनर को कमाई का जरिया बनाने के बारे में सोचा नहीं था तो इंकार कर दिया लेकिन, फिर परिस्थितियां बदली जिन्हें बदलना ही था कि इन दोनों का साथ तो उपर से ही लिखकर आया था उस वक़्त जब ‘राज कपूर’ अपने आगामी फिल्म ‘बरसात’ बनाने में जुटे थे तब अपने आर्थिक तंगी से जूझ रहे ‘शैलेंद्र’ ने उनके सामने जाकर गीत लिखने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की जबकि उस समय तक उस फ़िल्में के सारे नगमें ‘हसरत जयपुरी जी’ लिख चुके थे परंतु उनकी बात को न टालते हुये ‘राज जी’ ने उनसे दो गीत लिखने को कहा और अपनी फिल्म में उनके लिये गुंजाईश पैदा की तब उन्होंने “बरसात में तुमसे मिले हम सजन, हमसे मिले तुम...” और ‘पतली कमर हैं, तिरछी नजर हैं...” दो गाने लिखे

सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी
सच हैं दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी...

जैसा कि सब जानते हैं फिल्म के प्रदर्शन से पूर्व ही इन गीतों ने धमाल कर दिया था और इस फिल्म ने तो रिलीज के बाद भी अनेक कीर्तिमान रचे जिसमें एक ये भी था कि इस फिल्म से ही शीर्षक गीतों को फिल्म में रखने की परंपरा की शुरुआत हुई और इसके गीतों की रायल्टी से ही फिल्म का खर्चा निकल आया इसके बाद जब ‘राज-शैलेंद्र’ की जोड़ी एक बार बनी तो फिर अंतिम समय तक बनी रही कि ये तो एक-दूसरे के लिये ही बने थे इस तरह 1949 में ‘बरसात’ से शुरू हुआ मधुरतम गीतों का सिलसिला आवारा, अनहोनी, आह, बूट पॉलिस, श्री 420, जागते रहो, चोरी-चोरी, अब दिल्ली दूर नहीं, मैं नशे में हूं, कन्हैया, अनाडी, जिस देश में गंगा बहती है, आशिक, एक दिल सौ अफसाने, संगम, तीसरी कसम, दीवाना, अराउंड द वर्ल्ड, सपनों का सौदागर और मेरा नाम जोकर (1970) तक अनवरत चला यहाँ तक कि जब १४ दिसंबर को ‘शैलेंद्र’ की अचानक मौत हुई तो इस वजह से ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत 'जीना यहां मरना यहां' अधूरा रह गया था लेकिन, इसे बाद में बेटे ‘शैली शैलेंद्र’ ने पूरा कर अपने पिता के कार्य को पूर्णता प्रदान की और उन शब्दों को भी सार्थकता प्रदान की जिन्होंने फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद अपनी जिंदगी इसे ही समर्पित कर दी १४ दिसंबर के दिन उनका जाना उन्हें ‘राज साहब’ के साथ हमेशा-हमेशा के लिये अमर कर गया कि जहाँ आज के दिन राज जी का जन्मदिन मनाया जाता वहां उनकी पुण्यतिथि भी रहती और इस दुखद सयोंग पर ‘राज जी’ बेहद दुखी हुए थे और कहा था कि, तुम्हें आज के दिन न जाना था लेकिन, उनका रिश्ता तो आत्मिक था तो यूँ उनके आपसी नाते को कुदरत ने इस तरह से एकाकार कर दिया

हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा
दीवान सैकड़ों में पहचाना जायेगा...

आज इन दोनों को मन से नमन और ये आदरांजलि... उन्ही के शब्दों में ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार... किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम हैं... :) :) :) !!!

सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है
न हाथी है ना घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है...

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ दिसंबर २०१७

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