उदास थे
मुखौटे सभी कि
अब इंसान को उनकी
जरूरत ही नहीं रही
पहले तो फिर भी जब कभी
करना हो छद्म अभिनय तो
उन्हें लगा लेता था
पर,
अब तो करते-करते झूठी बातें
बनाते-बनाते कृत्रिम भाव-भंगिमा
खुद ही मुखौटा बन गया ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ मार्च २०१८
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