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इक कायनात
हमारे भीतर भी समाई
मगर, सबकी आँखें उसको
कहाँ देख पाई ???
क्योंकि...
अंतर की यात्रा
नहीं सहज जितनी बाहरी
कि इसमें कहीं जाना नहीं पड़ता
उतरना होता कहीं भीतर गहरे
भेद के सातों चक्र देह के
मिलती वो रूहानी दिव्य रौशनी
जिससे अंदर-बाहर के
तम सभी मिट जाते और रहता शेष
बस, वो आत्मज्ञान
पाकर जिसे
खत्म हो जाती जन्मों-जन्मों की तलाश ।।
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२० फरवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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