बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

सुर-४२० : "तलत महमूद की आवाज़ का जादू... दिल पर न रहता काबू...!!!"

दोस्तों...

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‘संगीत’
मन का मीत
बनकर दिल बहलाता
उस पर जब फ़नकार हो
मरहम सी आवाज़ वाला तो
हर जख्म अपने आप
सुनकर उसके तराने भर जाता
अपना ही अंदरूनी दर्द  
उसके गीतों संग बयां होता जाता
फिर तन्हा होकर भी
दुखी मन तन्हा कहाँ रह पाता
वो तो उसके साथ-साथ ही  
अपनी वेदना बना नगमा गुनगुनाता
फिर खुद को बड़ा हल्का पाता
जब दर्दे दिल आंसुओं में बह जाता
‘तलत महमूद’ को सात सुरों में पिरोया
गम भूलाने का ये फन था आता
तभी तो ये जहाँ उनको न भूल पाता
आज जन्मदिन पर...
फिर उनके सदाबहार नगमे दोहराता     
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मैं दिल हूँ
एक अरमान भरा
तू आ के मुझे पहचान जरा...

किसी भी पहचान की जरूरत नहीं इस आवाज़ को वो खुद अपनी पहचान हैं जो कानों में पड़ती तो राह चलता भी अपना काम भूल जहाँ का तहां खड़ा रह जाता और यदि किसी मरीज को इसे सुनाया जाये तो वो भी अपना रंजो गम बिसरा सुरों के संग बह जाता फिर पीड़ा से निकलने वाली ‘आह’ पता नहीं चलता कब ‘अहा’ में बदल जाती ऐसा कमाल का जादू आता था संगीत के मर्मज्ञ और सात सुरों को अपने भीतर आत्मसात कर लेने वाले फ़नकार ‘तलत महमूद’ को जिनके कंठ में अजब सी कशिश समाई जिसे केवल सुनकर ही महसूस किया जा सकता हैं  यकीन न हो तो उनका कोई भी गाना सुन लीजिये कितने भी तनाव में या दर्द से भरे हुये न हो खुद को एकदम हल्का महसूस करेंगे क्योंकि उनकी रेशमी आवाज़ में उपरवाले ने जमाने भर के दर्द को अपने भीतर सोख लेने का वरदान बख्शा था जो कानों के रास्ते जब हृदय में उतरती तो उसमें होने वाला हल्का-हल्का दर्द आँखों के रास्ते से बाहर निकल जाता जिससे भीतर बड़ा सुकून महसूस होता जिसकी तलाश में इंसान न जाने कहाँ-कहाँ भटकता मगर, उस हकीम के पास न जाता जो बगैर मर्ज पूछे ही उसे भांप लेता फिर अपनी मद्धम स्वर लहरियों के स्पर्श से हर तकलीफ़ को बाहर दफा कर देता फिर न कोई कहता---

दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या हैं ?
आखिर इस दर्द की दवा क्या हैं ??

अब तो उसे वो दवा मिल गयी जिसकी उसे तलाश थी वो भी इतनी मधुर तो कौन कमबख्त फिर किसी वैद्य के पास जाये बस, उसके गाने लगा पलकों को मूंदकर उसकी रागिनीयों में गुम हो जाये और जब आँखें खुले तो खुद को तरोताज़ा पाये कि उसने तो अनजाने में उसके गम को चुरा उसे हर दर्द से मुक्त कर दिया

सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया
दिन में अगर चराग़ जलाये तो क्या किया ???

जितने खुबसूरत अल्फाज़ उतनी ही सादगी से उसे गाया ‘तलत महमूद’ ने जो अपने आप में एक दर्शन भी समेटा और हर किसी के जीवन के उस पहलू को बयाँ करता जिसमें उसकी वो दास्ताँ छिपी जब अनजाने में उसने अपनी लापरवाही से अपना कुछ बेहद अनमोल गंवा दिया और जब अहसास हुआ तो उसके अपने ही प्रयास उसे बेमानी लगे क्योकि तब तक बड़ी देर हो चुकी थी और हम सबके ही जीवन में ऐसा कोई अफसाना जरुर होता तो ऐसे में ये ग़ीत मन को बड़ा भाता ।

रात ने क्या-क्या ख़्वाब दिखाये
रंग भरे सौ जाल बिछाये
आँखें खुली तो सपने टूटे
रह गये गम के काले साये...

ऐसा तो कोई नहीं जिसने कभी कोई सपना न देखा हो तो ज़ाहिर कि सब तो पूरे होने से रहे कुछ तो टूटेंगे ही तो ऐसे उन टूट स्वप्नों की किरचें आँखों में चुभना भी लाजिमी तो इस तरह की स्थिति में ये गीत दिल की गहराइयों में उतर उस दर्दीली परस्थिति से उबरने में सहायक बन जाता कि इन शब्दों के माध्यम से उस अबूझ पहेली का हल जो मिल जाता जिसने उसे बड़ी देर से परेशां किया हुआ था ।

जिंदगी देने वाले सुन
तेरी दुनिया से जी भर गया
मैं यहाँ जीते जी मर गया...

कभी न कभी तो सबको इस दुनिया से कोफ़्त होती तो उस अलहदा अहसास को इस तराने में महसूस किया जा सकता जो हर दिल को अपना-सा लगता और वो पाता कि वाकई ये दुनिया अब जीने लायक नहीं रह गयी और जब इसे छोडकर जाने का मन करता तो फिर ये गाना बहुत याद आता जो हमारी मनोस्थिति को जस का तस बयाँ कर देता ।

दिल मतवाला लाख संभाला
फिर भी किसी पर आ ही गया...

इश्क़ के बीमार को इस गाने में अपना हाले दिल अभिव्यक्त होता महसूस होता क्योंकि प्यार तो लाख कोशिशों के बाद भी हो ही जाता तो ऐसे में इसे सुनना दिल को करार देता कि हर कोशिश को नाकाम बना आखिर मुहब्बत ने दिल में घर बना ही लिया किसी की नजरों के तीर ने उसे घायल कर ही दिया

ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
अपना-पराया मेहरबां, ना-मेहरबां कोई न हो...

यूँ तो ‘तलत’ ने उस दौर के सभी नामचीन अभिनेताओं को अपनी आवाज़ दी मगर, जिस तरह से वो अभिनय सम्राट ‘दिलीप कुमार’ की आवाज़ बने वो अपने आप में मिसाल हैं क्योंकि एक को यदि ‘ट्रेजेडी किंग’ तो दूजे को ‘दर्द भरा गायक’ कहा जाता था तो ऐसे में उन दोनों का संगम अद्भुत हुआ जिसने एक के बाद एक बेहतरीन नगमे देकर सुनने वालों को गीतों का अनमोल खज़ाना दिया जहाँ एक गायिकी तो दूसरा अभिनय में बेजोड़ था फिर उनका मेल तो इतिहास बनना ही था सो बना और गज़ब बना जिसे बिसरना नामुमकिन ।

●...कोई नहीं मेरा इस दुनिया में आशियाँ बर्बाद हैं
आंसू भरी मुझे किस्मत मिली हैं जिंदगी नाशाद है...

●...शामे गम की कसम आज ग़मगीन हैं हम
आ भी जा आ भी जा आज मेरे सनम...

●...जब-जब फूल खिले तुझे याद किया हमने        
देख अकेला हमें, हमें घेर लिया गम ने....

●...कहाँ हो...
कहाँ मेरे जीवन सहारे
तुम्हे दिल पुकारे...

●...एक मैं हूँ एक मेरी बेकसी की शाम हैं
अब तो तुझ बिन जिंदगी भी मुझ पे एक इल्ज़ाम हैं...

●...ये हवा, ये रात, ये चांदनी
तेरी एक अदा पे निसार हैं
मुझे क्यों न हो तेरी आरजू
तेरी जुस्तजू में बहार हैं...

●...ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया...
ढूंढ ले अब कोई घर नया...

●...किसको खबर थी ?
किसको पता था ??
ऐसे भी दिन आयेंगे
जीना भी मुश्किल होगा
मरने भी न पायेंगे...
  
आज सुरों के उस सरताज जिसने हर दर्द पर अपनी आवाज़ का मरहम लगाया के जन्मदिवस पर गीतों भरी ये शब्दांजलि... :) :) :) !!!
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२४ फरवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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