सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

सुर-३९७ : "कल्पना नहीं हकीकत.... 'कल्पना चावला' !!!


दोस्तों...

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‘कल्पना’
नहीं हकीकत थी वो
धरा पर नहीं
आकाश में घुमती थी वो
अपनी अथक मेहनत
और अपने बुलंद इरादों से
जमीं-आसमां एक कर गयी वो
अब बनकर एक नक्षत्र
रहने लगी हमसे बहुत दूर वो
आज भी सातों आसमान के पार से
अपनी जन्मभूमि को निहारती वो
जो जन्मी तो ‘भारत’ में
लेकिन भरकर बड़ी ऊंची उड़ान
पहुंच गयी थी विदेश में वो
आज भी दूर से हर बेटी को
खुद पर गर्व करने का
संदेश दे रही वो
कि कोई आम लडकी नहीं
देश की बेटी ‘कल्पना चावला’ थी वो
आज पुण्य तिथि पर...
उसको श्रद्धांजलि दे रहे हम लोग
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दिनों दिन साक्षरता का प्रतिशत बढ़ता जा रहा उसके बावजूद भी हमारे देश में ‘कन्या भ्रूण’ की हत्या की जा रही जिससे निरंतर लिंगानुपात बढ़ता जा रहा फिर भी पुरातन पंथी सोच रखने वालों की बुद्धि का क्या करें जो आज भी लडकियों को बोझ समझ उनको जन्मने ही नहीं देते तो ऐसे में इस भूमि के उस इलाके में ‘हरियाणा’ में जहाँ पर कि ‘लिंगानुपात’ एक विकट समस्या बन चुका हैं के एक छोटे से कस्बे ‘करनाल’ में ०१ जुलाई, १९६१ को ‘कल्पना चावला’ का जन्म हुआ जिन्होंने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर इतनी ऊंची छलांग मारी कि सिर्फ अपने गाँव ही नहीं बल्कि देश को भी पार कर लिया और फिर अपनी ख्वाहिशों के पर लगाकर सीधे आसमान तक उड़ान भर ली जिसके कारण वो सुदूर अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला होने का गौरव हासिल कर सकी भले ही उन्होंने ‘अमरीका’ की नागरिकता लेकर अपने आपको दूसरे देश में बसा लिया हो मगर, जिसके दिल में अपना देश बसता फिर वो विश्व में कहीं भी रहे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसका हर कदम अपने वतन की भलाई के लिये होता और उसकी हर काम्याबी पर देश का बच्चा-बच्चा गर्व करता और जब भी वो दुनिया के किसी भी कोने में जीत हासिल करें तो सीना उसके जन्मदाता देश का चौड़ा होता और बड़ी आन-बान-शान से झंडा भी अपने देश का फ़हराया जाता जो सबके लिये गौरव के यादगार पल लेकर आता

उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी अपने ही देश में ग्रहण की १९७६ तक उन्होंने अपने गाँव के 'टैगोर स्कूल' से स्नातक कर लिया और फिर १९८२ में ‘चंडीगढ़’ जाकर ‘एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग’ की पढ़ाई की परंतु उनका सपना तो एक ‘अंतरिक्ष वैज्ञानिक’ बनना था तो शुरूआती अध्ययन करने के बाद १९८४ में वे ‘एरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में ‘एम. ए.’ करने ‘टेक्सास विश्वविद्यालय’ चली गयी फिर तो जैसे उनके सपनों को पंख लग गये और उन्होंने अपने इच्छित विषय में पूर्ण दक्षता हासिल करने के उद्देश्य से १९८८ में ‘कोलोरेडो विश्वविद्यालय’ से ‘डॉक्टर ऑफ़ फ़िलॉसफ़ी’ करने की ठानी जिसने उनको उड़ने का हौंसला प्रदान किया क्योंकि इसी साल ‘कल्पना’ ने अपने ख्वाब को ताबीर देने के लिये ‘नासा’ के ‘एम्स रिसर्च सेंटर’ में काम करना शुरू किया जहाँ १९९४ में उनको वो पथ मिल गया जिस पर चलकर वो धरती से सीधे आकाश में पांव रख सकती थी कि इसी जगह पर उनका चयन बतौर ‘अंतरिक्ष-यात्री’ किया गया ।

अब कल्पना को इंतज़ार था अपनी पहली उड़ान का जो शीघ्र ही उनके सामने आ गयी जब उनको ‘एस. टी. एस.-87 कोलंबिया स्पेस शटल’ में चढने का मौका मिला और इसके माध्यम से उन्होंने १९ नवंबर से ५ दिसंबर, १९९७ तक उस स्थान पर वक्त गुज़ारा जिसे केवल किताबों में पढ़ा था यही नहीं पहली बार नजदीक से उस अहसास को जिया जिसे अब तक स्वपन में ही महसूस किया था तो इस अनुभूति ने उनके अंदर ऊर्जा का ऐसा स्त्रोत खोल दिया जिसके बल पर वे आगे ही आगे बढ़ती चली गयी कि उनको तो उस ऊँचाई तक पहुंचना था जहाँ तक पहले कोई महिला पहुंची न हो जिससे कि लोग बेटी के पैदा होने पर शर्म की जगह गर्व का अनुभव करे तो फिर वे रुकी नहीं उसके बाद जल्द दूसरी उड़ान का अवसर मिल गया और वे १६ जनवरी, २००३ को 'कोलंबिया स्पेस शटल' सके द्वारा अपने मिशन पर रवाना हुई जो कि अगले १६ दिनों तक चलना था जिसमें उन्होंने अपने सहयोगियों सहित लगभग ८० परीक्षण और प्रयोग किये पर,  लौटते समय न जाने क्या हुआ कि ०१ फरवरी २००३, को उनकी ‘शटल’ दुर्घटना ग्रस्त हो गई जिससे ‘कल्पना’ समेत ६ अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की असमय दुखद मृत्यु हो गई

आज उसी अनहोनी का स्मरण कर हम अपने देश की उस साहसी बिटिया को नमन करते जिन्होंने अनवरत अपने कर्म से छोटे से जीवन में एक बड़ा संदेश दिया कि यदि बेटियों का परिवार उनका साथ दे तो फिर वे जमीन ही नहीं आसमान तक पहुँच सकती तभी तो बेटी बचाने का संदेश देते समय हम ऐसी गौरवशाली कन्याओं का उदहारण देते जिन्होंने अपने जीवन काल में अवसरों का भरपूर लाभ उठाते हुये न सिर्फ अपना लक्ष्य प्राप्त किया बल्कि लडकियों को भी उससे आगे पहुंचने का एक लक्ष्य थमा दिया... तो आज पुण्यतिथि पर उनको देश का सलाम... :) :) :) !!!
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०१ फरवरी २०१८
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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