मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

सुर-२०१७- ३५३ : करते रहे कलम से राष्ट्रभक्ति... तभी कहलाये राष्ट्रकवि...!!!


नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को

आज सोशल मीडिया के जमाने में न केवल कविता लिखना बेहद आसान हो गया हैं बल्कि अब तो बिना लिखे भी अपने नाम के आगे मात्र ‘कवि’ लिखकर ही ‘कवि’ बन जाना तो उससे भी अधिक सहज-सरल और इतना अधिक सुविधाजनक हो गया हैं कि कुछ लोग तो इसी काम में लगे रहते और यहाँ-वहाँ से कुछ कविताएँ चुराकर बड़ी शान से अपनी वाल पर लगाकर न सिर्फ वाह-वाही बोले तो साथ में अच्छी-खासी शोहरत व मंच के माध्यम से अर्थलाभ भी प्राप्त कर रहे ऐसे में वो कलमकार जिन्होंने अपना सर्वस्व देकर ये सम्मान प्राप्त किया कि उनकी रचनाओं ने अपने काल के समस्त बड़े-बड़े साहित्यकारों को इस तरह प्रभावित किया कि हिंदी साहित्य में उनको एक विशेष तरह की कविता लेखन हेतु पृथक साहित्यिक काल का प्रतिनिधि माना जिन्होंने उस समय प्रचलित ‘ब्रज भाषा’ की जगह ‘खड़ी बोली’ को प्राथमिकता दी उन्होंने ऐसा इसलिये किया क्योंकि उनके आदर्श व प्रेरणास्त्रोत श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनको ये परामर्श दिया कि यदि वे इस भाषा को अपनी कविताओं का केंद्र बनाये तो ज्यादा अच्छा रहेगा कि ‘खड़ी बोली’ को भी विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिलेगा तो उन्होंने उनकी बात मानकर ऐसा ही किया जिसका नतीजा कि उनकी देखा-देखी उस दौर के अन्य रचनाकारों ने भी इसे अपनाया जिसके लिए ‘हिंदी साहित्य’ सदैव ‘मैथिलिशरण गुप्त’ जी का आभारी रहेगा

मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य हिमालय का उत्कर्ष।
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

‘मैथिलीशरण गुप्त जी’ ने मात्र कलम चलाकर पन्नों पर शब्दों की कारीगरी नहीं कि बल्कि उसे लिखने से पहले वास्तविक धरातल पर जाकर अनुभूत भी किया कि जिस वक़्त उन्होंने इस देश में जन्म लिया उस वक़्त यहाँ फिरंगी सरकार का शासन था तो ‘भारत माता’ परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी थी ऐसी विषम परिस्थितियों में सिर्फ बैठकर कविता लिखना तो माँ शारदा के प्रति धोखाधड़ी होगी इसलिये उन्होंने न केवल आंदोलनों में भी हिस्सा लिया बल्कि जेलयात्रा भी की और आज़ादी की जंग का हिस्सा बनने की वजह से उनकी लेखनी से ज्यादातर देशभक्ति की रचनाओं का सृजन हुआ जो उस वक़्त की परिस्थितिओं के अनुकूल था जिसने स्वाधीनता संग्राम के सभी बड़े-बड़े नेताओं को प्रभावित किया जिसका परिणाम कि महात्मा गाँधी जी ने स्वयं उनको ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा से अलंकृत किया आज़ादी के बाद भी उनकी सक्रियता को देखते हुये वर्तमान सरकार ने उन्हें दो बार राज्यसभा में सदस्यता प्रदान की साथ ही उनकी निरंतर साहित्यिक साधना के लिये उनको ‘पद्म भूषण’ जैसे उत्कृष्ट सम्मान से भी सुशोभित किया जिसने ये साबित किया कि वे वास्तव में राष्ट्र के कवि कहलाने की काबिलियत रखते हैं कि उनकी कलम महज़ सुख या श्रृंगार को नहीं बल्कि देश के मन को पढ़ना जानती हैं साथ ही उन उपेक्षित नारियों को भी जिन्हें हाशिये पर रख दिया गया हैं तो ‘यशोधरा’, ‘उर्मिला’ के दर्द को पहली बार उन्होंने ही कलम से उकेरा  

मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है

जीव की जड़ जमा रहा है
नित नव वैभव कमा रहा है
यह आत्मा अक्षय है
जीवन की ही जय है

नया जन्म ही जग पाता है
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है
सृष्टा बड़ा सदय है
जीवन की ही जय है

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं
तो फिर महाप्रलय है
जीवन की ही जय है।
    
कितना सत्य लिखा उन्होंने कि जीवन की ही जय हैं... और जीवन कैसा जैसा उन्होंने जिया कि बाद मरकर भी मौत उनकी देह को तो खत्म कर पाई लेकिन अक्षर तो अक्षय, अनंत तो जब तक ये धरती, ये सूरज, ये चाँद रहेंगे हवाओं में उनके लिखे ये शब्द नाद करते रहेंगे गुजेंगे अंतरिक्ष तक और उनको जीवित रखेंगे... आज पुण्यतिथि पर यही आदरांजली... :) :) :) !!!     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ दिसंबर २०१७

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