रविवार, 24 दिसंबर 2017

सुर-२०१७ : ‘सांता’ कोई और नहीं... छिपा हम सबमें ही कहीं...!!!



‘मीतिका’ के पापा नहीं थे तो वो जब सबके पिता को देखती तो सोच में पड़ जाती कि सिर्फ उसके ही पास ‘पापा’ क्यों नहीं जबकि सबके पास हैं उसे क्या पता कि दुनिया में वो अकेली नहीं जिसको ये दुःख मिला न जाने कितने हैं लेकिन, हम उनको जानते नहीं तो लगता कि हमसे ज्यादा दुखियारा दुनिया में कोई नहीं बड़े-बड़ों को ये गुमान रहता फिर वो तो एक बच्ची थी तो किस तरह न इस गलतफहमी की शिकार होती इसलिये उसके जीवन का सबसे बड़ा दर्द यही था ऐसे में उसकी माँ उसकी कोई भी इच्छा पूरी करने में कोई कसर न छोड़ती थी फिर भी कहीं न कहीं उसे ये लगता कि वो उसको वो खुशियाँ न दे पा रही या उसकी जीवन की उस कमी को नहीं भर पा रही क्योंकि उसके सब कुछ करने उसकी हर छोटी-बड़ी ख्वाहिशों को पूरा करने के बावजूद भी वो इस एक ख्याल से अक्सर उदास रहती उसके मुखड़े से उस रंग को जुदा करने उसने सब जतन किये पर, जितना कोशिश करती वो उसे उतना ही गहरा प्रतीत होता फिर उसने उसे एक दिन ‘सांता’ के बारे में बताया और कहा कि वो उनसे अपने मन की मुराद पूरा करने को कहे इसके लिये वो अपनी मनोकामना एक कागज़ पर लिखकर अपने तकिये के नीचे रख दे तो सुबह उसकी वो आरजू पूर्ण हो जायेगी तो वो हर बरस एक ही ख्वाहिश लिखती और ‘सांता’का इंतजार करती पर, वो पूरी न होती तो ऐसे में जब लगातार पांच साल तक यही हुआ तो उसे गुस्सा आ गया और वो  सोचने लगी कि ये सब झूठ हैं कोई सांता-वांता नहीं होता सब बकवास हैं

ऐसी सोच के साथ एक दिन जब वो क्रिसमस की पूर्व संध्या पर टूटे हुये दिल के साथ पार्क में बैठी दूसरे बच्चों को अपने माता-पिता के साथ हंसते-खिलखिलाते देख रही थी तो बहुत देर से उस फूल से चेहरे वाली बालिका के मुरझाये मुख को देखकर ‘फादर एंटो’ उसके पास आये और उसकी वजह पूछी तब उसने उन्हें सब कुछ बता दिया तो उसकी मासूम उक्ति सुनकर वो मुस्कुराये और फिर बड़े प्यारे से बोले...

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मनोकामना
जो भी रह जाये अधूरी
लिखकर पर्ची पर
रख दो तकिये के नीचे
तो उस ख्वाहिश को पूरा करने
ईश्वर भेजता कोई दूत
जो इच्छा को बांच
उस पर्ची की जगह रखता
उसका साकार रूप
गर, ऐसा न हुआ हो कभी
आपके साथ तो कोई बात नहीं
आप ही किसी टूटे दिल की
उस आरज़ू को कर देना पूरी
ताकि वो उम्मीद जो जुड़ी
'संता आया खुशी लाया' संग
आप बन सको उस रस्म की ताबीर
बन जाओ पैग़म्बर
उन सभी दुखी आत्माओं के
जो हर बरस बड़ी आस लिये
करती सारी रात इंतज़ार
कि सुबह लायेगी उसका पैगाम ।।
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फिर उन्होंने पूछा कि इससे उसे क्या समझ आया तो उसने गम के बादल को परे ढकेलते हुये सूर्य की भांति चमकते ओजस्वी आभामय अपने मुख से बेहद सयंत स्वर में कहा, फादर मैं यही समझी कि वो जो पार्क के बाहर बैठे और जिनके लिये अंदर आना ही बड़ी चाहत मैं उनके पास जाकर उनको यहाँ लाऊं उनके साथ खेलूं तो मैं भी एक ‘सांता’ बन सकती याने कि वो फ़रिश्ता जिसे हम समझते कि आसमान से उतरकर आयेगा वो तो हमारे बीच ही रहता केवल हम ही उसे देख नहीं पाते या कभी खुद में जगा नहीं पाते पर, आज आपके उपदेश से मेरे अंदर का वो सोया ज्ञान जाग गया तो अब मैं कोशिश करूंगी कि दूसरों की इच्छाओं को पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित कर अपने जीवन को सफल बनाऊं और इस तरह ये ‘क्रिसमस’ उन सबके साथ मनाऊं जिनके लिये ‘रोटी’ से बढ़कर कोई गिफ्ट नहीं और हम बड़ी-से-बड़ी सौगात को भी तुच्छ समझते कि हमारे पास सब कुछ हैं पर, कुछ लोग ऐसे भी जिनके पास रहने तक का ठिकाना नहीं और न खाने को दाना हैं । वो दौड़कर उन बच्चों के पास गयी उनको अपने पास रखी चॉकलेट्स दी और उनके साथ मिलकर खेलने लगी फिर उसने मुडकर उस जगह देखा जहाँ फादर बैठे थे तो वहां उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया लेकिन, उसने आज जो पाया उसने उसकी जीवन का दर्शन, उसकी सोच, उसके ख्यालात और उद्देश्य सब कुछ एकदम अपने ध्येय पर केन्द्रित कर दिये जिसके लिये वो उस अजनबी दोस्त की शुक्रगुज़ार थी उसे लगा वो कोई और नहीं सचमुच ‘सांता’ था ।  
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ दिसंबर २०१७

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