त्राहि-त्राहि मची हुई
जल बिन धरती जल रही
जल रहा गगन
जल रहा जंगल
जल बिन जल रहा कण-कण
निर्जल हो रहा चमन
निर्जल हो रहा दामन
निर्जल होता जा रहा पर्ण-पर्ण
सूख गये कुयें
सूख गये नल
सूखती जा रही हर एक शय
यूँ ही अगर चलता रहा
हमने अगर कुछ न किया
रोयेंगी कई सदियाँ
आने वाली पीढियां
भयावह हैं आने वाला कल
पल-पल ज्यूँ घट रहा जल
फ़िज़ूल मनाना ‘विश्व जल दिवस’
समझे न हमने जो ये संकेत
प्रतिदिन कुदरत दे रही संदेश
बना नहीं सकते जल
बचाना ही एकमात्र विकल्प...!!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ मार्च २०१८
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