सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

सुर-४०४ : "इंद्रधनुषी प्रेमोत्सव का दूसरा रंग : 'प्रपोज डे' !!!


दोस्तों...

___//\\___

क्यों जरूरी इज़हार ???

कभी-कभी मन में
ये इक सवाल उठता
कि जिसे भी हम चाहते
उसे ये बताना जरूरी क्यों ?

उसे तो पता होता न...

मगर,
ये तो महज़ सोच
कभी हमारी ख़ुशफ़हमी
तो कभी गलतफ़हमी
जो हम ये मान लेते कि
अगले को तो हमारी चाहत का
अहसास हैं ही सही तो
फिर उसे कहकर क्यों जताना ??  

कितने निश्चिंत रहते न हम...

जो हमारे साथ रहते
जो हमारे अपने हैं
उनसे भी भला कोई ये कहता
कि ‘तुमसे प्यार हैं’
जबकि हमारे प्यार पर
पहला हक तो उनका ही हैं न
फिर क्यों नहीं हम उनसे ये कहते ???

हम खुद ही उनके शब्द गढ़ लेते...

यदि कह सके
उन सभी अपनों से हम ये
चंद जादुई शब्द तो
सिर्फ कुछ पल की ख़ुशी नहीं
उन्हें जीवन भर के लिये
जीने की प्यारी वजह  
और अनंत ऊर्जा दे सकते

तो अब...
समझ में आया क्या ?
कि दिलों में आये न कभी दूरी
न बने संबंध मजबूरी
इसलिये भले कभी-कभी ही सही   
मगर, प्रेम का इज़हार भी जरूरी हैं   
-------------------------------------------●●●

इंद्रधनुषी सात रंगों से सजे इस सात दिवसीय आयोजन में आज दूसरे रंग जिसे कि ‘प्रपोज डे’ कहते की बारी हैं जिसका तात्पर्य कि साल के ३६५ दिनों में भले रोज-रोज हमारे पास अपने अपनों से ये कहने का वक्त न मिले कि हम उनको कितना चाहते हैं या हमारे दिल में उनके प्रति किस तरह की भावनायें हैं मगर, आज एक दिन तो हम खुले दिल से ये कह सकते कि उनका होना हमारी जिंदगी के लिये कितनी अहमियत रखता और उनकी मौजूदगी का अहसास हमें किस उत्साह-उमंग से भरता कि हम हमेशा उनके लिये कुछ न कुछ ऐसा करते रहना चाहते जो उनके होंठों पर मुस्कान ला सके, कोई भी वो चीज़ जिसके कारण वे ख़ुशी पा सके हर हाल में हम उसे उनके दामन में डाल देना चाहते मतलब, कि हम जो कुछ भी करते या सोचते उसमें वो शामिल होते पर, इतना सब कुछ करते हुये भी हम एक भूल कर जाते जो ये सोचते कि हम उनके लिये ही तो इतना सब-कुछ कर रहे तो फिर अलग से उनको ये कहने की क्या जरूरत कि हम उनके लिये किस तरह की भावनायें रखते या हमारे मन में उनके लिये कितना प्यार भरा वो तो आँखों से ही झलक जाता वो तो सब जानते या समझते तो फिर उसे क्या जताना ???  

सच, हमारा ये मान लेना या हमारे प्रति उनके शब्दों को स्वयं ही सोच लेना जरूरी नहीं कि एकदम वैसा ही हो जैसा कि उनके मन में हो, ये अहसास जुदा भी हो सकता तो बिना कहे-सुने हम किस तरह खुद ही ये तय कर लेते कि हम उसे या वो हमें चाहता ही हैं या जैसा हमारे अंतर्मन में चल रहा हूबहू वही उनके भीतर भी चल रह होगा इसलिये ही शायद, इस तरह के दिनों का चलन शुरू किया गया कि साल-भर की व्यस्तता में यदि हमें एक पल भी ये कहने का वक्त न मिला हो तो आज के दिन तो कम से कम ये बात कह ही सकते हैं कि हम उससे प्यार करते... हमने जो ये भी मान लिया कि ‘प्रपोज डे’ तो केवल प्रेमी-प्रेमिका के इज़हार-ए-मुहब्बत का दिन हैं ये भी हमारी भूल हैं क्योंकि सिर्फ माशूक-माशूका के मध्य ही नहीं ‘प्यार’ का अहसास तो हर रिश्ते में होता सच, कहे तो बिना प्यार के तो कोई रिश्ता बनता ही नहीं यदि हम ये एक बार मान भी ले कि कोई रिश्ता इस तरह से बन भी जाये तो वो लंबा चलता नहीं कि ‘प्रेम’ तो दो दिलों को जोड़ने वाला सेतु ही नहीं बल्कि वो रसायन हैं जो हर रिश्ते-नाते को न सिर्फ़ जोड़ता बल्कि हमेशा एक सूत्र में बांधकर रखता हैं

वैसे तो हम न जाने क्या-क्या कहते रहते यहाँ तक कि लगातार बोलते-बोलते कभी थकते नहीं लेकिन जब बात आती अपनों से ये कहने कि हम उनको चाहते तो न जाने क्यों उस समय ही या तो कभी सारे शब्द कहीं खो जाते या कभी जुबान में ही कांटे उग आते याने कि जब बोलना हो मन की बात तो चुप लग जाते जो स्वतः ही ये दर्शाता कि हमारे लिये अपने प्यार को जताना बड़ा कठिन कार्य मालूम होता भले कोई पहाड़ उठाने कह दे या हमसे कुछ भी करा ले लेकिन इस मुश्किल में न डाले हम तो अपनी आँखों से, अपने काम से या उपहार देकर ये समझते कि हमने ये काम कर दिया जबकि महंगी से महंगी सौगात के आगे प्यार के दो बोल से कीमती कुछ भी नही शायद, इसलिये ये आसानी से निकलते नहीं तो ऐसे में इसका एकमात्र उपाय यही नजर आता कि हम फिर से बच्चे बन जाये जो बड़ी मासूमियत से गले में बांहे डालकर गालों में प्यार की मुहर लगा तोतली बोली में हमसे अपने प्यार का इज़हार कर देते तो इस ‘प्रपोज डे’ में बन जाये एकदम बच्चे और अपने सभी रिश्तों में डाले अहसास सच्चे... तभी ये सार्थक होगा... :) :) :) !!!
__________________________________________________
०८ फरवरी २०१८
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: