शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

सुर-४०१ : "चिंतन : गर, रहे आँख खुली... कोई शिक्षा न जाये चूकी...!!!"

दोस्तों...

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‘महक’ की आदत थी कि रात को सोते समय वो दिन भर होने वाली सभी बातों का आकलन करती थी तो आज भी उसी तरह विचार करते समय उसे ध्यान आया कि यूँ तो दिन में होने वाली वो घटना एकदम सामान्य थी जो अक्सर ही सबके साथ गाड़ी चलाने के दौरान हो जाती लेकिन इस समय उसे उसमें जीवन का एक बड़ा गहरा फलसफ़ा मिल गया जब उसने सिलसिलेवार उस पूरे वाकये को इस तरह से दुबारा ख्यालों में जोड़ा---   

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वो बेखबर थी कि
उसकी गाड़ी का इंडिकेटर ऑन था
जिसकी वजह से
उसके पीछे आने वाला उसे
विपरीत दिशा मे जाते देख हैरान था

फिर...

उसे मान उसकी गलती
वो संभल गया
उसके बाजू से इशारा कर
आगे निकल गया

तब उसने बेशक...
बंद तो कर दी गाड़ी की लाइट
लेकिन भीतर की जल गयी
जो उसको समझा गयी

कि अक्सर ही
हम अंजान इस बात से
चलते चले जाते
और हमको देखने वाले
अपने अंदाज़े लगाते जाते

जबकि...
हमारा इरादा न होता
उस राह जाने का
जिसका इशारा हम कर रहे
भले जान-बूझकर नहीं
अनजाने में ही सही

तो हम लापरवाही से
आगे बढ़ते जाते
पीछे वाले हमें देख अपने
अनुमान लगाते जाते

इस तरह
कभी-कभी हम
ना चाहते हुये भी
दूसरों की नज़रों मे
गुनाहगार तो बन जाते

गर...
हो कुछ सीखने का जज्बा
तो जीवन के अनमोल सबक
यूँ राहों मे भी मिल जाते ।।
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वो सोचने लगी सचमुच कितना बड़ा दर्शन छिपा इस छोटी-सी नजर आने बात में यदि इसी तरह हर एक छोटी-छोटी बात से सबक लिया जाये तो न सिर्फ नित कोई सबक मिलता बल्कि जीना भी सहज हो जाता जिसे हम बड़ी आसानी से नजरअंदाज़ कर आगे बढ़ जाते तो अब से उसे हर पल होने वाली आमो-ख़ास घटना में छिपे जीवन मंत्रों को ढूंढना हैं... आज मिले इस ज्ञान ने उसको संतुष्टि का एक भाव दिया और सोच को विराम दिया तो वो मन में ये निश्चय कर पलकें मूंदकर करवट बदलती हुई सो गयी... :) :) :) !!!
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०५ फरवरी २०१८
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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