शुक्रवार, 17 मई 2019

सुर-२०१९-१३७ : #कुल_नहीं_कर्म_देवता_बनाते #इसलिये_प्रह्लाद_राक्षस_न_कहलाते




'हिरण्यकश्यप' और 'प्रह्लाद' दोनों एक ही कुल में जन्मे एक ने 'पिता' तो दूजे ने 'पुत्र' का रूप पाया फिर भी स्वाभाविक प्रवृतियां दोनों की एकदम उलट बोले तो पूरब-पश्चिम की तरह विपरीत एक को ईश्वर के नाम से नफरत थी तो दूसरा उनका अनन्य भक्त था और उनकी यही विचारधारा बताती कि 'राक्षस' या 'देवता' कोई अलग-अलग जात या व्यक्ति नहीं बल्कि, 'मानव' के ही दो भिन्न स्वरूप है ।

इंसान अपनी करनी से खुद को 'दानव', 'मानव' या 'भगवान' बना सकता है जैसा कि इनकी कहानी में भी देखने में आता है 'हिरण्यकश्यप' में कोई भी कमी नहीं थी केवल, उसकी परवरिश व परिवेश ने उसके भीतर हिंसक वृतियां अधिक विकसित कर दी जिससे वो ऋषि 'कश्यप' का पुत्र होकर भी 'राक्षस' कहलाया जिसकी वजह उसकी मां 'दिति' को माना जाता है जो इसी तरह की नकारात्मक शक्तियों वाले पुत्र की कामना करती थी ।

वही दूसरी तरफ 'हिरण्यकश्यप' की पत्नी 'कयाधु' है जो दानव 'जम्भ' की पुत्री होने के बाद भी विचारों से पवित्र और करुणामय हृदय की ईश्वर भक्त स्त्री है और अपने पति की दुष्ट प्रवृतियों को जानते हुये भी नहीं चाहती कि उसकी सन्तान में भी वही दुर्गुण आये तो वो अपने पति से अनजाने में नारायण-नारायण का 108 जाप करवा लेती है जिससे उसके भीतर भ्रूण रूप में स्थित 'प्रह्लाद' के अंतर में इशभक्ति का बीजारोपण होता है और ‘भक्त प्रह्लाद’ राक्षस पुत्र होकर भी ‘भगवान’ कहलाते है ।

यही इसी परिवार में 'हिरण्यकश्यप' की बहिन 'होलिका' भी है जो अपने भ्राता की ही तरह खराब सोच वाली है और वह भी अपने भाई की तरह ये जानकर कि उनके खानदान में जगतपालक विष्णु के परम भक्त ने अवतार लिया है उसका नामो-निशान मिटा देना चाहती है लेकिन, उसकी इन हरकतों से उस नन्हे बालक को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि, उसी की मृत्यु हो जाती है फिर भी उसके भाई को समझ नहीं आती है ।

'हिरण्यकश्यप' के अत्याचार उस मासूम पर लगातार जारी रहते है पर, हर बार उसके इष्ट देवता उसकी जान बचा लेते है और अंततः उसको कष्टों से पूर्णतया स्वतंत्र करने के लिये वे 'नृसिंह' के विकराल रूप में आते है जिसमें 'हिरण्यकश्यप' को क्षत-विक्षत कर धरती को भी उसके पापों से मुक्त कर देते है और ये सब होता है वैशाख के पावन महीने की पुण्यदायी चतुर्दशी को जिसे 'नृसिंह जयंती' के रूप में मनाया जाता है ।

भक्त शिरोमणि 'प्रह्लाद' की ये प्रेरक कहानी बताती है कि इंसान किसी भी कुल, परिवार या जात में जन्म लेकर अपने कर्मों से अपनी श्रेणी को बदल सकता और यही हिन्दू धर्म का सबसे शक्तिशाली तथ्य जो सदियों से अनगिनत आततायियों के शासन व जुल्मों-सितम के बावजूद भी उसके अस्तित्व को समूल नष्ट नहीं होने देता और न ही कभी ये मिटेगा जब तक कि उसके मानने वाले उसके मूल तत्व को सहेजकर रखेंगे जो कि एक सार्वभौमिक सत्य है ।

प्रत्येक वर्ष 'वैशाख माह' में इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाना और विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करना हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति व धर्म से जोड़े रखता अतः जब भी हिन्दू धर्म का कोई तीज-त्यौहार आये पूरे दिल से खुश होकर उसके महत्व को समझते हुये उसे जोर-शोर से मनाये । यही छोटे-छोटे सूत्र जो हमें अपनी प्राचीनकालीन परंपराओं से जोड़े रखते अन्यथा टूटे पत्ते की तरह न जाने कब के कहाँ बिखर जाते, न जाने कहाँ पहुंच जाते अध्यात्म का ये रसायन दूर परदेस में भी सबको एक डोर से बांधकर एक साथ रखता है ।

सभी को 'नृसिंह भगवान' के प्रकटोत्सव व भक्त प्रह्लाद के अटूट विश्वास के विजय के प्रतीक इस उल्लेखनीय दिवस की बहुत-बहुत बधाई... 💐💐💐 !!! 
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई १७, २०१९

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