शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

सुर-४०८ : "इंद्रधनुषी प्रेमोत्सव का छटवा रंग : हग डे...!!!"

दोस्तों...

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वज़ूद अपना ही
लगता बड़ा अधूरा
जब दिल होता अकेला
चाहता थाम ले किसी की बाहें
लेकर आगोश में
फेर सर पर प्यार से हाथ
बोले प्यार से भरे दो मीठे बोल
जब नम हो आँखें तो
मिल जाये किसी का कांधा
जिस पर रख सर
निकाल दे मन का सारा गुबार
और जब कभी मिले कोई उपलब्धि तो
किसी के हाथ गर्व से
थपथपा कर पीठ बढाये आत्मबल
और हर एक अर्धांग
पाकर अपना आधा हिस्सा
हो जाये मुकम्मल
पाने पूर्णता का ये प्यारा अहसास
मनाये अपनों के साथ ‘हग डे’ आज
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इंसान कितना भी कहे कि वो अकेला रहना चाहता या वो एकदम तन्हाई पसंद लेकिन किसी भी हाल में वो अपनी कुदरती इंसानी फ़ितरत को बदल नहीं सकता क्योंकि जीवन के सारे अहसास चाहे वो ख़ुशी के हो या गम के हर कोई ऐसे अहसासी समय में किसी का साथ चाहता कि इन्हीं ख़ास पलों में वही अकेलापन खाने को दौड़ता कभी जिसको पाने सब कुछ छोड़कर अपना अलग जहाँ बनाया था मगर, जब भी दामन में आई कोई भी दुआ साकार होकर या कभी यूँ ही बैठे-बैठे तो कभी किसी वजह से मन के भीतर जज्बात का सैलाब उमड़ पड़ा तो महसूस हुआ कि काश, कोई तो होता जिसके साथ वो अपने इस रूहानी अहसास को बाँट लेता क्योंकि कोई भी इंसान चाहे वो आंतरिक रूप से कितना भी मजबूत क्यों न हो या उसका किरदार कितना भी सख्त क्यों न हो लेकिन किन्ही विशेष पलों में अंतर में बड़ी मेहनत से बनाया गया तटस्थता का वो हिमालय भी पिघलने लगता जिसके दम पर सबसे विलग होने का फैसला लिया था यदि ये सब मानवीय भावनायें न होती तो फिर इंसान महज़ एक बुत होता जिस पर किसी भी तरह के मौसम, किसी भी बात का कोई फर्क नहीं पड़ता मगर, ऐसा नहीं वो कहने को भले ही मिट्टी से बना मानवीय पुतला हैं लेकिन माटी की इस काया में तरह-तरह की संवेदनायें भी तो भरी हैं जिनसे वो हर जज्बात को बड़ी शिद्दत से महसूस कर उसके अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करता और फिर इन क्रिया-कलापों पर किसी दूसरे की प्रतिक्रिया भी चाहता जिसके बिना ये सब बेमानी हैं

कहने को भगवान ने सब इंसानों को एक जैसा ही बनाया और एक समान तत्वों से भी बनाया लेकिन बाहरी रूप से एकदम पूर्ण नजर आने वाला हर मानव वास्तव में अपूर्ण होता जो अपने ही समान किसी दूसरे इंसान से मिलकर खुद को मुकम्मल पाता क्योकि किसी के भी पास ये हुनर नहीं कि वो अपने ही आपको गले लगा सके, खुद का ही आलिगन कर उस अहसास को महसूस कर सके जो किसी के सीने से लगकर महसूस होता जिसके मजबूत घेरे में वो खुद को बेहद सुरक्षित भी पाता उसे लगता कि बाँहों से बनाये गये इस बंधन में वो एकदम सुरक्षित हैं कोई भी उसका कुछ नहीं बिगड़ सकता फिर वो एकदम बेफिक्र होकर अपनी आँख मूंद बड़ी निश्चिंतता से उसके सीने पर सर रख सो जाता और इस दायरे का अभ्यस्त तो वो जनम के साथ ही हो जाता जब पैदा होते ही ममता से भरे हाथ बड़ी एहतियात से उसे अपने अपने में संजोते और जब-जब भी वो रोता या कोई डरावना सपना देखकर घबरा जाता तो वही दो हाथ बड़ी तत्परता से उसे सांत्वना देते उसके नन्हे माथे, उसके सर को थपकी देकर सहलाते तो वो भूलकर अपना दुःख फिर मुस्कुराने लगता या गहरी नींद में खो जाता फिर जैसे-जैसे वो बड़ा होता जाता इस प्रेमिल स्पर्श का आदि होता जाता और जब भी उसके जीवन में ऐसा कोई पल आता तो सहज ही मन में ये भाव उमड़ आता कि काश, कोई होता जो उसके इन यादगार क्षणों को बाँट सकता उसके सुख-दुःख का साथी बन सदा उसके साथ रहता इसलिये तो इंसान को सामाजिक प्राणी की संज्ञा दी गयी जिसके लिये एकाकी जीवन गुजरना या तो सज़ा या फिर अभिशाप होता शायद, इसी वजह से ‘परिवार’ नामक संस्था और ‘विवाह’ जैसे संस्कार की नींव रखी गयी ।

‘इंद्रधनुषी प्रेमोत्सव’ का ‘छटा रंग’ जीवन के लिये जरूरी इसी भाव को दर्शाता जिसे ‘हग डे’ कहकर मनाया जाता तो आज वही ‘आलिंगन दिवस’ हैं जिसके बिना अपना आप लगता अधूरा हैं तो आज सभी अपने अपनों को ही नहीं बल्कि जिनका कोई भी नहीं उन्हें भी ये बेमोल तोहफा देकर वो अनमोल ख़ुशी पाये जो कहीं भी नहीं मिलती और ये वो अहसास जो हम अपने आपको खुद नहीं दे सकते किसी की जरूरत पड़ती... ये तो पूछो उससे जिसका कोई नहीं या जिसके हाथ नहीं या जो सबके साथ होकर भी अकेला हैं वही जानता कि वो किस सुखसे वंचित और जो जान-बुझकर ही इससे दूर रहते वो तो बदनसीब ही कहलायेंगे कि एक ‘जादू की झप्पी’ न सिर्फ अपनेपन का अहसास देती बल्कि मनोबल भी बढ़ा देती जिससे हर काम तेज गति से किया जा सकता तो सबको ‘जादू की झप्पी’ वाले इस दिन की ढेर सारी शुभकामनायें... :) :) :) !!!                    
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१२ फरवरी २०१८
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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