शनिवार, 4 मई 2019

सुर-२०१९-१२४ : #पाषाण_नहीं_इंसान_बनो



अब तक इंसान
पूरी तरह पत्थर नहीं हुआ है
क्योंकि, अब भी
कुछ स्थानों पर वार हो तो 
चोट का अहसास होता है उसको
शायद, कुछ मर्मस्थान
अब भी बगावत करते है जिस्म के
नहीं होना चाहते
वो उन खुबसूरत और मार्मिक
संवेदनाओं से जुदा इसलिये,
खुद को पत्थर में ढ़लने नहीं देते है
.....
जिस दिन
पंचतत्वों से बना शरीर
जिसमें कठोरता का कोई अंश
शामिल नहीं होता
बन जायेगा ‘संवेदनहीन’
हर एहसास से परे
तब क्या फर्क रह जायेगा
उस इक बुत में
जिसे तराशा संगतराश ने
और किसी ‘मानव’ में
जो बनाया है
इश्वर ने खुद अपने हाथों से
पर, फिर भी इंसान
न जाने क्यूँ बदलता जा रहा
पत्थर की एक शिला में
मगर, अब भी
पूरी तरह नहीं बदला इंसान
पूरा पत्थर नहीं हुआ
उसके सीने में धड़कता है
नाजुक अहसासों के
कोमल तंतुओं से बना ‘दिल’
जो कमजोर होता
महसूस करता सूक्ष्मतम
मानवीय संवेगों को
पत्थर होना नहीं चाहता है
.....
कोई कितने भी
कपाटों में बंद कर ले
बना ले खुद को
कितना भी मजबूत उपर से
पर, होता नरम भीतर से
तो हो जाता मजबूर
जब होता उसका सामना
भावुकता से भरे किसी क्षण से
या गुजरता किसी मार्मिक वाकये से
जो हिला देता उसके
संपूर्ण वजूद को
तब स्वयं के इस छिपे
अनजाने रूप से परिचय होता
जिसका वो समझता कि,
पाषाण हो चुका
ये पल ही बताता कि
कठोर पहाड़ों से ही तो फूटता
निर्मल मनोवेग का झरना
जो वापस उसे इंसान बना देता है  
.....
     
#संवेदना_बचाओ
#मानवता_को_सहेजो  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई ०४, २०१९

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