बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

सुर-४१३ : "चिंतन : डूबकर प्रेम के दरिया में प्रेमी पार होता हैं...!!!"

 दोस्तों...

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‘मीनल’ आज बहुत परेशां थी क्योंकि उसके सामने ऐसी परिस्थिति आ गयी थी जब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ‘सोहम’ से किये अपने वादे को पूरा करे या फिर अपने घरवालों की बात माने... ये बड़ी विकट जानलेवा घड़ी थी और उसे यूँ लग रहा था जैसे उसका दम घुट रहा हैं पर, हल समझ नहीं आ रहा था क्योंकि वो ‘घर’ या ‘प्यार’ के बीच में फंसकर रह गयी थी जिसे भी छोड़े उसको मात ही मिलनी थी तो ऐसे में वो क्या करें ???      

तभी उसकी नजर डायरी पर गयी और वो रोते-रोते मुस्कुरा पड़ी कि वो अब तक नाहक ही परेशान हो रही क्योंकि जब उन्होंने आपस में ये तय किया था कि वो अपने प्रेम को नाकाम न होने देंगे तब ‘सोहम’ ने पंक्तियाँ लिखकर उसे दी थी---

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बस, एक ही बात
लगातार गूंज रही थी
सोहनी के कानों में
जो कही थी उससे महिवाल ने
कि कुछ भी हो जाये सोनिये
तू वादा न भुलाना
रोज दरिया पार कर
अपने माही से मिलने आना ।
....
और...
उस दिन
तेज आंधी-तूफ़ान में
भरी बरसात में भी वो अंजान
कि किसी ने बदल दी हैं उसकी मटकी
वो तो बस तैरे जा रही थी
पर, उनमें बने छेदों से मात खा रही थी
जिनसे आता ही जा रहा था पानी
इतना आया कि वो डूब गई
लेकिन वादा निभाकर अमर हो गई ।।
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उसके सवालों के जवाब इस तरह से मिल जाने पर उसे याद आया कि उस समय भी तो उसने यही पूछा था न कि वो अपने वादे को किस तरह से निभा पायेंगे तो ‘सोहम’ ने कितनी आसानी से उस मुश्किल को आसां बना दिया था और आज फिर इस बात ने जेहन में छाये धुंध के बादल छांट दिये और सब कुछ साफ़ दिखाई देने लगा था कि प्रेम में डूबकर ही प्रेमी पार होते हैं... :) :) :) !!!
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१७ फरवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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