बुधवार, 22 मई 2019

सुर-२०१९-१४२ : #जैव_विविधता_घट_रही #जान_संकट_में_पड़_रही




ईश्वर ने प्रकृति में कोई भी शय निरर्थक नहीं बनाई सभी का सृष्टि के कुशलतापूर्वक संचालन में अपना-अपना महत्वपूर्ण योगदान है । सिर्फ जीवित ही नहीं निर्जीव तत्व भी अपनी सहयोगी भूमिका निभाते है जिनके आपसी सामंजस्य से तंत्र विधिवत चलता रहता जिनमें से किसी एक का भी सन्तुलन बिगड़ने से खतरा बढ़ जाता है ।

पंचतत्व के बिना जीवन संभव नहीं ये हम सब जानते लेकिन, इनके अलावा भी अनगिनत जीव-जंतु-प्राणी चाहे वे सूक्ष्म हो या अदृश्य या फिर विशालतम सब कुदरत का संतुलन साधने में जुटे रहते चूंकि, ये सब हमें दिखाई नहीं देता अतः हम उनके इस सहयोग व योगदान से अनभिज्ञ रहते है । जिसका अहसास हमें तब होता जब कुदरत अपने प्रकोप को किसी न किसी आपदा के रूप में प्रकट करती तब यही कहते कि पता नहीं ऐसा क्यों हुआ लेकिन, दुनिया बनाने वाले को मालूम की कहाँ क्या गड़बड़ हुई और इसे किस तरह से दर्शाना है ।

शरीर हो या गेजेट्स यदि उनमें भी कोई वायरस प्रवेश कर जाता तो वे भी किसी न किसी संकेत या संदेश के माध्यम से उसे जता देते फिर प्रकृति जो सबको जीवन दे रही उसी का ढांचा अस्त-व्यस्त हो रहा हो तो वो भी तो उसे किसी न किसी तरीके से ज़ाहिर करेंगी ही न तो कभी ग्लोबल वार्मिंग, असमय वर्षा, बाढ़, सूखा, जल स्तर में गिरावट, कम बारिश, आंधी-तूफान के रूप में उस गिरावट को प्रदर्शित करती है । जिसे उस समय तो हम इग्नोर करते या थोड़ी-बहुत चिंता जताकर फिर बेफिक्र सो जाते तब तक अगली कोई मुसीबत दस्तक देने लगती पर, मानवीय स्वभाव के चलते हम तब तक जागृत नहीं होते जब तक कि अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न न हो जाये इसी घृणित सोच ने आधी से अधिक प्रकृति को बर्बाद किया है ।

जो कुछ शेष बचा उसके प्रति भी हम कितना सजग दिखाई दे रहा कि आधुनिकता व विकास की अंधी दौड़ में अपने सिवाय कुछ दिखाई न दे रहा जब तक हम सुरक्षित हमें किसी की न तो परवाह न ही मतलब है । पेड़-पौधे, चिड़िया-पक्षी और जानवरों की अनेक दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त हो गयी बाकी विलुप्ति की कगार पर फिर भी हमें फर्क नहीं पड़ रहा कि सांसें तो ले पा रहे भले, पृथ्वी को सांस लेने में कठिनाई हो रही उसे हम देख नहीं रहे क्योंकि, आग उगलती ये धरती भी हमें आंदोलित नहीं करती कि इसके बीच जीने हमने तरह-तरह के यंत्र बना लिये है ।

ये मशीनें केवल हमें ही नहीं समस्त वसुंधरा को भी प्रभावित कर रही जिनकी वजह से कई तरह के प्रदूषण व मुश्किलें पैदा हो रही यहां तक कि अब तो इनसे उत्पन्न हो रहा इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है । इसी के प्रति जागरूक करने संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 मई को विश्व जैव विविधता सरंक्षण दिवस मनाने का निश्चित किया ताकि हम उनके महत्व को समझे और उनको बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए अन्यथा अपने साथ-साथ धरती को मिटते देखने बाध्य हो क्योंकि, काफी कुछ हम खो चुके जो शेष उसे भी अपनी लापरवाही से गंवा रहे है ।

अपनी दूरदर्शिता व भविष्य का आंकलन करने की दूरगामी सोच की वजह से हमारे पूर्वजों ने सबको साथ लेकर चलने का मंत्र अपनाया और चींटी तक को न मारने के साथ-साथ नदी-तालाब, लता-वृक्ष, कीट-पतंग सबको धर्म से जोड़ दिया कि इसी वजह से सही मनुष्य इनकी सुरक्षा करेगा पर, वो तो धर्म से ही विमुख हो गया है । हमने विज्ञान की कसौटी पर आस्था को परखने की कोशिश की जिसने हमसे हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं हमारी प्राकृतिक परंपराएं भी हमसे छीन ली अफसोस कि अब भी हमको खबर नहीं हम गाफिल होकर मोबाइल में उंगलियां चला रहे बीमारियों को खुद ही आमन्त्रित कर रहे है ।

#International_Day_of_Bio_Diversity
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई २२, २०१९

3 टिप्‍पणियां:

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

अति उत्तम आलेख है इंदु जी
💐💐🙏🙏🙏👍

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

अति उत्तम आलेख है इंदु जी
💐💐🙏🙏🙏👍