सोमवार, 18 दिसंबर 2017

सुर-२०१७: देश का संविधान... राजनितिक फ़ायदे का संशोधन...!!!


ऐसी अनगिनत उदाहरण जो ये साबित करते कि देश के नाम पर वोट लेने वाले नेता पद और सत्ता पाते ही राष्ट्र को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति और जागीर समझने लगते हैं और किसी विरासत की तरह अपनी संतानों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसे सौंपते रहते जब तक कि जनता ही उसे वहां से धकेल न दे ऐसा ही कुछ गुमान किसी विशेष दल और देश के शीर्ष पद पर काबिज किसी विशेष परिवार के सदस्यों को भी हो गया तो न उन्होंने केवल उसे ‘आपातकाल’ का तोहफ़ा दिया बल्कि अपनी मनमर्जी करने के लिये जिस तरह भी चाहा उस तरह से नचाया राजनीति ही एकमात्र ऐसा खेल जहाँ लंबे समय तक काम करते-करते ‘जम्बूरा’ खुद को ही ‘मदारी’ समझने लगता फिर वो जिसके इशारे पर गद्दी हासिल करता उसे ही अपनी उँगलियों की गति पर थिरकने मजबूर कर देता तो ऐसे ही न जाने कितने वाकयों से हम आये दिन दो-चार होने के बाद भी अपनी स्मृति की कमजोरी की वजह से उन गलतियों को भूल पुनः ऐसे ही किसी शातिर नेता की कलाबाजियों से प्रभावित होकर उसके जाल में फंस जाते तो फिर जैसा वो चाहता वैसा ही करते जाते और इस तरह से साल-दर-साल ये सिलसिला चलता रहता

जनता-जनार्दन होने के बावज़ूद भी हम खुद ही तो देश संभाल नहीं सकते तो इस जिम्मेदारी को किसी को सौंप उसके अधीन होकर अपना जीवन अपने ढंग से जीना चाहते कि देशप्रेम तो हमारे मन में होता लेकिन, इतना भी नहीं कि उसकी खातिर खुद को ही निछावर कर दे तो अपना मत देकर हम अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर देते और जिसे हम अपना सर्वेसर्वा चुनते वो मद में आकर कभी-कभी तानाशाह बन देश ही नहीं उसके ‘संविधान’ को भी अपने राजनैतिक फायदे हेतु संशोधित करता रहता फिर चाहे उसका खामियाज़ा आने वाली पीढियां भुगतती रही वे तात्कालिक लाभ को प्राथमिकता देते ऐसा ही कुछ बड़ा ऐतिहासिक निर्णय लिया उस समय की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री माननीय श्रीमती ‘इंदिरा गाँधी जी’ ने जिन्होंने केवल संविधान ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा कहे जाने वाली ‘प्रस्तावना’ को ही बदल दिया और संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी’ ‘धर्मनिरपेक्षएवं एकता और अखंडताआदि शब्द जोड़े गए जिन्होंने उसे विस्तृत तो किया लेकिन कहीं न कहीं बवाल भी खड़े किये कि वैमनस्य की खाई बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान हैं और हर बड़े विवाद के मूल में यही शब्द पाये जाते हैं ।     

संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा संशोधित यह उद्देशिका अब कुछ इस तरह है:

"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं"

आज ही के दिन १८ दिसंबर १९७६ को संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका या आमुख में "सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य" के स्‍थान पर "सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य" शब्‍द जोड़े गये साथ ही "राष्ट्र की एकता"  के स्‍थान पर "राष्ट्र की एकता और अखण्डता" किया गया जो ये दर्शाता कि इसे बदलने में केवल व्यक्तिगत हित को ही साधा गया और इन शब्दों को इतना अधिक भुनाया गया कि उनके अर्थ सार्थक होने की जगह निरर्थक प्रतीत होने लगे यहाँ तक कि आज भी ये एक झटके में देश की शांति व्यवस्था को युद्ध के मैदान में तब्दील करने में सक्षम हैं  

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ दिसंबर २०१७

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