मंगलवार, 14 मई 2019

सुर-२०१९-१३४ : #हिन्दू_धर्म_से_जो_अब_तक_रहे #आज_भगवाधारी_बनकर_मन्दिर_मन्दिर_क्यों_घूम_रहे




कभी जिस ‘भगवा’ और ‘हिन्दू’ शब्द को बदनाम करने की साजिश रच रहे थे वो लोग आज खुद को न केवल गर्व से ‘हिन्दू’ कह रहे बल्कि, माथे पर त्रिपुंड सजाये तन पर भगवा धारण कर रहे है यही नहीं कल तक जो लोग समझते थे कि भारत में केवल एक ही मजहब के लोग रहते तो उनको संतुष्ट करने तमाम नेतागण सारी योजनायें और नीतियां ही नहीं कानून भी उनके अनुसार ही बनाते थे लेकिन, वही लोग आज सब कुछ भूलकर केवल हिन्दुओं को खुश करने में लगे है क्यों ???

क्योंकि, इनके हाथ से सरकार जाते ही इनको एहसास हुआ कि इनसे कितनी बड़ी गलती हो गयी जो इन्होने बहुसंख्यकों को जगह सिर्फ अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश की और ये करते समय भूल गये कि अत्याचार सहते-सहते तो गूंगा भी बोलने लगता है जब सालों-साल इस तरह से भेदभाव का व्यवहार किया जाये और हिन्दू धर्म को कमतर दिखाने का प्रयास किया जाये जिससे कि न्याय का पलड़ा एक तरफ झुक जाये तब उस समुदाय को अपना वजन दिखाना पड़ता है । यूँ तो हिन्दू बेहद शांत व हर हाल में खामोश रहता पर, जब बात उसके अस्तित्व को कायम रखने या उसकी पहचान पर बढ़ते खतरे की हो तो उसको सोचने पर मजबूर होना पड़ता है । उसके बाद भी कोई कोई हथियार उठाकर अपना प्रतिकार नहीं दर्शाता और न ही किसी पर जुल्म-जबरदस्ती करता केवल, अपने मताधिकार का प्रयोग कर के अपना विरोध जता देता है । ऐसे में उसने जब 55 साला सरकार को तुष्टिकरण की राजनीति करते और हिन्दू धर्म को गलत साबित करने का दुष्प्रचार करते देखा तो उसका माथा ठनका कि बात उतनी सरल-सहज नहीं इसमें कोई गहरा षड्यंत्र है ।

एक पक्ष किसी भी तरह ‘हिन्दू धर्म’ को इतना बदनाम कर देना चाहता कि इसके मानने वालों को खुद को ‘हिन्दू’ कहने में ही शर्म आये जिसके लिये ‘आतंकवाद’ जैसा घृणित शब्द जो अब से पहले तक किसी विशेष मजहब से जुड़ा उसे किसी भी तरह हिन्दू धर्म के साथ चस्पा कर देना चाहते है । अपने इस मिशन को पूरा करने ये हिन्दू धर्म के प्रतीकों को अपराधों से जोड़ने लगे और अपने ही कर्ताधर्ताओं को भगवा पहनाकर व कलावा बंधवाकर दंगे करवाये ताकि, पहले तो ये ये रंग हिंसा का प्रतीक बन जाये फिर आगे इसके अनुयायियों पर निशाना साधा जाये । इसी क्रम में हिन्दू धर्म प्रचारक चाहे वो आशाराम बापू हो या राम रहीम या फिर सबको एक-एक कर ऐसे आरोपों में फंसाया गया कि खुद हिन्दुओं ने उनके लिये कड़ी-से-कड़ी सजा की मांग करने गुहार लगाई । ये कहने का मतलब नहीं कि ये लोग गुनाहगार नहीं दूध के धुले है लेकिन, क्या सिर्फ यही ऐसे है यदि ऐसा है तो फिर जिन पादरियों या मौलाओं पर इस तरह के आरोप लगे उनका इतना प्रचार क्यों नहीं किया गया और उन्हें जमानत किस आधार मिली ।

पहले लोग ऐसे मामलों में चुप रहते थे पर, अब न केवल खड़े होकर सवाल करते बल्कि, गलत को गलत भी कहते है जबकि, पहले तो ये होता था कि जो भी कह दिया गया या किताबों में लिखकर पढ़ा दिया गया सब उसे ही सच मानते थे । इसकी वजह ये थी कि एक ही परिवार की सरकार होने से कुछ लोगों को पूरा देश ही अपना घर और इसकी संपत्ति अपनी जायदाद लगने लगा था तो उन्होंने मनमर्जी से इसका भरपूर दोहन किया पर, सौ सुनार की तो एक लुहार की इसलिये सत्ता परिवर्तन होना था जो हुआ । ऐसा होते ही उनका तिलमिलाना क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप सामने आया क्योंकि, इन पांच सालों में उनका कच्चा चिट्ठा जनता के सामने आने लगा तो अब वापस बागडोर अपने हाथ में लेने सभी ठगों में मिलकर एक होने का प्लान बनाया । इसे भी समझदार अवाम समझ गयी कि इनको देश की नहीं खुद की फ़िक्र जिसकी खातिर ये हर दांव आजमा लेना चाहती इसलिये अब उसी जनता को खुश करने शैतानों ने भगवान की शरण लेने की ठानी । जिनके शब्दकोश में भी कहीं ‘हिन्दू’ शब्द नहीं था अब वे ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ जैसा नया शब्द लेकर आये और मन्दिर-मन्दिर की ख़ाक छानने लगे यहाँ तक कि तीर्थ यात्रा भी कर लिए जो कभी सोचा न था वो सब भी कर रहे और उनके इस बनावटी रूप को देखकर ‘रंगे सियार’ की कहानी याद कर जनता हंस-हंसकर लोटपोट हो रही है ।

जनता को पता कि चुनाव बाद ये रंग उतर जाना है फिर उसके पीछे छिपा भेड़िया सामने आ जायेगा जो अभी भगवान का नाम ले रहा, यज्ञ-पूजन कर रहा वो महज़ दिखावा वोट हथियाने का तरीका है । फ़िलहाल भले उसने अपनी मासूमियत, क्यूटनेस, स्माइल और मधुर वाणी की आड़ में अपने तीखे नाख़ून, अपने तेज सींग और राक्षसी दांत छिपा लिये पर, जैसे ही कुर्सी मिली सब बाहर आ जायेंगे जिससे ये फिर अपने नोचने-खसोटने का काम शुरू कर देंगे जो पहले से करते आ रहे है । इस बार तो वे अंतिम वार करेंगे क्योंकि, बहुत मजबूर होकर उन्हें हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों को अपनाना पड़ रहा जो कि इनकी स्वाभाविक प्रवृति नहीं है और कृत्रिमता कितने दिन ठहरेगी एक दिन तो पोल खुनी ही है । इसलिये अब समय आ गया कि हिन्दू इसे जितनी जल्दी हो समझ जाये अन्यथा अपनी सत्ता को फ्रीज करने ये कुछ ऐसा करेंगे जिससे कि हिन्दू फिर इनकी मुट्ठी में आ जाये यही इनकी असलियत है । ‘हिंदुत्व’ की ताकत उन तस्वीरों में झलकती जिसमें खुद को हिन्दू कहने से शर्माने वाले हिन्दू बने नजर आ रहे जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता क्योंकि, लम्बे इंतजार के बाद ये समय आया जो तभी थमेगा जब हम अपनी अहमियत समझेंगे नहीं तो अभी सिर्फ राम मन्दिर बनवाने को तरस रहे फिर जो शेष वो भी नहीं बचेंगे पहले भी तो यही हुआ है ।

कल ‘कमल हासन’ जिस इस देश की जनता ने सर आँखों पर बिठाया सुपर-स्टार बनाया उसने हिन्दू धर्म को कलंकित करने राष्ट्रपिता ‘महात्मा गाँधी’ के हत्यारे नाथूराम गोडसे को हिन्दू आतंकवादी कहा । वो उसे केवल आतंकी भी कहते तो शायद, उतना बवाल नहीं मचता लेकिन, उन्होंने जान-बुझकर उसे पहला ‘हिन्दू आतंकवादी’ कहा क्योंकि, उनका टारगेट और एजेंडा एकदम साफ़ कैसे भी हो हिन्दू धर्म के साथ इस शब्द को चिपकाना है जिसके लिये वे किसी भी हद तक जा सकते उस पर उन्हें पता कि हिन्दू धर्म को कुछ भी कहो वे लोग सब सुनकर चुप रहते है । ये हमारी स्वाभाविक प्रवृति जो हम धैर्य, शांति व क्षमा भाव को प्राथमिकता देते पर, यदि हमारी यही ख़ामोशी हमें कमजोर साबित कर दे तो सोचना लाज़मी है कि आखिर, क्यों सब हमारे धर्म पर ही लांछन लगाते रहते है क्योंकि, एक तो हम में एकजुटता नहीं दूसरे, हम पर शासन करना आसान है । गोडसे अगर, वाकई आतंकी होता तो हमारे भी 50-60 न सही कम से कम 5 या 6 तो ‘हिन्दू राष्ट्र’ जरुर होते लेकिन अफ़सोस कि एक भी नहीं है और जो बन सकता था उसे बनने भी न दिया गया क्योंकि, जब भारत के दो टुकड़े करने का निर्णय लिया गया तब ‘जवाहर लाल नेहरु’ को पाकिस्तान के पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र बनने पर तो कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन, हिंदुस्तान को हिन्दू राष्ट्र का दर्जा मिले ये मंजूर नहीं था । यहाँ तक कि ‘धर्म निरपेक्ष’ शब्द भी ‘भारतीय संविधान’ में बाद में जबरन जोड़कर नेताओं को एक ऐसा हथियार दे दिया जिसकी ढाल बनाकर ये केवल एक धर्म को ही सपोर्ट करते यहाँ तक कि ‘अल्पसंख्यक’ शब्द के मायने भी केवल एक समुदाय विशेष से लिये जाते है ।

हमें किसी भी मजहब से कोई समस्या नहीं और सब इस देश में मिलकर रहे ये भी हम सबने स्वीकार कर लिया लेकिन, बात अपने अस्तित्व को बचाने की हो तो चींटी भी काट लेती है तो वही करने की आवश्यकता है ।         
    
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १४, २०१९

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