‘प्रेस’ को
आज़ादी दिलाई गयी कि वो स्वतंत्र होकर निष्पक्ष रूप से अपनी बात दुनिया के समक्ष रख
सके और 3 मई को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर ‘अंतर्राष्ट्रीय
प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ घोषित किया ताकि, इसके माध्यम से संचार जगत से जुड़े लोगों
को ये याद दिलाया जाये कि उनकी कलम और शब्द उनके अपने है ।
वो किसी भी मसले या किसी भी प्रकरण पर बिना किसी दबाब या बिना किसी प्रतिरोध के
सटीक तथ्यात्मक सूचनायें जनता के सामने लाये जिसके आधार पर लोग अपनी राय बनाये न
कि उनको किसी एजेंडे के तहत ऐसी जानकारियां प्रस्तुत की जाये की उनकी मानसिकता भी
उसी के अनुरूप ढल जाये । इसी वजह से प्रेस को किसी भी मुल्क की आधारशिला
का चतुर्थ स्तम्भ माना गया जिस पर उसकी बुलंद इमारत खड़ी होती ऐसे में उसकी
जिम्मेदारियां भी अधिक बढ़ जाती क्योंकि, वो आज जो भी समाचार या फिर सूत्रों के
हवाले से जो भी आंकड़े या तथ्य पेश कर रहे वो कल इतिहास बनकर संदर्भ के रूप में
प्रयोग किये जायेंगे इसलिये उनका वास्तविक होना अत्यंत जरुरी है ।
जैसा कि आज के ‘डिजिटल
युग’ में हम सब देख रहे कि न केवल नये-नये न्यूज़ चैनल या समाचार पत्र दिन-ब-दिन
सामने आ रहे बल्कि, कुछ ऐसी वेबसाइट या पेज या ब्लोग्स भी जानकारों के द्वारा लिखे
जा रहे जिनका उद्देश्य केवल अपनी बात जिसे वो सही समझते उसी नजरिये से सबके सामने
पेश करना है । अधिकतर चैनल या न्यूज़ पेपर को देखकर लगता ही
नहीं कि ये निष्पक्ष है और निर्भीक रूप से सत्य व प्रमाणिक खबर दे रहे बल्कि, उनको
पढ़कर और देखकर ही समझ आ जाता कि ये किसके इशारे पर या किसके लिये इतनी मेहनत कर
रहे और किसका प्रचार कर रहे है । तब इनको देखने-सुनने के बाद मन के किसी कोने
में सवाल उठते कि...
क्या वाकई ये
स्वतंत्र है ?
क्या सचमुच ये
किसी के गुलाम नहीं है ??
क्या वाकई इन
पर किसी का प्रेशर नहीं है ???
तब इनके जवाब
में भीतर से ही कोई आवाज़ आता कि अब शायद, ही ये अपने उस नेक उद्देश्य के लिये
कार्यरत है क्योंकि, अब तो हर किसी के गले में किसी न किसी का पट्टा पड़ा और हर कोई
किसी ने किसी के एजेंट के रूप में काम कर रहा है ।
फिर इनकी ‘निष्पक्षता’ या ‘ईमानदारी’ दुर्लभ वस्तुयें प्रतीत होती जिसे बेचकर या
गिरवी रखकर ही ये व्यक्ति या दल विशेष के प्रवक्ता बने नजर आ रहे है ऐसे में
इन्हें सच्चा, जुझारू व निर्भीक पत्रकार या संवाददाता कहने में हिचक होती है । कभी इस देश में ही ये आलम था कि सच्ची खबर जनता के बीच पहुँचाने की
खातिर ये सत्ता से टकराने में भी नहीं घबराते थे और जो भी जानकारियाँ इन्हें
प्राप्त होती उसे ज्यों का त्यों सबके सामने परोस देते थे ।
फिर उसे सुनने या पढ़ने वाला अपनी राय कायम करता था पर, अब तो सब कुछ प्री-प्लान
एवं रेडीमेड होता जिसमें कितना बताना, कितना छिपाना और किस तरह से बताना सब कुछ
पूर्व निर्धारित बोले तो स्क्रिप्टेड होता है ।
स्वार्थ के इस
दौर और इन विकट परिस्थितियों में चंद ऐसे रिपोर्टर है जो जन जोखिम में डालकर भी
पत्रकारिता धर्म निभा रहे और इस प्रयास में लगे कि लोगों को हर हाल में हक़ीकत बताई
जाये पर, अफ़सोस कि लोगों को डिजाइनर जर्नलिस्ट तो पसंद आते लेकिन, जो सच दिखा या
बता रहे होते उनकी बुराई करते उनको झूठा बताते है ।
इन सबका का नेगेटिव इफ़ेक्ट ये होता कि लोगों का सभी पर से विश्वास उठ जाता और उन्हें
सच भी झूठ लगता और जो भी खबर दिखाई या प्रिंट की जाती वो उसे संदेह की नजरों से देखता
जिसने पत्रकारों की निष्ठा व पारदर्शिता को कठघरे में खड़ा कर दिया है । आज का दिन उनको आईना दिखाने के लिये मुफीद कि वे जो पूरी दुनिया व
समाज को आईना दिखाते एक बार खुद भी उसमें झाँक ले कि क्या वे वही है जो ये सोचकर
पत्रकार जगत में आये थे कि देश-दुनिया की सच्चाई से सबको अवगत करवायेंगे मगर,
सिक्कों की खनक के आगे ईमान डोल गया तब किस तरह से वो खुद का सामना करते होंगे ।
आज ‘विश्व
प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ पर समस्त सत्यनिष्ठ पत्रकारों को बधाई जो अपने पेशे के
प्रति समर्पित और जो एजेंट बने किसी पार्टी के उनको यही सन्देश कि लौट आये वापस
वहां, सच्ची खबरें राह तक रही जहां... जय हिन्द... !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
मई ०६, २०१९
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