बुधवार, 1 मई 2019

सुर-२०१९-१२१ : #सुपर_स्टार_बने_मज़दूर #फिर_भी_बदलाव_बहुत_दूर




१ मई का पर्याय बन चुका है ‘मजदूर दिवस’ जो कि लगभग 130 वर्षों से ज्यादा समय से मनाया जा रहा है और श्रमिकों को उनका हक मिले इसके लिये तमाम प्रयास सभी श्रमिक हित संगठनों के द्वारा किये जा रहे है जिसमें बॉलीवुड का भी सहयोग रहा और बड़े-बड़े अभिनेताओं ने अपनी दमदार भूमिका के माध्यम से उसके जीवन के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाने अलग-अलग रूप धरकर उसके बहु-आयामी व्यक्तित्व को रजत पर्दे पर प्रस्तुत किया जिससे कि आम जनता भी उसके निजी जीवन व उसकी परेशनियों को समझ सके और जितनी भी फ़िल्में उनके जीवन पर बनी उन सभी ने जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी आज इस अवसर पर कुछ चुनिन्दा फिल्मों की नजर से ये जानने की कोशिश करते है कि क्या उससे मजदूरों के जीवन में कोई परिवर्तन हुआ या केवल उन अभिनेताओं को ही अपने रोल के लिये सराहना और पुरस्कार मिले...

सबसे पहले क्रम में याद आ रही है 1953 में बनी ‘दो बीघा जमीन’ जिसमें महान अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले ‘बलराज साहनी’ ने ‘कृषक’ व ‘रिक्शेवाले’ दो किरदारों को एक साथ निभाया था जिन्हें ‘श्रमिक’ की श्रेणी में रखा जा सकता है और इसमें उन्होंने उस पीड़ा की हूबहू अभिव्यक्ति की थी जिससे एक मजदूर को प्रतिदिन गुजरना पड़ता है और उनके पात्र ‘शम्भू’ ने देश ही नहीं विदेश में रहने वाले दर्शकों को भी प्रभावित किया और अनेक सम्मान इसे हासिल हुये पर, प्रश्न ये है कि क्या इसके बाद लोगों का उन रिक्शेवालों के प्रति नजरिया बदला या उनके प्रति कोई इंसानियत का भाव जगा जिससे कि उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर ये महज़ एक कहानी के सिवा कुछ भी  नहीं क्योंकि, किसी सामाजिक सन्देश वाली फिल्म को बनाने का उद्देश्य तो यही होता कि वो माहौल में कोई परिवर्तन लाये यदि ऐसा नहीं होता तो फिर वो सिर्फ एक ड्रामा ही कहलायेगा जिसे देखकर लोग भूल जाते है

इसी तरह 1983 में आई स्टार ऑफ़ मिलेनियम ‘अमिताभ बच्चन’ की एक सुपर हिट फिल्म ‘कुली’ जिसमें उन्होंने दूसरों का बोझा उठाने वाले ‘कुली’ का किरदार ही निभाया था उसमें एक संवाद था 'मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए जनाब' जो कि मजदूरों की मेहनत को सटीक तरीके से बताता है जिसका मूल्य तुरंत चुकाना चाहिये फिर भी हकीकत एकदम इसके उलट यहाँ तो उसके दाम को लेकर ही बड़ी देर तक बहस चलती उसके बाद भी अक्सर तय रकम से कम ही दी जाती जबकि, उन्हीं व्यक्तियों के द्वारा बेवजह पैसों को नशे या मौज-मस्ती में लूटा दिया जाता लेकिन, एक मजदूर को देते समय एक-एक पाई ही नहीं एक-एक मिनट का हिसाब किया जाता तो ऐसे में यही महसूस होता कि फिल्म देखकर उसके संवाद सुनकर हम भले तालियाँ बजाये या उसे दोहराये लेकिन, वो व्यर्थ है यदि हम उसको अपने जीवन में न अपनाये तो यही हो रहा कि हम इस बात के मायने ही भूल जाते जब किसी मजदूर से उसकी मजदूरी पर लम्बी बहस करते है   

1983 में ही ‘ट्रेजेडी किंग’ के नाम से मशहूर अभिनय सम्राट ‘दिलीप कुमार’ ने ‘मजदूर’ नाम से ही एक फिल्म में अभिनय करते हुये फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिक वर्ग की अनगिनत परेशनियों व उनके निजी जीवन को दर्शकों के सामने रखा और उसे फर्श से अर्श तक का सफर पूर्ण कर गरीबी से निजात पाते दिखाया गया और इसी फिल्म में अजीम शायर ‘फैज़ अहमद फैज़’ के एक गीत का ‘हसन कमाल’ ने अपने तरीके से खूब इस्तेमाल किया गया जो मजदूरों की महत्ता ही नहीं उनको दिये जाने वाले मेहनताने की नगण्यता को भी ज़ाहिर करता है क्योंकि, जो हम उसको देते वो उससे अधिक का हकदार होता और यदि किसी दिन उसने अपने जायज हिस्से की माग की तो वो क्या होगी उसे हम इस गीत के जरिये समझ सकते है जिसका एक-एक शब्द उसकी मेहनत का यथार्थ आंकलन करता है...

हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
एक बाग़ नहीं, एक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे

दौलत की अँधेरी रातों ने मेहनत का सूरज छुपा लिया
दौलत की अँधेरी रातों से हम अपना सवेरा मांगेंगे

क्यों अपने खून पसीने पर हक़ हो सरमायादारी का
मजदूर की मेहनत पर अब हम मजदूर का कब्ज़ा मांगेंगे
   
इसे हम सुनकर गाते जरुर है पर, मजदूरों के अधिकार उसको नहीं देते ये भूल जाते कि यदि किसी दिन सचमुच उसने अपने हिस्से की मांग कर ली तो हमारे लिये कुछ न बचेगा इसलिये जरुरी कि हम उसका पसीना सूखने से पहले उसके परिश्रम का सही दाम चुका दे तब ही इन फिल्मों का बनाया जाना सार्थक होगा व मजदूरों को भी सम्मान से जीने का अवसर हासिल होगा तो आज ‘मजदूर दिवस’ पर हम यही संकल्प ले कि सभी मजदूर को उनके काम ही नहीं श्रम की वजह से सही दाम ही नहीं पर्याप्त आदर भी देंगे तब ही समाज में समानता आयेगी अन्यथा दूरी बनी ही रहेगी जो मेहनतकश के साथ अन्याय है                  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मई ०१, २०१९

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