फंस गये हो जैसे
चक्रव्यूह में असहाय
अभिमन्यु की तरह
कोई रास्ता नजर न आता
कि निकलकर जहाँ से
पा सके छूटकारा
राहत की कोई सांस मिले
तनावमुक्त होकर
बच्चों की तरह उन्मुक्त हँस सके
कभी यूं भी लगता जैसे
गहरे गर्त में गिरे हो
जहां हो एकदम निरुपाय
भटकन ही बस,
चारों तरफ गहन अंधकार
बाहर निकलने की तमाम कोशिशें
और गहरे में धंसा दे
मारते रहे हाथ-पैर लगातार
रोशनी की इक किरण को तरसते
तिनके के सहारे को तलाशते
होता बड़ा ही जानलेवा
अवसाद से घिरना
आत्मबल और इच्छशक्ति
यही वो हथियार तोड़ सकते जो
भ्रम और संशय का तिलस्म
काट सकते जो
नकारात्मकता की जंजीरें
उबार सकते जो
हताशा से भरे निराश मन को
#अवसाद कोई लाइलाज बीमारी नहीं
केवल, मन की हीन अवस्था हैं
जो अपने साथ-साथ
तन को भी शिथिल कर देती
सोचने-समझने की शक्ति
उत्साह-उल्लास को खत्म कर देती
जीवन में स्थायी उदासी का रंग घोल देती
चेहरे की कांति छीन लेती
लड़ना खुद ही होता
भीतर छिपे इस दुश्मन से
अर्जुन की तरह
बाहर से तो सिर्फ,
कृष्ण की भांति
उपदेश ही हासिल होते
युद्ध तो स्वयं ही लड़ना पड़ता हैं
अपने आप से, इस अवसाद से
जीतने पर जिसे स्वर्ग-सा राज्य मिलता ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०३ मार्च २०१८
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