शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

सुर-२०१७ : कहलाये सदी के महानतम गणितज्ञ ‘श्रीनिवास अयंगर रामानुजन’...!!!


विलक्षण प्रतिभा के धनी और किसी विशेष कार्य के लिये जन्मे व्यक्ति अपने छोटे-से जीवन में इस तरह से हर पल का सदुपयोग करते कि जितने दिन भी वे जीते लगता उतने जीवन जी लिये क्योंकि वे अपने एक जन्म में ही इतने सारे काम कर जाते कि उनका गुणगान करते-करते सदियाँ गुजर जाती लेकिन, फिर भी उनके विराट व्यक्तित्व को कभी संपूर्ण रूप से नहीं जान पाती जितना भी उनको जाना जाता उतना ही उनके किरदार का एक नया रंग सामने आता और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर आने वाली पीढियां युगों तक शोध करती रहती ऐसा ही अद्भुत करिश्मा कर दिखाया उस बालक ने भी जो तमिलनाडु के इरोड गांव में २२ दिसम्बर १८८७ को एक अत्यंत साधारण परिवार में जन्मा और अपने उस छोटे से गांव के स्कूल में ही उसने अपनी ईश्वर प्रदत्त असाधारण बुद्धिमता का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया

जिसे हम बोलते कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते तो जब वे प्रारम्भिक कक्षा की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय उनकी कक्षा में उनके अध्यापक ने विद्यार्थियों को एक कार्य करने को दिया वे बोले कि, “आधा घंटे में एक से सौ तक की सब संख्याओ का जोड़ निकालकर मुझे दिखाइएतो तुरंत सारे बच्चे उस सवाल को हल करने में जुट  गये परंतु, महज़ दस मिनट बीतने से पहले  सात वर्ष का एक विद्यार्थी अपनी कॉपी में उस सवाल को हल कर गुरूजी से उसकी जाँच कराने ले आया जब गुरूजी ने उसे जांचा तो उन्होंने पाया कि उत्तर एकदम सही हैं यह देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि इस बालक ने इस सवाल को हल करने में जिस ‘सूत्र’ का प्रयोग किया है वो उसके वश की बात न थी कि  उसका ज्ञान केवल उच्च कक्षा के विद्यार्थी को ही हो सकता है तब अध्यापक ने उस बालक से पूछा- “बेटा, तुमने यह सूत्र कहाँ से सीखा ?” तो बालक ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया- “गुरूजी, मैंने किताब से पढ़कर इसे जाना”

ये बात सुनते ही अध्यापक हैरान रह गये कि इस नन्हे-से बालक ने इस सूत्र का ज्ञान किसी बड़ी कक्षा की पुस्तक को पढ़कर किया है इस एक घटना से ये साबित होता कि उनके लिये ‘गणित’ अन्य सभी बच्चों की तरह कोई हौवा नहीं बल्कि एक खेल था तभी तो जहाँ दूसरे बच्चे उससे घबराते, दूर भागते वो हमेशा उसमें ही लगे रहते जिसका नतीजा कि उन्होंने छोटी-सी उम्र में ही इसका गहन अध्ययन कर बहुत-से सूत्रों को स्वयं से ही समझ लिया और जब वे चाहते अपने हिसाब से उनका प्रयोग कर अपने शिक्षकों को चकित कर देते थे । संख्याओं से उनको विशेष प्रेम था जिसकी वजह से वे ‘मैजिक वर्ग’ बनाते रहते और बड़ी कक्षाओं की किताबें पढ़कर वो ज्ञान हासिल करते जिससे आज के सवाल हल किये जा सके तो उनकी इस लगन ने उनको ‘गणित’ जैसे दुरूह विषय को समझने में बड़ी मदद की और १६ वर्ष की आयु में रामानुजन ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की जिससे उन्हें छात्रवृति मिलने लगी ।

‘गणित’ के प्रति उनका अनन्य आकर्षण कि वे दूसरे विषयों पर उतना ध्यान नहीं दे पाये जिसकी वजह से वे प्रथम वर्ष की परीक्षा में गणित को छोड़कर सभी विषयों में अनुतीर्ण हो गये तो इस कारण से उन्हें छात्रवृति मिलना बंद हो गयी ऐसे में जबकि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो उनको प्राइवेट परीक्षा देने पड़ी जिसमें वे असफल रहे पर, उन्होंने हार नहीं मानी और घर पर रहकर ही गणित पर मौलिक शोध करने लगे। उन्होंने अपना सारा जीवन गणित को समर्पित कर दिया और मानिसक तनाव व खान-पान की लापरवाही से तपेदिक के शिकार हो गये जिसकी वजह से महज़ ३३ साल की कम उम्र में वे अपनी साधना अधूरी छोड़कर ६ अप्रैल १९२० में वे हमसे दूर चले गये लेकिन, अपने जीवनकाल में लगभग 3,884 प्रमेयों का संकलन किया जिन पर आज भी शोध कार्य चल रहा हैं । उनके इस महानतम योगदान को देखते हुये उनके जन्मदिन को अपने देश में आज ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैं ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२२ दिसंबर २०१७

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