जीवन का होता
एक
स्थायी सत्य
जो सबकी
अंतरात्मा में
निवास करता है
मगर, किसी में
ये सोया तो
किसी के भीतर
ये जागृत होता है
सबको नहीं
दिखता
ये चिरसत्य
जिसको पाना ही होता
है
जीवन का लक्ष्य
इसका ज्ञान तो
केवल
‘आत्मदर्शन’ से
ही होता है
मन की गहन
कंदरा में
जल उठती जब भी
दिव्य ज्योत
छिपा वो दर्शन
झलकता है
ध्यान-अध्यात्म
के माध्यम से इसे पाना
योगियों का
ध्येय होता है
फिर इस
साक्षात्कार से मिलता
जो दुर्लभ आत्मज्ञान
उसे समस्त
संसार में वितरित करना
भटकतों को
मार्ग दिखाना
साधक के जीवन
का उद्देश्य बन जाता
उच्च मनोबल से
ही तो
उसे आत्मसात
किया जा सकता
अंतर्मन की
आत्मिक आस्था के बिना
न मुक्ति मिलती
न ही मिलता
निर्वाण है
आत्मबल की
रौशनी से ही फिर
अज्ञानता का
तमस मिटता
सत्य और ज्ञान
का सूर्य उदित होता
तोड़ देता जो
सारे भ्रम
मिल जाता ब्रम्ह
देवगण भी आकाश
से उस पर
आशीषों की
वर्षा करते
घटित हुआ कुछ ऐसा
ही
जिस दिन
राजकुमार सिद्धार्थ को हुआ
जीवन की
निरर्थकता का बोध
छोड़ दिया
राजमहल
त्याग दिये
सारे जीवन के सुख
एकांत साधना
में हुआ
आत्मसाक्षात्कार
मोक्ष प्राप्ति
का स्वप्न
एकाएक ही हो
गया साकार
उसी क्षण हुआ मानो
चमत्कार
बना ‘बुद्ध’ राजकुमार
।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
मई १८, २०१९
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