सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

सुर-४२५ : "२९ फरवरी का दिन... चार साल में मिलता एक दिन...!!!"

दोस्तों...

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दिनों का
एक चौथाई हिस्सा
मिलकर चार साल में
एक दिन बन
हमको बोनस में मिल जाता
जी लो जी भर कि
ऐसा पल बड़ी मुश्किल से आता
साल तो आते हर साल 
मगर, ‘लीप ईयर’ का तोहफ़ा तो  
सालों में एक बार ही मिलता
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छोटी-छोटी खुशियों और अतिरिक्त रूप से मिली सौगात के क्या कहने... ऐसे में जबकि व्यक्ति को चौबीस घंटे कम लगते और वो पल-पल की मिन्नतें करता हो तो एकाएक उसे पूरा एक दिन एक्स्ट्रा मिल जाये तो फिर क्यों न वो भी लीप इयर के साथ उछलता-कूदता अपनी ख़ुशी का इज़हार करें जो न सिर्फ उसके साल में एक दिन का इजाफ़ा कर रहा बल्कि उसे उन यादों को फिर से जीने का मौका भी दे रहा जो बीते चार साल पहले कहीं छूट गयी थी जी हाँ २९ फ़रवरी एक ऐसा ही विशेष दिन जो हर चार साल के बाद हमारी जिंदगी में आता और जिनका जन्म या जिनकी कोई ख़ुशी इससे जुडी हुई वो तो इसे दुबारा फिर से अनुभूत करने के लिये अगले चार बरसों तक बाट जोहते तब कहीं जाकर २८ दिनों के फ़रवरी महीने में ये दिन जुड़ता जो उन्हें अपने साथ उन्ही गलियारों में ले जाता जहां जिया था वो पल जो उस दिन की तरह ही ख़ास था और छोड़ गया था अपने होने के पदचिन्ह दिल के किसी कोने में जो वक्त के चक्र के संग गहराते गये लेकिन आये नहीं अगले साल कि उनकी पुनरावृति तो फिर चार साल के बाद ही होती तो आज वे सब बड़े खुश होंगे जिनका इससे कोई ऐसा दिलकश नाता और जिनका नहीं वो भी प्रसन्न कि उन्हें भी ये लम्हें जीने को मिले जिसमें वो अपनी कोई कहानी लिख सकते जिसका अगला पन्ना चार सालों के बाद खुलेगा   

ये कुदरत का एक करिश्मा ही कहा जायेगा कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाने में यूँ तो हर साल ३६५ दिन के साथ कुछ अंश अधिक लेती जो दिन के चौथाई के बराबर होता और बचत के रूप में जमा होता रहता फिर जब एक-एक कर चार साल गुजर जाते तो यही चवन्नी-चवन्नी मिलकर एक रुपया भर दिन बना लेती याने कि जिस तरह से बूंद-बूंद से घडा भरता या छोटी-छोटी बचत से बड़ी मदद मिल जाती ठीक उसी तरह से ये ६-६ घंटे चार सालों में २४ घंटे के रूप में एक संपूर्ण दिवस में परिवर्तित हो जाते और आकर फरवरी महीने में जुड़ उसका भी विस्तार कर देते जो कि प्रकृति और सौर मंडल के नियमों के अधीन होते तथा इनका होना प्राकृतिक संतुलन के लिये भी आवश्यक जिससे कि सृष्टि का सञ्चालन एवं अन्तरिक्ष की गतिविधियाँ सुचारू रूप से गतिमान होती रहती इस तरह हर चार साल के बाद आने वाला ये ‘अधिवर्ष’ हमें प्रकृति के साथ कदम से कदम मिला चलने में सहायक सिद्ध होता अन्यथा ये संभावना होती कि हम पृथ्वी की गति से आगे निकल जाते जो हमारे लिये नुकसानदायक होता और मौसमों की गति भी प्रभावित होती अतः ये व्यवस्था ऋतुओं ही नही बल्कि नक्षत्र मंडल के सभी ग्रहों के भी अपनी-अपनी धूरी पर अपनी गति से भ्रमण करने हेतु जरूरी वरना अनिष्ट हो सकता हैं तभी तो वैज्ञानिकों ने काल की गणना कर इस तरह से सूक्ष्मतम विश्लेष्ण किया कि सदियाँ बीत गयी मगर, उनके इस आकलन में कोई त्रुटि न निकाल सका

आज आई २९ फरवरी की सबको बहुत-बहुत मुबारकबाद कि हम सबने इसे अपनी तरह से मनाया होगा और कुछ अलग करने का प्रयास कर इसे इसी की तरह अलग दर्जा दिया होगा तो वे सब जिनका आज जन्म हुआ या जिनकी इससे कोई ख़ुशी जुडी उन सबको भी बहुत-बहुत बधाई... कि आख़िरकार चार साल के बाद ये घड़ी फिर आई... :) :) :) !!!
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२९ फरवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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