मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

सुर-३९८ : "भीष्म पितामह जयंती... हर पाप हरती... !!!"

दोस्तों...

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जिसकी छत्रछाया में
सुरक्षित रहा कौरव वंश
जिसके अस्त्रों-शस्त्रों के भय से
भाग जाते रण से दुश्मन
जिसके स्नेह में
पलकर बड़े हुये राजकुंवर
जिसकी प्रेरक शिक्षा नीतियों से
संवरा हर कुमार का बचपन
जिसकी रणनीति से
डरते थे कुशल राजनेतागण
उस गंगापुत्र ‘भीष्म पितामह’ को
जयंती पर करते नमन
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‘महाभारत’ भले ही पूर्व प्रचलित धारणा के अनुसार लोग घर पर न रखते हो कि इसे रखने मात्र से घर ‘कुरुक्षेत्र’ में बदल जाता और आपसी रिश्तों में ‘महासमर’ छिड़ जाता फिर भी इसकी कथा और उसके सभी किरदारों से हम सब बड़ी अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं और अक्सर अपनी बातों में उनका जिक्र भी करते कि हर पात्र की अपनी व्यक्तिगत विशेषतायें, अपनी कुछ ख़ासियत हैं जिसकी वजह से बातों-बातों में उनका उदाहरण दिया जाता फिर चाहे वो सौ कौरव हो या पांच पांडव या ‘भगवान् श्रीकृष्ण’ या कोई अल्पकालीन चरित्र ही क्यों न हो पर, हर किसी की महत्वपूर्ण भूमिका हैं जिसके कारण उसे नजरअंदाज़ कर पाना मुमकिन नहीं फिर पूरी कथा में एक पात्र तो सबके उपर आसमान की तरह छाया हुआ नजर आता जो हर तरह के शत्रुओं से अपने साये तले रहने वाले संपूर्ण राजवंश की रक्षा करता कि उसने यही अटल प्रतिज्ञा ली कि वे सदैव कौरवों के राजसिंहासन के प्रति अपनी जिमीदारी का निर्वहन करेंगे तो फिर आजीवन अपने इस संकल्प को निभाया जिसकी वजह से वो आठवां ‘वसु’ जिसे कि शाप मिला था तो उसको पूरा करने तो उनको मानव रूप में जनम लेना ही था जिसके लिये पतितपावनी जीवनदायिनी ‘गंगा’ ने भी तो पूरा सहयोग दिया कि उन्होंने सभी ‘वसुओं’ को मुक्त कराया परंतु, सात के बाद जब अंतिम आठवें की बारी आई तो उसका कुछ कर्मफल भोगना शेष रह गया था जिसके कारण ‘गंगा’ उसे मुक्त न करवा सकी और उसे अपनी आयु शेष रहने तक इस धरती पर जीवन गुज़ारना था जिसके कारण ‘शांतनु’ के पुत्र के रूप में ‘राजकुमार देवव्रत’ बनकर वो अपना कर्तव्य निभाने में लग गये और इसी क्रम में उन्हें ये कठोर शपथ भी लेनी लेनी पड़ी कि वो आजीवन विवाह नहीं करेंगे बल्कि जब तक जियेंगे राज-सिंहासन की रक्षा करते रहेंगे जिसने उनको ‘इच्छा मृत्यु’ का वरदान दिलाया इस तरह उनके सत्कर्मों से ‘अभिशाप’ भी ‘वरदान’ बन गया पर, केवल वे ही जानते थे कि इस वर के पीछे उनको कितना कुछ असहनीय भी सहना पड़ा क्योंकि भले ही मौत उनकी आज्ञा के बिना उनके पास नहीं आ सकती थी लेकिन वे अपने तमाम कर्तव्यों को पूरा किये बिना उसे आवाज़ भी तो नहीं दे सकते थे अतः जो कुछ भी सामने आया उसे स्वीकार कर आगे ही आगे बढ़ते गये जब तक कि अंतकाल न आ गया

आज उसी भीष्म पितामह की जयंती पर उनका स्मरण कर अपने श्रद्धा सुमन उनके चरणों में अर्पित करते कि वो फिर से इस धरती पर आये आज फिर एक बार इस देश की उनकी जरूरत हैं... वो आर्यावर्त जिसको न मिटने देने की उन्होंने कसम खाई थी वो धीरे-धीरे विनाश की तरफ बढ़ता जा रहा तो ऐसे में सबको राह दिखाने उस पितामह की जरूरत हैं जो एक पालक, एक शिक्षक की तरह सबकी पालना करता... :) :) :) !!!
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०२ फरवरी २०१८
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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