बुधवार, 20 दिसंबर 2017

सुर-२०१७ : हर अभिनेता की बनी पहली पसंद... बहुमुखी प्रतिभा की धनी ‘नलिनी जयवंत’...!!!


हिंदी सिने जगत में जिसे अभिनय का सम्राट ही नहीं अभिनय की चलती-फिरती संस्थान कहा जाता उन ‘ट्रेजेडी किंग’ दिलीप कुमार ने जब ‘नलिनी जयवंत’ के साथ ‘अनोखा प्यार’ व ‘शिकस्त’ में काम किया तो उसे सबसे अधिक प्रभावशाली और संवेदनशील अभिनेत्री का ख़िताब दे दिया जो साबित करता कि वो दौर जबकि फिल्म उद्योग अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था तब उसमें दौड़ने का साहस भरने का काम उस वक्त के कलाकारों ने किया जिसमें नायक ही नहीं नायिकाओं का भी भरपूर योगदान हैं वैसे भी किसी फिल्म का पूरा दारोमदार केवल अभिनेता के उपर नहीं होता उसमें अभिनेत्री का भी उतना ही सहयोग होता हैं इसलिये हर कालखंड में हम इन कलाकारों की प्रसिद्ध जोड़ियों के बारे में सुनते जो इस कदर एक-दूसरे के नाम से जुड़ जाती कि एक नाम बन जाती ऐसा ही हुआ जब ‘नलिनी जयवंत’ और उस समय के बड़े महान अदाकार कहे जाने वाले ‘अशोक कुमार’ ने एक साथ ‘समाधि’ और ‘संग्राम’ में काम किया तो इनकी जोड़ी ने रजत परदे पर कमाल कर दिया और इनका नाम ही नहीं इनके दिल भी आपस में जुड़ गये जिसका नतीजा ये निकला कि मौन रहकर भी उन्होंने अपने प्रेम का इजहार यूँ किया कि ‘अशोक’ ने ‘नलिनी’ के घर के सामने ही अपना घर बनाया पर, कभी भी मुंह से कुछ नहीं कहा बस, छत पर जाकर दूरबीन से उनकी एक झलक देखकर उन्हें अपने दिल के करीब महसूस कर सुकून पा लेते थे

‘नलिनी’ की खुबसूरती ने सबको इस तरह से अपनी तरफ आकर्षित किया कि जब उन्होंने वीनस कही जाने वाली सौंदर्य का पैमाना बनी ‘मधुबाला’ के साथ ‘काला पानी’ में स्क्रीन शेयर किया तो सदाबहार ‘देव आनंद’ की उपस्थिति के बावजूद भी उनकी छोटी-सी भूमिका ने न केवल सबका ध्यान अपनी तरफ खिंचा बल्कि ‘मधुबाला’ का सम्मोहिक व्यक्तित्व भी उनके सामने कहीं फीका नजर आया और पूरी फिल्म के बाद लोगों को ‘नजर लागी राजा तोरे बंगले पे...’ और ‘हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गये...’ गीतों में उनका सादगी भरी अभिनय याद रह गया इस तरह उन्होंने ‘देव आनंद’ के साथ भी इस तरह से अपनी जोड़ी जमाई कि उनकी साथ आई सभी फ़िल्में ‘मुनीम जी’, ‘काला पानी’ हो या ‘राही’ सबने जुबिली मनाई और इस तरह ‘नलिनी’ नायक के समकक्ष काम करने वाली नायिका बनी जो पर्दे पर जितनी मासूम, सौम्य और भोली-भाली नजर आती वास्तव में उतनी ही बोल्ड और बेबाक थी जिन्हें ‘संग्राम’ फिल्म में बिकनी पहनकर शॉट देने के कारण वे ‘पहली भारतीय पिनअप नायिका’ भी कहलाई याने कि वो खुबसूरत होने के साथ-साथ बिंदास भी थी जिन्हें किरदार के मुताबिक ढलने में कोई परेशानी नहीं होती थी इसलिये फिर चाहे नर्तकी का रोल हो या चुलबुली लड़की या फिर भावुक माँ या प्रेम में डूबी हुई नायिका या संस्कारवान बहु या मेकअप विहीन विधवा सबमें उन्होंने अपनी प्रतिभा से ऐसा जीवंत किया कि वे कोई कहानी नहीं असलियत का नजर आये तभी तो आज भी हम उनको नहीं भूला पाये

जब उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा वे बेहद कमसिन थी और उनकी उम्र केवल चौदह साल थी लेकिन, वे गीत-संगीत और नृत्य हर विधा के साथ अभिनय में भी पारंगत थी कि उन्होंने बचपन से ही इनका विधिवत प्रशिक्षण लिया था और रंगमंच पर अपनी इस कला का प्रदर्शन करती रहती थी तो १८ फरवरी १९२६ को जन्मी ‘नलिनी’ ने जो ‘शोभना समर्थ’ की बहन भी थी ने १९४१ में मात्र १५ साल की नाज़ुक वय में अपनी पहली फिल्म ‘राधिका’ में बतौर नायिका काम किया और १९४३ में ‘वीरेन्द्र देसाई’ से विवाह कर लिया जो निश्चित ही कमउम्र का भावुक फैसला था तो ज्यादा नहीं टिका और तलाक के कगार पर आकर टूट गया इसके बाद उनकी जो दूसरी पारी शुरू हुई उसमें वे अधिक परिपक्व होकर सामने आई यही वजह कि ‘दिलीप कुमार’ जैसे भावप्रणव अभिनेता ने भी उनको ‘सबसे बड़ी अदाकारा’ का दर्जा दिया और इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक लगातार स्स्भी फ़िल्में हिट होती गयी और ४०-५० के दशक में वे अपने दम पर अपनी अलग पहचान कायम करने में कामयाब हुई और उनकी लोकप्रियता का ये आलम था कि उस समय की लडकियाँ उनकी अदाओं, उनके ड्रेस स्टाइल ही नहीं उनकी हेयर स्टाइल की भी नकल करती थी क्योंकि वे इस मामले में भी पहली अभिनेत्री थी जो अपने साथ हेयर ड्रेसर रखती थी और पाने बालों का विशेष रख-रखाव करती थी जिसकी वजह से कॉलेज जू लड़कियाँ उनकी दीवानी थी

इतनी लोकप्रिय और अपने ही तरह की अलग अभिनेत्री जिसने इतने मापदंड स्थापित किये वही अज के दिन २० दिसंबर २०१० को एकाकी अपने घर में मृत पायी गयी कि पुराने कलाकारों की ये एक ख़ासियत या बोले भोलापन कि वे अपने भविष्य के प्रति आज के हीरो-हीरोइन की तरह बहुत चिंतित या उतने प्रोफेशनल नहीं होते थे जबकि काम के प्रति इनसे अधिक अनुशासित और कर्मठ थे लेकिन, अपनी आमदनी को इस तरह से निवेशित न करते कि बाद में कोई परेशानी न हो यो फिर गुमनामी में अकेले जीवन गुजारते तो ऐसे ही एक दिन वे इस संसार को अलविदा कह गयी और हम उनके गीत गुनगुनाते ही रह गये...

“जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़फाने को...”

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२० दिसंबर २०१७

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